Wednesday, 19 December 2018

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : सज्जन को ताउम्र कैद

1984 के सिख विरोधी दंगे के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दंगा भड़काने और साजिश रचने के मामले में दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुनाई। सज्जन को 31 दिसम्बर 2018 तक सरेंडर करना है। आपको बता दें कि 34 साल के बाद कोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा सुनाई है जबकि इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था। दरअसल सीबीआई ने एक नवम्बर 1984 को दिल्ली कैंट के राज नगर इलाके में पांच सिखों की हत्या के मामले में सज्जन कुमार को बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सोमवार को जस्टिस एस. मुरलीधर व जस्टिस विनोद कुमार गोयल ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि सीबीआई के सबूत संदेह से परे हैं कि सज्जन कुमार दंगाई भीड़ के नेता थे और उन्होंने भीड़ को मार-काट और सिखों की हत्या के लिए उकसाने में सक्रिय भागीदारी निभाई। कोर्ट ने माना कि आरोपी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाकर सुनवाई से बच निकले और सजा देने में तीन दशक की देरी हुई। जजों ने कहा कि पीड़ितों को भरोसा देना आवश्यक है कि कोर्ट के समक्ष चुनौतियों के बावजूद सत्य की जीत होगी, न्याय होगा। कोर्ट ने दोषियों को कठघरे तक पहुंचाने के लिए प्रत्यक्षदर्शियोंöजगदीश कौर, उनके रिश्तेदार जगदीश सिंह और निरप्रीत कौर के साहस को भी सराहा। हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत से दोषी पाए गए पांच अन्य की अपील ठुकरा दी। ट्रायल से पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, रिटायर्ड नेवी अफसर कैप्टन भागमल और गिरधारी लाल को उम्रकैद दी थी। वहीं पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को तीन-तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने पांचों की सजा बरकरार रखी। साथ ही यादव और खोखर को नए अपराधों में दोषी ठहराकर उन्हें भी दी गई सजा को 10-10 साल कर दिया। सज्जन समेत सभी दोषियों पर एक-एक लाख जुर्माना भी लगा। जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस गोयल ने फैसले में कहा कि एक से चार नवम्बर तक पूरी दिल्ली में 2733 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनके घरों को नष्ट कर दिया गया था। देश के बाकी हिस्सों में भी हजारों सिख मारे गए थे। इस भयावह त्रासदी के अपराधियों के बड़े समूह को राजनीतिक संरक्षण का लाभ मिला और जांच एजेंसियों से भी उनको मदद मिली। सिख विरोधी दंगे को लेकर हाई कोर्ट ने कहा कि यह अलग तरीके का अप्रत्याशित मामला है और अदालतों को ऐसे मामलों में अलग दृष्टि से देखने की जरूरत है। पीठ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए नरसंहार के मामलों का भी हवाला दिया। अदालत ने द्वितीय विश्वयुद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सेना प्राधिकरण ने इस तरह के मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया था। रोम इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने भी हत्या एवं दुष्कर्म जैसे मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध बताया है। अदालत ने अपने फैसले में दिल्ली व पंजाब में हुए सिख विरोधी दंगों के साथ अन्य नरसंहार का भी जिक्र किया। अदालत ने कहा कि इसी तरह का नरसंहार 1993 में मुंबई में, 2002 में गुजरात, 2008 में ओडिशा और 2013 में मुजफ्फरनगर में भी हुआ था, जो अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हुआ वह संगीन अपराध है। इस तरह के मामलों में राजनीतिक कलाकारों को कानून के रखवालों का ही संरक्षण रहता है। मानवता के खिलाफ अपराध या नरसंहार घरेलू अपराध का हिस्सा है। इसे तुरन्त दुरुस्त करने की जरूरत है। फैसला पढ़ रहे न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर का गला भर आया। फैसला पढ़ना शुरू ही किया था कि उनका गला भर आया और आंखें नम हो गईं। उन्होंने खुद को संभालते हुए आंखें पोंछीं और पूरा फैसला पढ़ा। उन्होंने इस अपराध को मानवता का संहार करार देते हुए दोषियों को जैसे ही सजा सुनाई, कोर्ट रूम में ही पीड़ित रो पड़े। पीड़ित परिजनों ने कहा कि आखिरकार उन्हें न्याय मिला। सज्जन कुमार को कड़ी सजा का यह फैसला कई संदेश लिए हुए हैं। दंगा पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने में भले 34 साल लग गए हों, लेकिन फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह कितना ही ताकतवर राजनीतिक क्यों न हो। 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ एकतरफा हिंसा हुई थी, जिससे दिल्ली ने नृशंसता का रिकॉर्ड बना दिया था। एक महीने के अंदर हुई दोनों सजा ने पीड़ित परिवारों की न्याय व्यवस्था से टूटती उम्मीद को कायम रखा है। दुनिया में भी यह संदेश गया कि भारत की न्याय प्रणाली में देर-सवेर ही सही न्याय होता है। जिन दंगा पीड़ितों ने दंगाइयों को भड़काने वालों के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाई, तमाम धमकियों और दबावों के बीच जटिल कानूनी प्रक्रिया के तहत संघर्ष करने का संकल्प किया, उसी का नतीजा है कि सज्जन कुमार जैसे नेता को सजा के अंजाम तक लाया जा सका। चाहे सिख विरोधी दंगे हों, गुजरात के दंगे हों या फिर मुजफ्फरनगर के दंगें हों, यह सभ्य समाज पर एक बड़ा कलंक है। इन दंगों ने दुनियाभर में भारत की छवि को भारी धक्का पहुंचाया। ऐसे में सज्जन कुमार ही नहीं, दंगे की साजिश रचने वाले हर आरोपी को न्याय के कठघरे में लाया जाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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