अफगानिस्तान
की राजधानी काबुल स्थित भारतीय दूतावास से महज 400 मीटर की दूरी पर शनिवार को हुए फिदायीन हमले में 95
लोगों की मौत हो गई जबकि 158 अन्य घायल हो गए।
हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अफगान तालिबान ने ली है। यह कितना भयंकर हमला था इसी
से पता चलता है कि इतनी बड़ी संख्या में निर्दोषों का मारा जाना और घायल होना। जितनी
भारी संख्या में लोग मरे एवं घायल हुए उससे यह हाल के समय का सबसे बड़ा हमला हो गया
है। तालिबान यदि इसकी जिम्मेदारी न भी लेता तो भी संदेह की सूई उसी ओर जानी थी। 20
जनवरी को भी तालिबान ने काबुल के एक होटल पर हमला किया था, जिसमें 25 लोग मारे गए थे। मरने वालों में ज्यादा विदेशी
थे। अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के उप-प्रवक्ता नसरत रहिमी
ने बताया कि हमलावर विस्फोटकों से लदी एम्बुलैंस में सवार होकर आए थे। आतंकी पहली जांच
में एम्बुलैंस में मरीज होने और उसे जम्हूरियत अस्पताल ले जाने की बात कहकर नाके को
पार कर गए थे। लेकिन दूसरी जांच चौकी पर पहुंचने से पहले ही सुरक्षा कर्मियों को हकीकत
का पता चल गया। इसका अहसास होते ही एम्बुलैंस में बैठे हमलावर ने दूसरी चौकी पर पहुंचते
ही विस्फोटकों में धमाका कर दिया। विस्फोट इतना भीषण था कि दो किलोमीटर दूर तक इसकी
आवाज सुनी गई। जिस इलाके को विस्फोट के लिए चुना गया वहीं भारतीय काउंसलर कार्यालय,
यूरोपीय संघ के कार्यालय, स्वीडन एवं हॉलैंड के
दूतावास हैं। इससे लगता है कि इस बार भी तालिबान के निशाने पर विदेशी ही रहे होंगे।
विस्फोट के लिए एम्बुलैंस का इस्तेमाल करना नई बात है और निहायत खतरनाक भी है। इस हमले
के बाद एक-एक एम्बुलैंस को संदेह से देखा जाएगा। अफगान गृह मंत्रालय
के प्रवक्ता ने इसे तालिबान संबद्ध हक्कानी नेटवर्क की कारगुजारी बताया है। जब से अमेरिका
ने पाकिस्तान पर तालिबानों के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ाया है और अफगानिस्तान स्थित
अपने सैनिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की घोषणा की है तब से हक्कानी नेटवर्क विदेशियों
के विरुद्ध कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गया है। यह किसी से छिपा नहीं कि पाकिस्तानी खुफिया
एजेंसी आईएसआई, हक्कानी नेटवर्क और अफगानी तालिबानों के बीच तालमेल
है। पिछले दिनों अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ ड्रोन हमले भी किए थे। यह विस्फोट
दर्शाता है कि अमेरिका और अफगानिस्तान के लिए समस्या गंभीर है। यह अमेरिका व अफगान
सरकार को सीधी चुनौती भी है।
-अनिल नरेन्द्र
��ाम।