गुरुवार को लोकसभा में जो हुआ उसने पूरे देश का सिर
शर्म से झुका दिया है। अगर इसे लोकसभा के इतिहास में काला दिन कहें तो गलत नहीं होगा।
लोकसभा के इतिहास में ऐसा बदनुमा दाग पहले कभी नहीं लगा। स्पीकर ने इस घटना को शर्मनाक
और गन्दा बताते हुए आंध्र पदेश के
16 सांसदों को 5 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया है। हुआ यूं कि सुबह 11 बजे
ही तेलंगाना बिल के विरोध पर सदन की कार्यवाही टालनी पड़ी थी। 12 बजे गृहमंत्री सुशील कुमार श्ंिादे बिल पेश करने के लिए खड़े हुए तो स्थिति
बिगड़ गई। टीडीपी के वेणुगोपाल रेड्डी लोकसभा महासचिव की कुसी पर चढ़कर अध्यक्ष की
मेज पर रखे कागजात छीनने लगे। उन्होंने पेपर वेट उठाकर महासचिव की मेज पर रखा,
शीशा तोड़ दिया। आरोप तो यह भी है कि वेणुगोपाल ने चाकू लहराया,
लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया और कहा कि मेरे हाथ में टूटा हुआ
माइक था जो चाकू जैसा लगा होगा। कांग्रेस से हाल ही में निकाले गए सांसद एल राजगोपाल
ने फिर चौंकाते हुए काली मिर्च का स्पे चारों ओर छिड़क दिया। सदन और दर्शक दीर्घा में
बैठे लोगों को खांसी होने लगी। दम घुटने और आंखों में जलन की शिकायत पर डाक्टरों को
बुलाना पड़ा। 3 सांसद विनय कुमार पाण्डे, पोन्नम पभाकर और पी बलराम नाइक कोडा को राम मनोहर लोहिया अस्पातल ले जाया गया,
जहां बाद में उन्हें छुट्टी दे दी गई। दोपहर 2 बजे कार्यवाही शुरू होते ही हंगामा फिर शुरू हो गया तो स्पीकर ने
16 सांसदों को 5 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया। इनमें कांग्रेस, टीडीपी
और वाईएसआर कांग्रेस के सांसद हैं। जहां इस शर्मनाक घटना के लिए टीडीपी और कांग्रेस
के सांसद जिम्मेदार हैं वहां हम समझते हैं कि केन्द्र की यूपीए सरकार और कांग्रेस भी
इस शर्मनाक स्थिति के लिए कम जिम्मेदार नहीं। समझ नहीं आया कि क्या सोचकर कांग्रेस
आलाकमान ने सरकार से इस बिल को पेश करने को कहा? तेलंगाना बिल
और आंध्र पदेश के विभाजन को लेकर कई दिनों से विरोध चल रहा था। खुद कांग्रेसी मुख्यमंत्री
इसके विरोध में दिल्ली आकर धरने पर बैठ गए थे। आंध्र विधानसभा ने इस पस्ताव को रिजेक्ट
कर दिया था। इन परिस्थितियों में इसको पेश करके कांग्रेस पाटी ने खुद अपने पांव पर
कुल्हाड़ी मारी है। वह कहावत है न कि चौबे गए थे छब्बे बनने, दुबे बनकर आए सही बैठती है। अब कांग्रेस को दोनें तरफ से नुकसान होगा। इससे
एक और बात भी साबित होती है कि कांग्रेस आलाकमान की अपने सांसदों पर पकड़ कितनी कमजोर
हो गई है। पिछले सात दिनों से कांग्रेस के सीमांध्र व तेलंगाना क्षेत्र के सांसद हंगामा
कर रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान उनके खिलाफ कुछ भी कार्रवाई करने से कतरा रहा है और
वह भी ऐसे समय जब लोकसभा का अंतिम सत्र हो और राहुल गांधी के आधा दर्जन ड्रीम बिल पारित
होने के लिए लाइन में हो? पता नहीं अब लोकसभा सुचारू रूप से चलेगी
भी या नहीं। अगर नहीं चली तो धरा धराया रह जाएगा राहुल का भ्रष्टाचार विरोधी बिल। सांसदों
में भी असुरक्षा की भावना है। उनको इस सत्र के बाकी दिनों में कोई ज्यादा दिलचस्पी
नहीं है। वह अपने चुनाव
क्षेत्र में अविलम्ब वापस जाना चाहते हैं। बहुतों को तो यह भी चिंता सता रही है पता
नहीं कि कांग्रेस आला कमान इस बार टिकट देता भी है या नहीं? कांग्रेस
आलाकमान को इतना तो मालूम ही था कि यह लोकसभा का अंतिम सत्र है और महत्वपूर्ण बिलों को पास करने
का अंतिम मौका। बेहतर यह होता कि वह अपनी फ्लोर मैनेजमेंट बेहतर करके पहले ही दिन इन
16 सांसदों को सस्पेंड करके कम से कम राहुल के महत्वपूर्ण बिल पास करवा
लेता? लगता है कि कांग्रेस के फ्लोर मैनेजमेंट धरे धराए रह गए।
अब यह भी विवाद का मुद्दा बन गया है कि आंध्र पदेश पुनर्गठन विधेयक 2014 पेश हुआ है या नहीं? सरकार कह रही है कि बिल पेश हो गया है पर भाजपा सरकार के इस दावे को मानने
से इंकार कर रही है। भाजपा ने कहा कि चूंकि संसदीय पकिया का अनुसरण नहीं हुआ है इसलिए
वह इस विधेयक को पेश होने को स्वीकार नहीं करती है। लोकसभा के नेता पतिपक्ष ने पूरे
घटनाकम में कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा जो कुछ हुआ है वह कांग्रेस द्वारा
रचा गया है क्येंकि कांग्रेस ऐसी अव्यवस्था पैदा करना चहती थी जिससे सभी सदस्य लोकसभा
से चले जाएं और तब वह ऐसा दावा कर सके कि तेलंगाना विधेयक पेश हो गया है। तेलंगाना
विधेयक पेश होने के दावे को ठुकराते हुए सुषमा ने कहा कि उन्हें कोई पूर्व सूची उपलब्ध
नहीं कराई गई और न ही सदन की कार्यवाही में इसे सूचीबद्ध किया गया। जैसा मैंने कहा
कि भारत के संसदीय इतिहास में गुरुवार का दिन एक काला धब्बा है जिसमें संसद की गरिमा
तार-तार हो गई।
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