Wednesday 26 December 2018

अगर जीत की जिम्मेदारी लीडर की है तो हार की किसकी?

केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता नितिन गडकरी एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार यह विवाद गत शनिवार को उनकी उस टिप्पणी के कारण पैदा हुआ जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि अगर जीत की जिम्मेदारी लीडर की है तो हार की जिम्मेदारी भी लीडर की है। गडकरी की यह टिप्पणी हाल में सम्पन्न मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद आई। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने शनिवार को कहा था कि सफलता या श्रेय लेने के लिए लोगों में होड़ रहती है लेकिन विफलता को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता। नेतृत्व में हार और असफलता को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। मंत्री पुणे में एक समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने अपनी बात की ज्यादा व्याख्या नहीं की, लेकिन उनकी टिप्पणियां हाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं। जैसा कि आमतौर पर नेताओं का होता है, पहले टिप्पणी तो कर देते हैं फिर उसकी तोड़-मरोड़ से पेश करने का ठीकरा मीडिया पर थोप देते हैं। नितिन गडकरी ने भी यही किया। गडकरी ने रविवार को कहा कि भाजपा 2019 का लोकसभा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ेगी। गडकरी ने इसके साथ ही मीडिया पर उनके द्वारा पुणे के एक कार्यक्रम में की गई टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उन्होंने मीडिया पर ही आरोप लगा दिया कि उनकी टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। गडकरी ने स्पष्ट किया कि वह किसी दौड़ या प्रतिस्पर्धा में नहीं हैं और भाजपा अगले आम चुनाव में उचित बहुमत प्राप्त करेगा। समझ नहीं आया कि यह दौड़ में शामिल होने की बात कैसे आई? आपने तो तथाकथित यही कहा था कि जीत-हार दोनों की जिम्मेदारी नेतृत्व को लेनी चाहिए जो ठीक भी है पर नेतृत्व बदलने की बात कहां से आ गई? नितिन गडकरी सोच-समझ कर बोलने वाले मंझे हुए नेता हैं जो नपी-तुली बात करते हैं। अगर उन्होंने जीत-हार पर बयान या टिप्पणी की है तो इसके पीछे कोई कारण होगा? यह किसी से अब छिपा नहीं कि हिन्दुत्व शक्तियां वर्तमान भाजपा नेतृत्व से नाराज हैं। गडकरी इनके काफी करीबी माने जाते हैं। क्या यह संभव है कि गडकरी से यह कथित बयान दिलवाया गया हो? यह भी किसी से छिपा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी में भी नेतृत्व के वर्किंग स्टाइल से नारजगी पैदा हो रही है। चाहे वह नेता हो चाहे कार्यकर्ता वह अपने आपको नेतृत्व से कटा-कटा महसूस कर रहा है। बेशक बकौल गडकरी की टिप्पणी को मीडिया ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया हो पर इसके पीछे गहरा मतलब जरूर लगता है।

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