Saturday, 8 February 2014

चौथी बार तीसरा मोर्चा, मकसद सत्ता में आना और मोदी को रोकना

गैर कांग्रेसöगैर भाजपा 11 पार्टियों ने एक बार फिर साझा मोर्चा बनाने की कवायद तेज कर दी है। यूं कहें कि एक बार फिर तीसरा मोर्चा आकार लेने लगा है। शुरुआती तौर पर 11 पार्टियों ने संसद में साझा रणनीति से चलने का ऐलान किया है। इनमें चारों वाम दलों के अलावा समाजवादी पाटी, जद यू, जद(एस), अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल, असम गण परिषद और झारखंड विकास मोर्चा शामिल है। जल्दबाजी में दर्जनों बिल पास करवाने की सरकार की मंशा को भी ये पार्टियां नाकाम करने की पूरी कोशिश करेंगी। हाल तक  भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के संयोजक रहे शरद यादव अब नए मोर्चे में सकिय भूमिका में आ गए हैं। बुधवार को इन दलों की बैठक के बाद उन्होंने दावा किया कि यह साझेदारी अहम संसदीय पकिया तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि जल्द ही सभी दलों का साझा कार्यकम भी सामने आएगा। उन्होंने कहा हमारा कार्यकम यह सुनिश्चित करना है कि लोग कैसे अपनी आजीविका चला सकें, देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को कैसे सुरक्षित रखा जा सके और भ्रष्टाचार को कैसे काबू किया जाए? 15वीं लोकसभा का यह आखिरी सत्र है, जिसके खत्म होने में सिर्फ दो हफ्ते बचे हैं। अगर मौजूदा लोकसभा में इन 11 दलों की ताकत की बात करें तो इनके पास 92 सीटें हैं। यह मोर्चा क्यें बना है? जवाब है कि 1996 में लोकसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। भाजपा (161+26) 13 दिन की ही सरकार बना सकी। कांग्रेस (140) ने कोशिश ही नहीं की। ऐसे में जनता दल, सपा, टीडीपी के नेशनल पंट (79) और लेफ्ट पंट (52) ने अन्य दलों के साथ मिलकर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। इस बार भी इन दलों को  ऐसी ही उम्मीद है। इनका आंकलन है कि 2014 लोकसभा चुनाव में भी न तो भाजपा को और न ही कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने जा रहा है। त्रिशंकु संसद में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। कांग्रेस भी यही चाहती है। भाजपा को दूर रखना सभी का उद्देश्य पतीत होता है। कांग्रेस तो जानती है कि वर्तमान माहौल में 100 से कम ही सीटें मिलने के आसार हैं। भाजपा के 200+ तक सीमित होने का कांग्रेस का आंकलन है। तीसरा मोर्चा पहले भी बना और बुरी तरह फेल हुआ है। 1989-90 में नेशनल पंट बना और वीपी सिंह पधानमंत्री बने। यह सरकार साल भर चली। 1996-97 में यूनाइटेड पंट बना जिसके पास 192 सीटें थी और एचडी देवेगौड़ा पीएम बने। यह सरकार भी साल भर ही चल सकी। 1997-98 में युनाइटेड पंट 178 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हो गया और गुजराल पीएम बने और यह भी साल भर ही सरकार चला सके। इतिहास गवाह है कि जब-जब तीसरे मोर्चे की सरकार बनी है देश कई साल पीछे हो गया है। यह सूबेदार इकट्ठा तो हो जाते हैं पर इनका एजेंडा राज्य स्तर का होता है। इनमें राष्ट्रीय विजन नहीं होता। देवगौड़ा कभी भी कर्नाटक से बाहर नहीं निकल सकते। वीपी सिंह सिर्फ मंडल के मिशन लागू करने के लिए पीएम बने। फिर इन नेताओं में एक से ज्यादा पीएम पद के उम्मीदवार हैं। पीएम कौन बनेगा यह तय करना भी आसान नहीं होता। अगर कामन मिनिमम  पोग्राम के आधार पर कोई संयुक्त मोर्चा बनता है तो वह सफल हो सकता है। उसमें पीएम कौन होगा, यह भी पहले से तय करना होगा।

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