Thursday 27 February 2014

चुनाव करीब आते ही बढ़ी जोड़-तोड़ की राजनीति

आम चुनाव के लिए विभिन्न पार्टियां व नेता अपनी-अपनी गोटियां फिर फिट करने में जुट गए हैं। सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं और नए समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर चुनावी गठबंधन का रास्ता टटोल रहे लोजपा नेता रामविलास पासवान ने अचानक दिशा बदलकर भाजपा की तरफ दौड़ लगा दी। अचानक एक दो बयानों से पता चला कि बिहार में दोनों मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला करने जा रहे हैं। दरअसल भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में हवा चलती देखकर रामविलास पासवान उससे हाथ मिलाने को तैयार हैं। अब पासवान एंड संस के लिए नरेन्द्र मोदी 2002 गुजरात दंगों में ब्लीपर हो गए हैं। चूंकि एसआईटी ने उन्हें (मोदी) क्लीन चिट दे दी है इसलिए पासवान को भाजपा और मोदी के साथ आने में कोई ऐतराज नहीं है। भाजपा को भी यह सूट करता है। पासवान के मोदी के करीब आने का मतलब यह भी है कि अब भाजपा और मोदी अछूते नहीं रहे। अब वह साम्पदायिक नहीं हैं। उधर कांग्रेस की मदद से नीतीश कुमार भाजपा को पटखनी देने का दाव तलाश रहे राजद मुखिया लालू पसाद यादव को उनके ही विधायकों ने ऐसा धोबिया पाट मारा है कि चुनावी अखाड़े में कूदने से पहले ही वे चारों खाने चित्त नजर आने लगे हैं, उनके बाईस में से तेरह विधायकों ने पाला बदलते हुए जद-यू में जाने की घोषणा कर दी। लालू उस समय दिल्ली में थे। वह रात को पटना पहुंच कर डैमेज कंट्रोल में लग गए। ताजा समाचार है कि तेरह विधायकों में से नौ वापस राजद में लौट आए हैं और उन्होंने लिखित में दिया है कि वह अभी भी अपनी मूल पाटी में ही हैं। हवा का रुख देखकर राजनेता बड़ी तेजी के साथ पाला बदलने में लगे हैं। आंध्र पदेश से हाल में अलग हुए तेलंगाना राज्य की पमुख आंदोलनकारी पाटी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने इस राज्य के पृथक अस्तित्व की औपचारिकताएं पूरी होने से पहले ही कांग्रेस को आखें दिखाना शुरू कर दिया है और सीधा कहना शुरू कर दिया है कि उसका कांग्रेस में विलय का कोई इरादा नहीं है। वहीं इस पार्टी के अध्यक्ष के चन्द्रशेखर राव ने नए राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिए गोटियां बिछाना आरम्भ कर दी हैं। उनकी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से दो दिन पहले मुलाकात हुई है। समझा जाता है कि राव एक शर्त पर अपनी पाटी का कांग्रेस में विलय कर सकते हैं यदि उन्हें तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस राजी हो जाए, मगर कांग्रेस नए राज्य का मुख्यमंत्री केन्द्राrय मंत्री एस जयपाल रेड्डी को बनाना चाहती है जो इस इलाके के सर्वमान्य नेता माने जाते हैं । कायदे से तेलंगाना में मुख्यमंत्री कांग्रेस का ही बनना चाहिए क्योंकि एकीकृत आंध्र पदेश में कांग्रेस की ही सरकार थी, मगर चन्द्रशेखर राव बहुत पुराने खिलाड़ी हैं और रंग बदलने में माहिर हैं। तेलंगाना इलाके की 17 सीटों पर कांग्रेस बहुत उम्मीदें लगाए बैठी है। जहां तक भाजपा का सवाल है उसकी निगाहें हर वर्ग और जाति के वोटों पर टिकी हैं। दलित नेता उदित राज को पाटी में शामिल करके भाजपा ने देश के दलितों के बीच संदेश देने की कोशिश की है कि वही उनकी असल खैरख्वाह है। खासकर उत्तर पदेश में बसपा सुपीमो पमुख मायावती की दलित वोटों पर पकड़ कमजोर करने के लिए भाजपा ने दलित कार्ड खेला है। उदित राज भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं। उन्होंने नौकरी छोड़कर राजनीति शुरू की और जस्टिस पाटी का गठन किया। दलितों के बौद्धिक वर्ग में उनका पभाव है, इसलिए उत्तर पदेश के अलावा देश के अन्य पांतों में भी भाजपा उनका इस्तेमाल करेगी। अगर अंतत रामविलास पासवान भाजपा से गठबंधन कर लेते हैं तो इससे भाजपा को काफी लाभ मिल सकता है। इससे उसे दोहरा फायदा मिल सकता है। पहला राजद-कांग्रेस-लोजपा के गठजोड़ को तोड़कर अपने खिलाफ एकजुट होने वाले वोटों को विभाजित करना ताकि वह इस गठजोड़ से होने वाले नुकसान से बच सके। दूसरा लोजपा को अपने खेमे में लाने से बिहार में दलित वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करना। इससे कांग्रेस के साथ-साथ जद-यू को भी झटका लगेगा। बिहार और उत्तर पदेश की 40 और 80 सीटों पर सभी क्षेत्रीय दलों एवं राष्ट्रीय दलों की निगाहें गड़ी हुई हैं। लेकिन नए घटनाकम से बिहार में चल रही उठापटक अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। अब देखना यह है कि रामविलास पासवान भाजपा के साथ जाएंगे या कांग्रेस को जद-यू के साथ देने के लिए मनाएंगे। देखना यह भी होगा कि पासवान जो कि सियासत के मझे हुए खिलाड़ी हैं भाजपा के साथ आने का दिखावा करके कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं।

No comments:

Post a Comment