Sunday, 30 December 2018

2018 में पाक के दो बड़े नेताओं की किस्मत यूं बदली

2018 में पाकिस्तान के दो बड़े नेताओं की किस्मत अलग-अलग ढंग से पलटी। लंबे संघर्ष के बाद इमरान खान जहां पाकिस्तान के नए कप्तान बने, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जेल जाना पड़ा। क्रिकेट में पाक को विश्व कप विजेता बनाने वाले इमरान ने 18 अगस्त को पाक के 22वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेकर अपनी नई पारी का आगाज किया। दूसरी तरफ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके परिवार के लिए साल 2018 मुसीबतों भरा रहा। 24 दिसम्बर को भ्रष्टाचार निरोधक अदालत ने शरीफ को अल-अजीजिया स्टील मिल्स भ्रष्टाचार के मामले में सात साल जेल की सजा सुनाई। इससे पहले अप्रैल में उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। छह जुलाई को भ्रषाटाचार के मामले में 10 साल की सजा सुनाई गई। कुछ दिन बाद पाकिस्तान लौटते हुए उन्हें और उनकी बेटी मरियम नवाज को गिरफ्तार कर लिया गया। सितम्बर में नवाज शरीफ की पत्नी कुलसुम नवाज का निधन कैंसर की वजह से हो गया। इस वजह से उन्हें और मरियम को जमानत पर रिहा किया गया। मगर साल खत्म होते-होते एक और मामले में सजा सुना दी गई। हालांकि फ्लैगशिप इनवेंस्टमेंट मामले में उन्हें बरी भी कर दिया गया। पाकिस्तान में नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में सजा की भयानक परंपरा रही है। ज्यादातर नेता इससे बचने के लिए विदेश का रुख करते थे। मरहूम बेनजीर भुट्टो स्वयं लंबे समय तक विदेश प्रवास में रहीं। अमेरिकी दबाव में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ समझौते के बाद चुनाव में भाग लेने के लिए वह वापस आईं। स्वयं मुशर्रफ मुकदमे का सामना करने की बजाय विदेश में आत्म निर्वासन का जीवन जी रहे हैं। नवाज ने इसके विपरीत सजा मिलने पर लंदन से देश आने का विकल्प चुना और मुकदमों का सामना कर रहे हैं। पाकिस्तान में सत्ता को लेकर जिस तरह का खेल चलता आया है, उसे देखते हुए नवाज शरीफ के खिलाफ मुकदमे और सजा कोई अनहोनी बात नहीं है। बेनजीर जब सत्ता में थीं तब उन पर पति आसिफ जरदारी के जरिये भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। हाल में मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान की बहन की संयुक्त अरब अमीरात में कई सौ करोड़ की बेनामी सम्पत्ति का खुलासा हुआ था। पाकिस्तान में सेना और प्रशासन में शीर्ष स्तर पर ऐसे तमाम लोग हैं जिनके खिलाफ बेनामी सम्पत्ति और भ्रष्टाचार के मामले हैं। भले नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए गए हों, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह उन्हें राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाने का भी हथियार बना। किन्तु इतना साफ है कि आने वाले लंबे समय तक नवाज शरीफ की जिन्दगी चुनौतियों से भरी है।

-अनिल नरेन्द्र

पूरा उत्तर भारत शीत लहर की प्रकोप में

नया साल आने से पहले ही कड़ाके ही सर्दी ने दस्तक दे दी है। पहाड़ों को तो छोड़िए, मैदानी इलाकों में भी रिकॉर्ड तोड़ ठंड पड़ रही है। दिसम्बर में सर्दियों का ऐसा प्रकोप हमने पिछले कई सालों में नहीं देखा। दिल्ली में तो पिछले 15 दिनों से जो ठंड पड़ रही है ऐसी ठंड दिल्ली ने पिछले 10 सालों में नहीं देखी। इस महीने अब तक औसतन न्यूनतम तापमान की बात करें तो यह महज 7.1 डिग्री रहा है। यह सामान्य औसत तापमान से 1.2 डिग्री कम है। अगले चार-पांच दिनों तक शीत लहर का प्रकोप जारी रहेगा। अगर दिसम्बर का आंकलन करें तो इस बार दिसम्बर में सिर्प तीन दिन ही न्यूनतम तापमान डबल डिजिट में रहा है, बल्कि पिछले हफ्ते से तापमान पांच डिग्री से कम रहा है। न्यूनतम तापमान दो से तीन डिग्री तक गिर सकता है। दिल्ली को दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ कड़ाके की ठंड तो दूसरी तरफ स्मॉग व प्रदूषण की मार। अब यह बात लगभग तय है कि दिल्ली में लोग नए साल का आगाज स्मॉग के बीच ही करेंगे। इस दौरान प्रदूषण के स्तर में हमें कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि दिल्ली-एनसीआर को अभी तीन से चार दिन तक इसी तरह का प्रदूषण स्तर झेलना पड़ेगा। तमाम उत्तर भारत में सर्दी का सितम जारी है। शीत लहर की चपेट में आए उत्तर भारत में बृहस्पतिवार को श्रीनगर में सबसे ठंडी रात रही। हिमाचल और उत्तराखंड में हुई बर्पबारी व हवाओं के कारण उत्तर भारत में पारा और लुढ़क गया। पर्वतीय क्षेत्रों में कई जगह तापमान शून्य से नीचे आ चुका है। श्रीनगर में  बुधवार की रात न्यूनतम पारा माइनस 7.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। पिछले 20 वर्षों में यह सबसे कम तापमान है। ठंड के प्रकोप से डल झील भी जम गई है। यूपी में न्यूनतम तापमान 0.2 डिग्री पहुंच गया है। वहीं उत्तराखंड का तापमान 4.2 डिग्री सेल्सियस रहा, जो तीन साल में सबसे कम है। हरियाणा के हिसार में पारा माइनस एक डिग्री रहा। सिरसा, नारनौल, कुरुक्षेत्र, करनाल में पारा पांच डिग्री से नीचे रहा। पंजाब, चंडीगढ़ में शीत लहर जारी है। गुड़गांव में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि राजस्थान के सीकर के फतेहपुर में दूसरे दिन भी पारा माइनस 2.2 डिग्री रहा। प्रदेश में पांच जगहों पर पारा पांच डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा है। मौसम विभाग ने अलवर, भरतपुर, भीलवाड़ा सहित प्रदेश के 12 शहरों में अगले चार दिन तक शीत लहर चलने की चेतावनी दी है। क्या यह सब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहा है? ऐसी सर्दी में अपने आपको कम से कम दो लेयर के कपड़े पहनने से बचाव हो सकता है। अगर आप अंदर गरम बनियान पहनते हैं तो यह सिर्प पर्याप्त नहीं है। आपको इसके ऊपर कोट, जैकेट या पूरी आस्तीन का स्वैटर पहनना चाहिए। बुजुर्गों को इनर गरम पायजमे का फायदा होगा। महिलाओं को भी स्वैटर, कोट व शॉल से बचाव करना होगा। अभी यह शीत लहर जारी रहेगी इसलिए किसी प्रकार का जोखिम उठाना बीमारी को दावत देने के समान है।

Saturday, 29 December 2018

महासेतु से चीन सीमा तक पहुंच आसान हुई

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 94वीं जयंती पर पीएम मोदी ने मंगलवार को देश का सबसे लंबा बोगीबील रेल-सड़क पुल जनता को समर्पित किया। इस मौके पर उन्होंने तिनसुखिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस की शुरुआत भी की। 9.94 किलोमीटर लंबे इस पुल का निर्माण अटल सरकार के समय शुरू हुआ था। असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बना यह पुल दक्षिणी किनारे पर डिब्रूगढ़ उत्तरी किनारे पर धीमाजी जिले को जोड़ता है। इस पुल का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि यह देश का सबसे लंबा पुल है, लगभग पांच किलोमीटर लंबा। इसे इतना मजबूत बनाया गया है कि बिना किसी शिकन के यह 120 वर्षों तक साथ निभाता रहेगा। इस परियोजना की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22  जनवरी, 1997 को रखी थी जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में 21 अप्रैल 2002 को इसका काम शुरू हुआ था। कांग्रेस की नेतृत्व वाली सरकार ने 2007 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया था। इनके क्रियान्वयन में देरी के कारण इस परियोजना की लागत 85 फीसद तक बढ़ गई। इसकी अनुमानित लागत 3,230.02 करोड़ रुपए थी जो बढ़कर 5,960 करोड़ रुपए हो गई। लंबे अरसे तक विकास की मुख्य धारा से कटे रहे पूर्वोत्तर में इस पुल का क्या महत्व है, यह इससे समझा जा सकता है कि इसकी वजह से डिब्रूगढ़ और अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटा नगर के बीच की सड़क मार्ग से दूरी 150 किलोमीटर और इन दोनों शहरों के रेलमार्ग की दूरी 750 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस पुल के निचले हिस्से में रेल लाइन बनाई गई है और ऊपरी तल में सड़क मार्ग। यह पुल असम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों की जिन्दगी को तो आसान बनाएगा ही, साथ ही भारतीय सेना के लिए भी एक अहम इंफ्रास्ट्रक्चर साबित होगा। सेना की जरूरतों को दिखते हुए ही इसको इतना मजबूत बनाया गया है कि इस पर न सिर्प भारी-भरकम टैंकों की आवाजाही हो सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर वायुसेना के जेट विमान भी उतारे जा सकते हैं। यहां यह याद दिलाना भी जरूरी है कि बोगीबील पुल से कुछ ही आगे भारत और चीन की सीमा है यानि वह जगह, जहां चीन का विस्तारवाद हमेशा से भारत के लिए सिरदर्द बना रहा है। इस लिहाज से यह पुल इस क्षेत्र में सेना को मिली महज एक सुविधा ही नहीं, बल्कि उसे मिला एक नया आत्मविश्वास भी है। पुल का निर्माण विदेशी तकनीक व उपकरणों से हुआ है। इसमें 80 हजार टन स्टील लगा है। रिएक्टर स्केल पर सात की तीव्रता का भूकंप झेल सकता है। इस पुल के अस्तित्व में आने से निश्चित रूप से पूर्वोत्तर में विकास का एक नया फलक खुल गया है, साथ ही यह पुल सामरिक दृष्टिकोण से भी कम महत्वपूर्ण नहीं। बधाई।

-अनिल नरेन्द्र

एनआईए और दिल्ली पुलिस की शानदार सफलता

उत्तर पूर्वी दिल्ली की छोटी-छोटी तंग गलियों और ब्रह्मपुरी मेन रोड पर भारी जाम की किल्लत के बावजूद जिले का जाफराबाद क्षेत्र आतंक का गढ़ बनता जा रहा है। यहां की बेहद तंग गलियों में स्थानीय पुलिस भी जाते हुए घबराती है, लेकिन एनआईए (नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी) व दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने जिस बाखूबी से 14 घंटों तक इलाके में कार्रवाई करके दुनिया के सबसे खूंखार माने जाने वाले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के बिल्कुल नए मॉड्यूल का भंडाफोड़ करके कार्रवाई की वह काबिले तारीफ है। एनआईए ने बुधवार को बताया कि उसने इस्लामिक स्टेट से प्रभावित आतंकी संगठन हरकत-उल-हर्ब--इस्लाम है का भंडाफोड़ किया है। दिल्ली और यूपी के 17 ठिकानों पर छापे मारकर आत्मघाती हमलों की साजिश रच रहे मास्टर माइंड समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया है। पांच साल में पकड़ा गया यह सबसे बड़ा टेरर मॉड्यूल है। पुलिस के मुताबिक गिरफ्त में आए इसके गुर्गे कई बम बना चुके थे और धमाकों के लिए विदेश में बैठे आका से सिग्नल की इंतजार में थे। यह लोग दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों में भीड़भाड़ वाले इलाकों में सीरियल ब्लास्ट की तैयारी में थे। निशाने पर दिल्ली पुलिस और संघ मुख्यालय समेत कई बड़े प्रतिष्ठान और टॉप नेता थे। समय रहते साजिश का पर्दाफाश होने से नए साल और 26 जनवरी से पहले उत्तर भारत को दहलाने की बड़ी कोशिश नाकाम हुई है। एनआईए ने दिल्ली के सीलमपुर और जाफराबाद में छापे मारे। यूपी में एटीएस के साथ मिलकर अमरोहा, हापुड़, मेरठ और लखनऊ में रेड डाली। खास बात यह कि साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इन लोगों ने फंडिंग भी खुद की थी। कुछ ने तो ऐसा करने के लिए अपना घर तक बेच दिया था। गिरफ्तार लोग रिमोट कंट्रोल, पाइप बम और स्यूसाइड जैकेट तैयार कर रहे थे। उनके पास से 7.5 लाख कैश, बम बनाने का सामान, 120 अलार्म घड़ी, 100 मोबाइल, 135 सिम, रॉकेट लांचर, देसी पिस्टल, तलवारें और जेहादी साहित्य मिला है। कई लैपटॉप और हार्ड डिस्क भी जब्त की गई है। अमरोहा की मस्जिद का मुफ्ती सुहैल हमले का मास्टर माइंड बताया गया है, पर इन दिनों दिल्ली के जाफराबाद में रह रहा था और वॉट्सएप कॉल से सम्पर्प करता था। इससे जुड़े लोगों में इंजीनियर, ऑटो ड्राइवर, मौलवी, कारोबारी, वेल्डर और एक लड़की भी है। सभी की उम्र 20 से 30 के बीच बताई जा रही है। हालांकि खुद एनआईए का भी यह कहना है कि जिन लोगों को इतनी बड़ी आतंकी साजिश रचते हुए पकड़ा गया है, उनमें से किसी का भी आपराधिक अतीत नहीं रहा है। अगर यह सच है तो इससे भोले-भाले युवाओं को आतंक के रास्ते पर जाने से रोक पाने में यह हमारी नाकामी दिखाती है। आतंकी मॉड्यूल की जिस गति से भंडाफोड़ हो रहा है उसे तार्पिक परिणति तक पहुंचाने की गति, दुर्भाग्य से वैसी नहीं है। एनआईए के महत्व से इंकार नहीं, उसका यह दावा है कि उसके द्वारा पकड़े गए 95 फीसदी आरोपी दोषी करार दिए जाते हैं, पर मालेगांव विस्फोट से लेकर मक्का मस्जिद विस्फोट तक के कई हाई-प्रोफाइल मामलों में उसका रिकॉर्ड वैसा प्रभावी नहीं रहा है। ऐसे समय में, जब पिछले कुछ वर्षों में भारत के विभिन्न हिस्सों, खासकर कश्मीर, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, हैदराबाद और महाराष्ट्र में कई बार आईएस के नए मॉड्यूल के सक्रिय होने की बात आ चुकी है, इन परिस्थितियों में ताजा कार्रवाई बड़ी सफलता है। यह राहतकारी तो है ही कि एनआईए ने आतंक की एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश कर दिया है, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिए यह भी जरूरी है कि वह गिरफ्तार तत्वों के खिलाफ सारे सबूत जुटाकर उन्हें सजा दिलाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें ताकि किसी तरह के संदेह और सवालों की गुंजाइश ही न रहे। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि कई बार कुछ लोग आतंकवाद के मसले पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आते और यह भी आरोप लगते हैं कि जांच एजेंसियां निर्दोष अल्पसंख्यक वर्ग को जानबूझ कर टारगेट करती हैं और ऐसे मामले अदालत में ठहरते नहीं हैं। एनआईए और दिल्ली पुलिस की इस शानदार सफलता पर बधाई। पर असल बधाई का हकदार एनआईए तब होगा जब अदालत में अपना केस साबित कर सके।

Friday, 28 December 2018

एनडीए के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह

भारतीय राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि हालांकि यह कहलाते तो जनप्रतिनिधि हैं पर सबसे ऊपर इनका स्वार्थ होता है, जनता का भला नहीं। सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। आप उपेन्द्र कुशवाहा का ही किस्सा ले लें। कुशवाहा साढ़े चार वर्ष तक मोदी सरकार में मंत्री बने रहे और अब उन्हें लगने लगा है कि मोदी सरकार ने पिछड़ों और गरीबों के लिए कोई काम नहीं किया। बिहार में दोनों पक्षों के सीटों के बंटवारे से इतना साफ लग रहा है कि गठबंधनों पर 2019 का लोकसभा चुनाव ज्यादा निर्भर करेगा। भाजपा को लगने लगा है कि अकेले मोदी के करिश्मे से वह वापस सत्ता में नहीं आ सकती। इसलिए वह विभिन्न साथियों की तलाश में है जो उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकें। बिहार में जिस ढंग से भाजपा ने अपने सहयोगियों को सीटें बांटी हैं उससे तो यही लग रहा है कि भाजपा को अब अकेले अपने ऊपर चुनाव जीतने में संदेह लगने लगा है। शिवसेना लगातार भाजपा को कठघरे में खड़ा कर रही है। वह अंत में क्या करेगी फिलहाल कहना मुश्किल है। एनडीए की प्रमुख घटक शिवसेना के राज्यसभा के नेता संजय राउत ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बदल चुके हैं और वह मोदी का मुकाबला करने में सक्षम हैं। इसलिए राहुल गांधी विपक्ष के लिए पीएम उम्मीदवार के अच्छे विकल्प हैं। राउत ने कहा कि 2014 वाले राहुल गांधी अब 2019 में नहीं हैं। अब राहुल देश के नेता बन चुके हैं। जिस प्रकार से तीन राज्यों के नतीजे आए हैं, उससे राहुल के बारे में देश की सोच बदली है। वो मोदी को टक्कर दे रहे हैं। आज लोग उन्हें सुनना चाहते हैं। लोग उनसे बात करना चाहते हैं। तीन राज्यों में भाजपा की विधानसभा में हार से 2019 के लोकसभा चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा। इन तीन राज्यों में 60 से ऊपर लोकसभा सीटें हैं। अगर इसमें से आधी भी कांग्रेस के पक्ष में आ जाती हैं तो मोदी सरकार की संख्या घट जाएगी। फिर उत्तर प्रदेश तो सबसे बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का अगर सही मायने में गठबंधन हो जाता है तो यह नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकता है। दरअसल भारतीय राजनीति की पुरानी कहावत है दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है और एबीपी न्यूज-सी वोटर का चुनाव पूर्ण सर्वेक्षण भी इस बात पर मुहर लगाता दिख रहा है। एबीपी न्यूज-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक अगर राज्य में सपा और बसपा का गठबंधन नहीं होता तो एनडीए को 2019 के लोकसभा चुनाव में 291 सीटें मिल सकती हैं जोकि बहुमत के जादुई आंकड़े से 19 ज्यादा होंगी। दूसरी ओर अगर सपा-बसपा का गठबंधन बना रहता है तो 543 सदस्यीय लोकसभा में एनडीए की सीटें घटकर 247 रह जाएंगी। उस सूरत में उसे बहुमत के लिए 25 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी। 2014 के आम चुनाव में भाजपा की शानदार जीत में यूपी का बड़ा योगदान रहा था, जहां पार्टी ने 80 में से 71 लोकसभा सीटें जीती थीं वहीं इस हालिया सर्वे के मुताबिक अगर आज चुनाव होता है तो उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन 50 सीटें जीत सकती हैं, वहीं भाजपा को महज 28 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है। इस हिसाब से उसे 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 43 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। वहीं अगर इस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होती है, जिसके लिए पार्टी भरसक कोशिश कर रही है तो भाजपा की सीटें और कम हो जाएंगी। लोकसभा चुनाव से पहले अब तो एनडीए घटक भी भाजपा को आंखें दिखाने लगे हैं। मतभेद यहां तक पहुंच गए हैं कि प्रदेश सरकार में शामिल सुभासपा आरक्षण को तीन हिस्सें में बांटने के लिए धरना-प्रदर्शन कर रही है। अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष सिंह पटेल ने मंगलवार को प्रदेश सरकार पर सम्मान न देने का आरोप लगाया। पटेल ने कहाöमौजूदा हालत में उन्हें सोचना पड़ेगा कि जहां सम्मान न हो, स्वाभिमान न हो, वहां क्यों रहें? सभी विकल्प खुले रखने का संकेत देते हुए उन्होंने मायावती के शासनकाल में कानून-व्यवस्था को योगी सरकार से बेहतर बताया। 2018 राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहा और आने वाले वर्ष की भूमिका तैयार कर गया। इस दौरान सबसे बड़ा बदलाव विपक्षी राजनीति में आया। फूलपुर और गोरखपुर से शुरू हुई विपक्षी एकता की मुहिम ने इतना जोर पकड़ा कि साल का अंत होते-होते उसने एनडीए की घेराबंदी का ताना-बाना बुन लिया। तीन राज्यों में जीत दर्ज कर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा को कमजोर किया है, वहीं कमजोर पड़े विपक्ष में नई जान पूंक दी है। बेशक फूलपुर और गोरखपुर की जीत भाजपा के लिए इतनी अहम न हो पर इस जीत ने भाजपा से लड़ने का फार्मूला दे दिया यानि भाजपा को हराना है तो सारा विपक्ष एक हो जाए। इस फार्मूले पर ही आम चुनावों के लिए गठबंधन की बिसात बिछने लगी। एक तरफ जहां विपक्ष एकजुट हुआ वहीं एनडीए के दो अहम घटक दल टीडीपी और रालोसपा उसे छोड़कर चले गए। सबसे पुराना घटक शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया, अकाली दल ने भी आंखें दिखाई। 2018 में नौ राज्योंöत्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मिजोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो लहर 2014 में दिखी वह 2018 के अंत आते-आते तक काफी कमजोर हो गई। इन कारणों से एनडीए के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव एक बहुत बड़ी चुनौती लेकर आएगा। एनडीए का भविष्य क्या है यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा?

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 27 December 2018

अमेरिकी सेना हटते ही तालिबान का हो जाएगा पूरा कब्जा

सीरिया से सेनाओं को वापस बुलाने के निर्णय के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान से भी सात हजार सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। फिलहाल अफगानिस्तान में 14000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं जो तालिबान और आईएस (इस्लामिक स्टेट) आतंकियों के खिलाफ अफगानिस्तान में अफगानी सेना को जरूरी सहायता पहुंचाने के साथ ही उन्हें पशिक्षण दे रहे हैं। इनमें से सात हजार सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया गया है। वहीं सीरिया से सेना को वापस बुलाने को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप से मतभेदों को लेकर अमेरिकी रक्षामंत्री जेम्स मैटिस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। भारत के साथ अमेरिका के मजबूत पक्षधर जेम्स मैटिस ने गुरुवार को अपने इस्तीफे की घोषणा की और उन्होंने अपने इस्तीफे की चिट्ठी ट्रंप को सौंप दी है। अफगानिस्तान सरकार ने ट्रंप के इस फैसले से देश की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। वहीं तालिबान ने इस पर खुशी जाहिर की है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मैटिस गुरुवार को व्हाइट हाउस पहुंचे थे और ट्रंप को मनाने की अंतिम कोशिश की थी कि वह सीरिया से सेना को वापस न बुलाएं। अपनी बात नामंजूर किए जाने के बाद मैटिस ने इस्तीफे की घोषणा कर दी। ट्रंप ने मैटिस के इस्तीफे को लेकर ट्वीट किया ः जनरल जेम्स मैटिस सम्मान के साथ फरवरी के अंत में रिटायर होंगे। जल्द ही नए रक्षा मंत्री की घोषणा हो जाएगी। अमेरिकी सेना देश के बाहर दो लाख से ज्यादा मौजूद है और अफगानिस्तान में पिछले 17 सालों से तैनात है। 2001 से ही अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं। 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद जब अफगानिस्तान पर नियंत्रण रखने वाले तालिबान ने न्यूयार्प के वर्ल्ड ट्रेड टावर उड़ाने की जिम्मेदारी ली और अलकायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को सौंपने से इंकार कर दिया तब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने वहां एक सैन्य अभियान छेड़ा ताकि बिन लादेन का पता लगाया जा सके। इस हमले में तालिबान ने सत्ता गंवा दी। अफगानिस्तान पर तलिबान का नियंत्रण पिछले कुछ महीनों में बढ़ा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अफगान सरकार का देश के 55.5 फीसदी इलाके पर नियंत्रण है। अमेरिकी सैनिकों की वापसी का असर विनाशकारी हो सकता है और वहां बड़े पैमाने पर हिंसा बढ़ सकती है जो तालिबान के लिए बहुत फायदे की स्थिति होगी। यह तालिबानी पोपेगैंडा की जीत होगी क्योंकि वो यह दावा कर सकता है कि उसने शांति समझौते के बगैर ही अमेरिकी सैनिकों को देश से बाहर करने में कामयाबी हासिल की है। यह अफगान सैनिकों के लिए भी एक मनोवैज्ञानिक झटका होगा, उन्होंने कहा कि बहुत संघर्ष किया है, खून बहाया है। इसलिए उनके लिए यह फैसला निराशाजनक होगा। यह किसी से छिपा नहीं कि  तालिबान को पाकिस्तान से हथियार व हर तरह की सहायता मिल रही है। ट्रंप के फैसले से पाकिस्तान भी खुश है। बहरहाल यह भारत के लिए एक चिंता का विषय जरूर है।

-अनिल नरेन्द्र

सीबीआई जज एसजे शर्मा का करियर का अंतिम फैसला

मुंबई के केन्द्राrय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश एसजे शर्मा के लिए गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसी पजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्याओं के 22 आरोपियों को बरी करना उनके करियर का अंतिम फैसला रहा। इसी महीने सेवानिवृत्त हो रहे न्यायाधीश शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि यह मेरा अंतिम फैसला है... यह  दुर्भाग्यपूर्ण है कि (पीड़ितों के) एक परिवार ने एक बेटा, भाई गंवा दिया... लेकिन यह साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है कि ये आरोपी अपराध में शामिल थे। न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें शेख और पजापति के परिवारों के लिए अफसोस है क्योंकि तीन लोगों की जान चली गई। लेकिन व्यवस्था की मांग है कि अदालत केवल साक्ष्यों के आधार पर चलती है। तेरह साल पुराने इस मामले में कई उतार-चढ़ाव देखे। इसमें अभियोजन पक्ष के 92 गवाह अपने बयान से मुकरे। एक समय इसी केस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी 2010 में कुछ समय के लिए गिरफ्तार किया गया था। यह मामला 22 नवम्बर 2005 को शुरू हुआ, जब गुजरात के निवासी सोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी और उनके साथी पजापति को हैदराबाद से सांगली जाते समय रास्ते में पुलिस ने अपनी हिरासत में लिया। सोहराबुद्दीन और कौसर को अहमदाबाद के एक फार्म हाउस में ले जाया गया जहां 26 नवंबर को सोहराबुद्दीन की कथित फर्जी मुठभेड़ मे हत्या कर दी गई। इस फर्जी तथाकथित मुठभेड़ के पीछे गुजरात और राजस्थान पुलिस की साझा टीम को जिम्मेदार बताया गया। सोहराबुद्दीन की कथित हत्या के बाद सोहराबुद्दीन के परिवार ने इस मामले की जांच के लिए सुपीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। साथ ही कई तरह के राज से पर्दा उठने लगा। इस मामले में सबसे बड़ा नाम आया मौजूदा वक्त में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह औsर गुलाब चंद कटारिया का। इनके अलावा गुजरात और राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल से लेकर आईपीएस अधिकारी पद तक के लोग इस मामले में लिप्त पाए गए। आईपीएस अधिकारी एमएन दिनेश, राजकुमार पंडियन और डीजी बंजारा सहित गुजरात के पूर्व गृहमंत्री अमित शाह तक को इस मामले में गिरफ्तारियां देनी पड़ी। जज शर्मा ने 13 साल पुराने इस मामले में कहा कि सोहराबुद्दीन की मौत गोली लगने से हुई हत्या का कोई सुबूत नहीं है। साजिश भी साबित नहीं हुई। अभियोजन पक्ष घटना में संदेह का लिंक जोड़ा नहीं जा सकता। परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी आरोप सिद्ध नहीं करते। फैसले से सोहराबुद्दीन के परिजन निराश हैं। लेकिन हताश नहीं। हम जल्द ही सुपीम कोर्ट में अपील करेंगे यह कहा रुबाबुद्दीन शेख ने जो सोहराबुद्दीन के भाई हैं। ध्यान देने की बात है कि सीबीआई की जांच भी सुपीम कोर्ट के आदेश पर हुई थी।


Wednesday, 26 December 2018

तीन तलाक विधेयक पर फिर फंस सकता है पेंच

मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक--बिद्दत) पर रोक लगाने के मकसद से लाया गया मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पर 27 दिसम्बर को लोकसभा में चर्चा होने की संभावना है (अगर लोकसभा की कार्यवाही चली तो)। विधायी कार्यसूची के तहत इस विधेयक पर गुरुवार को चर्चा होनी थी, लेकिन सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के आग्रह पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे 27 दिसम्बर को कार्यसूची में शामिल करने का फैसला किया। खड़गे ने आश्वासन तो दिया है कि 27 दिसम्बर को चर्चा में अपनी बात रखेंगे और इसमें शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कट्टरपंथियों और विपक्षी पार्टियों द्वारा बाधा डाले जाने के बावजूद केंद्र सरकार तत्काल तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी यह प्रतिबद्धता इसलिए है ताकि मुस्लिम महिलाओं को जीवन के एक बड़े संकट से छुटकारा मिल सके। इतना ही नहीं, नई हज नीति के तहत सरकार ने आजादी के 70 साल बाद मुस्लिम महिलाओं को पुरुष संबंधी के बिना हज करने की इजाजत दी है। तीन तलाक के विधेयक पर संसद में फिर पेंच फंस सकता है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इसमें तीन साल की सजा के प्रावधान के खिलाफ है। कांग्रेस का कहना है कि तलाक देने पर सजा का प्रावधान किसी भी धर्म में नहीं है तो फिर इसमें भी नहीं रखा जाए। लोकसभा में दोबारा पेश इस बिल पर कांग्रेस 27 दिसम्बर को चर्चा के लिए बेशक तैयार है पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हमने चर्चा की बात कही है। चर्चा करने और पारित करने में फर्प है। क्या विधेयक को वर्तमान स्वरूप में कांग्रेस पारित होने देगी? इस पर उन्होंने कहा कि विधेयक में अभी भी पति को तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। हम इसका विरोध करते हैं। कांग्रेस के रुख से साफ है कि सरकार लोकसभा में यह विधेयक पास करवाने में बेशक सफल हो जाए लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने से यह फंस सकता है। विधेयक के तीन अहम बिन्दु हैंöविधेयक में प्रावधान किया गया है कि पत्नी के अलावा रक्त संबंध के रिश्तेदार बने लोग ही तीन तलाक की शिकायत कर सकते हैं। शिकायत दर्ज होने पर मजिस्ट्रेट की अदालत पत्नी के पक्ष जानने के बाद ही जमानत पर सुनवाई करेगी। मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेगा कि पीड़िता को पति से आर्थिक मदद दिलाई  जाए, मामले में तीन साल की सजा है।  कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियों का कहना है कि जब तीन तलाक ही मान्य नहीं है, ऐसे में यह अपराध कैसे होगा। साथ ही विपक्ष परिवार के बिखरने का भी तर्प दे रही है।

-अनिल नरेन्द्र

अगर जीत की जिम्मेदारी लीडर की है तो हार की किसकी?

केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता नितिन गडकरी एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार यह विवाद गत शनिवार को उनकी उस टिप्पणी के कारण पैदा हुआ जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि अगर जीत की जिम्मेदारी लीडर की है तो हार की जिम्मेदारी भी लीडर की है। गडकरी की यह टिप्पणी हाल में सम्पन्न मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद आई। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने शनिवार को कहा था कि सफलता या श्रेय लेने के लिए लोगों में होड़ रहती है लेकिन विफलता को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता। नेतृत्व में हार और असफलता को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। मंत्री पुणे में एक समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने अपनी बात की ज्यादा व्याख्या नहीं की, लेकिन उनकी टिप्पणियां हाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं। जैसा कि आमतौर पर नेताओं का होता है, पहले टिप्पणी तो कर देते हैं फिर उसकी तोड़-मरोड़ से पेश करने का ठीकरा मीडिया पर थोप देते हैं। नितिन गडकरी ने भी यही किया। गडकरी ने रविवार को कहा कि भाजपा 2019 का लोकसभा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ेगी। गडकरी ने इसके साथ ही मीडिया पर उनके द्वारा पुणे के एक कार्यक्रम में की गई टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उन्होंने मीडिया पर ही आरोप लगा दिया कि उनकी टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। गडकरी ने स्पष्ट किया कि वह किसी दौड़ या प्रतिस्पर्धा में नहीं हैं और भाजपा अगले आम चुनाव में उचित बहुमत प्राप्त करेगा। समझ नहीं आया कि यह दौड़ में शामिल होने की बात कैसे आई? आपने तो तथाकथित यही कहा था कि जीत-हार दोनों की जिम्मेदारी नेतृत्व को लेनी चाहिए जो ठीक भी है पर नेतृत्व बदलने की बात कहां से आ गई? नितिन गडकरी सोच-समझ कर बोलने वाले मंझे हुए नेता हैं जो नपी-तुली बात करते हैं। अगर उन्होंने जीत-हार पर बयान या टिप्पणी की है तो इसके पीछे कोई कारण होगा? यह किसी से अब छिपा नहीं कि हिन्दुत्व शक्तियां वर्तमान भाजपा नेतृत्व से नाराज हैं। गडकरी इनके काफी करीबी माने जाते हैं। क्या यह संभव है कि गडकरी से यह कथित बयान दिलवाया गया हो? यह भी किसी से छिपा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी में भी नेतृत्व के वर्किंग स्टाइल से नारजगी पैदा हो रही है। चाहे वह नेता हो चाहे कार्यकर्ता वह अपने आपको नेतृत्व से कटा-कटा महसूस कर रहा है। बेशक बकौल गडकरी की टिप्पणी को मीडिया ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया हो पर इसके पीछे गहरा मतलब जरूर लगता है।

Tuesday, 25 December 2018

आपके कम्प्यूटर जी पर सरकार की नजर?

यह सही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता और इसकी सुरक्षा के हर संभव उपाय सरकार को करने चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता हर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसे तत्वों पर नजर रखनी चाहिए जो देश के खिलाफ किसी भी प्रकार की गतिविधि में शामिल हो। इसमें उसके कम्प्यूटर इत्यादि की निगरानी भी शामिल है। पर सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी सरकार को असीमित अधिकार दिया जाना शामिल है? गुरुवार रात केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर अपने एक आदेश में केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाली 10 जांच एजेंसियों को देश में चलने वाले सभी कम्प्यूटरों की जांच का अधिकार दिया है यानि अगर इन एजेंसियों को महज शक के आधार पर किसी व्यक्ति या संस्था के कम्प्यूटर में मौजूद सामग्रियों को देखने या जांचने का अधिकार होगा। हालांकि सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि फिलहाल देश की सुरक्षा की विशेष स्थितियों पर ही यह कार्रवाई होगी। बता दें कि नए आदेश में सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69 के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कम्प्यूटर सिस्टम में तैयार, स्टोर या रिसीव किए गए डेटा को चैक करने या उसकी निगरानी करने का अधिकार दिया गया है। कांग्रेस ने शुक्रवार को मोदी सरकार पर भारत को एक सर्विलांस स्टेट बनाने का आरोप लगाया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसी भी कम्प्यूटर के डाटा की जांच-पड़ताल करने के इस आदेश को नागरिकों की निजता का उल्लंघन बताते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तानाशाही रवैया करार दिया है। गांधी ने ट्वीट कर कहा कि भारत को पुलिस राज्य में बदलकर आपकी समस्या का समाधान होने वाला नहीं है मोदी जी। इससे देश की एक अरब आबादी को पता चल जाएगा कि आप वास्तव में कितने असुरक्षित तानाशाह हैं। इसके साथ ही उन्होंने वह खबर भी पोस्ट की है, जिसमें कहा गया है कि 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर और टेलीफोन डाटा की निगरानी का अधिकार है। सवाल यह है कि क्या नए आदेश के बाद आम लोग भी इसकी जद में होंगे? लोगों का कहना है कि यह उनकी निजता के अधिकार में हस्तक्षेप है। विपक्षी दल भी यही सवाल उठा रहे हैं। राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार के इस फैसले के साथ देश में अघोषित आपातकाल लागू हो गया है। वहीं सरकार का कहना है कि ये अधिकार एजेंसियों को पहले से ही प्राप्त थे। राज्यसभा में विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि विपक्ष आम लोगों को भ्रम में डाल रहा है। जेटली ने आश्वासन दिया कि उन्हीं के कम्प्यूटर की निगरानी रखी जाती है जो राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता के लिए चुनौती होते हैं और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं। आम लोगों के कम्प्यूटर या डेटा पर नजर नहीं रखी जाती है।

-अनिल नरेन्द्र

दलित, आदिवासी, जैन, मुसलमान के बाद अब हनुमान को बताया जाट

संकट मोचक कहे जाने वाले रामभक्त भगवान हनुमान की जाति को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने एक ऐसी बहस ख्वामख्वाह शुरू की है। अब इस बेफिजूल बहस के चलते दावों में तो भगवान हनुमान की पहचान का संकट बनता जा रहा है। योगी आदित्यनाथ द्वारा हनुमान जी को दलित बताने से शुरू हुआ जाति का विवाद अब योगी मंत्रिमंडल में धार्मिक कार्यमंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी द्वारा जाट बताने तक पहुंच गया है। मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा कि जाट प्रभु हनुमान के वंशज हैं। हनुमान जी जाट थे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में सवाल-जवाब के दौरान चौधरी ने लिखित जवाब दिया कि हनुमान मंदिरों में चढ़ावे की धनराशि का विवरण उपलब्ध नहीं है। इस पर विपक्ष के नेताओ ने उनकी जाति का मुद्दा उठाया। इस पर चौधरी ने कहा कि जो दूसरें को बीच में टांग अड़ाए, वह जाट हो सकता है। इस पर सपा सदस्यों ने कहा कि मुख्यमंत्री हनुमान जी को तो दलित बता रहे हैं? अब आपने एक नई जाति बता दी? चौधरी ने बाद में सफाई में कहाöमेरे कहने का मतलब यह था कि हम किसी के स्वाभाव से यह पता करते हैं कि वे किसके वंश से होगा। जाट का स्वभाव होता है कि अगर किसी के साथ अन्याय हो रहा हो तो वह बिना किसी बात और जान-पहचान के ही उसकी मदद को कूद पड़ता है। इसी तरह हनुमान जी जिस तरह भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण होने के बाद उनकी मदद के लिए बीच में शामिल हो गए तो उनकी प्रवृत्ति जाट से मिलती है इसलिए मैंने ऐसा कहा। इससे पहले गुरुवार को उत्तर प्रदेश से भाजपा के विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब ने हनुमान जी को मुसलमान बता दिया। उनके बयान पर देवबंद के उलेमाओं ने शुक्रवार को तीखी टिप्पणी की।  दारुल उलूम के ऑनलाइन फतवा प्रभारी मुफ्ती अरशह फारुकी ने कहाöबिना जानकारी के कोई बात नहीं कहनी चाहिए और किसी बात को कहने से पहले पढ़ना और उसकी तहकीकात जरूरी होती है। देवबंद के उलेमा कारी इसहाक गोरा ने कहा कि किसी भी इस्लामिक किताब में यह नहीं लिखा है कि हनुमान जी मुसलमान थे। लोग शोहरत बटोरने के लिए बयानबाजी करते हैं। बुक्कल नवाब को हिन्दू व मुसलमान, दोनों से अपने-अपने बयानों के लिए माफी मांगनी चाहिए। भगवान हनुमान की जाति को लेकर चल रही बहस पर चुटकी लेते हुए भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने शनिवार को कहा कि बेहतर है कि रामायण के अन्य पात्र भी अपनी जाति प्रमाण पत्र तैयार रखें। पार्टी ने बहस को बेबुनियाद और निराधार बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में भगवान हनुमान की जाति का ठप्पा लगाकर नई रामायण लिखने की कोशिशें की जा रही हैं और ऐसी कोशिशों को अविलंब रोका जाना चाहिए। शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि असल में भगवान हनुमान की जाति का पता लगाना मूर्खता है। संपादकीय में आगे लिखा है कि आचार्य निर्भय सागर महाराज ने दावा किया कि जैन ग्रंथों के अनुसार भगवान हनुमान जैन थे। सामना में लिखा है कि इस तरीके से उत्तर प्रदेश विधानसभा में नई रामायण लिखी जा रही है और उसके मुख्य पात्रों के साथ जाति का ठप्पा लगाया जा रहा है। अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाया जाना था लेकिन ये लोग राम के भक्त की जाति पता करने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि इस तरीके से भगवान हनुमान को मजाक का विषय बना दिया गया है। लेकिन जो लोग अपने आपको हिन्दुत्व का संरक्षक कहते हैं वे इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। अगर यह मुस्लिमों या प्रगतिशील लोगों ने किया होता तो यह हिन्दुत्व सेना हंगामा कर देती। शिवसेना ने कहा कि हाल के चुनावों में भाजपा को हार का सामना करने के बावजूद हनुमान की जाति पर बहक जारी रखने की संभावना है। अत रामायण के अन्य पात्रों को अपना जाति प्रमाण तैयार रखना चाहिए। हम इस बहस की भर्त्सना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इसे यहीं खत्म किया जाए और लाखों-करोड़ों के ईष्ट भगवान हनुमान को यूं सियासी मुद्दा बनाने से बाज आएं। इससे उनके भक्तों को ठेस लगी है।

Saturday, 22 December 2018

तो अब ईवीएम ठीक है...?

जब तक पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम नहीं आए थे तब इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के दुरुपयोग के सवाल उठाए जा रहे थे। चुनावी रुझानों को देखकर अधिकतर लोगों ने ईवीएम की कथित गड़बड़ियों की शिकायतें कीं। विपक्षी दलों जिनमें कांग्रेस सबसे आगे थी, ने चुनाव के दौरान ईवीएम को भी एक मुद्दा बनाया था। कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों ने भी ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग की भूमिका पर तीखे सवाल उठाए थे। अब कांग्रेस बताए कि ईवीएम हैक किए हैं क्या? तो आज ईवीएम ने ठीक काम किया। पूरी दुनिया के ईवीएम अचानक ठीक हो गए? ईवीएम की गड़बड़ी के कथाकथित आरोपों का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक फैसलों में कहा कि ईवीएम ठीक हैं। अब जब पांच राज्यों के परिणाम आ चुके हैं और सरकारें बन गई हैं किसी ने अब तो ईवीएम में गड़बड़ी या हेराफेरी पर सवाल नहीं उठाया? मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मतदान की यह सर्वाधिक विश्वसनीय पद्धति है क्योकिं मशीन गलत रखरखाव की शिकार हो सकती है, लेकिन इसमें छेड़छाड़ मुमकिन नहीं है। ईवीएम की विश्वसनीयता पर लगातार उठाए जा रहे सवालों पर सुनील अरोड़ा ने कहा कि राजनीतिक दलों ने ईवीएम को फुटबॉल बना दिया है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि ईवीएम फुलप्रूफ है। चुनावों के दौरान ईवीएम में आने वाली खराबी की शिकायतों को चुनाव आयोग पूरी तरह खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। अरोड़ा ने कहा कि मतदान की यह सर्वाधिक विश्वसनीय पद्धति है। लोकतंत्र में सवाल उठाना सबका अधिकार है, लेकिन इसके पीछे आधार होना चाहिए। सीईसी ने कहा कि चुनाव में मतदाताओं के बाद राजनीतिक दल ही मुख्य पक्षकार होते हैं। उन्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, लेकिन दुख होता है कि हमने ईवीएम को फुटबॉल की तरह बना दिया है। चुनाव में जीत-हार जनता तय करती है। चुनाव आयोग की इसमें कोई भूमिका नहीं होती। किसी विशेष दल के पक्ष में चुनाव परिणाम नहीं आने पर ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की प्रवृत्ति पर अरोड़ा ने कहाöलोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों से बिल्कुल विपरीत थे। इसके बाद भी हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, त्रिपुरा और अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव व तमाम उपचुनावों के परिणाम बिल्कुल अलग रहे। मशीन में खास प्रोग्रामिंग कर विशेष परिणाम हासिल करने की संभावना को मैं पूरी तरह से नकार सकता हूं। हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में 1.76 लाख पोलिंग बूथ थे, लेकिन कुछ ही जगहों पर ईवीएम में खराबी की शिकायत आई। क्या अब भविष्य के लिए ईवीएम में हेराफेरी करने का मुद्दा समाप्त हो गया है?

-अनिल नरेन्द्र

गब्बर सिंह टैक्स (जीएसटी) पर सरकार जागी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के सलैब से जुड़े प्रधानमंत्री के एक बयान को लेकर बृहस्पतिवार को उन पर निशाना साधा और कहा कि उनकी पार्टी ने गब्बर सिंह टैक्स पर प्रधानमंत्री को गहरी नींद से जगा दिया है, लेकिन अब भी वह हल्की झपकी ले रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के जिस विचार को ग्रैंड स्टुपिड थॉट (बेहद बकवास विचार) कहा था, अब उसी को लागू करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी जी, देर आए दुरुस्त आए। दरअसल प्रधानमंत्री ने मंगलवार को संकेत दिया था कि आने वाले समय में 99 प्रतिशत वस्तुओं पर जीएसटी 18 प्रतिशत सलैब में आ सकती है। जीएसटी को जिस उद्देश्य से लागू किया गया था, वह उद्देश्य अभी तक पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। इसके एक देश, एक टैक्स और सरल बताया गया था, लेकिन अब तक इसमें कोई सरलता नहीं दिखी है। न ही इसे स्पष्ट तौर पर एक टैक्स कहा जा सकता है। इतना ही नहीं, न केवल सरकार बल्कि इसके मंत्री और अधिकारी भी जीएसटी की पॉलिसी को लेकर स्पष्ट नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वे स्वयं ही किसी उलझन में हैं, जो यह समझ नहीं पाते कि किस पॉलिसी को लागू करने पर उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? सार यह है कि जीएसटी में सुधार के लिए अभी बहुत काम करना है, जीएसटी सिम्पल नहीं बल्कि एक पेचीदा सिस्टम है जिसे असल में सरल बनाना बाकी है। तकनीकी पहलुओं पर भी सुधार की बेहद जरूरत है। खासतौर पर वेबसाइट में सुधार करने की। छोटे व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि छोटे-छोटे जीएसटी केंद्र खोले जाएं, जहां व्यापारियों के लिए रिटर्न दाखिल करने की सुविधा हो या वे अपना टैक्स जमा कर सकें। अखबारों के लिए अति आवश्यक न्यूज प्रिन्ट पर जीएसटी इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने लगाया है। इसके कारण देशभर में सैकड़ों अखबार बंद हो गए हैं, कागज मिलें प्रभावित हुई हैं और हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। अखबार एक मिशन है, जनता के विचार प्रकट करने, सरकार को विभिन्न मुद्दों पर सुझाव देने के लिए। आप अगर अखबार ही बंद करवा देंगे तो आप जनता से बिल्कुल कट जाएंगे। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर अकेले कोई भी सरकार निर्भर नहीं हो सकती है। चैनल अधिकतर एक खास (अंग्रेजी भाषा) के दर्शकों को प्रभावित करता है। पर यह अधिकतर वोट नहीं देते। वोट देने वालों को स्थानीय भाषा के छोटे अखबार ज्यादा प्रभावित करते हैं। सरकार को न्यूज प्रिन्ट से जीएसटी बिल्कुल हटा लेना चाहिए। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह  पहली बार है कि मोदी सरकार ने न्यूज प्रिन्ट पर टैक्स लगाया है और इससे हजारों परिवारों को सीधा प्रभावित किया है।

सज्जन केस के दूरगामी परिणाम होंगे

कांग्रेस के कद्दावर नेता सज्जन कुमार तो ताउम्र कैद की सजा मिलने के बाद भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। उन्हें बेशक निचली अदालतों से राहत मिलती रही है और पहले मामले में उन्हें किसी केस में हाई कोर्ट से सजा मिली हुई पर अभी उनको कई केसों का सामना करना पड़ेगा। एक अन्य मामले में भी चश्मदीद गवाह ने अदालत के समक्ष उनकी पहचान की थी और इस मामले में भी जल्द फैसला आ सकता है। सज्जन कुमार पर करीब आधा दर्जन मामले अभी भी लंबित हैं। सज्जन से पहले कांग्रेस के ही स्वर्गीय दिग्गज नेता एचकेएल भगत भी एक गवाह के बयान के आधार पर जेल भेजे गए थे, लेकिन उनके स्वर्गवास होने के कारण मामले को बंद करना पड़ा। नवम्बर 84 दंगों के बाद से ही पूर्व सांसद सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर व दिवंगत एचकेएल भगत का नाम आरोपियों के तौर पर प्रमुखता से लिया जा रहा है। सज्जन कुमार का रुतबा इतना रहा है कि जब सीबीआई उन्हें गिरफ्तार करने मादीपुर स्थित उनके घर गई थी तो जमकर हंगामा हुआ था और उसके बाद से कभी भी सीबीआई या पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मद नहीं दिखाई। उनके खिलाफ दिल्ली कैंट इलाके के अलावा सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, नांगलोई इत्यादि इलाकों में हुए दंगों के मामले विचाराधीन हैं। संभावना जताई जा रलही है कि अगले वर्ष यानि 2019 में सभी मामलों में फैसले आ जाएंगे। जिस प्रकार हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को सजा सुनाई है उसका असर अन्य मामलों पर भी पड़ेगा। अभी तक सज्जन कुमार को संदेह का लाभ मिलता रहा है, लेकिन आगे इसकी संभावना कम है। हालांकि अदालत का फैसला गवाहों व दस्तावेजों के आधार पर करना होता है लेकिन अब सज्जन व अन्य आरोपियों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। वैसे यह बता दें कि 84 के दंगों के मामले में पहली बार आपराधिक साजिश के तहत आरोपियों को दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई है, लेकिन खास बात है कि अब तक न तो दिल्ली पुलिस ने और न ही सीबीआई ने किसी भी आरोपी पर दंगों को अंजाम देने के लिए आपराधिक साजिश का आरोप लगाया था। मामले में सीबीआई की ओर से पैरवी कर रहे विशेष अभियोजक व वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा ने बताया कि आईपीसी की धारा-120बी का आरोप लगाना ही सज्जन कुमार की सजा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका रही। दूसरे शब्दों में यूं कहिए कि यह पहला मामला है जिसमें दंगों की साजिश को रिमोट कंट्रोल करने वालों को सजा हुई है। यहां तक कि सीबीआई ने भी आरोप पत्र में आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप नहीं लगाया है। चीमा ने बताया कि पुलिस और सीबीआई ने तो सज्जन व अन्य पर सिर्प दंगों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था ः जस्टिस सेन

मेघालय हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से संबंधित एक फैसला सुनाए हुए भारत के इतिहास, विभाजन और उस दौरान हिन्दुओं व सिखों आदि पर हुए अत्याचारों का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया। जस्टिस एसआर सेन ने आगे कहा कि वहीं भारत का विभाजन भी धर्म के आधार पर हुआ था। उसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष बना रहा। किसी को भारत को दूसरा इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए वरना वह दिन दुनिया के लिए प्रलयकारी होगा। उन्होंने विश्वास है कि वर्तमान सरकार मामले की गंभीरता को समझते हुए आवश्यक कदम उठाएगी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए पूरा सहयोग देंगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी अनुरोध किया है कि वह कानून बनाए, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, जैन। पारसी, ईसाई, खासी, जैतां व गारो समुदाय को बिना किसी सवाल और दस्तावेज के भारत की नागरिकता दी जाए। उनके लिए कोई कटऑफ डेट न हो। यही सिद्धांत विदेश से आने वाले भारतीय मूल के हिन्दुओं और सिखों के लिए भी अपनाए जाएं। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि वह भारत में पीढ़ियों से रह रहे और वहां के कानून का पालन कर रहे मुसलमान भाई-बहनों के खिलाफ नहीं हैं। उन्हें भी शांतिपूर्वक रहने की इजाजत होनी चाहिए। न्यायमूर्ति एसआर सेन ने अमोन राणा के स्थानीय निवास प्रमाण पत्र से संबंधित याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। इस दौरान कोर्ट ने असम एनआरसी प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि बहुत से विदेशी भारतीय बन गे और मूल भारतीय छूट गए हैं जो दुखद है। कोर्ट ने कहा कि सरकार सभी नागरिकों के लिए यूनीफॉर्म (एक समान) कानून बनाए और उसके पालन की सभी पर बाध्यता हो। जो भी भारतीय कानून और संविधान का विरोध करता है, उसे देश का नागरिक नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने फैसले की कॉपी प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कानून मंत्री और राज्यपाल को भेजने का आदेश दिया। मेघालय के जस्टिस सेन की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने संबंधित टिप्पणी ने सियासी बवाल ला दिया है। अपने विवादित बोल के लिए चर्चा में रहने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने न्यायाधीश का समर्थन किया है। दूसरी ओर नेशनल कांफ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसे नकार दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गिरिराज सिंह ने कहा है कि जज की टिप्पणी को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने जो कहा है, कई लोग इस बारे में मांग उठाते रहे हैं। जिन्ना ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा किया था। निश्चित तौर पर लोग खुद को ठगा हुआ महसूस करते रहे हैं। वहीं फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोग अपनी पसंद की बातें कह सकते हैं। लेकिन इससे कोई फर्प नहीं पड़ेगा। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे घृणा फैलाने की कोशिश करार दिया। उन्होंने जज की टिप्पणी पर कहा कि भारत इस्लामिक देश नहीं बनेगा।

Thursday, 20 December 2018

मोबाइल मैसेजिंग बना राजनीतिक प्रचार का मुख्य जरिया

माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स ने अपनी सफलता को बेहद आसान शब्दों में बयां किया है। उनका कहना है कि सफलता का सीधा-साधा फार्मूला हैöअच्छी कम्युनिकेशन स्किल। गेट्स का कहना है कि अगर इंसान लिखने और बोलने में कुशल है तो वह किसी भी पेशे में सफल होने की काबिलियत रखता है। मोबाइल मैसेजिंग पिछले कुछ समय से राजनीतिक प्रचार का मुख्य जरिया बनता जा रहा है। अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में लेफ्टिनेंट गवर्नर पद का चुनाव लड़ी एलनी कोनालिक्स सैन फ्रेंसिस्को में अपने घर पर हर सैकेंड एक वोटर से सम्पर्प करती हैं। यह टेक्स्ट मैसेज से लोगों तक पहुंचने का नया तरीका बन गया है। अमेरिका की डेमोकेटिक पार्टी की अधिकतर राज्यों में मौजूदगी के होने के बावजूद पार्टी कमेटी ने इस वर्ष नौ करोड़ 40 लाख रजिस्टर्ड वोटरों के मोबाइल फोन नम्बर खरीदे हैं। राजनीतिक टेक्स्ट की अपील विविध है। वोटर के किसी काम में दखल दिए बिना उससे सम्पर्प हो सकता है। व्यक्तिगत सम्पर्प के दौरान कई लोगों से मुलाकात नहीं हो पाती है लेकिन टेक्स्ट तेजी से दूरदराज के इलाकों में पहुंच जाते हैं। कई रणनीतिकारों का मानना है, जहां हमने ई-मेल इनबॉक्स और सोशल मीडिया पर मैसेज की भरमार को स्वीकार कर लिया है वहीं टेक्स्ट मैसेज व्यक्तिगत और आमंत्रण पर आधारित संवाद माध्यम है। मार्केटिंग फर्म मोबिलस्क्बेयई के अनुसार 90 प्रतिशत मैसेज प्राप्त होने के तीन मिनट के अंदर पढ़ लिए जाते हैं। हालांकि कई लोग राजनीतिक मुहिमों से नाराज भी हो जाते हैं। अमेरिका के कई रिपब्लिकन राजनेताओं के अभियान में मदद कर रही फर्म ओपिनियन सीसेम के संस्थापक गेरिट लोसिंग कहते हैं, अन्य स्थानों पर शोरशराबा झेलने की बजाय लोग टेक्स्ट मैसेज पसंद करते हैं। उनका प्लेटफार्म 17 मुहावरों की सूची उपयोग करता है और नेगेटिव रिस्पांस वाले लोग स्वयं बाहर हो जाते हैं। पूंजी लगाने वाली फर्मों ने हसल जैसे प्लेटफार्म में अरबों रुपए लगाए हैं। यह मैसेजिंग की बढ़ती स्वीकार्यता का सबूत है लेकिन कई लोग मानते हैं कि कंज्यूमर की शिकायतों के कारण राजनीतिक टैक्स्टिंग के शुरुआती स्वर्ण युग में परिवर्तन हो सकता है। भारत सरकार ने चेताया है कि वाट्सएप में कई भड़काऊ संदेश भी भेजे जा रहे हैं। ऐसे भड़काऊ संदेश देने वालों, भेजने वालों की व्यक्तिगत पहचान और उनके स्थान के बारे में जानकारी मांगी जा रही है। वाट्सएप का दुरुपयोग रोकने के लिए भारत सरकार और कंपनी दोनों परेशान हैं। खैर, किसी भी ऐसी सुविधा के दुरुपयोग करने वाले होते हैं पर इससे यह सुविधा गलत नहीं हो जाती। आने वाले दिनों में खासकर चुनावों में यह वाट्सएप प्रचार का बड़ा जरिया बन जाएगा। इसके आसार अभी से नजर आने लगे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

लोकसभा चुनाव देख गहलोत और कमलनाथ के सिर पर ताज

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए राजस्थान और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के नाम पर मुहर लगाई है। बेशक मुख्यमंत्रियों के चयन में कुछ वक्त लगा पर राहुल गांधी का बतौर कांग्रेस अध्यक्ष यह अब तक का सबसे बड़ा फैसला है। मध्यप्रदेश में तो मुख्यमंत्री पद के लिए अनुभवी नेता कमलनाथ के नाम का ऐलान गुरुवार रात ही कर दिया गया था, राजस्थान में भी दो बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत का चयन कांग्रेस की मिशन 2019 को देखकर किया गया है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट में कौन चुना जाएगा। यह सस्पेंस दो-तीन दिन तक बना रहा। अंत में राहुल के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। इस फैसले के पीछे मिशन 2019 की छाप साफ नजर आ रही है और राहुल गांधी के इस निर्णय का असर चार माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में दिखाई देगा। यही वजह रही कि राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री पद के सभी दावेदार, राज्यों से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं से बातचीत कर नए नेता का चयन किया। स्कूली दिनों में जादूगरी करके दोस्तों को चौंकाने वाले गहलोत को कमलनाथ की तरह राजनीति का जादूगर भी कहा जाता है, जो कांग्रेस को कठिन से कठिन हालात से निकाल लाते हैं। दोनों ही नेता अशोक गहलोत और कमलनाथ नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे हैं। कमलनाथ की बात करें तो वह गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तो कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा मानती थीं तो वहीं उनके छोटे बेटे संजय गांधी के वह स्कूली दोस्त थे। वह राहुल गांधी के भी काफी करीबी माने जाते हैं। दून स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही वह संजय गांधी के सम्पर्प में आए थे और वहीं से राजनीति में एंट्री की नींव तैयार हुई। एक बार इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं। इंदिरा ने तब मतदाताओं से चुनावी सभा में कहा था कि कमलनाथ उनके तीसरे बेटे हैं। बता दें कि कमलनाथ छिंदवाड़ा से लगातार नौ बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। संजय गांधी और कमलनाथ की दोस्ती दून स्कूल के जमाने से मशहूर थी। दोनों का सपना था देश में छोटी कार का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना और यहीं से मारुति का जन्म हुआ था। इमरजेंसी के बाद कमलनाथ को गिरफ्तार किया गया। तब वह संजय गांधी के लिए जज के साथ बदतमीजी कर बैठे थे। इसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ा, लेकिन इससे इंदिरा गांधी की नजरों में उनका कद काफी बढ़ गया था। कमलनाथ और गहलोत को कमान देने के पीछे अनुभव के साथ सीटों की गणित को भी अहम माना जा रहा है। माना जा रहा है कि दोनों राज्यों में कांग्रेस को बहुमत के लिए दूसरे दलों या निर्दलीयों पर निर्भरता को देखते हुए प्रशासनिक अनुभव को प्राथमिकता देना ज्यादा मुफीद माना गया। हम श्री कमलनाथ और श्री अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई देते हैं।

Wednesday, 19 December 2018

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : सज्जन को ताउम्र कैद

1984 के सिख विरोधी दंगे के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दंगा भड़काने और साजिश रचने के मामले में दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुनाई। सज्जन को 31 दिसम्बर 2018 तक सरेंडर करना है। आपको बता दें कि 34 साल के बाद कोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा सुनाई है जबकि इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था। दरअसल सीबीआई ने एक नवम्बर 1984 को दिल्ली कैंट के राज नगर इलाके में पांच सिखों की हत्या के मामले में सज्जन कुमार को बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सोमवार को जस्टिस एस. मुरलीधर व जस्टिस विनोद कुमार गोयल ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि सीबीआई के सबूत संदेह से परे हैं कि सज्जन कुमार दंगाई भीड़ के नेता थे और उन्होंने भीड़ को मार-काट और सिखों की हत्या के लिए उकसाने में सक्रिय भागीदारी निभाई। कोर्ट ने माना कि आरोपी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाकर सुनवाई से बच निकले और सजा देने में तीन दशक की देरी हुई। जजों ने कहा कि पीड़ितों को भरोसा देना आवश्यक है कि कोर्ट के समक्ष चुनौतियों के बावजूद सत्य की जीत होगी, न्याय होगा। कोर्ट ने दोषियों को कठघरे तक पहुंचाने के लिए प्रत्यक्षदर्शियोंöजगदीश कौर, उनके रिश्तेदार जगदीश सिंह और निरप्रीत कौर के साहस को भी सराहा। हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत से दोषी पाए गए पांच अन्य की अपील ठुकरा दी। ट्रायल से पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, रिटायर्ड नेवी अफसर कैप्टन भागमल और गिरधारी लाल को उम्रकैद दी थी। वहीं पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को तीन-तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने पांचों की सजा बरकरार रखी। साथ ही यादव और खोखर को नए अपराधों में दोषी ठहराकर उन्हें भी दी गई सजा को 10-10 साल कर दिया। सज्जन समेत सभी दोषियों पर एक-एक लाख जुर्माना भी लगा। जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस गोयल ने फैसले में कहा कि एक से चार नवम्बर तक पूरी दिल्ली में 2733 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनके घरों को नष्ट कर दिया गया था। देश के बाकी हिस्सों में भी हजारों सिख मारे गए थे। इस भयावह त्रासदी के अपराधियों के बड़े समूह को राजनीतिक संरक्षण का लाभ मिला और जांच एजेंसियों से भी उनको मदद मिली। सिख विरोधी दंगे को लेकर हाई कोर्ट ने कहा कि यह अलग तरीके का अप्रत्याशित मामला है और अदालतों को ऐसे मामलों में अलग दृष्टि से देखने की जरूरत है। पीठ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए नरसंहार के मामलों का भी हवाला दिया। अदालत ने द्वितीय विश्वयुद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सेना प्राधिकरण ने इस तरह के मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया था। रोम इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने भी हत्या एवं दुष्कर्म जैसे मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध बताया है। अदालत ने अपने फैसले में दिल्ली व पंजाब में हुए सिख विरोधी दंगों के साथ अन्य नरसंहार का भी जिक्र किया। अदालत ने कहा कि इसी तरह का नरसंहार 1993 में मुंबई में, 2002 में गुजरात, 2008 में ओडिशा और 2013 में मुजफ्फरनगर में भी हुआ था, जो अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हुआ वह संगीन अपराध है। इस तरह के मामलों में राजनीतिक कलाकारों को कानून के रखवालों का ही संरक्षण रहता है। मानवता के खिलाफ अपराध या नरसंहार घरेलू अपराध का हिस्सा है। इसे तुरन्त दुरुस्त करने की जरूरत है। फैसला पढ़ रहे न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर का गला भर आया। फैसला पढ़ना शुरू ही किया था कि उनका गला भर आया और आंखें नम हो गईं। उन्होंने खुद को संभालते हुए आंखें पोंछीं और पूरा फैसला पढ़ा। उन्होंने इस अपराध को मानवता का संहार करार देते हुए दोषियों को जैसे ही सजा सुनाई, कोर्ट रूम में ही पीड़ित रो पड़े। पीड़ित परिजनों ने कहा कि आखिरकार उन्हें न्याय मिला। सज्जन कुमार को कड़ी सजा का यह फैसला कई संदेश लिए हुए हैं। दंगा पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने में भले 34 साल लग गए हों, लेकिन फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह कितना ही ताकतवर राजनीतिक क्यों न हो। 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ एकतरफा हिंसा हुई थी, जिससे दिल्ली ने नृशंसता का रिकॉर्ड बना दिया था। एक महीने के अंदर हुई दोनों सजा ने पीड़ित परिवारों की न्याय व्यवस्था से टूटती उम्मीद को कायम रखा है। दुनिया में भी यह संदेश गया कि भारत की न्याय प्रणाली में देर-सवेर ही सही न्याय होता है। जिन दंगा पीड़ितों ने दंगाइयों को भड़काने वालों के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाई, तमाम धमकियों और दबावों के बीच जटिल कानूनी प्रक्रिया के तहत संघर्ष करने का संकल्प किया, उसी का नतीजा है कि सज्जन कुमार जैसे नेता को सजा के अंजाम तक लाया जा सका। चाहे सिख विरोधी दंगे हों, गुजरात के दंगे हों या फिर मुजफ्फरनगर के दंगें हों, यह सभ्य समाज पर एक बड़ा कलंक है। इन दंगों ने दुनियाभर में भारत की छवि को भारी धक्का पहुंचाया। ऐसे में सज्जन कुमार ही नहीं, दंगे की साजिश रचने वाले हर आरोपी को न्याय के कठघरे में लाया जाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 18 December 2018

राफेल पर सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट?

राफेल डील में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी मोदी सरकार के लिए शुक्रवार सुबह अच्छी खबर लेकर आया। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुए 36 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ हुई डील की जांच की मांग करने वाली चारों याचिकाओं को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा कि कैग ने राफेल की कीमत का ऑडिट किया। फिर पीएससी ने कैग रिपोर्ट जांची। डील में संदेह का कोई कारण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के 21वें पेज पर 25वें बिन्दु (प्राइसिंग सेगमेंट) में लिखा हैöकोर्ट को सौंपे गए दस्तावेज के मुताबिक सरकार ने विमान की कीमत कैग (सीएजी) को  बताई थी। कैग की रिपोर्ट संसद की लोक-लेखा समिति (पीएसी) ने जांचा था। राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर रिपोर्ट का सीमित अंश ही संसद में रखा गया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तीन प्रमुख आरोप थे। पहला, खरीद की प्रक्रिया। आरोपöसरकार ने डील करने के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया। फैसलाöहमें फैसले की प्रक्रिया पर संदेह का मौका नहीं मिला। प्रक्रिया में मामूली गड़बड़ी हुई भी हो तो यह करार खत्म करने या विस्तृत जांच का आधार नहीं बनता। दूसरा, राफेल की कीमत। आरोपöतय कीमत से ज्यादा कीमत चुकाई गई, यह सार्वजनिक तथ्य है। फैसलाöकीमत कैग को बताई गई। कैग रिपोर्ट को पीएसी ने जांचा। इसका एक हिस्सा संसद में रखा गया। यही पब्लिक डोमेन में है। कीमतों की तुलना करना कोर्ट का काम नहीं है। तीसरा, ऑफसेट पार्टनर। आरोपöरिलायंस एयरो स्ट्रक्चर लिमिटेड को फायदा पहुंचाया। फैसलाöरिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं मिला जो दिखाए कि सरकार ने किसी को फायदा पहुंचाया। इंडियन ऑफसेट पार्टनर चुनने का विकल्प भारत सरकार के पास है ही नहीं। शुक्रवार का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भाजपा के लिए राहत लेकर आया। तीन राज्यों में हार के बाद मायूस भाजपा को डर सता रहा था कि कहीं इस मुद्दे को 2019 के आम चुनाव तक खींच लिया गया तो उनके लिए और मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। अब पार्टी को फैसले के बाद लगा कि मोदी सरकार की छवि को धूमिल करने वाला एक धब्बा हट गया है। राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भाजपा के लिए संजीवनी से कम नहीं। पार्टी के नेताओं के चेहरे खिल गए। पार्टी ने तुरन्त ही मुद्दे पर प्रचार की योजना तय भी कर ली। सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन स्थित अपने कक्ष में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की बैठक कर विचार-विमर्श किया तो अमित शाह ने दल-बल के साथ भाजपा मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस कर विस्तार से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयानों को झूठा ठहराया और देश से माफी मांगने की बात कही। शाम होते-होते दूसरे राउंड में कांग्रेस ने पासा पलटने की नीयत से विवाद को नया रूप दे डाला। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहाöकोर्ट के फैसले में साफ लिखा है कि कीमतें कैग की रिपोर्ट में दर्ज हैं। फिर यह रिपोर्ट सीएजी के सामने रखी गई। यह जानकारी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी है। इसी आधार पर कोर्ट ने अपना फैसला दिया। मेरे साथ पीएसी के चेयरमैन मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। इनसे पूछिए कि रिपोर्ट उनके सामने कब आई? इसके बाद खड़गे ने कहा कि पीएसी में कैग रिपोर्ट नहीं आई? फिर राहुल ने कहाöखड़गे कह रहे हैं कि उन्होंने यह रिपोर्ट देखी नहीं तो क्या पीएम मोदी ने पीएमओ में कोई और पीएसी बना रखी है या शायद फ्रांस में चलती होगी। सरकार ने संस्थाओं की ऐसी-तैसी कर रखी है। खैर, हम सिर्प यह कह रहे हैं कि मामला 30,000 करोड़ रुपए की चोरी का है। मोदी राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरतभरा बताया, मगर कहा कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे में मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को झूठी जानकारी देकर जिस तरह गुमराह किया वो देश के साथ धोखा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का एक आधार यह बताया कि केंद्र सरकार ने सीएजी से लड़ाकू विमान की कीमतें सांझा की, जिसके बाद सीएजी ने पीएसी को रिपोर्ट दे दी और फिर पीएसी ने संसद के समक्ष राफेल सौदे की जानकारी दे दी है, जो अब सार्वजनिक है। उन्होंने कहाöहमें यह नहीं पता कि सीएजी को कीमत का ब्यौरा मिला है या नहीं? लेकिन बाकी सारी बातें झूठ हैं। न ही सीएजी की तरफ से पीएसी को कोई रिपोर्ट दी गई है, न ही पीएसी ने ऐसे किसी दस्तावेज का हिस्सा संसद के समक्ष प्रस्तुत किया और न ही राफेल सौदे के संबंध में ऐसी कोई सूचना या रिपोर्ट सार्वजनिक है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपनी न्यायिक समीक्षा के दायरे को आधार बनाकर याचिका खारिज की है। सरकार को कोई क्लीन चिट नहीं मिली। राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप देशवासियों को तब तक आंदोलित करते रहेंगे जब तक कि मामले में निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाए। देश की खातिर हम इस मामले को जारी रखेंगे। साफ है कि सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले की पुनर्निरीक्षण की मांग होगी। यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ। यह तो एक ट्रेलर है, पिक्चर आना बाकी है।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 16 December 2018

शशिकांत दास के सिर पर कांटों का ताज

टकराव और तमाम तरह के विवादों के बीच उर्जित पटेल के इस्तीफे के तत्काल बाद नियुक्त किए गए भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शशिकांत दास ने कांटों भरा ताज पहना है। रघुराम राजन और उर्जित पटेल के रूप में वो बाहरी व्यक्तियों के बाद सरकार ने एक ऐसे व्यक्ति को गवर्नर पद के लिए चुना है, जो आर्थिक मामलों के सचिव तथा वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं और सरकार के कामकाज से बाखूबी परिचित हैं। शशिकांत दास ने नोटबंदी के समय रिजर्व बैंक और सरकार के  बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। तब मीडिया को संबोधित करने का जिम्मा इन्हीं का था। उसके बाद जीएसटी का मसौदा तैयार करने से लेकर उस पर राज्यों की सहमति जुटाने और जीएसटी से जुड़े संवेदनशील संशोधनों में भी उनकी सक्रियता थी। इसका यह अर्थ भी निकाला जा सकता है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में उनकी भी सहमति थी? अगर थी तो इनके परिणाम तो अच्छे नहीं निकले। आज देश में हजारों व्यापारी, युवा बेरोजगार हैं। धंधे चौपट हो गए हैं और लाखों लोग रोटी तक के लिए मोहताज हैं। फिर यह भी किसी से छिपा नहीं कि आर्थिक तंगी से गुजर रही केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से आर्थिक सहायता चाहती है। उर्जित पटेल के इस्तीफे के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि वह मोदी सरकार की हर मांग को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। शशिकांत दास के समक्ष सबसे पहला काम रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को बचाते हुए उसके और वित्त मंत्रालय के बीच चली आ रही तनातनी को कम करना होगा। इसी के चलते उर्जित पटेल ने अपना कार्यकाल पूरा होने से नौ महीने पहले इस्तीफा दिया और इसी के कारण पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया। यह भी बताना जरूरी है कि शशिकांत दास रघुराम राजन की तरह से प्रोफेशनल बैंकर या अर्थशास्त्राr नहीं हैं। वे 1980 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और इस नाते वे देश की विभिन्न संस्थाओं में तालमेल बिठाने और वित्तीय मामलों को कुशलतापूर्वक संचालित करने का काम कर चुके हैं। जब भी उर्जित पटेल से वित्त मंत्रालय के रिश्तों में तनातनी आई वे एक संकट मोचक बनकर खड़े रहे। चाहे यूपीए सरकार के वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम के कार्यकाल में आई 2008 की मंदी का प्रश्न हो या मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी की 2016 की नोटबंदी का सवाल हो, हर कठिन वक्त में वे सरकार के साथ खड़े रहे। शशिकांत दास ने ऐसे नाजुक दौर में पदभार संभाला है जब कुछ ही महीनों बाद 2019 के लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। उम्मीद की जाती है कि सर्वप्रथम रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बरकरार रखेंगे और देशहित को सर्वोपरि रखेंगे। वह मोदी सरकार के रबड़ स्टैम्प नहीं बनेंगे और कोई ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जो देशहित में न हो।
-अनिल नरेन्द्र
युवकों को बचाए। सुषमा जी को इन्हें बचाना होगा।

सुषमा स्वराज जी हमें यहां से निकालें

हाथ जोड़ के बेनती है मां जी सानू ऐथो कड्ड लो। नरक तो वी माड़ी जिन्दगी कट रहे आं ऐथे। साडी कोई सुनदा ऐथे। कंपनी नू कैंहदे आं तां सानू दूजी कंपनी विच चले जाण लई कह देंदे ने। जिन्हा दे तां इन्हां तो वी माड़े हाल ने। कोई सुनण वाला नहीं। यह बात गोराया के 29 साल के अवतार Eिसह ने भास्कर के रिपोर्टर से फोन पर की। अवतार सिंह दो साल से सऊदी अरब के रियाद में फंसा है। होशियारपुर के शशि ने बताया कि अगर एम्बेसी में जाते हैं तो कहा जाता है कि कंपनी हाथ खड़े करती है तो ही आपको इंडिया भेजा जा सकता है। सऊदी अरब के रियाद, जम्बो, युद्ध, कसीन के शहरों में फंसे पंजाब के युवकों की इतनी दुर्दशा है कि सुनकर भी दुख होता है। अवतार सिंह बताता है, (उन्हीं के शब्दों में) लेबर कोर्ट तों ले के लोकल पुलिस तक सारेआं अगे पेश हो के वेख लेआ पर ओ वी साडी नहीं सुणदे। हुण ना साडे कोल पासपोर्ट है ते न ही एकामा (एक तरह का पास या वीजा), कोई मैडिकल कार्ड वी साडे कोल नहीं। बहुत बुरा हाल है। वीजा नां होण करके जे असीं बाहर जाने आं तां पुलिस फड़ लैंदी है। की दसिए इक कमरे विच असीं 15-15 बंदे रह रहे आं। पता नहीं केहड़े वेले सानूं कौण फड़ के ले जावे, इत्थे दा पाणी समुंद्री है तो पाणी खराब होण करके किसी नूं लकवा हो चुक्का है तां किसे दी चमड़ी गलण लगी है। मैडिकल खत्म होण करके असीं अपणा इलाज वी नईं करवा सकदे। असीं सारे तुहाडे अगे हत्थ जोड़दें आं कि साडी गल सुषमा स्वराज जी कोल पहुंचाओ। बस ओहणा तो अलावा होर कोई चारा नहीं साडे कोल। सऊदी अरब में साइप्रस की जे एंड पी कंस्ट्रक्शन कंपनी से भारत के तीन हजार से अधिक नागरिक काम कर रहे थे। इनमें से लगभग 1200 युवक पंजाब के अलग-अलग जिलों के हैं और उनमें से 500 से 600 युवक जालंधर, होशियारपुर के। बलविन्दर ने बताया कि वह 2008 में जालंधर स्थित एक एजेंट के जरिये दुबई जे एंड पी कंपनी में काम करने गया था। 2012 में कंपनी के नए प्रोजेक्ट के चलते वह सऊदी अरब आ गया। तीन साल तक कंपनी की तरफ से मैडिकल कार्ड, एकामा (वीजा) और सैलेरी टाइम पर दी जा रही थी। मगर एक साल से वह काम कर रहे हैं, जिसके बदले न तो सैलेरी दी जा रही थी और न ही मैडिकल कार्ड बनाया जा रहा है। रियाद में फंसे अधिकतर युवकों के पास न तो पासपोर्ट है और न ही एकामा। अगर बिना एकामा बाहर जाते हैं तो पुलिस पकड़ लेती है। कंपनी एकामा बनवाने के लिए 8000 रियाल (1.50 लाख रुपए) मांगती है। दूसरी कंपनी में तो 12 घंटे काम करवाते हैं और आठ घंटे के पैसे दिए जाते हैं। पहले से काम कर रही लेबर को कई महीने से सैलेरी भी नहीं मिली। इन्हें बचाया कैसे जा सकता है? सरकार या तो भेजने वाले एजेंटों को पकड़े या फिर उन कंपनियों को मजबूर करे कि वह इन फंसे हुए युवकों को बचाए। सुषमा जी को इन्हें बचाना होगा।

Saturday, 15 December 2018

मोदी को हराना मुश्किल नहीं अगर विपक्ष में एकता हो

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए मोदी के खिलाफ महागठबंधन की कवायद अभी तक परवान न चढ़ने का एक बड़ा कारण था हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा परिणाम। विपक्षी पार्टियां यह देख रही थीं कि इन राज्यों में कांग्रेस कितनी मजबूत होकर निकलती है। दरअसल सभी विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे की ताकत आंकने में लगी हुई थीं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के इंतजार की एक वजह यह भी थी कि इससे महागठबंधन की ओर बढ़ने का रास्ता खुलता दिखे। ऐसा माना जा रहा था कि पांच राज्यों के जनादेश के मार्पत सभी दलों को जमीनी हकीकत का अंदाजा लग जाएगा और उसके बाद जब वह बातचीत के लिए बैठेंगे तो किसी भ्रम में नहीं होंगे। कांग्रेस जिस तरह से एक के बाद एक राज्यों में बेदखल हो रही थी उसके बाद प्रमुख विपक्षी दलों में महागठबंधन के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया था। पर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन के बाद इन दलों का कांग्रेस के प्रति नजरिया बदलेगा। अब यह सवाल शायद ही कोई पूछे कि कांग्रेस का नेतृत्व क्यों? इन तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस दूसरा बड़ा दल देशभर में बन गया है। अब उसकी पांच राज्यों में सरकारें हैं। तीन राज्यों में भाजपा को सीधी टक्कर में हराने के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय पार्टी के अपने वजूद को साबित कर दिया है। यह तय हो गया है कि अब जो भी महागठबंधन बनेगा वह कांग्रेस के ही नेतृत्व में बनेगा। इस जीत का सबसे बड़ा संदेश यह है कि भाजपा, मोदी-शाह की जोड़ी को सीधी टक्कर में हराया जा सकता है। कांग्रेस को भी यह बात समझ में आ गई होगी कि भाजपा को सीधी टक्कर देने के लिए उसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की जरूरत होगी। कर्नाटक में बीएसपी-जेडीएस की ताकत समझने में उससे भूल हुई थी। वैसी ही गलती मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बसपा के साथ गठबंधन पर हुई। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीती हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी घोषणा कर दी है कि वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करेंगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों को खारिज कर दिया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने परिणामों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गांधी परिवार पर निजी हमलों पर घेरते हुए कहा कि ऐसे ऊंचे पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसा करना शोभा नहीं देता। बुधवार को 78 साल के हुए पवार ने कहा कि उनका दल कांग्रेस को समर्थन देगा। उन्होंने सुझाव दिया कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लेना चाहिए। मराठा क्षत्रप ने कहा कि जनता को यह बात पसंद नहीं आई कि कांग्रेस अध्यक्ष का मजाक उड़ाया जाए। परिणामों में साफ दिख गया है कि लोगों ने राहुल गांधी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि लोगों ने मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है और विधानसभा परिणाम बदलाव की शुरुआत है। लोगों ने किसान विरोधी, व्यापारी विरोधी, बेरोजगार विरोधी नीति को खारिज कर दिया है। क्या मोदी को हराना मुश्किल है? जब यह सवाल पत्रकार, लेखक, अर्थशास्त्राr व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शोरी से पूछा गया तो उनका जवाब कुछ ऐसा था। हराना मुश्किल तो हैं, क्योंकि उनके पास औजार हैं, उनका कोई हिसाब नहीं है। हर औजार हद से भी ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। जैसे पैसा, नेटवर्प, दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों को छीन लेना, सोशल मीडिया का मिसयूज, झूठ फैलाना, झूठे वादे करना, मीडिया को कंट्रोल करना इत्यादि, इत्यादि। इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इनके पास आरएसएस का मजबूत काडर भी है। मगर हराना मुश्किल नहीं होगा। उनकी पॉपुलरिटी के चरम पर भी सिर्प 31 प्रतिशत वोट मिले थे। अगर महागठबंधन होता है तो 69 प्रतिशत से तो विपक्ष शुरू होता है। आज मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 2014 के मुकाबले गिरा है। विपक्ष में दो-तीन व्यक्ति डरते बहुत हैं। इसलिए मोदी-शाह एजेंसियों का इस्तेमाल करके, डराकर और जो फैक्ट उनके पास हैं, दिखाकर गठबंधन तोड़ने का प्रयास करेंगे। गठबंधन होते-होते राज्यों में टूट जाते हैं। विपक्ष में रहकर चुनाव जीतना आसान और सत्ता के साथ सरकार बचाने की चुनौती बड़ी होती है, भाजपा समझ गई होगी। लोकसभा चुनाव आज हों तो इन पांच राज्यों में भाजपा को 40 सीटों का घाटा है। 2014 के लोकसभा चुनाव की रोशनी में देखें तो भाजपा को केवल इन पांच राज्यों में ही 40 सीटों का घाटा उठाना पड़ सकता है। इन राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें हैं। भाजपा के पास वर्तमान में इनमें से 63 सीटें हैं। विपक्षी एकता लोकसभा चुनाव के लिए कितनी कामयाब होगी, यह वक्त ही बताएगा। अभी तक भाजपा के खिलाफ जो विपक्षी पार्टियों की एकजुटता में शामिल हैं, वह करीब 12 राज्यों की 285 से अधिक लोकसभा सीट पर असर डाल सकती हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से विपक्ष की एकजुटता कुछ हद तक साबित हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि सभी दलों में अब यह सहमति बनती जा रही है कि अगर मोदी को 2019 के लोकसभा चुनाव में हराना है तो सबको अपने मतभेद भूलकर महागठबंधन में पूरे दिल से शामिल होना पड़ेगा। अगर हम सब मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव  लड़ेंगे तो मिलकर हम भाजपा को हरा सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 14 December 2018

2019 ब्रांड मोदी का कड़ा इम्तिहान

इन पांच राज्यों के विधानसभा परिणामों का अगर कोई संदेश है तो वह यह है कि देश की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज से खुश नहीं है। इनके अहंकार, इनकी हिटलरशाही प्रवृत्ति से जनता नाराज है। इतना ही नहीं, देश का किसान और युवा वर्ग अब सरकार पर भरोसा नहीं करते। यह दावा राहुल गांधी ने मंगलवार शाम को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में किया। एक अखबार ने तो सुर्खी बनाई मोदी की नोटबंदी के बाद जनता की वोटबंदी। नवम्बर से ही गरम किए गए राम मंदिर मुद्दे का न तो असर हुआ और न ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट लाने का फायदा हुआ। नोटबंदी और जीएसटी की वजह से पहले से नाराज कोर वोटर हाथ से निकल गया। यही नहीं उन्होंने भाजपा के खिलाफ वोट डाला। तीनों ही राज्यों में लग रहा था कि बसपा, सपा और अन्य दल कांग्रेस के वोट काटेंगे। लेकिन किसान, मजदूर और अन्य वर्ग भाजपा से इतने नाराज थे कि वोट कटने को समझ गए। एमएसपी और अन्य कई उपायों का असर नहीं हुआ। उलटे सवर्ण और शहरी वर्ग में भाजपा के वोट दूसरी तरफ चले गए। इस बार मोदी का जादू नहीं चला, न ही मोदी द्वारा किए गए निजी हमलों का असर हुआ। उलटा जनता ने इसे बुरा माना। भाजपा की यह गलतफहमी भी दूर हो जानी चाहिए कि मोदी-शाह की जोड़ी उनकी नैया पार करा देगी। राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में मोदी व शाह के ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार पर राहुल गांधी की 82 जनसभाएं व सात रोड शो भारी पड़े। इन राज्यों के चुनाव परिणामों ने जहां कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया वहीं राहुल को राजनीति में नया अध्याय लिखने का मौका दिया। नतीजों ने उन्हें देश की राजनीति की पिच पर मंझे राजनेता के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राफेल, नोटबंदी, जीएसटी, सीबीआई, आरबीआई, रोजगार, किसान व नौजवान को लेकर जहां राहुल तल्ख रहे वहीं भाजपा बैकफुट पर आ गई। इतना ही नहीं, अब तक पप्पू कहने वाली भाजपा, मोदी-शाह की टीम पर राहुल ने अपनी आक्रामक शैली से तीन राज्यों में चुनावी एजेंडा सैट किया। मोदी से लेकर अमित शाह व कद्दावर भाजपा नेता उसमें फंसते गए। कहीं न कहीं वह नौजवानों, किसानों को यह संदेश देने में भी सफल रहे कि मोदी के वादे खोखले हैं और जुमलेबाजी से लोगों का भला नहीं होने वाला है। उन्होंने झूठे वादे और नफरत की राजनीति पर मोदी-शाह को घेरा। नतीजे गवाह हैं कि राहुल का यह नया स्वरूप मोदी मैजिक को फीका करने में काफी हद तक सफल रहा। भाजपा को इस गलतफहमी से निकलना ही होगा कि सिर्प मोदी के चेहरे को आगे कर सभी चुनाव जीते जा सकते हैं। 2014 में मोदी का जो आभामंडल दिखा था, 2019 के आते-आते उसके बरकरार रहने की संभावनाओं पर विराम लगता दिख रहा है। वोटर सिर्प भाषण के जरिये तसल्ली पाने के मूड में नहीं हैं। वह अपने हित के मुद्दों पर ठोस काम देखना चाहते हैं। भाजपा को विकास के एजेंडे पर लौटना ही पड़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी मैन ऑफ द सीरीज

भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा होता नहीं दिखता, बल्कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का कद्दावर रूप सामने आया है। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि केंद्र में कुर्सी पर बैठी भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज गई है। नरेंद्र मोदी के 2014 में पीएम बनने के बाद भाजपा की यह सबसे बड़ी हार है। यह विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सेमीफाइनल समझे जा रहे हैं। अगर इन चुनावों में कोई हीरो है तो वह राहुल गांधी हैं। उनके एक साल के नेतृत्व में कांग्रेस की वापसी हुई, पार्टी के लिए यह संजीवनी से कम नहीं है। इन चुनावों ने जहां राहुल गांधी को बतौर लीडर साबित किया वहीं विपक्ष को भी वह यह संदेश देने में सफल हुए कि वह अब उनके भी लीडर हैं। भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान का रथ पांच साल पहले जहां से चला था, वहीं आकर थम गया। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों हिन्दीभाषी राज्यों में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा 15 साल से सत्ता में थी। सबसे चौंकाने वाला नतीजा छत्तीसगढ़ का रहा। वहां कांग्रेस ने 76 फीसदी सीटें जीत लीं। भाजपा सिर्प 15 सीटों पर सिमट गई है। 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद यह पहला मौका है, जब कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी है। इससे अब कांग्रेस की पांच राज्यों में (पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, पुडुचेरी) में सरकारें हो गई हैं। भाजपा की 12 राज्यों में सरकारें हैं। काफी अरसे से बड़ी जीत के लिए तरसती कांग्रेस के लिए मंगलवार को आए पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में तीन राज्यों में मिली जीत एक नई ऊर्जा की तरह सामने आई है। इस जीत का ज्यादा श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जाता है। राहुल की कड़ी मेहनत आखिर रंग लाई। राहुल ने कुछ हफ्तों के भीतर 82 सभाएं और सात रोड शो किए। इन नतीजों के बाद अब कोई भी राहुल को पप्पू कहने का साहस नहीं कर सकेगा। इन नतीजों का सबसे बड़ा संदेश यह है कि अब इस जीत के बाद कांग्रेस यह संकेत देश की जनता को देने में सफल हो गई है कि वह भाजपा से सीधी टक्कर ले सकती है। इससे मध्यप्रदेश और राजस्थान में जीत और छत्तीसगढ़ में हुई एकतरफा जीत से कहीं न कहीं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का टूटा मनोबल और बिखरा आत्मविश्वास लौटेगा और बढ़ेगा। दरअसल इस जीत ने कहीं न कहीं कांग्रेस वर्पर्स के भीतर यह विश्वास लौटाया कि भाजपा से सीधी टक्कर में वह न सिर्प कड़ी चुनौती दे सकती है, बल्कि वह उसे हरा भी सकती है। अब राहुल  मोदी के सामने ज्यादा मजबूती से खड़े हो पाएंगे। इस जीत के बाद माना जा रहा है कि कांग्रेस का जमीनी आधार भी मजबूत होगा। दरअसल अगर इन तीन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरता तो कांग्रेस के संगठन के बिखरने की पूरी संभावना थी। लगातार हार का मुंह देख रहे कांग्रेस के वर्पर हतोत्साहित हो गए थे। इस शानदार जीत पर राहुल गांधी व कांग्रेस को बधाई।

Thursday, 13 December 2018

ब्रिटिश अदालत ने माल्या को अरबपति प्लेबॉय कहा

ब्रिटेन की एक अदालत ने भगोड़े भारतीय कारोबारी विजय माल्या को भारत को सौंपने का आदेश देते हुए माना कि माल्या की चमक-दमक के आगे भारतीय बैंकों ने अपना विवेक खो दिया और गलत व्यक्ति को कर्जा दे बैठे। बता दें कि माल्या को भारतीय बैंकों के करीब 9000 करोड़ रुपए देने हैं। मीडिया  रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के मजिस्ट्रेट जिला कोर्ट की जज ने सोमवार को फैसला देते वक्त कहा कि संभव है कि भारतीय बैंकों को इस ग्लैमर, चमक-दमक वाले, मशहूर, बॉडी गार्ड के साथ घूमने वाले, अरबपति प्लेबॉय ने मूर्ख बना दिया। उसने बैंकों के सामने ऐसी इमेज खड़ी की कि वे अपना विवेक खो बैठे जबकि सच्चाई यह थी कि माल्या की कंपनियां माली तौर पर खस्ता दौर में थीं और इस बात को बैंकों से पूरी तरह छिपाया गया। ट्रायल के दौरान भी अदालत ने माना था कि ऐसा लगता है कि बैंकों ने कुछ मामलों में अपनी ही गाइडलाइंस को नजरअंदाज करके माल्या की कंपनी को लोन दिया। ब्रिटेन की अदालत में माल्या के वकील यह दलील देते रहे कि किंगफिशर एयर लाइंस के कारण बैंकों का जो पैसा डूबा, वह बिजनेस में नाकामी के कारण हुआ था और वैश्विक मंदी की कमी इसके लिए जिम्मेदार है। अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर की खरीद में दलाली के आरोपी किश्चियन मिशेल को भारत लाए जाने के बाद माल्या के पत्यर्पण को लेकर आया यह फैसला भारतीय जांच एजेंसियों की बड़ी कामयाबी तो है ही, इससे मोदी सरकार को विपक्ष के हमलों के खिलाफ एक बड़ा हथियार मिल गया है। हालांकि माल्या के पास अभी ऊपरी अदालत में अपील करने का अवसर है, लेकिन निचली अदालत का फैसला आने से पहले उन्होंने जिस तरह से मूलधन लौटाने की पेशकश की है, उससे लगता है कि उन पर दबाव बढ़ गया है। दरअसल इन अपराधियों को भारत लाकर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने में सबसे बड़ी बाधा पत्यर्पण को लेकर ही आती है। हाल ही में अर्जेंटीना में संपन्न जी-20 के सम्मेलन में पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगोड़े आर्थिक अपराधियों को पकड़ने के लिए विभिन्न देशों के बीच व्यापक सहयोग के मद्देनजर नौ सूत्री एजेंडा भी पेश किया था। माल्या के पत्यर्पण की खबर ने विवादें में घिरे सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को जश्न का मौका भी दिया है। ब्रिटिश अदालत ने कहा कि माल्या के बचाव पक्ष ने भारतीय अधिकारियों पर भ्रष्ट तरीके से काम करने का आरोप लगाया था, जबकि ऐसा नहीं है। अस्थाना ने माल्या के 2016 में भारत से भागने के बाद सीबीआई की विशेष जांच दल का नेतृत्व किया था। ब्रिटिश कोर्ट ने कहा, उन्हें कोई साक्ष्य नहीं मिला कि अभियोजन भ्रष्ट या राजनीति से
पेरित था।

-अनिल नरेन्द्र

सेमीफाइनल से पहले गिरा उर्जित पटेल का विकेट

2019 के फाइनल से ठीक पहले सेमीफाइनल में मोदी सरकार का पहला विकेट गिर गया। मैं बात कर रहा हूं रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के त्यागपत्र की। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने आखिरकार सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया। रिजर्व बैंक और सरकार की तनातनी की खबरों के बीच उर्जित पटेल के इस्तीफे के आसार कई दिनों से जताए जा रहे थे। पटेल का तीन साल का कार्यकाल सितम्बर 2019 तक का था। उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण व्यक्तिगत बताया है। मोदी सरकार के शासनकाल में यह वित्तीय संस्थाओं से तीसरा बड़ा इस्तीफा है। इससे पहले नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगड़िया और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मणियम भी अपने सभी पदों से समय से पहले इस्तीफा दे चुके हैं। उर्जित पटेल को आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की जगह लाया गया था। राजन की आकमता को मोदी सरकार में बहुत पसंद नहीं किया गया था। इसके ठीक उलट उर्जित पटेल मोदी सरकार के करीबियों के तौर पर देखे गए। नोटबंदी के दौरान उनकी चुप्पी ने भी सरकार का काम आसान किया था। लेकिन बीते कुछ महीनों से ऐसा लगने लगा कि पटेल कई मामलों में राजन से ज्यादा अपनी बात कहने और रखने वाले गवर्नर हैं। उर्जित के इस्तीफे पर पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि आरबीआई में जो चल रहा है उस पर सभी भारतीयों को चिंता होनी चाहिए। बेशक उर्जित  पटेल ने इस्तीफे के कारण निजी बताए हों पर यह किसी से छिपा नहीं कि उसका सरकार से टकराव बढ़ता जा रहा था। कुछ खबरों में कहा गया है कि सरकार आरबीआई के रिजर्व खजाने में पड़ी जमा राशि में से 3 लाख करोड़ रुपए से ऊपर की जमा राशि में बड़ा हिस्सा चाहती थी। कुछ दिन पहले ही उर्जित पटेल ने बैंकों में धोखाधड़ी पर गहरा दुख जताते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक नीलकंठ की तरह विषपान करेगा और अपने ऊपर फेंके जा रहे पत्थरों का सामना करेगा, लेकिन हर बार पहले से बेहतर होने की उम्मीद के साथ आगे बढ़ेगा। इसी महीने की शुरुआत में जब आरबीआई ने ब्याज दरों की समीक्षा की थी और इनमें किसी तरह का बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया था, तब मोदी सरकार के साथ चल रहे गतिरोध से संबंधित सवाल पूछे जाने पर पटेल ने इस पर कोई जवाब देने से मना कर दिया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरोप लगाया था कि रिजर्व बैंक ने कर्ज बांटने के काम में लापरवाही बरती। साथ ही पीएनबी घोटाले में भी सरकार ने आरबीआई को कठघरे में खड़ा किया था। सरकार ने आरोप लगाया था कि आरबीआई की ढिलाई के कारण ही एनपीए की समस्या। सरकार के सामने बड़ी मुश्किल ये होगी कि भारत की ग्रोथ स्टोरी से विदेशी निवेशकों का विश्वास डिग सकता है। वैसे भी रेटिंग एजेंसियां भारत को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं हैं और इस घटनाकम के बाद हालात और बदतर होंगे।

Wednesday, 12 December 2018

हार से ध्यान भटकाने के लिए बदले की कार्रवाई?

कांग्रेस नेतृत्व की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। नेशनल हेराल्ड का केस पहले से ही चल रहा है, रही-सही कसर इस मामले में आयकर जांच की कार्रवाई रोकने की सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्वीकृति से पूरी हो गई। इसके साथ ही सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर छापे पड़ने शुरू हो गए। सो एक तरह सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा सभी मुश्किल में आ गए। नेशनल हेराल्ड केस में आयकर की जांच जारी रखना कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के लिए बहुत बड़ा धक्का है। न्यायालय ने हालांकि कहा है कि मामला लंबित होने तक आयकर विभाग कोई कार्रवाई नहीं करेगा किन्तु वह 2011-12 के कर निर्धारण के मामलों को फिर से खोल सकता है। इसे रोकने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट में इन्होंने दरवाजा खटखटाया था। बेशक न्यायालय के अगले आदेश के पहले आयकर विभाग कर निर्धारण से संबंधित आदेश पर अमल नहीं करेगा किन्तु वह शेष प्रक्रिया पूरी कर सकता है। न्यायालय ने सुनवाई के लिए अगली तारीख आठ जनवरी तय की है और उस दिन देखना होगा कि वह क्या फैसला देता है? नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी, सोनिया गांधी सहित दूसरे आरोपित यानि ऑस्कर फर्नांडीस, मोती लाल वोरा आदि को अदालत से अभी तक निराशा ही हाथ लगी है। न्यायालय ने उन्हें केवल जमानत दी है। राहुल और सोनिया को निचली अदालत ने 19 दिसम्बर 2015 को जमानत दी थी। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई चल रही है। स्वामी ने वित्तमंत्री को भी कर चोरी के बारे में याचिका दी थी। इसमें सामान्य पूंजी से एक नई कंपनी बनाकर धोखाधड़ी एवं साजिश के तहत करोड़ों का गबन करने का आरोप है। आरोप है कि 50 लाख रुपए से नवम्बर 2010 में यंग इंडिया का सृजन किया गया था और उसने नेशनल हेराल्ड अखबार चलाने वाले एसोसिएटिड जर्नल्स के लगभग सारे शेयर अवैध तरीके से ले लिए। आयकर विभाग का कहना था कि यंग इंडिया में राहुल गांधी के जो शेयर हैं, उसमें उन्हें पहले कर निर्धारण के अनुसार 154 करोड़ रुपए की आमदनी होगी। आयकर विभाग पहले ही यंग इंडिया को वर्ष 2011-12 के लिए 249 करोड़ रुपए की मांग का नोटिस जारी कर चुका है। जहां तक रॉबर्ट वाड्रा पर छापों का सवाल है, कांग्रेस पार्टी खुलकर उनके बचाव में आ गई है। पार्टी ने रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों से जुड़े तीन लोगों के परिसरों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी को कांग्रेस ने बदले की कार्रवाई करार दिया है। रक्षा सौदों में कुछ संदिग्धों द्वारा कथित तौर पर कमीशन लिए जाने की जांच के संबंध में पार्टी ने कहा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार तय देखकर केंद्र की राजग सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए बदले की कार्रवाई कर रही है।

-अनिल नरेन्द्र