Sunday 16 December 2018

शशिकांत दास के सिर पर कांटों का ताज

टकराव और तमाम तरह के विवादों के बीच उर्जित पटेल के इस्तीफे के तत्काल बाद नियुक्त किए गए भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शशिकांत दास ने कांटों भरा ताज पहना है। रघुराम राजन और उर्जित पटेल के रूप में वो बाहरी व्यक्तियों के बाद सरकार ने एक ऐसे व्यक्ति को गवर्नर पद के लिए चुना है, जो आर्थिक मामलों के सचिव तथा वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं और सरकार के कामकाज से बाखूबी परिचित हैं। शशिकांत दास ने नोटबंदी के समय रिजर्व बैंक और सरकार के  बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। तब मीडिया को संबोधित करने का जिम्मा इन्हीं का था। उसके बाद जीएसटी का मसौदा तैयार करने से लेकर उस पर राज्यों की सहमति जुटाने और जीएसटी से जुड़े संवेदनशील संशोधनों में भी उनकी सक्रियता थी। इसका यह अर्थ भी निकाला जा सकता है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में उनकी भी सहमति थी? अगर थी तो इनके परिणाम तो अच्छे नहीं निकले। आज देश में हजारों व्यापारी, युवा बेरोजगार हैं। धंधे चौपट हो गए हैं और लाखों लोग रोटी तक के लिए मोहताज हैं। फिर यह भी किसी से छिपा नहीं कि आर्थिक तंगी से गुजर रही केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से आर्थिक सहायता चाहती है। उर्जित पटेल के इस्तीफे के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि वह मोदी सरकार की हर मांग को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। शशिकांत दास के समक्ष सबसे पहला काम रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को बचाते हुए उसके और वित्त मंत्रालय के बीच चली आ रही तनातनी को कम करना होगा। इसी के चलते उर्जित पटेल ने अपना कार्यकाल पूरा होने से नौ महीने पहले इस्तीफा दिया और इसी के कारण पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया। यह भी बताना जरूरी है कि शशिकांत दास रघुराम राजन की तरह से प्रोफेशनल बैंकर या अर्थशास्त्राr नहीं हैं। वे 1980 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और इस नाते वे देश की विभिन्न संस्थाओं में तालमेल बिठाने और वित्तीय मामलों को कुशलतापूर्वक संचालित करने का काम कर चुके हैं। जब भी उर्जित पटेल से वित्त मंत्रालय के रिश्तों में तनातनी आई वे एक संकट मोचक बनकर खड़े रहे। चाहे यूपीए सरकार के वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम के कार्यकाल में आई 2008 की मंदी का प्रश्न हो या मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी की 2016 की नोटबंदी का सवाल हो, हर कठिन वक्त में वे सरकार के साथ खड़े रहे। शशिकांत दास ने ऐसे नाजुक दौर में पदभार संभाला है जब कुछ ही महीनों बाद 2019 के लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। उम्मीद की जाती है कि सर्वप्रथम रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बरकरार रखेंगे और देशहित को सर्वोपरि रखेंगे। वह मोदी सरकार के रबड़ स्टैम्प नहीं बनेंगे और कोई ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जो देशहित में न हो।
-अनिल नरेन्द्र
युवकों को बचाए। सुषमा जी को इन्हें बचाना होगा।

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