Friday 28 February 2014

थर्ड पंट कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा

तथाकथित छोटे-छोटे सूबेदारों जिनमें से कई पुंके कारतूस हैं, का मानना है कि लोकसभा चुनाव का यह गेम थर्ड पंट बनाम भाजपा हो सकता है। गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा के थर्ड पंट में 11 दलों ने पेश किया विकल्प। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नीत संपग को पराजित करने और भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए नई दिल्ली में 11 दलों ने एकजुटता दिखाते हुए खुद को उनके विकल्प के रूप में पेश किया। इसकी घोषणा जद-यू, वाम दल, समाजवादी पाटी, अन्नाद्रमुक सहित विभिन्न छोटे दलों के नेताओं की बैठक के बाद की गई। एक घंटे से अधिक चली बैठक के बाद माकपा महासचिव पकाश करात ने कहा कि 11 पार्टियां संपग को हराने के लिए मिलकर काम करेंगी, जिसके शासन में व्यापक भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ी है। करात ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस की नीतियां भी समान हैं। बहरहाल नेताओं ने यह फैसला भी किया है कि पधानमंत्री पद के उम्मीदवार के जटिल मुद्दे को चुनाव के बाद देखा जाएगा। इन नेताओं का मानना है कि कांग्रेस काफी पीछे छूट गई है और आगामी चुनाव में भाजपा के खिलाफ थर्ड पंट ही रेस में है, अपनी पोजीशन में है। यह बहुत पचलित कहावत है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। यह बात चुनावों से ठीक पहले कुछ ज्यादा ही सच दिखाई लगती है। देश की केन्द्राrय राजनीति में लगभग 18 सालों से किसी एक पाटी का राज नहीं रहा है और फिलहाल गठबंधन राजनीति का कोई विकल्प भी देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में तमाम पार्टियां अपने-अपने विकल्प तलाशने में जुटी हुई हैं। इस राजनीतिक माहौल में एक बात स्पष्ट है कि ऐसा कोई खास विचारात्मक अलगाव पार्टियों के बीच नहीं है। अगर इन पार्टियों का कोई समान स्वार्थ है तो वह बस इतना कि भाजपा का विरोध कर केन्द्राrय सत्ता में आना। कांग्रेस का कहना है कि थर्ड पंट के रेस में होने या चुनाव के बाद सरकार बनाने की बातें कल्पना और गलत आंकलन भर ही है, गुमराह करने की कोशिश है। यूपीए सरकार में शामिल एक भी दल अलग नहीं हुआ है, साथ ही वोटर के सामने यह भी है कि मुलायम सिंह यादव हों या मायावती, सारा विरोध दिखाने के बावजूद दोनों ही सरकार को समर्थन दे रहे हैं। जनता ने यह देखा है और देख भी रही है। दूसरे यह जो 11-12 दल साथ मिल रहे हैं वे क्या खुद 272 का जादुई आंकड़ा पार कर पाएंगे? वे किसकी मदद से सरकार बनाएंगे? जिस पंट में मुलायम हों क्या मायावती उसे समर्थन दे सकती हैं? जिस पंट में लेफ्ट पार्टियां हों क्या ममता बनजी समर्थन दे सकती हैं? जिस पंट में नीतीश कुमार हें, क्या लालू यादव उसे समर्थन दे सकते हैं? क्या जयललिता और करुणानिधि साथ-साथ बैठ सकते हैंजहां पर जगनमोहन रेड्डी या किरण रेड्डी में से कोई हो, क्या वहां चंद्रबाबू नायडू हो सकते हैं? इतने विरोधाभास हैं और यह नेता थर्ड पंट सरकार बनाने के अपने सपनों को साकार बनाने में जुट गए हैं। दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की हवा है, चौतरफा तूफान उठ रहा है, कोलकाता में 2 लाख की भीड़, बाकी सब जगह भीड़ ही भीड़, यह देखकर कांग्रेस और बाकी दलों के नेता परेशान हो उठे हैं। गैर यूपीए दलों के नेताओं ने इकट्ठे होकर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने, अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने या बचाने के लिए भानमती का कुनबा जोड़ा है। उनका शायद यह भी मानना है कि साम्पदायिक ताकतों के विरोध के नाम पर एक बार फिर कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे। उनकी जैसी भाषा की तरफ ही अब अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पाटी भी बढ़ती दिख रही है। दो दिन पहले ही केजरीवाल ने कहा कि साम्पदायिकता, भ्रष्टाचार से भी ज्यादा खतरनाक है। इस भाषा से केजरीवाल गैर भाजपा दलों के साथ लिंक खोल सकते हैं। यानि तब केजरीवाल के लिए मुलायम सिंह यादव और अपनी लिस्ट में ऐसे ही अन्य कई नेता करप्ट नहीं रहेंगे? वह ऐसा कर सकते हैं, दिल्ली में भी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाकर ऐसा कर भी चुके हैं? लेकिन इस बार साम्पदायिता के खिलाफ एकजुट होने का यह छलावा अगर वह करते हैं तो कितने कामयाब होंगे यह पश्न अलग है। 1996 के इस पयोग से जनता काफी आगे निकल आई है और मोदी के लिए एकतरफ समर्थन उफान पर है। वैसे भी थर्ड पंट पधानमंत्रियों से भरा है, मुलायम सिंह यादव, जयललिता, नीतीश कुमार, पकाश करात, देवगौड़ा सभी दावेदार हो सकते हैं पर जनता इस बार सतर्क है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के जन्मदिन समारोह में संसद की अनुकृति वाले वजनदार केक का इस्तेमाल करके बता दिया गया है कि देश की सबसे ताकतवर कुसी के लिए एक और असरदार पत्याशी उपलब्ध है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनजी को जब से अन्ना हजारे ने समर्थन दिया है तब से लाल किले पर झंडा फहराने के सपने देखने लगी हैं। राजीव गांधी की हत्या में शामिल तमाम लोगों को जेल से रिहा करने की घोषणा कर जयललिता आने वाले चुनावों में इसकी भरपूर फसल काटने के सपने देख रही हैं। लेकिन तीसरे मोर्चे की घोषणा के वक्त असमगण परिषद और बीजू जनता दल के शीर्ष नेतृत्व की गैर हाजिरी पर उठते सवालों ने इस पहल का रंग थोड़ा फीका तो कर ही दिया है। अफरातफरी में की गई इस थर्ड पंट की घोषणा में साझा न्यूनतम कार्यकम की बात भी जिस हल्के अंदाज में की गई उसके संकेत भी अच्छे नहीं है। हमारा तो हमेशा से यह मानना रहा है कि जब-जब थर्ड पंट यानि गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा केन्द्र की सत्ता में आया है देश कई वर्ष पीछे चला गया है। इन छोटे-छोटे सूबेदारों की सोंच भी अपने पांत तक ही रहती है और एजेंडा भी पांत तक सीमित रहता है। मुझे याद है कि जब देवगौड़ा पधानमंत्री बने थे तो वह कर्नाटक से बाहर ही नहीं निकल पाए। इसलिए देश हित में यही है कि या तो भाजपा नेतृत्व में केन्द्र सरकार बने या फिर कांग्रेस नेतृत्व में। यही दो पार्टियां ऐसी हैं जिनका राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय विजन है, दृष्टि है। मुझे तो इस तथा कथित थर्ड पंट से कोई उम्मीद नहीं है। यह तो भानमती का कुनबा है, कहीं की ईंट तो कहीं का रोड़ा।

-अनिल नरेन्द्र

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