Wednesday 26 February 2014

यूप्रेन में रूस विरोधियों का पलड़ा भारी दिख रहा है

कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ हुए विद्रोह के कारण 1991 में सोवियत यूनियन गणराज्य समाप्त हो गया था और एक दर्जन राज्य अलग-अलग देश बन गए थे। कुछ पर यूरोपीय पभाव बढ़ा, कुछ पर रूस का पभाव रहा और कुछ एशियाई पभाव में रहे। इन्हीं में से एक राज्य देश यूपेन है। सत्तारूढ़ होने के बाद रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन यूपेन को रूस के पभाव में लाने की कोशिश करने लगे। मगर इसके खिलाफ भी विद्रोह की स्थिति बनी। पिछले कुछ दिनों से यूपेन में सियासी उठापटक चल रही है। राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के खिलाफ यूकेन की राजधानी कीव में जबरदस्त संघर्ष चल रहा है। राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने ताजा खबरों से पता चला है, राजधानी कीव छोड़ दी है और देश के पूवी हिस्से में चले गए हैं। राजधानी से बाहर निकलने और अपने धुर विरोधी यूलिया तिमोशेंको की जेल से रिहाई के बाद रविवार को यूपेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के ठिकाने का अता-पता नहीं चल रहा। यूलिया ने रविवार को कीव आकर एक विशाल जनसभा को संबोधित किया था। यूपेन की समाचार एजेंसियों ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि यानुकोविच जिस निजी विमान में सवार थे, उसे पूवी यूपेन के दोनेत्सक शहर से उड़ान भरने की मंजूरी नहीं दी गई। दोनेत्सक राष्ट्रपति का गढ़ समझा जाता है। राजधानी कीव का मध्य क्षेत्र शनिवार को देश के राजनीतिक संकट में आए बदलाव के बाद रविवार को सुबह की रोशनी के साथ शांत नजर आया। पिछले कुछ समय से चले आ रहे राजनीतिकि उठापटक के पीछे रूस-विरोधियों का हाथ है। राष्ट्रपति यानुकोविच के खिलाफ संसद में विरोधियों का पलड़ा भारी हो गया जिसके चलते उन्हें न चाहते हुए भी पद छोड़ना पड़ा। विरोधियों ने 25 मई को नए राष्ट्रपति के चुनाव पर जोर दिया है। सरकार समर्थक चुनाव दिसम्बर तक टालने के हक में हैं। यानुकोविच को अपने धुर विरोधी पूर्व पधानमंत्री यूलिया तिमोशेंको को जेल से छोड़ना पड़ा। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच झगड़े का मूल कारण यूपेन की अर्थव्यवस्था की दिशा को लेकर है। विपक्ष के नेता यूपेन का आर्थिक ताना-बाना यूरोपीय माडल पर बनाना चाहते हैं। वह यूकेन को एक आधुनिक यूरोपीय देश बनाना चाहते हैं। जबकि यानुकोविच और उनके समर्थक देश को रूसी अर्थव्यवस्था की शक्ल देना चाहते हैं। यानुकोविच ने यूरोपीय संघ से लंबित एक समझौते को रद्द कर उसे रूस से कर लिया था। विपक्ष ने इसी को मुद्दा बनाकर आंदोलन करना शुरू कर दिया। आंदोलनकारियों और पुलिस में कई झड़पें हुईं और मौतें तक हो गईं। यूपेन में यूपेनी भाषा बोलने वाले यूपेन लोगों का वर्चस्व है। उनकी संख्या करीब दो-तिहाई है। ऐसे में रूस विरोधियों का पलड़ा भारी है। बाकी एक तिहाई रूसी बोलने वाले हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन रूस विरोधियों को भड़काने के लिए यूरोपीय संघ को दोषी मानते हैं। अमेरिका पर भी पुतिन ने आरोप लगाया है। बहरहाल ताजा स्थिति के अनुसार रूसी पलड़ा कमजोर पड़ रहा है और रूसी विरोधियों का भारी। पर देखना यह है कि क्या ब्लादिमीर पुतिन इतनी आसानी से यूपेन से पलड़ा छोड़ देंगे? इतना तय है कि यूकेन में जो राजनीतिक उठापटक शुरू हुई है वह अभी चलेगी फिर जाकर कहीं वहां स्थिरता आएगी।

-अनिल नरेन्द्र

1 comment:

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    afzal khan

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