Wednesday, 28 February 2018

क्या बैंक ऑडिटरों की मिलीभगत से हुआ घोटाला

क्या ऐसा संभव है कि किसी परीक्षार्थी को अपना परीक्षक चुनने की छूट दे दी जाए और बाद में शिकायत की जाए कि परीक्षा में अनियमितता हुई है? सरकारी बैंकों के ऑडिट में यही हो रहा है। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के मामले सांविधिक ऑडिटरों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस समय सार्वजनिक बैंकों को अपने ऑडिटरों की नियुक्ति का अधिकार है और यह घपला सामने आने के बाद सवाल किए जा रहे हैं कि पीएनबी के ऑडिटर 11,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी को सात साल तक कैसे नहीं पकड़ पाए? सरकारी बैंकों को ऑडिटर चुनने की आजादी है व उसके काम की समीक्षा करने की भी। ऐसा न होता तो शायद 2011 से चल रहे पीएनबी घोटाला पहले ही पकड़ में आ जाता। यह प्रणाली छह-सात साल पहले बदली गई। इससे पहले रिजर्व बैंक सरकारी बैंकों के लिए खुद ऑडिटर नामित करता था। अब आरबीआई सीए का एक पैनल बनाकर भेज देता है। मार्च के अंतिम सप्ताह में यह बैंक शाखाओं के ऑडिट के लिए पैनल से ऑडिटर चुन लेते हैं। अप्रैल के पहले सप्ताह में ऑडिटर को जांच रिपोर्ट बैंक को देनी होती है। चार्टर्ड अकाउंटेंट्स का मानना है कि इस प्रक्रिया की खामियों का फायदा बैंक अफसर और ऑडिटर दोनों ही उठा रहे हैं। खुद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने घोटाले के लिए चन्द बैंक अफसरों और ऑडिटरों को दोषी बनाया है। वित्तमंत्री ने मंगलवार को कहाöहमारे ऑडिटर क्या कर रहे हैं? ऑडिटर या तो इसे देख नहीं रहे हैं या इसे खोज पाने में नाकाम हैं। निगरानी एजेंसियों के लिए भी चुनौती है कि क्या उपाय किए जाएं कि ऐसे मामले दोबारा न हों। हैरानी की बात यह है कि किसी कंपनी की अवैध कारगुजारियों में शामिल रहा सीए अगर आरोपी पाया जाता है तो उस पर महज तीन महीने की प्रैक्टिस का बैन और एक लाख रुपए जुर्माने की कार्रवाई का ही प्रावधान है। इतना ही नहीं, सीए के खिलाफ शिकायत के निपटारे में कई साल लग जाते हैं। पीएनबी के घोटाले से पहले नोटबंदी के दौरान भी कई सीए प्रोफेशनल्स पर गड़बड़ी कर पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने में शामिल रहने के आरोप लगे थे। नोटबंदी के दौरान गड़बड़ी कर नोट बदलवाने के आरोप में सरकार ने 34 सीए प्रोफेशनल्स के नाम आईसीएआई को दिए थे। बिना सीए की मदद से पीएनबी घोटाला संभव नहीं था।

-अनिल नरेन्द्र

बॉलीवुड की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी अलविदा

पूर्णिमा के पांच दिन पहले अमावस्या आ गई। शनिवार आधी रात फिल्मी दुनिया की चांदनी चली गई। श्रीदेवी को पर्दे पर देख लोगों का दिल धड़कता था। उस चंद्रमुखी के दिल ने दुबई में आधी रात को धड़कना बंद कर दिया। जैसे ही यह खबर हिन्दुस्तान पहुंची, उनके करोड़ों चाहने वालों की धड़कनें थम-सी गईं। जीवन में कुछ लम्हें ऐसे आते हैं जब किसी की जुदाई सदमा दे जाती है। रूप की रानी... का चला जाना भी ऐसा ही है। पिछले साल ही उन्होंने फिल्मों में 50 साल पूरे किए थे और 54 साल की उम्र में जीवन को अलविदा कह दिया। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार श्रीदेवी का देहांत हार्ट अटैक होने से हुआ था। पर सोमवार को दुबई की सरकार ने एक नाटकीय मोड़ देते हुए कहा कि श्रीदेवी की मौत होटल के बाथ टब में दुर्घटनावश डूबने से हुई और यह भी बताया कि उनके शरीर में शराब के कण भी पाए गए। उनका पार्थिव शरीर भारत लाने में देरी इसलिए भी हुई क्योंकि दुबई पुलिस की ग्रीन चिट नहीं मिली थी। दुबई के अखबार गल्फ न्यूज ने सोमवार को एक खबर में कहा कि श्रीदेवी की मौत नशे की हालत में दुर्घटनावश बाथ टब में डूबने से हुई। दुबई सरकार ने ट्विटर पर लिखा कि पुलिस ने मामला दुबई लोक अभियोजन को सौंप दिया है जो इस तरह के मामलों में अपनाई जाने वाली कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगा? गल्फ न्यूज के एक अधिकारी ने बताया कि फोरेंसिक रिपोर्ट में केवल डूबने की बात कही गई थी, इसलिए हादसे से जुड़ी परिस्थितियों का पता लगाने की अब भी कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर परिवार के अनुसार श्रीदेवी को दिल की बीमारी नहीं थी। ऐसे में कॉस्मैटिक सर्जरी से मौत को जोड़ा जा रहा है। श्रीदेवी 29 बार सर्जरी करवा चुकी थीं। एक में गड़बड़ी के बाद हाइट पिल्स और एंटी एजिंग दवाएं भी ले रही थीं। पोस्टमार्टम और अन्य रिपोर्ट में कुछ संदिग्ध मिलता तो पार्थिव शरीर सौंपने में और वक्त लग सकता था। बता दें कि दुबई में विदेशी नागरिकों की स्वाभाविक मौत पर भी कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में एक-दो दिन लग जाते हैं। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पति और बेटी के मुंबई लौटने के बाद श्रीदेवी दुबई के होटल में अकेली थीं। निधन से पहले 48 घंटे तक बाहर भी नहीं निकलीं। श्रीदेवी को पांच फिल्म फेयर अवार्ड, पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। श्रीदेवी दो दशक तक हाईएस्ट पैड एक्ट्रैस रहीं। उन्होंने 300 फिल्में कीं। उनके जाने से बॉलीवुड को भारी नुकसान हुआ है। भांजे की शादी पर दुबई जाना उन्हें बहुत भारी पड़ा। अलविदा श्रीदेवी।

Tuesday, 27 February 2018

विश्व कप में पदक जीतने वाली पहली जिम्नास्ट

चार साल पहले ग्लासगो में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में दीपा करमाकर ने जिम्नास्टिक में पदक जीतकर देश का नाम इस खेल में स्थापित किया था। अब ठीक चार साल बाद एक और भारतीय ने इस खेल में देश का नाम रोशन किया है। भारत की अरुणा बुद्धा रेड्डी ने शनिवार को जिम्नास्टिक विश्व कप में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। अरुणा महिलाओं के वोल्ट इवेंट में 13.649 के स्कोर के साथ विश्व कप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाली भारत की पहली जिम्नास्ट हैं। 22 वर्षीय रेड्डी तीसरे स्थान पर रहीं। स्लोवानिया की जासा कैसलेफ ने स्वर्ण और आस्टेलिया की एमिली वाइटहेड ने रजत पदक जीता। एक और भारतीय खिलाड़ी प्रणति नायक ने 13.416 अंकों के साथ छठा स्थान हासिल किया। प्रणति ने क्वालीफिकेशन राउंड में 13.483 अंक के साथ चौथे स्थान पर रहते हुए फाइनल में जगह बनाई थी। जबकि अरुणा रेड्डी क्वालीफिकेशन राउंड में 13.566 अंकों के साथ दूसरे नम्बर पर रही थीं। इस वोल्ट के इवेंट में 11 जिम्नास्टों ने हिस्सा लिया था। इनमें से आठ ने फाइनल में जगह बनाई। तेलंगाना की अरुणा की पहली पसंद जिम्नास्टिक नहीं थी। वे कराटे खेलना चाहती थी। पर कोच ने अरुणा की फ्लेक्सिबिलिटी को देखते हुए उन्हें जिम्नास्ट बनने की सलाह दी। वह 2010 में कम उम्र के कारण दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा नहीं ले सकी थीं। अरुणा ने वर्ल्ड कप में मेडल जीतकर कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भी दावा ठोक दिया है। अप्रैल में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपा करमाकर हिस्सा नहीं ले रही हैं। दीपा करमाकर चोट के कारण ट्रायल में हिस्सा नहीं ले सकी। विश्व स्तर पर यह भारत का तीसरा पदक है। आशीष कुमार ने दिल्ली में हुए 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में पहला पदक जीता था। उसके बाद ग्लासगो में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में दीपा करमाकर पदक हासिल कर किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीतने वाली पहली महिला (भारतीय) बनी थीं। दीपा 52 वर्षों में ओलंपिक क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट भी बनी जो रियो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहकर पदक से चूक गई थी। अरुणा रविवार को होने वाली फ्लोर स्पर्धा में भी भाग लेंगी। अन्य स्पर्धाओं में भारत के राकेश पात्रा रिंग्स में चौथे स्थान पर रहे। वह पैरलल बार में फाइनल राउंड की होड़ में शामिल हैं। इस विश्व कप में 16 देश भागीदारी कर रहे हैं। अरुणा रेड्डी को बधाई। उन्होंने इस खेल में भी भारत का परचम लहराया।

-अनिल नरेन्द्र

हर्षद मेहता, केतन पारिख और अब नीरव मोदी

पंजाब नेशनल बैंक घोटाले ने देश के बैंकिंग सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। जो बैंक चन्द रुपयों की वसूली के लिए नीलामी तक पहुंच जाते हों उन बैंकों से रसूखदार लोग हजारों-करोड़ रुपए कैसे लूट लेते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब न तो रिजर्व बैंक के पास है और न ही सरकारी बैंकों के पास। हर्षद मेहता, केतन पारिख, जतिन मेहता, विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी तक यह कुछ नाम हैं जिन्होंने एक ही फार्मूले से बैंकों को चपत लगाई। रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस के बावजूद बैंक प्रक्रिया से हटकर कैसे इतने बड़े लोन दे देते हैं। यह जांच का विषय होना चाहिए और यही साबित भी करता है कि दशक बीत जाने के बाद भी देश की सरकारी बैंकों की वित्तीय सुरक्षा रामभरोसे है। सरकारें बदलती रहीं लेकिन किसी ने भी बैंकिंग सिस्टम की खामियों को सुधारने के लिए ईमानदारी से काम नहीं किया। पीएनबी के लिए यह पहला मामला नहीं है। पांच साल पहले भी हीरा कारोबारी जतिन मेहता के विनसम ग्रुप ने पीएनबी को मोटी चपत लगाई थी। नीरव मोदी ने बैंकों को चपत लगाने के लिए वही फार्मूला अपनाया जिसका सहारा केतन पारिख और हर्षद मेहता ने लिया था। इन सबने दो बैंकों के बीच होने वाले लेनदेन के नियमों का फायदा उठाते हुए बैंक क्रेडिट का इस्तेमाल किया। ऑनलाइन लेनदेन में सुरक्षा के ज्यादा इंतजाम होने के चलते नीरव मोदी ने बैंक के ऑफलाइन लेनदेन की खामियों का फायदा उठाया। सवाल यह है कि जब बैंकिंग व्यवस्था में इतनी आसानी के साथ सेंधमारी की जा सकती है तो सरकार और बैंक वित्तीय सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं होते? हर्षद मेहता व केतन पारिख की तर्ज पर नीरव मोदी ने लैटर ऑफ कंफर्ट का फायदा उठाया। पीएनबी में यह घोटाला वर्षों से चल रहा था और बैंक के अधिकारियों से लेकर सरकारी अमला तक सब सोता रहा। नीरव मोदी की कंपनियों को जारी अंडरटेकिंग के लिए बैंक में मार्जिन मनी को भी नहीं जमा कराया गया। पीएनबी बैंक घोटाले की परतें खुलने लगी हैं और एक के बाद एक चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। गीतांजलि ग्रुप को गलत तरीके से लोन देने के खिलाफ आवाज उठाने वाले इलाहाबाद बैंक के पूर्व डायरेक्टर ने दावा किया है कि यह घोटाला यूपीए सरकार के दौर से चला आ रहा है और एनडीए सरकार में कई गुना अधिक बढ़ गया। बैंक के पूर्व डायरेक्टर दिनेश दूबे ने कहाöमैंने गीतांजलि ग्रुप्स के खिलाफ 2013 में सरकार और आरबीआई को डिसेंट नोट भेजा था पर मुझे आदेश दिया गया था कि इन लोन को अप्रूव करना है। मुझ पर दबाव डाला गया और अंतत मैंने इस्तीफा दे दिया। दूबे ने यह भी कहा कि यूपीए सरकार से चला आ रहा घोटाला एनडीए सरकार में 10 गुना, 50 गुना बढ़ गया। उन्होंने कहा कि 2013 में शिकायत करने पर उन्हें वित्त सचिव ने ऊपरी दबाव की बात कहकर स्वतंत्र निदेशक पद से इस्तीफा देने को कहा था। दूबे ने मीडिया के सामने कहा कि वह जांच एजेंसियों को सहयोग देने को तैयार हैं। दिनेश दूबे पत्रकार हैं और 2012 में उन्हें बैंक का स्वतंत्र निदेशक बनाया गया था। आखिर कब तक ऐसे घोटाले चलते रहेंगे और देश की अर्थव्यवस्था खोखली होती जाएगी?

Sunday, 25 February 2018

रजनीकांत के बाद कमल हासन भी राजनीति में उतरे

दक्षिण भारत में हमेशा से फिल्म और राजनेताओं का चोली-दामन का संबंध रहा है। अब फिल्म से राजनीति में आने वाले ताजा हीरो हैं कमल हासन। इससे कुछ ही समय पहले रजनीकांत (66) सक्रिय राजनीति में आए थे। बुधवार को अभिनेता कमल हासन (63), तमिलनाडु की सियासत के मैदान में उतर आए हैं। तमिलनाडु में 2021 में विधानसभा चुनाव हैं। बुधवार को मदुरै में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी और समर्थकों के बीच कमल हासन ने अपनी पार्टी `मक्कल नीधि मय्यम' (एमएनएम) लांच की। हिंदी में इसका अर्थ लोक न्याय मंच होता है। कमल हासन ने बुधवार सुबह यात्रा रामेश्वरम में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के घर से शुरू की। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श बताते हुए कमल ने अपनी पार्टी को लोगों की पार्टी करार दिया। दरअसल जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु नई अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है और  उसमें डूबने और उतरने की कई राजनीतिक संभावनाएं विद्यमान है। कमल हासन ने पूर्व राष्ट्रपति कलाम के परिवार से आशीष और रामेश्वरम के मछुआरों से समर्थन लेकर मदुरै से जो राजनीतिक यात्रा शुरू की है वह चेन्नई के फोर्ट सेंट जॉर्ज स्थित विधानसभा तक पहुंचेगी या दिल्ली की संसद तक आएगी यह तो समय ही बताएगा। कमल हासन की राजनीति में अन्नाद्रमुक, द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दलों का ही नहीं बल्कि भाजपा का भी विरोध है। जयललिता की पार्टी को एकजुट रख सत्ता में कायम रखने का काम भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कर रहा है पर इसके बावजूद यह रिश्ता सहन नहीं है। उधर दो बार चुनाव हारने के बाद द्रमुक बहुत विचलित है और आगामी चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार है। उसके भाग्य से टू-जी घोटाले से कनिमोझी और ए राजा के बरी होने का छीका टूटा है। असली सवाल कमल हासन के मैदान में उतरने और प्रभाव पड़ने का है। अगर चुनाव निर्धारित समय 2021 में होता है तो उन्हें प्रचार करने और अपना संगठन बनाने के लिए काफी समय मिल जाएगा और अगर दिनाकरण के 18 विधायकों पर विपरीत फैसला आने के कारण जल्दी होता है तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक के माध्यम से भाजपा ज्यादा सशक्त हस्तक्षेप करेगी। देखना यह है कि 2019 का चुनाव 1989 की तरह कोई नया ध्रुवीकरण करेगा और तमिलनाडु से दिल्ली तक मौलिक बदलाव करेगा या फिर उन्हीं पुराने दो दलों के बीच सीमित रहेगा।

-अनिल नरेन्द्र

जनरल रावत के बयान से सियासी दलों में खलबली



सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत के बांग्लादेशी घुसपैठ और उसके चलते असम में एआईयूडीएफ जैसी पार्टी की राजनीतिक मजबूती पर दिए बयान ने सियासी रंग ले लिया है। सेना प्रमुख जनरल रावत ने मंगलवार को कहा था कि पूर्वोत्तर में बांग्लादेश से प्रवासियों का योजनाबद्ध प्रवेश पाकिस्तान द्वारा छद्म युद्ध के तहत किया जा रहा है। इसी कारण बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली एआईयूडीएफ की वृद्धि 1980 के दशक में भाजपा की तुलना में काफी तेज गति से हो रही है। असम की एआईयूडीएफ पार्टी के नेता बदरुद्दीन अजमल ने जनरल रावत के बयान पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान सेना प्रमुख को राजनीति में संलग्न होने का अधिकार नहीं देता। लोकसभा सदस्य और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीrन ओवेसी ने कहा कि सेना प्रमुख को राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। किसी राजनीतिक दल के विकास पर बयान देना उनका काम नहीं है। लोकतंत्र और संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। भारत में सेना हमेशा चुनी हुई नागरिक सरकार के अधीन काम करती रहेगी। कटु सत्य तो यह है कि यह कोई नई या गोपनीय बात नहीं कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ साजिश का भी हिस्सा है। यह एक तरफ है कि पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश की सीमांत इलाकों में भी आबादी के संतुलन को बदलने की कोशिश हो रही है। कई क्षेत्रों में तो यह बदल भी गया है और उसके कारण तमाम समस्याएं भी उभर आई हैं, लेकिन बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए जैसी कोशिश होनी चाहिए वह नहीं हो रही है। दुख तो इस बात का है कि जब कभी बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों को वापस भेजने की बात होती है तो उस पर किसी न किसी तर्क  व आपत्ति खड़ी करने वाले सामने आ जाते हैं। जनरल रावत ने सही कहा है कि बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान का हाथ है और इस मामले में चीन भी उसकी मदद कर रहा है। निसंदेह आदर्श स्थिति यही कहती है कि सेना प्रमुख को सियासी दलों के उत्थान-पतन की तेजी पर चर्चा से बचना चाहिए, लेकिन क्या पूर्वोत्तर के हालात आदर्श स्थिति के सूचक हैं? विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने वोट बैंक की खातिर जनरल रावत के बयान पर हंगामा कर सकते हैं, लेकिन इस सच्चाई से नहीं छिपा जा सकता कि प. बंगाल, असम के साथ पूर्वोत्तर राज्यों में किस तरह कुछ राजनीतिक दलों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देकर अपनी राजनीति चमकाई है।

Saturday, 24 February 2018

हताशा में पाक महिलाओं-बच्चों को निशाना बना रहा है

पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सेना व उनके जेहादी बौखलाहट में हमारे देश के रिहायशी इलाकों को निशाना बना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि घाटी में सेना के ऑपरेशन से बौखलाए आतंकी अपने खौफ को कायम रखने के लिए अब ऐसे आसान निशाने बना रहे हैं। महिलाओं एवं बच्चों पर हमला करने पर उतर आए हैं। लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पिछले कुछ हमले के चुने गए स्थान से साफ है कि आतंकियों की कमर टूट चुकी है। वे सेना के भारी दबाव और आक्रामक रुख के कारण घाटी से जान बचाकर भाग रहे हैं और जम्मू में पैठ बना रहे हैं। हाल ही में सुंजवां के जिस शिविर पर हमला किया गया, वह जम्मू शहर से ही लगा हुआ है। आमतौर पर सुरक्षा वैसी ही रहती है जैसे दिल्ली के किसी सैन्य इलाके में रहती है। यहां उन जवानों के परिवार हैं जो घाटी में तैनात रहते हैं। ऐसे में आतंकियों द्वारा ऐसे आसान स्थल को निशाना बनाए जाने से साफ है कि वे बड़ी साजिश के तहत घुसे थे। इस हमले के जरिये वे यह संदेश देना चाहते हैं कि हम कमजोर नहीं पड़े हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में बढ़े आतंकी हमलों की पाकिस्तानी रणनीति यह है कि घाटी-जम्मू क्षेत्र में हमले तेज कर ऐसे हालात बनाए जाएं ताकि पंचायत चुनाव न हो सकें। आतंक और हिंसा के सहारे चुनाव स्थगित कराने की पाकिस्तान की इस चाल की वजह पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लोगों में पाकिस्तानी सत्ता के हुक्मरानों के खिलाफ बढ़ता असंतोष है। घाटी में तैनात सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का मानना है कि पीओके में वहां की खराब आर्थिक और सामाजिक स्थिति को लेकर वहां की जनता में असंतोष बढ़ रहा है। पिछले महीनों के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ उनका विरोध प्रदर्शन और गुस्सा काफी सुर्खियों में आया था। इसी वजह से पीओके में रहने वाले कश्मीरियों की बदहाली की झलक सामने भी आई है। पीओके में अपनी पोल खुलती देखकर ही पाक सेना और आईएसआई की नजर जम्मू-कश्मीर के पंचायत चुनाव को बाधित करने पर लगी है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि पीओके में कभी पंचायत चुनाव नहीं हुए। जबकि जम्मू-कश्मीर में तीन स्तरीय लोकतांत्रिक व्यवस्था आतंकी प्रहारों के बावजूद प्रभावशाली तरीके से सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। पिछले पंचायत चुनाव में जम्मू-कश्मीर में हुआ रिकार्ड मतदान घाटी की इस व्यवस्था में भरोसा दर्शाता है। सूबे में पंचायत चुनावों के फिर से कामयाब होने का असर पीओके के लोगों पर और पाक सरकार पर भी दबाव बढ़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

सारे रास्ते बंद, नहीं लौटा पाऊंगा पैसा

पीएनबी और रोटोमैक बैंक घोटाले पर मिल रही फीडबैक से भाजपा परेशान है। आम लोगों की तरफ से मिल रहे फीडबैक के मुताबिक घोटाले को लेकर भाजपा के तर्क पर लोग सवाल उठा रहे हैं। फीडबैक के मुताबिक विपक्ष की स्थिति खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की स्थिति मजबूत हो रही है। सूत्रों के अनुसार भाजपा को उसके जमीनी कार्यकर्ताओं के मार्फत आम लोगों की तरफ से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। भाजपा का अपनी सफाई में यह कहना कि घपले यूपीए सरकार के समय हुए इससे लोग सहमत नहीं हैं। लोगों की तरफ से सवाल खड़ा किया जा रहा है, वह यह है कि एनडीए सरकार के समय ही बड़े अपराधी विदेश क्यों भाग रहे हैं? पहले विजय माल्या और अब नीरव मोदी। क्या भाजपा सरकार को यह मालूम नहीं था कि इन्होंने हजारों करोड़ रुपए का गबन किया है? जानते हुए भी उन्हें भागने का मौका कैसे मिल गया? आगे का रास्ता कठिन प्रतीत होता है। पीएनबी फ्रॉड केस का असर संबंधित बैंकों पर तकरीबन 20 हजार करोड़ रुपए का पड़ सकता है। देश के बैंकिंग इतिहास की सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी के मुख्य कर्ताधर्ता नीरव मोदी ने पीएनबी को लिखी एक चिट्ठी में कहा है कि बैंक ने मामले को सार्वजनिक कर उससे बकाया वसूलने के सारे रास्ते बंद कर लिए हैं। इसके साथ ही मोदी ने दावा किया है कि पीएनबी का उसकी कंपनियों पर बकाया बैंक द्वारा बताई गई राशि से बेहद कम है। पीएनबी प्रबंधन को 15-16 फरवरी को दिए एक पत्र में मोदी ने कहा कि उसकी कंपनियों पर बैंक का बकाया 5000 करोड़ रुपए से कम है, नीरव मोदी के शोरूम से जब्त किए गए हीरे-जेवरात को नीलाम कर घोटाले का पैसा वसूलना भी आसान नहीं है। इसमें पांच से सात साल का वक्त भी लग सकता है। ऐसे में सरकार का इन हीरे-जेवरात की सुरक्षा पर भी लाखों रुपए अलग से खर्च होंगे। नीरव मोदी के ठिकानों से प्रवर्तन निदेशालय ने 5649 करोड़ रुपए के गहने जब्त किए हैं। जानकारों के मुताबिक अभी तो पीएनबी ही पूरी तरह से यह नहीं बता रहा कि मेहुल चौकसी और नीरव मोदी पर कितना पैसा बकाया है। उल्टा चोर कोतवाल को डांट रहा है। नीरव मोदी कहते हैं कि मैं अब एक पैसा नहीं लौटाऊंगा।

Friday, 23 February 2018

आधी रात के वॉर से चली तकरार

दिल्ली में अफसरशाही और दिल्ली सरकार के बीच टकराव वैसे तो लंबे समय से चल रहा है। मगर सोमवार मध्यरात्रि में हुई घटनाओं ने मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी। सभी को शर्मिंदा कर दिया। शुरुआत सोमवार शाम से हुई। दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को सीएम केजरीवाल के आवास पर बुलाने के लिए सोमवार शाम चार बार कॉल किया गया। बताया गया कुछ मुद्दों पर बात करनी है। रात 12 बजे अंशु प्रकाश सीएम हाउस पहुंचे। यहां सीएम केजरीवाल सहित 10-11 विधायक मौजूद थे। अंशु प्रकाश का आरोप है कि यहां उन पर आप के एक विज्ञापन को पास कराने के लिए दबाव डाला गया। जब वह मना करके जाने लगे तो दो विधायकों ने उन्हें कंधे पर हाथ रखकर वहीं बिठा दिया। दोबारा उठे तो गाल पर जोर से मारा। पीठ पर भी घूंसे मारे और गालियां भी दीं। वहीं आप विधायकों ने कहा कि कोई हाथापाई नहीं की गई और मुख्य सचिव को राशन वितरण प्रणाली को लेकर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था। उन्होंने जाति-सूचक शब्द भी कहे ऐसा कहना है आप के विधायकों का। विवाद का मुद्दा जो भी रहा हो पर अंशु प्रकाश से हाथापाई-मारपीट की पुष्टि एमएलसी रिपोर्ट भी करती है। मुख्य सचिव जहां बैठक का विषय विज्ञापन बता रहे हैं, वहीं सरकार ढाई लाख लोगों को राशन नहीं मिलने के मुद्दे पर बैठक की बात कह रही है। सरकार के बयान को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। कारण कि बैठक राशन को लेकर थी तो खाद्य मंत्री इमरान हुसैन और खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को क्यों नहीं बुलाया गया? मुख्य सचिव के साथ मारपीट पर आप सरकार लगातार सफाई दे रही है कि जनता को घर-घर राशन पहुंचाने के संबंध में सीएम आवास पर बैठक बुलाई गई थी। जनता को बीते दो महीने से गलत फैसले को लागू करने से लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा था। दरअसल सरकार ने कामकाज की उपलब्धियों का एक विज्ञापन तैयार किया था। इसे सरकार के तीन साल पूरे होने पर जारी किया जाना था। विज्ञापन में सीएम ने कहा था कि तीन साल के कामकाज के दौरान बहुत बाधाएं आईं। मगर ईमानदारी से काम करने और सही रास्ते पर चलने के चलते उन्हें कई दृश्य व अदृश्य ताकतों ने मदद की। अधिकारी ने इसी अदृश्य शब्द को लेकर आपत्ति जताई और विज्ञापन रोक दिया। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश को लेकर भी अधिकारियों ने कुछ आपत्तियां जताई थीं। तब से सरकार के निशाने पर मुख्य सचिव थे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के तहत किसी भी सरकारी विज्ञापन को संबंधित विभाग के प्रमाण पत्र के बिना प्रसारित व प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इसके तहत उस विभाग को बताना होगा कि विज्ञापन के लिए दिया गया मैटर (शब्द व आंकड़े) वैधानिक व संवैधानिक दृष्टि से सही है। विभाग द्वारा अगर विज्ञापन को प्रमाणित नहीं किया जाता तो सूचना व प्रचार विभाग उस विज्ञापन को जारी नहीं कर सकता है। इस निर्देश के चलते दिल्ली सरकार के कई विज्ञापन पूर्व में रुके हैं। इसी के तहत सरकार के गठन के तीन साल पूरे होने पर भी केजरीवाल सरकार का टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाला विज्ञापन भी नहीं जारी हो सका। मुख्य सचिव के साथ मारपीट प्रकरण में अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला तो दिल्ली का प्रशासनिक कामकाज भी ठप हो सकता है। चिन्ता का विषय यह भी है कि बजट सत्र का समय नजदीक है, अधिकारियों की अनुपस्थिति में या उनके असहयोग की स्थिति में इसके भी प्रभावित होने का खतरा बन गया है। मंगलवार को दास (दिल्ली एडमिनिस्ट्रेटिव सब-ऑर्डिनेट सर्विसेज) अधिकारी हड़ताल पर रहे और सभी आईएएस और दानिक्स अधिकारी हड़ताल पर रहे। अधिकारियों ने यह भी फैसला किया है कि मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों से अब केवल लिखित संवाद के माध्यम से ही विवादों का निपटारा होगा। अधिकारी दिल्ली सरकार की किसी भी बैठक में शामिल नहीं होंगे। दुख से कहना पड़ता है कि प्रशासनिक अधिकारियों के साथ केजरीवाल सरकार का विवाद नया नहीं है। कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच मतभेद सामने आ चुके हैं। विवाद की वजह से कई अधिकारी दिल्ली से बाहर चले गए हैं। इस तरह के विवाद का सीधा असर दिल्ली के विकास पर पड़ता है। यह स्थिति किसी भी सूरत में दिल्लीवासियों के हित में नहीं है और बार-बार यह कहने से कि इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास है। आखिर कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी तो 15 साल इसी नौकरशाही के साथ दिल्ली चलाई और विकास किया। आम आदमी पार्टी को हर मुद्दे पर टकराव करने की बजाय थोड़ी समझदारी से काम लेना चाहिए। उन्हें आखिर दिल्ली के विकास के लिए प्रचंड बहुमत मिला था न कि अधिकारियों से बेवजह विवाद पैदा करने के लिए।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 22 February 2018

यह हैं हजारों करोड़ लूटने वाले नीरव मोदी

देश के दूसरे सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक पंजाब नेशनल बैंक में हुए 11400 करोड़ के घोटाले में मुख्य आरोपी के तौर पर बतौर जिस व्यक्ति नीरव मोदी के खिलाफ केस दर्ज किया गया है उसका सीधा पारिवारिक रिश्ता उद्योगपति मुकेश अंबानी से है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दावोस यात्रा में गए कारोबारियों के आधिकारिक प्रतिनिधि मंडल का वह हिस्सा रह चुका है। इतना ही नहीं, इस व्यक्ति की न्यूयार्क में हीरे की पहली दुकान खुलने पर उसका उद्घाटन करने डोनाल्ड ट्रंप आ चुके हैं। इसके भाई की मुकेश अंबानी की भांजी के साथ हुई शादी की प्री-वैंडिग पार्टी मुकेश अंबानी खुद अपने घर में दे चुके हैं जहां पूरा का पूरा बॉलीवुड पहुंचा। जिसे डायमंड के बिजनेस में नहीं उतरना था वह नीरव मोदी जब इस बिजनेस में कदम रखता है तो पिछले 100 साल के इतिहास में ऐसा भारतीय ज्वेलर बन जाता है जिसके एक डायमंड हार के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऑक्शन एजेंसी क्रिएटिव बोली लगवाती है। बॉलीवुड से हॉलीवुड तक के सितारों में ब्रैंड नीरव मोदी मशहूर हो जाते हैं। 48 वर्षीय नीरव मोदी का संबंध बेल्जियम के शहर ऐत्वर्ष में हीरा कारोबार करने वाले परिवार से है। कारोबारी माहौल में पले-बड़े नीरव ने फाइनेंस की पढ़ाई की और फेल हो गए और आखिरकार हीरे के व्यापार में उतर पड़े। नीरव मोदी आजकल आखिर हैं कहां? रिपोर्ट के मुताबिक नीरव इस समय देश में नहीं हैं। यह हीरा कारोबारी आजकल स्विटजरलैंड में बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि बैंक अधिकारियों के टच में है। सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि मोदी इस साल के शुरू में ही देश छोड़कर चले गए थे। नीरव मोदी की पत्नी अमेरिकी नागरिक है। वह भी 6 जनवरी को भारत से चली गई। नीरव के मामा मेहुल चौकसी ने 4 जनवरी को देश छोड़ा। नीरव मोदी के भाई निश्चल मोदी बेल्जियम का नागfिरक है और उन्होंने भी 1 जनवरी को भारत छोड़ दिया था। सीबीआई ने सभी आरोपियों के खिलाफ 31 जनवरी को लुक आर्डर सर्कुलर जारी कर दिया था। इस बीच नीरव की कंपनी की ब्रैंड एंबेसडर रहीं बालीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की ओर से बयान आया है कि अब तक उन्होंने नीरव मोदी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं कराया है लेकिन वह उनकी कंपनी से नाता तोड़ने के लिए कानूनी सलाह ले रही हैं। नीरव की डायमंड कंपनी के ब्रैंड एंबेसडर के तौर पर प्रियंका के होर्डिंग पूरी मुंबई में लगे हैं। प्रियंका की मां मधु चोपड़ा ने कहा कि इस घटना से वह हैरान हैं। उन्होंने कहा कि प्रियंका के साथ ठगी की गई है।

-अनिल नरेन्द्र

बैंक घोटाला-2 ः पेन किंग ने लगाई 37 अरब की चपत

सरकारी बैंकों में न जाने कितने घोटाले हुए हैं। धीरे-धीरे इन घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। नीरव मोदी के घोटाले के तुरंत बाद एक और घोटाले का पता चला है। पंजाब नेशनल बैंक महाघोटाले के बाद सोमवार को सीबीआई ने पेन किंग और रोटोमैक कंपनी के प्रमुख विक्रम कोठारी के खिलाफ केस दर्ज किया है। कोठारी, उनकी पत्नी व बेटे पर बैंक ऑफ बड़ौदा समेत सात बैंकों का 3695 करोड़ रुपए की चपत लगाने का आरोप है। आरोप है कि रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक  विक्रम कोठारी ने बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक आफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, इलाहाबाद बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 2929 करोड़ रुपए कर्ज लिया। यह राशि ब्याज सहित 3695 करोड़ रुपए हो गई। कंपनी ने बैंक का न तो कर्ज वापस किया और न ही उस पर लगे ब्याज का भुगतान किया। कोठारी को औद्योगिक ऋण दिलाने के लिए 2007-08 में सात बैंकों का समूह बनाया गया था। इसमें बैंक ऑफ इंडिया के मुखिया (कंसोर्टियम लीडर) बनाया गया था। बैंकों की सहमति पर कोठारी को 2129 करोड़ का कर्ज देना तय हुआ। कुछ वर्षों बाद सीमा बढ़कर 2919 करोड़ हो गई। ब्याज व मूलधन नहीं चुकाने और कंसोर्टियम लीडर की कार्रवाई नहीं किए जाने पर गुमटी नंबर 5 स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा के डीजीएम बृजेश कुमार सिंह ने 18 फरवरी को कोठारी के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत की। बैंकों से लिए गए कर्ज के किस्से आम होने के बाद सुर्खियों में आए विक्रम कोठारी और उनके पिता के परिवार के संघर्ष की कहानी लंबी है। विक्रम के पिता कभी कानपुर में साइकल चलाकर पान मसाला बेचते थे। धीरे-धीरे पान पराग छा गया। कोठारी समूह का व्यापार चर्म पर पहुंचा तो बंटवारा हो गया। 70 के दशक की शुरुआत में 5 रुपए के 100 ग्राम के पान मसाले ने धूम मचा दी थी। पान पराग ने खाड़ी के देशों, अमेरिका और यूरोप तक पहुंच बनाई। ग्रुप को बुलंदी पर पहुंचाया। पान मसाले के बाद रोटोमैक पेन और यस मिनरल वॉटर लांच किए जो सफल रहे। साल 2000 में ग्रुप में बंटवारा हुआ। पिता मनसुख बेटे विक्रम से अलग छोटे बेटे दीपक के साथ गए। 1250 करोड़ की डील (बंटवारा) हुईविक्रम को अलग करने के लिए 750 करोड़ कैश दिए गए। विक्रम ने रोटोमैक पर अलग होकर नहीं दिया ध्यान, जो भी प्रॉडक्ट लांच किए फेल हो गए। विक्रम कोठारी कहते हैं, नियत ः पूरा ऋण चुकता करेंगे, भागेंगे नहीं। सीबीआई की एक एफआईआर के अनुसार विक्रम कोठारी ने दो तरीकों से बैंकों को चूना लगाया। उसने विदेश से आयात के लिए बैंकों से एडवांस में लोन लिया। असल में कंपनी विदेश से कुछ आयात नहीं करती थी। बाद में यह पैसा रोटोमैक कंपनी में वापस आ जाता था। दूसरी तरफ निर्यात का आर्डर दिखाकर बैंकों से लोन लिया जाता था, लेकिन निर्यात करने के बजाय कंपनी पैसे को दूसरी कंपनी में ट्रांसफर कर देती थी। यह सिलसिला 2008 से जारी था। भारत और दूसरे देशों में ब्याज दर के अंतर के आधार पर निवेश कर भी कमाई की जाती थी। विक्रम कोठारी के वकील शरद कुमार बिरला का कहना है कि यह मामला फ्रॉड का कतई नहीं है, केवल लोन का मामला है। बैंकों से लोन लिया गया था, जिसे चुकाया नहीं जा सका। इस ऋण को चुकाने की प्रक्रिया जारी है। इस घोटाले में भी बैंकों के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत रही होगी। पता नहीं और कितने बैंक घोटाले हुए हैंइनका धीरे-धीरे पर्दाफाश हो रहा है।

Wednesday, 21 February 2018

विधायकों-सांसदों को बताना होगा, कैसे बनाई सम्पत्ति?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव जीतकर बेतहाशा सम्पत्ति अर्जित करने वाले सांसदों और विधायकों पर लगाम कसने के लिए शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को अब स्वयं, पत्नी और आश्रितों की सम्पत्ति के साथ आय का स्रोत भी बताना होगा। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर की पीठ से आया यह अहम फैसला गैर-सरकारी संगठन लोकप्रहरी की याचिका पर आधारित है, जिसकी चिन्ता यह थी कि विधायक-सांसद बनने के बाद जनप्रतिनिधियों की आय कैसे ढाई गुना बढ़ जाती है? यह आदेश ऐसे समय में आया है जब कुछ सांसदों और विधायकों की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि के चलते उनकी जांच हो रही है। एक तथ्य यह भी है कि बीते कुछ समय से पैसे बांटकर चुनाव जीतने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। निश्चित तौर पर विधायक या सांसद बनने से पहले और बाद में किसी राजनेता की आय की तुलना होना चाहिए और कोई मानक भी निर्धारित किया जाना चाहिए कि आय में कितनी फीसदी बढ़ोत्तरी उचित है। याचिका में शामिल एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि लोकसभा में चार सांसदों की आय में 12 गुना और 22 की आय में पांच गुना बढ़ोत्तरी हुई है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू देश के सबसे अमीर मुख्यमंत्री हैं और उनकी कुल सम्पत्ति 177 करोड़ रुपए की है, जबकि माणिक सरकार मात्र 26 लाख की सम्पत्ति के साथ देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत जनप्रतिनिधियों को न सिर्फ अपनी आय के स्रोत बताने होंगे, बल्कि अपनी पत्नी, बेटा-बहू, बेटी-दामाद की आय के स्रोत भी घोषित करने होंगे। चुनाव सुधार प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण कदम है। लोकप्रहरी ने अपनी याचिका में बताया था कि 26 लोकसभा एवं 11 राज्यसभा सांसदों और 267 विधायकों की सम्पत्ति में असाधारण वृद्धि हुई थी। इसके बाद जांच शुरू हुई। सीबीडीटी ने भी सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि शुरुआती जांच में सात सांसदों और 98 विधायकों की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि की बात सामने आई है। यह शुभ संकेत हैं कि चुनाव सुधार के लिए सक्रिय संगठनों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा आदेश दिया जो चुनाव सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायक बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही कहा कि सांसदों-विधायकों द्वारा सम्पत्ति की जमाखोरी पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतंत्र के विनाश की ओर बढ़ेगी और इससे माफियाओं का रास्ता खुल जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

हर चार घंटे में बैंककर्मी फ्रॉड कर रहा है

भारत का बैंकिंग सेक्टर इस रफ्तार से जल्द दिवालिया हो जाएगा जिस रफ्तार से सरकारी बैंकों में घोटाले बढ़ रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जो जानकारी उपलब्ध कराई गई है, वह चौंकाने वाली है। आरबीआई के मुताबिक वर्ष 2012-13 से सितम्बर 2017 तक सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बैंकों ने आपसी समझौते सहित (इन्क्लूडिंग कंप्रोमाइज) के जरिये कुल 3,67,765 करोड़ रुपए की रकम राइट ऑफ की है। इसमें से 27 सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक हैं, वहीं 22 निजी क्षेत्र के बैंक हैं, जिन्होंने यह रकम राइट ऑफ की है। देश की अर्थव्यवस्था की हालत वैसे भी अच्छी नहीं चल रही है। ऊपर से बैंकों में बढ़ता जा रहा एनपीए चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। सरकार पूरी कोशिश कर रही है व्यवस्थाओं को संभालने की लेकिन सरकार का कोई कदम सकारात्मक असर नहीं दिखा पा रहा है। अभी हाल ही में दो बड़े घोटाले सामने आए हैं जिससे पूरा देश हिल गया है। सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। ऐसे में आरबीआई की यह रिपोर्ट बड़ी चिन्ताजनक है। आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि बैंक के कर्मचारी घोटाले में लिप्त होते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि हर चार घंटे में बैंक का एक कर्मचारी धोखाधड़ी जैसे मामलों में पकड़ा जाता है। रिजर्व बैंक के तैयार किए एक डाटा के मुताबिक देश में हर चार घंटे में एक बैंकर फ्रॉड के केस में पकड़ा जाता है और उसे सजा दी जाती है। पीएनबी में हुए फ्रॉड ने सबको चौंका दिया है। हीरा कारोबारी नीरव मोदी ने बैंकों को 11,400 करोड़ रुपए की चपत लगाई है मगर आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार इस तरह के धोखाधाड़ी के मामले भारतीय बैंकिंग सेक्टर के लिए नए नहीं हैं। आरबीआई के अनुसार पिछले पांच सालों में बैंकों में 8670 धोखाधड़ी के मामले हुए हैं और इससे बैंकों को अब तक 61,260 करोड़ रुपए की चपत लग चुकी है। आरटीआई के तहत आरबीआई के दिए आंकड़ों में इसका खुलासा हुआ है। केंद्र सरकार ने पिछले 11 सालों में दो करोड़ 60 लाख रुपए सार्वजनिक बैंकों को दिए हैं। यह सिलसिला आखिर कब तक चलता रहेगा? कहीं तो इस पर रोक लगनी चाहिए। अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि नीरव मोदी सरीखे के घोटालेबाजों ने आखिर कितना पैसा लूटा है। कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार से संसद के बजट सत्र में बैंकों की हालत पर श्वेत पत्र लाने की मांग की है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पिछले पांच वर्षों में 61 हजार 360 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई। इन पांच वर्षों में से चार वर्ष राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के शासन के हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि मोदी सरकार बैंकों की स्थिति पर संसद के बजट सत्र में श्वेत पत्र लेकर आए, जिससे स्थिति स्पष्ट हो सके। सभी बैंक यह बताएं कि उनके यहां कितने की धोखाधड़ी हुई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि इस बैंक धोखाधड़ी को नोटबंदी के दौरान बढ़ावा मिला। यह बहुत बड़े घोटाले का सिर्फ एक छोर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी और वित्तमंत्री को इस घोटाले पर चुप्पी तोड़नी चाहिए। वहीं बहन जी (मायावती) ने कहा कि न खाएंगे और न खाने देंगे के आश्वासन का क्या हुआ? इतना बड़ा घोटाला हुआ और सरकार सोती रही। देश जानना चाहता है कि सार्वजनिक बैंकों की वित्तीय सेहत आखिर क्या है? इन बैंकों में बढ़ते घोटालों को कैसे रोका जाएगा यह देश जानना चाहता है।

Tuesday, 20 February 2018

रातोंरात करोड़ों लोगों की धड़कन बनी प्रिया

आंखों से तीर चलाकर प्रेमी को घायल करने वाली मलयाली फिल्म की अभिनेत्री प्रिया प्रकाश रातोंरात नेशनल क्रश बन चुकी हैं। वहीं बुधवार को एक टीजर के साथ उनका इंटरव्यू सोशल मीडिया पर धूम मचा रहा है। लोग यूट्यूब पर सर्च कर इंटरव्यू को शेयर कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें 1,99,09,800 यूजर्स ने फॉलो किया। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप से लेकर यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर सिर्फ प्रिया ही प्रिया है। प्रिया का ट्रेलर यूट्यूब पर धड़ल्ले से देखा जा रहा है। चार दिन में डेढ़ करोड़ से अधिक व्यूज मिल चुके हैं। दूसरी ओर रातोंरात सोशल मीडिया पर छा जाना मलयाली फिल्म की अभिनेत्री प्रिया प्रकाश के करियर में मुश्किलें खड़ी कर रहा है। प्रिया का कहना है कि मेरा घर से निकलना मुश्किल हो गया है। माता-पिता प्रिया की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए हैं। एक टीवी चैनल से बातचीत में प्रिया ने कहा कि मिली लोकप्रियता ने जीवन में बहुत कुछ बदल दिया है। उन्होंने कहा कि मैं बहुत खुश हूं लेकिन मेरे ऊपर जिम्मेदारी आ गई है। प्रिया ने बताया कि आई-ब्रो उठाने वाला सीन और आंख मारने वाला सीन एक ही टेक में किया है। डायरेक्टर ने उन्हें कहा कि कुछ ओरिजनल करो। सोशल मीडिया पर अपनी एक फिल्म की क्लिपिंग डालकर रातोंरात करोड़ों युवाओं के दिलों की धड़कन बन चुकी मलयालम अभिनेत्री प्रिया प्रकाश के गाने पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप भी लग रहा है। फिल्म के निर्देशक के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई है। हैदराबाद के कारोबारी जहीर अली खान व अन्य लोगों ने फलकनुमा थाने में शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में जहीर खान ने फिल्म में से या तो गाने को हटाने या इसके आपत्तिजनक शब्दों को बदलने की मांग की है। यह है शिकायतöफिल्म `ओरू अदार लव' में माणिक्य मलाराया पूर्वी गाने से मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं। आरोप है कि इसमें पैगंबर मोहम्मद की पत्नी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है। निर्देशक आर. लुलू ने कहाöफिल्म के गाने में कोई आपत्तिजनक तथ्य नहीं हैं और केरल के मुस्लिम चार दशक से यह गीत गा रहे हैं। सीएम ए. जब्बार द्वारा लिखित गाना उत्तरी केरल के चलाबार क्षेत्र में शादियों और समारोहों में गाया जाता है। इसमें कोई आपत्तिजनक तथ्य होता तो 1978 से मुस्लिम इसे क्यों गाते? हमने इसका सिर्फ संगीत बदला है, बोल नहीं। वैलेंटाइन डे पर प्रिया को प्रपोज करने वालों की कमी नहीं थी। उन्होंने कहा कि उन्हें ढेरों लड़कों ने प्रपोजल भेजा। इतने संदेश आए हैं कि अभी तक खुल भी नहीं सके।

-अनिल नरेन्द्र

क्या पूर्वोत्तर के इन राज्यों में कमल खिलेगा?

पूर्वोत्तर के त्रिपुरा में 18 फरवरी को, मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को वोटिंग है। भाजपा पहली बार इन तीन राज्यों में पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है। वह तीनों राज्यों में पहली बार सत्तापक्ष को सीधी चुनौती दे रही है। वहीं कांग्रेस यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कांग्रेस की चिन्ता की प्रमुख वजह यहां उसका खिसकता जनाधार है और वहां भाजपा के आक्रामक चुनावी अभियान ने भी पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर किसी समय कांग्रेस का अजेय गढ़ माना जाता था लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद उसकी पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। केंद्र में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में पूर्वोत्तर पहली प्राथमिकता है। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के विकास को लेकर एक के बाद एक कई फैसले लिए जिसके चलते कांग्रेस के हाथ से उसकी जमीन खिसकती चली गई। पहले असम और बाद में मणिपुर। नागालैंड में जहां 2003 से पहले कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था वहां इस बार के चुनाव में उसे उम्मीदवारों का टोटा पड़ गया। पार्टी ने कुल 23 उम्मीदवार उतारे जिनमें से मात्र 19 ही मैदान में रह गए। मेघालय में इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच है। राज्य में हर चुनाव में निर्दलीय बड़ी संख्या में जीतते हैं। पिछली बार 13 जीते थे। यहां 372 उम्मीदवार मैदान में हैं। 22 महिलाएं हैं। राज्य के करीब 75 प्रतिशत वोटर ईसाई समुदाय के हैं। भाजपा राज्य की 47 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बाकी की 13 सीटें क्षेत्रीय दलों को दे रखी हैं। नागालैंड की 59 सीटों पर 27 को वोटिंग है। इन पर 195 उम्मीदवार हैं। इनमें पांच महिलाएं हैं। भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले एनपीएफ से 15 साल पुराना नाता तोड़कर एनडीपीपी से गठबंधन किया है। एनडीपीपी 40 और भाजपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एनपीएफ 59 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पांच दशकों से त्रिपुरा की सत्ता पर काबिज वामदल की सरकार को इस बार पटखनी देने का भाजपा को पक्का भरोसा है। राज्य में अब तक खाता खोलने में भी नाकाम रही भाजपा इस बार चुनाव में चलो पलट दें के नारे के साथ पसीना बहा रही है। यहां भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है मुख्यमंत्री माणिक सरकार की व्यक्तिगत छवि। माणिक सरकार 1988 से राज्य के सीएम हैं। माणिक के पास 1520 रुपए कैश हैं और 2410 रुपए बैंक में हैं। सीएम की सैलेरी के तौर पर उन्हें 25,000 रुपए मिलते हैं पर वह यह रकम माकपा के नियमों के तहत पार्टी को दे देते हैं। इसमें से उन्हें 9000 रुपए बतौर स्टारपेंड मिलते हैं। माणिक के पास खुद का न मोबाइल है, न घर है और न ही कार है। वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करते। माणिक सरकार को त्रिपुरा की जनता अपना आदर्श मानती है। माणिक सरकार देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री भी हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी निजी सम्पत्ति लगातार कम हुई है। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तुलना में त्रिपुरा की राजनीति थोड़ी अलग है। यहां सीएम माणिक सरकार की स्वच्छ छवि की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ हर पंचायत तक पहुंचा है। इसके साथ माकपा का संगठन हर गांव तक फैला है। सरकारी योजनाओं की गुणवत्ता की जांच पंचायत स्तर के पदाधिकारियों के हाथों में है। हर महीने योजनाओं की समीक्षा होती है। पांच दशकों से त्रिपुरा की सत्ता पर काबिज वामदल की सरकार को इस बार पटखनी देने का भाजपा को पक्का भरोसा है। राज्य में भीषण बेरोजगारी से खासतौर पर युवा वर्ग में बेहद नाराजगी है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। देखें, पूर्वोत्तर में भाजपा कितनी कामयाब होती है।

Sunday, 18 February 2018

दिल्ली को दहलाने वाली यह महिला अपराधी

एक समय था जब चोरी करने में पुरुष आगे होते थे पर समय बदल गया है अब चोरी करने में महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। राजधानी दिल्ली में महिला अपराधियों की फौज तैयार हो रही है। पुरुषों के वेश में मोबाइल चोरी करने वाली 32 वर्षीय महिला, हत्या का ठेका लेने वाली आठ बच्चों की मां और सबसे बड़ा वेश्यावृत्ति का रैकेट चलाने वाली 35 वर्षीय महिला दिल्ली की नामी अपराधियों की सूची में शामिल हैं। इनमें से कुछ ऐसी हैं जो गॉड फादर की भूमिका में हैं और पुरुषों के साथ मिलकर गिरोह चलाती हैं। दिल्ली में मोस्ट वांटेड 62 वर्षीय बशीरन आठ बच्चों की मां है, जो बीते एक महीने से फरार है। बशीरन पर उगाही, डकैती और अवैध रूप से शराब बेचने के मामले दर्ज हैं। उसके छह लड़के हैं जिनमें एक नाबालिग है, उन पर 99 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, डकैती, उगाही, चोरी और अन्य संगीन अपराध शामिल हैं। जेल से बाहर आने के बाद अगले दिन ही बशीरन ने मुन्नी बेगम नाम की एक महिला से 60 हजार रुपए में एक युवक की हत्या की सुपारी ले ली थी। पुलिस को संगम विहार के जंगल में एक जली हुई लाश मिली थी। बशीरन मूलत राजस्थान से ताल्लुक रखती है। 38 साल की सोनू पंजाबन को 24 दिसम्बर 2017 को वेश्यावृत्ति का रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सोनू मूलत रोहतक की रहने वाली है। सोनू पहले भी कई बार गिरफ्तार हो चुकी है। 13 साल की लड़की ने उस पर आरोप लगाया था कि उसे मारा-पीटा गया और वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलने की कोशिश की गई। 2011 में उसे मकोका के तहत गिरफ्तार किया गया था। सोनू का पहला पति गैंगस्टर था, जो मुठभेड़ में वर्ष 2004 में मारा गया था। उसका दूसरा पति भी 2006 में एनकाउंटर में मारा गया। उस पर पांच हत्या, मानव तस्करी और पॉस्को एक्ट में मामले दर्ज हैं। रामप्रीत कौर उर्फ रानी 32 साल की है। बीते साल पुलिस को इस बात की जानकारी मिली थी कि वह पुरुषों के कपड़े पहनकर बाइक से मोबाइल छीनती है। बीते एक साल में इसी पर डकैती और झपटमारी के नौ मामले दर्ज हैं। 42 वर्षीय सायरा बेगम का 28 साल पुराना आपराधिक रिकार्ड है। महिला व उसके पति अफाक को 2016 में दिल्ली में सबसे बड़ा वेश्यावृत्ति का रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सायरा के जेल में रहने पर उसके साथी कोठे को चलाते हैं। आरोप है कि उसका पति नेपाल से लड़कियां लाता है। 53 साल की शकीला का पूर्वी दिल्ली के शकरपुर थाने में बतौर बेड करेक्टर नाम दर्ज है। महिला ने बतौर सब्जी विक्रेता का काम शुरू किया और बाद में जुए का बड़ा रैकेट चलाने लगी। उस पर 21 मामले दर्ज हैं।

-अनिल नरेन्द्र

इस घोटाले ने तो बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिला दी हैं

बैंकों को चूना लगाकर विदेश भागे विजय माल्या जैसे ही एक और बड़े मामले में गुरुवार को एनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ईडी) ने कई जगह छापेमारी की। मुख्य आरोपी अरबपति हीरा कारोबारी नीरव मोदी के मुंबई, सूरत और दिल्ली समेत 17 ठिकानों पर छापे मारकर 5700 करोड़ रुपए की सम्पत्ति जब्त की गई। नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई में सिर्फ एक ब्रांच से 11,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप है। इसे देश के बैंकिंग सेक्टर का सबसे बड़ा फ्रॉड कहा जा रहा है। पीएनबी में सामने आए इस 11,400 करोड़ रुपए के देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले से पूरी बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिल गई हैं, जोकि पहले से ही फंसे कर्ज और बदइंतजामी से जूझ रही है। पीएनबी का प्रबंधन भले ही सफाई दे कि यह गड़बड़ी 2011 से चल रही थी और उसने अपने कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई भी की थी, लेकिन इस घोटाले से जुड़े ढेरों सवालों का जवाब मिलना बाकी है। करीब 11,400 करोड़ रुपए इतनी बड़ी रकम है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे पीएनबी की कीमत शेयर बाजार के हिसाब से करीब 30,000 करोड़ रुपए की है। यानी कुल कीमत के करीब एक-तिहाई मूल्य के दायित्व इस घोटाले की वजह से पैदा हुए इस बैंक के लिए। इस बैंक को हाल में जितनी नई पूंजी सरकार से मिली थी, उस पूंजी की करीब दोगुनी रकम इस घोटाले में उड़ने की आशंका है। मोटे तौर पर इस घोटाले को यूं समझा जा सकता है कि पीएनबी से करीब 11,400 करोड़ के भुगतान की ऐसी गारंटी ग्लोबल संस्थाओं को दी गई, जिसके बारे में बैंक का कहना है कि वह गारंटी अनधिकृत थी। यानी बैंक में शीर्ष प्रबंधन को नहीं पता पर किसी जूनियर अफसर ने पीएनबी की तरफ से ऐसी गारंटी दे दी। घोटाले से जुड़े सवालों के जवाब अभी नहीं मिले हैं लेकिन यदि घोटाले के बारे में पहले ही किसी तरह की भनक मिल गई थी तो जौहरी नीरव मोदी और उनके साथी किस तरह से फर्जी गारंटी के जरिये दो दर्जन बैंकों की विदेशी शाखाओं से लिए कर्ज दबाए बैठे रहे? यह भी गले नहीं उतरता कि पीएनबी के सिर्फ दो अधिकारियों ने स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के जरिये संदेश भेजकर नीरव मोदी और उनके साथियों की आभूषण कंपनियों के लिए विदेशों में कर्ज का इंतजाम कर दिया। हैरानी की बात यह है कि बैंक आम ग्राहकों को छोटा-मोटा कर्ज देने के लिए भी दर्जनों चक्कर लगवाते हैं, कई तरह की औपचारिकताएं और गारंटी वगैरह मांगते हैं। लेकिन एक जौहरी को हजारों करोड़ रुपए कर्ज देने के लिए फर्जी गारंटी दे दी जाए और बैंक प्रबंधन, प्रवर्तन निदेशालय, वित्त मंत्रालय और अन्य वित्तीय संस्थाओं को इसकी भनक तक न लगे यह कैसे संभव हो गया? विजय माल्या का मामला तो अभी पुराना भी नहीं पड़ा है, इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने न तो अपने निगरानी तंत्र को और न ही जवाबदेही को मजबूत किया। हर किसी के मन में पहला सवाल यही आता है कि जब दो-चार लाख का भी कर्ज देने में सरकारी बैंक फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं तो करीब 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला कैसे हो गया? नीरव मोदी की गिनती भारत के 50 सबसे धनी व्यक्तियों में होती है। फोर्ब्स पत्रिका ने 2016 में उन्हें अरबपतियों की सूची में भारत में 46वें और दुनिया में 1067वें स्थान पर बताया था। पर अब यह साफ हो गया है कि उनकी इस उपलब्धि और शौहरत के पीछे धोखाधड़ी और लूट का बहुत बड़ा हाथ रहा होगा। क्या इस तरह का तरीका अपनाने वाले नीरव मोदी अपवाद हैं? यह घोटाला ऐसे वक्त सामने आया है जब एक ही दिन पहले रिजर्व बैंक ने एनपीए की बाबत और सख्ती दिखाते हुए सरकारी बैंकों को निर्देश जारी किया कि वे फंसे हुए कर्ज के मामले एक मार्च से छह महीने के भीतर सुलझा लें। बिना अदायगी वाले पांच करोड़ रुपए से ज्यादा के खातों का ब्यौरा हर सप्ताह देना होगा। सच तो यह है कि अगर पंजाब नेशनल बैंक तय नियमों के अनुसार काम कर रहा होता और उनका निगरानी तंत्र सजग होता तो नीरव मोदी बैंक को खोखला करने का काम कर ही नहीं सकता था। क्या यह अजीब नहीं कि नीरव मोदी के गोरखधंधे की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन उसे करीब सात साल के बाद ही पकड़ा जा सका? आखिर पंजाब नेशनल बैंक ने समय रहते इसकी परवाह क्यों नहीं की कि नीरव सैकड़ों-करोड़ों की रकम उधार लिए जा रहा है और उसे चुकाने का नाम नहीं ले रहा है? यह एक पैटर्न बन गया है कि बड़ा घोटाला करो और विजय माल्या की तरह देश से बाहर निकल जाओ। गौरतलब है कि पीएनबी सरकारी बैंक है। इसमें राजनीतिक निहितार्थ है। इसलिए घोटाले की खबर आते ही यह स्पष्टीकरण आ गया कि यह घोटाला 2011 से यानी मौजूदा सरकार के 2014 में आने से पहले चल रहा है। राजनीतिक बहस अपनी जगह पर मुद्दा यह है कि इतने बड़े बैंक को सरकार डूबने नहीं देगी। इसमें और पूंजी डाली जाएगी। यह पूंजी जाहिर है कि आप, हम करदाताओं की जेब से ही जाने वाली है। नीरव मोदी और उनके साथियों पर कार्रवाई करने के साथ ही पीएनबी के लाखों छोटे खाताधारियों के हित सुरक्षित रहें, यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है वरना बैंकिंग व्यवस्था से ही उनका विश्वास उठ जाएगा।

Saturday, 17 February 2018

ईरानी राष्ट्रपति रूहानी के दौरे का महत्व

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी गुरुवार को तीन दिवसीय भारत यात्रा पर हैदराबाद पहुंचे। बेगमपेट एयरपोर्ट पर रूहानी का भव्य स्वागत हुआ। रूहानी की हैदराबाद की यह दूसरी यात्रा है। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद वह पहली बार यहां आए हैं। ईरान के राष्ट्रपति के इस दौरे में चाबहार बंदरगाह, भारत और ईरान के बीच तेल व्यापार सहित कई दूसरे आर्थिक मुद्दों पर बात होने की उम्मीद है। ईरान भारत को तेल सप्लाई करने वाला तीसरा बड़ा देश है। इसके अलावा अगर हम राजनीतिक परिदृश्य से देखें तो भारत और ईरान की अफगानिस्तान में सहयोगी भूमिका रही है। लेकिन अब अमेरिका ने ईरान के खिलाफ रुख अपनाया है तो ऐसे में भारत को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा ताकि दोनों देशों से भारत का बैलेंस बना रहे। साथ ही भारत का रुख फिलस्तीन और इजरायल को लेकर ईरान से अलग रहा है। वहीं सऊदी अरब में भारत अमेरिका के कदम के साथ दिखता है। ऐसे में अगर विदेश कूटनीति को देखें तो दोनों देशों के बीच बहुत से सवाल मौजूद हैं। इसलिए फिलहाल तो इस दौरे से ऐसा नहीं लगता कि कोई बड़ा रणनीतिक कदम उठाए जाने की संभावना है। मनमोहन Eिसह के कार्यकाल के दौरान एक समय भारत और ईरान के रिश्ते काफी नाजुक मोड़ पर आ गए थे। उस समय ईरान को भारत की बहुत जरूरत थी। लेकिन अब मध्य पूर्व के जो समीकरण हैं उनमें ईरान भारत पर बहुत अधिक निर्भर नहीं है। इसलिए यह देखना होगा कि भारत को तेल के अलावा ईरान की कितनी अधिक जरूरत है। फिलहाल तो पिछले एक साल से भारत की विदेश नीति अमेरिका केंद्रित हो गई है। ऐसे में ईरान की भूमिका अभी तक साफ नहीं है। 1970 से 1980 के दशक में भारत और ईरान के बीच अच्छी ठोस विदेश नीति थी। ईरान ऐसा देश रहा जो कश्मीर पर कभी ज्यादा नहीं बोलता था। यहां तक कि जब इस्लामिक राष्ट्र कश्मीर के लिए कोई प्रस्ताव पारित करते थे तब भी ईरान का रुख भारत समर्थित ही रहता था। उसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भारत-अमेरिका के बीच करीबी रिश्ते बनने से ईरान और भारत की दूरी बढ़ने लगी। भारत और ईरान दोस्ती का सबसे बड़ा सबूत है चाबहार। ऐसे में देखें तो भारत को लेकर ईरान की विदेश नीति में बहुत फर्क आया है। भारत का ईरान से तेल की सप्लाई का रिश्ता है। क्योंकि वह भारत को सस्ता तेल मुहैया करवाता है। वहीं ईरान को भारत के रूप में एक लोकतांत्रिक देश के समर्थन की जरूरत है। स्वागत है राष्ट्रपति रूहानी का।
-अनिल नरेन्द्र


इन जांबाज जवानों पर हमें गर्व है



जम्मू के सुंजवां आर्मी कैंप पर हमले के दौरान आतंकियों से मुकाबला करते हुए देश के बहादुर जवानों के एक से बढ़कर एक रोमांचक किस्से सामने आ रहे हैं। हमले में मेजर अभिजीत इस कदर घायल हो गए थे कि उन्हें तीन-चार दिन तक बाहरी दुनिया की कोई खबर ही नहीं रही। सर्जरी के बाद होश में आते ही भारत के इस बहादुर लाल का पहला सवाल थाöआतंकियों का क्या हुआ? मेजर अभिजीत का इलाज ऊधमपुर के आर्मी अस्पताल में चल रहा है। ऊधमपुर कमांड अस्पताल के कमांडेंट मेजर जनरल नदीप नैथानी ने कहा कि अभिजीत का आत्मबल काफी ऊंचा है। घायल मेजर वापस ड्यूटी पर जाने के लिए भी तत्पर है। सुंजवां हमले में शहीद हुए पांच सैनिकों में एक ऐसा जांबाज भी था जिसने बिना हथियार ही कायर आतंकियों से लौहा लिया और शहीद होने से पहले अपने परिवार सहित न जाने कितने लोगों की जान बचाई। एके-47 राइफलें, ग्रेनेड और अन्य घातक हथियारों से पूरी तरह लैस होकर आए आतंकियों से वह अकेले और निहत्थे ही भिड़ गए। सीना व शरीर के अन्य हिस्से आतंकियों की गोलियों से छलनी हो गए। देशभक्ति में डूबा खून का एक-एक कतरा बह गया, लेकिन आतंकियों को अंतिम सांस तक रोके रखा। अपने परिवार के साथ अन्य कई सैन्य परिवारों की जान बचाकर वह जांबाज शहीद हो गया। यह शौर्य गाथा शनिवार को फिदायीन हमले में शहीद हुए जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के सूबेदार मदन लाल (50) की है। शहीद का परिवार मिलिट्री स्टेशन सुंजवां स्थित उनके क्वार्टर में आया था। मदन लाल के भतीजे की शादी के लिए वे शॉपिंग करने को ठहरे हुए थे तभी फिदायीन हमला हुआ। आवासीय क्षेत्र में घुसे आतंकी सूबेदार मदन लाल के क्वार्टर की ओर बढ़े। तब मदन लाल के पास कोई हथियार नहीं था। आतंकियों ने उन पर एके-47 से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। शहीद होने से पहले उनका भरसक प्रयास यही रहा कि उनका पूरा परिवार पीछे के गेट से बाहर निकल जाए। हालांकि इसमें उनकी 20 वर्षीय बेटी नेहा को टांग में गोली लग गई। साली परमजीत कौर को भी मामूली चोटें आईं लेकिन वे वहां से बच पाने में सफल हो गईं। शहीद मदन लाल अगर कुछ देर आतंकियों को रोके रखने में सफल नहीं होते तो कुछ और लोगों की जान भी चली जाती। मदन लाल के भाई सुरिन्दर कहते हैं कि मुझे अपने छोटे भाई पर गर्व है जो अपने परिवार को बचाने के लिए आखिरी दम तक आतंकियों से लौहा लेता रहा। हम बहादुर शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करते हैं। जय हिन्द।

Friday, 16 February 2018

आम आदमी पार्टी का तीन साल का कार्यकाल

आम आदमी पार्टी (आप) की दिल्ली सरकार को तीन साल पूरे हो गए हैं। इन तीन सालों में दिल्ली सरकार के साथ-साथ आम आदमी पार्टी को भी कई तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा है। सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने तगड़ी सियासी मोर्चाबंदी की है। सरकार के कामकाज को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब देने के लिए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने खुद ही मोर्चा संभाल रखा है। 2015 में आप ने ऐतिहासिक बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता हासिल की थी। एक ओर जहां आम आदमी पार्टी एक के बाद एक ट्वीट कर अपनी उपलब्धियां गिना रही है, वहीं भाजपा और कांग्रेस भी ट्वीट से सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। आम आदमी पार्टी ने ट्वीट कर अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि हमने बिजली कंपनियों की सीएजी जांच कराई, जिससे कंपनियों में हड़कंप मच गया। साथ ही कहा कि हमने बिल में 50 फीसदी की कटौती की, बिजली की घंटों कटौती को बंद किया और बिजली कंपनियों पर जुर्माना लगाया और तीन साल में बिजली के दामों में कोई वृद्धि नहीं हुई। 750 लीटर तक पानी को मुफ्त कर घोषणा पत्र का वादा पूरा किया। शिक्षा में  बदलाव किए, निजी स्कूलों पर शिकंजा कसा। हैल्थ स्कीम लागू की, आम आदमी हैल्थ कार्ड भी बनेगा। डोर स्टेप योजना को मंजूरी मिली, 40 योजनाओं में लाभ। जानकारों का कहना है कि शुरुआती दो साल में दिल्ली सरकार की और आप की छवि को इतना नुकसान नहीं पहुंचा जितना तीसरे साल में हुआ। खासतौर पर पंजाब और गोवा चुनाव के बाद। पंजाब से पहले आम आदमी पार्टी दिल्ली को लेकर बेफिक्र थी। यही बेफिक्री कहीं न कहीं एमसीडी चुनाव में भी भारी पड़ती दिखी। चुनाव आते-आते पार्टी के अंदर आंतरिक कलह काफी बढ़ गई और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इसका आभास हो गया, जिसके बाद केजरीवाल ने खुद दिल्ली के मैदान में मोर्चा संभाला लेकिन मनमुताबिक परिणाम हासिल नहीं कर पाए। एमसीडी चुनाव में हुई हार के बाद से पार्टी के अंदर जो उठापटक शुरू हुई थी, वह अभी तक भी शांत नहीं हो सकी। पार्टी दो खेमों में बंटती दिखी और कुमार विश्वास व कुछ अन्य नेताओं के बीच जो मतभेद थे, वे उभरकर बाहर आ गए। इन तीन सालों में केजरीवाल सरकार कई विवादों में फंसी। तीन वर्ष से लगातार सरकार और दिल्ली के एलजी के बीच टकराव रहा है। शिक्षकों की भर्ती का मामला हो या स्वास्थ्य सेवाओं का। सरकार बनने के साथ ही मंत्रियों को लेकर विवाद शुरू हो गए। स्टिंग ऑपरेशन से लेकर फर्जी डिग्री के आरोप मंत्रियों पर लगे। इस मामले में आम आदमी पार्टी के चार मंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा। सरकार में संसदीय सचिव बनाने के मामले पर जमकर विवाद हुआ। चुनाव आयोग ने 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। राष्ट्रपति ने भी इस मामले में मंजूरी दे दी। अब मामला दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है। कई मामलों में सरकार और अफसरों के बीच विवाद सतह पर आ गया। इसे लेकर मुख्यमंत्री कई बार अपनी आपत्ति जता चुके हैं। ताजा मामला सीएम के संदेश पर अफसरों ने अपनी सहमति नहीं दी। आप सरकार बार-बार सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगाती रही है। बीते वर्ष सत्येन्द्र जैन को लेकर सीबीआई जांच हुई। पहले उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ और जांच हुई। बीते दिनों सीबीआई की एक रेड में सत्येन्द्र जैन से संबंधित दस्तावेज मिलने का दावा किया गया, हालांकि सरकार इससे इंकार करती रही। उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी को इतना तो समझ में आ गया होगा कि उसकी छवि को नुकसान हुआ है। यह अंदाजा था कि पार्टी के स्तर में थोड़ी गिरावट आएगी, जो एंटी इनकंबैंसी के कारण स्वाभाविक मानी जा रही थी। लेकिन कुमार विश्वास, कपिल मिश्रा, सत्येन्द्र जैन प्रकरण जिस तरह से चर्चा में रहे उससे पार्टी की लोकप्रियता को कुछ ज्यादा नुकसान हुआ है। पार्टी को भी यह अंदाजा हो चुका है कि अपनी साख बचाने के लिए उसे दिल्ली पर ही पूरा जोर लगाना होगा। यही कारण है कि पार्टी ने अभी से आने वाले चुनावों की तैयारी शुरू करते हुए जनसम्पर्क और संगठन को मजबूत करने का काम शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी सरकार की मुखालफत में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का मैदान में उतरना भी कम दिलचस्प नहीं है। लंबे समय के बाद शीला दीक्षित प्रदेशाध्यक्ष अजय माकन के साथ मीडिया के सामने आईं। उनके साथ उनकी सरकार में मंत्री रहे तमाम नेताओं के अलावा दिल्ली कांग्रेस के तमाम कद्दावर नेता मौजूद थे। समझा जा रहा है कि एकजुट होकर आम आदमी पार्टी से निपटने की रणनीति के तहत कांग्रेस के कई नेता एक मंच पर इकट्ठा हो रहे हैं। उधर भाजपा के नेता विजेन्द्र गुप्ता का कहना है कि तीन वर्षों में 67 सीटों का रिकार्ड बहुमत सिमट कर 42 सीटों पर रह गया है। स्कूल, अस्पताल व सड़क सेवाओं में सुधार नहीं हुआ। सरकार के चार मंत्रियों को विभिन्न आरोपों की वजह से उनके पदों से हटाना पड़ा है। पांचवें मंत्री सत्येन्द्र जैन जेल जाने की तैयारी में हैं। दिल्ली सरकार महिलाओं को सुरक्षा मुहैया करवाने में पूरी तरह नाकाम रही है।
-अनिल नरेन्द्र


Thursday, 15 February 2018

आईएसआई का हनीट्रेप

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को देश से जुड़ी खुफिया सूचना देने के आरोप में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन की गिरफ्तारी चौंकाने वाली है। वैसे तो भारत-पाकिस्तान दोनों एक-दूसरे की जासूसी करते रहते हैं पर जब अपने ही देश का कोई व्यक्ति दुश्मन के लिए जासूसी करते पकड़ा जाए, तब और भी दिक्कत भरा होता है जब पकड़ा जाने वाला व्यक्ति सेना का ही कोई अधिकारी हो। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन अरुण मारवाह की गिरफ्तारी इसी लिहाज से परेशान करने वाली खबर है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि वायुसेना के मुख्यालय में तैनात इस अफसर को पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने जिस तरह अपने जाल में फंसाया उससे कान खड़े हो जाते हैं। सैनिकों को प्रलोभन देने के लिए विष-कन्याओं के इस्तेमाल की कहानियां हम सुनते आए हैं, लेकिन इस बार कोई विष-कन्या नहीं, बल्कि महिलाओं के नाम पर बनी फेक आईडी थी। अदालत के समक्ष पुलिस ने बताया कि कुछ महीने पहले वायुसेना के ग्रुप कैप्टन अरुण मारवाह त्रिवेंद्रम गए थे। वहीं आईएसआई के खुफिया एजेंट ने लड़की बनकर फेसबुक पर उनसे दोस्ती की थी। इसके बाद दोनों में लगातार फोन पर चैटिंग होने लगी। दोनों ने एक-दूसरे को अश्लील मैसेज दिए। लड़की बने आईएसआई एजेंट ने सेक्स चैट के जरिये मारवाह को जाल में फंसा लिया। करीब 10 दिन चली चैट के दौरान एजेंट ने कैप्टन को अंतरंग बातों में पूरी तरह फंसाकर उससे कई गोपनीय दस्तावेज की मांग की। मारवाह ने कुछ गोपनीय दस्तावेजों को मुहैया करा दिया। कुछ सप्ताह बाद एयरफोर्स के एक वरिष्ठ अधिकारी को मारवाह की इस हरकत के बारे में जानकारी मिली। अधिकारी ने उस पर आंतरिक जांच बैठा दी। जांच के दौरान अरुण मारवाह की जासूसी में संलिप्तता पाए जाने के बाद एयरफोर्स के वरिष्ठ अधिकारी ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक से इसकी शिकायत की और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बृहस्पतिवार को उसे गिरफ्तार कर लिया। मारवाह ने पूछताछ में स्वीकार किया कि उसका एक पुराना साथी भी इसमें शामिल था। उसने स्वीकार किया कि उसका साथी कथित दो पाकिस्तानी महिलाओं का साझा दोस्त था, जिन्हें इन्होंने कई गोपनीय सूचनाएं लीक की थीं। मारवाह ने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने महिलाओं को फेसबुक पर वायुसेना के अभियान के बारे में जानकारी दी। मुख्यालय में तैनाती के कारण कई अहम और गोपनीय दस्तावेजों तक उनकी पहुंच थी।
-अनिल नरेन्द्र


मोहन भागवत के बयान को लेकर सियासी बवाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की सेना पर की गई टिप्पणी से सियासी बवाल मच गया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुजफ्फरपुर में कहा थाöहमारा मिलिट्री संगठन नहीं है, मिलिट्री जैसा अनुशासन हमारा है। अगर देश को जरूरत पड़े और देश का संविधान-कानून कहे तो सेना तैयार करने को छह-सात महीने लग जाएंगे, संघ के स्वयंसेवकों को कर लेंगे तीन दिन में तैयार। यह हमारी क्षमता है लेकिन हम मिलिट्री संगठन भी नहीं हैं, हम तो पारिवारिक संगठन हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भागवत के बयान को सेना और तिरंगे का अपमान करार देते हुए इसे शर्मनाक कहा। वहीं कांग्रेस ने भागवत की ओर से देश और सेना से माफी की मांग करते हुए कहा कि प्रजातंत्र में प्राइवेट मिलिशिया की इजाजत नहीं दी जा सकती। वहीं कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने प्रधानमंत्री मोदी से स्थिति साफ करने को कहा है। कहा कि भागवत का बयान चौंकाने वाला है। ऐसे बयान से हमारी सेना के मनोबल को कमजोर करता है। भारत की सेना दुनिया की बड़ी सेनाओं में है, जिसने आजादी के बाद ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी है। इसमें पाक सेना का आत्मसमर्पण और बांग्लादेश की आजादी शामिल है। सेना ने हमारी सीमाओं को सुरक्षित रखा है और ऐसे समय में जब हम बड़ी चुनौती और सैनिक ठिकानों पर हमलों का सामना कर रहे हैं तो भागवत ने हमारी सेना की क्षमता और शौर्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। भागवत के बयान पर विवाद होता देख संघ की तरफ से सफाई दी गई है। कहा गया है कि भागवत ने सेना और स्वयंसेवकों के बीच तुलना नहीं की बल्कि यह स्वयंसेवक और आम लोगों के बीच तुलना थी। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहाöसर संघचालक के बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। वैद्य ने कहाöयह सेना के साथ तुलना नहीं थी पर सामान्य समाज और स्वयंसेवकों के बीच में थी। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भागवत का इशारों-इशारों में बचाव किया है। उन्होंने कहाöअगर कोई संगठन यह कहता है कि वह देश की सुरक्षा करने को उत्सुक है तो क्या यह विवाद का विषय है? केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने ट्वीट कियाöसेना हमारा गौरव है। आपातकाल में हर भारतीय को सुरक्षाबलों के साथ खड़े होने के लिए स्वयं आगे आना चाहिए। भागवत ने सिर्फ यह कहा कि एक व्यक्ति को सैनिक के तौर पर तैयार होने में छह-सात महीने लगते हैं। अगर संविधान इजाजत दे तो संघ के काडर में सहयोग देने की क्षमता है। संघ प्रमुख के बयान पर यह पहला विवाद नहीं है। वह पहले भी ऐसे विवादास्पद बयान देते रहे हैं। ऐसे समय जब जम्मू-कश्मीर में युद्ध की स्थिति बनी हुई है तो मोहन भागवत को ऐसे बयानों से बचना चाहिए।

Wednesday, 14 February 2018

घाटी की बजाय अब जम्मू क्षेत्र आतंकी निशाने पर

भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई से बौखलाए पाकिस्तान व उसके आतंकियों ने पिछले कुछ समय से कश्मीर घाटी को छोड़कर जम्मू क्षेत्र में हमले बढ़ा दिए हैं। खबर है कि पाकिस्तानी आकाओं के निर्देश पर ही घाटी के आतंकी जम्मू क्षेत्र में लगातार हमले कर रहे हैं। जैश--मोहम्मद के आतंकियों ने शनिवार तड़के जम्मू स्थित सुंजवां सैन्य शिविर पर फिदायीन हमला कर दिया। सुंजवां कैंप पर हमले में भाग लेने वाले चार आतंकियों को मार गिराया जबकि हमारे पांच जवानों समेत छह शहीद हुए। सुंजवां में हमला करने वाले आतंकी पूरी तैयारी के साथ आए थे। दहशतगर्दों के पास भारी मात्रा में गोला-बारूद था। सूचना के मुताबिक ग्रेनेड और आईईडी जैसे विस्फोटक भी थे। सुंजवां कैंप जम्मू-पठानकोट नेशनल हाइवे के बाइपास पर स्थित है। यह शहर की घनी बस्ती के इलाके में आता है और यहां करीब तीन हजार जवान परिवार के साथ रहते हैं। 2006 में भी इसी आर्मी कैंप पर आतंकी हमला हुआ था। इसमें 12 जवान शहीद हो गए थे, सात अन्य जख्मी हुए थे। यह हमला लश्कर ने किया था। तब साढ़े चार घंटे तक मुठभेड़ चली थी। सुंजवां में आतंकी हमला करने वाले आतंकी जैश--मोहम्मद के बताए जा रहे हैं। यह अफजल ब्रिगेड से संबंध रखते हैं। बार-बार इनपुट मिल रहे थे कि जैश के आतंकी सैन्य शिविर पर फिदायीन हमला करने की साजिश रच रहे हैं। बावजूद इसके हमला होना सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है। भारतीय खुफिया एजेंसियों की ओर से लगातार इनपुट जारी हो रहे थे लेकिन जिला पुलिस ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। पुलिस का अपना खुफिया तंत्र भी किसी काम नहीं आया। जैश की ओर से कहा गया था कि अफजल गुरु की बरसी यानी नौ फरवरी को वह आतंकी हमला करेंगे। अखनूर से लेकर कठुआ तक के नेशनल हाइवे के पास स्थापित सैन्य शिविरों को निशाना बनाने की जानकारी थी। इससे पहले जब पुलवामा में सीआरपीएफ ट्रेनिंग सेंटर पर हमला हुआ था तो उस वीडियो में आतंकी यह कहता नजर आया था कि अफजल ब्रिगेड अफजल की बरसी पर हमला करेगा। आतंकियों और उनके आकाओं ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है। अब ज्यादा ध्यान जम्मू क्षेत्र में दिया जा रहा है और दूसरा यह है कि अब आतंकी हमारे सैनिकों के परिवारों को निशाना बना रहे हैं। सुंजवां हमले में भी आतंकियों ने घुसने के बाद सीधे पारिवारिक क्वाटरों की तरफ रुख किया। क्वाटरों में पहुंचते ही आतंकी अलग-अलग हो गए। सैन्य क्वाटरों में रहने वाले मेजर अपनी बेटी के साथ सुबह सैर कर रहे थे। लड़की ने सैन्य वर्दी में आतंकियों को भागते देख उनसे पूछाöअंकल आप क्यों भाग रहे हैं? इस पर आतंकियों ने फायर झोंक दिया। इसमें मेजर और उनकी बेटी घायल हो गई। आतंकियों ने गोलियां चलाते हुए ब्रिगेड के आयुध भंडार में घुसने की कोशिश की, लेकिन वहां तैनात जवानों की जवाबी कार्रवाई से आतंकी अलग-अलग बंट गए और गोलीबारी करते हुए सैनिकों के आवासीय क्षेत्र में छिप गए। पाक सेना द्वारा फायरिंग और घुसपैठ की कोशिशें भी अब जम्मू क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से कराई जाने लगी हैं। अभी तक भारतीय सेना का पूरा फोकस नियंत्रण रेखा एवं दक्षिणी कश्मीर पर था पर आतंकियों एवं पाक सेना के रुख बदलने से हमारी सेना को भी रणनीति में बदलाव करना जरूरी है।

-अनिल नरेन्द्र

अबूधाबी में पहला हिन्दू मंदिर

यह कल्पना करना मुश्किल है कि किसी इस्लामी देश में हिन्दू मंदिर बने पर यूएई की राजधानी अबूधाबी में मंदिर बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अबूधाबी-दुबई राजमार्ग पर बोयासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्था (बीएपीएस) मंदिर की आधारशिला रखे जाने के गवाह बने। अबूधाबी में इस प्रथम हिन्दू मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम का दुबई ओपेरा हाउस में सीधा प्रसारण किया गया। यूएई सरकार ने अबूधाबी में मंदिर बनाने के लिए 20 हजार वर्ग मीटर जमीन दी थी। यूएई सरकार ने साल 2015 में उस वक्त यह ऐलान किया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर वहां गए थे। मंदिर अबूधाबी में अल वाकवा नाम की जगह पर 20 हजार वर्ग मीटर जमीन पर बनेगा। हाइवे से सटा अल वाकवा अबूधाबी से तकरीबन 30 मिनट की दूरी पर है। मंदिर को बनाने की मुहिम छेड़ने वाले बीआर शैट्टी हैं जो आबूधाबी के जाने-माने भारतीय कारोबारी हैं। वो यूएक्सचेंज नाम की कंपनी के एमडी और सीईओ हैं। वैसे तो मंदिर साल 2017 के आखिर तक बनकर तैयार हो जाना था लेकिन कुछ वजहों से देरी हो गई। अब पीएम मोदी के दौरे पर भूमि पूजन के बाद मंदिर की नींव रखी जाएगी और काम शुरू होगा। मंदिर में कृष्ण, शिव और अयप्पा (विष्णु) की मूर्तियां होंगी। अयप्पा को विष्णु का अवतार बताया जाता है और दक्षिण भारत खासकर केरल में इनकी पूजा होती है। सुनने में आ रहा है कि मंदिर काफी शानदार और बड़ा होगा। इसमें एक छोटा वृंदावन यानी बगीचा और फव्वारा भी होगा। मंदिर बनने को लेकर अबूधाबी के स्थानीय हिन्दुओं में उत्साह और खुशी का माहौल है। फिलहाल इन्हें पूजा या शादी जैसे समारोह करने के लिए दुबई जाना पड़ता है और इसमें तकरीबन तीन घंटे का वक्त लगता है। दुबई में दो मंदिर (शिव और कृष्ण) के और एक गुरुद्वारा पहले से है। लेकिन अबूधाबी में कोई मंदिर नहीं है। भारतीय दूतावास के आंकड़ों के मुताबिक यूएई में तकरीबन 26 लाख भारतीय रहते हैं जो वहां की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरा मानना है कि यह मंदिर सिर्फ वास्तुकला व भव्यता में ही विशेष नहीं होगा, बल्कि यह दुनियाभर के लोगों को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश भी देगा। पीएम ने यूएई में कार्यरत सैकड़ों भारतीयों को संबोधित करते हुए हिन्दी में कहा कि यूएई से हमारा संबंध सिर्फ एक खरीददार या बिक्रेता का नहीं है। यह इससे कहीं ज्यादा है। स्मरण रहे कि संयुक्त अरब अमीरात लगभग 33 लाख प्रवासी भारतीयों का घर है।

Tuesday, 13 February 2018

अयोध्या विवाद सिर्फ भूमि विवाद का है

अदालत से तारीख पर तारीख सिर्फ आम लोगों को ही नहीं मिलती। कभी-कभी इसके फेर में भगवान भी फंस जाते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट राम जन्मभूमि विवाद पर 14 मार्च को सुनवाई करेगा। इस बीच कोर्ट ने फिर साफ किया है कि वह इस मामले में भावनात्मक दलीलें नहीं सुनेगा, बल्कि केवल भूमि विवाद के नजरिये से सुनेगा। अयोध्या विवाद की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि वह इसे सिर्फ भूमि विवाद के रूप में देख रहा है, कतई अस्वाभाविक नहीं है। न्यायालय भावनाओं के आधार पर न सुनवाई कर सकता है और न कोई फैसला दे सकता है। उसकी भूमिका ठोस तथ्यों और साक्ष्यों के अनुसार फैसला करने की है। अदालत की यह टिप्पणी संविधानवाद से निकली है कि अयोध्या विवाद मूलत एक भूमि विवाद है। सुनवाई भावनाओं की नहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के विरुद्ध की गई अपील की हो रही है। करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं का सवाल उठाकर कई और पक्षकार शामिल होना चाहते थे, जिनकी दलीलों को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की तीन सदस्यीय पीठ ने अनसुना कर दिया। बेशक अयोध्या विवाद देश के करोड़ों लोगों के लिए आस्था और भावनाओं का मुद्दा है लेकिन जब यह न्यायालय में आ गया तो उसका चरित्र सीमित हो गया। न्यायालय के सामने तो यही मुद्दा है कि विवादित स्थल पर किसका स्वामित्व बनता है? अयोध्या भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे पेचीदा विवाद है और इसमें अदालती दलीलों, अपीलों और सबूतों के साथ राजनीतिक भावनाओं के जुड़ाव को खारिज करना हालांकि कठिन जरूर है। इसीलिए मुख्य न्यायाधीश को यह भी कहना पड़ा कि वे इस मामले की नजाकत को समझते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इसी आधार पर विवाद का फैसला किया था। हालांकि इसका यह अर्थ कदापि नहीं माना जाना चाहिए कि दीवानी मामला हो जाने के कारण जो पुरातत्विक या प्राचीन ग्रंथों के प्रमाण हैं उनका संज्ञान न्यायालय नहीं लेगा। न्यायालय ने स्वयं उच्च न्यायालय को सभी पक्षों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा की गई खुदाई के वीडियो उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। एएसआई की ओर से 1970, 1992 एवं 2003 में खुदाई की गई थी। देश चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट मामले की तेजी से सुनवाई करके फैसला दे। किन्तु इससे संबंधित दस्तावेज इतने अधिक हैं कि उनके अनुवाद में ही समय लग रहा है। कुल 524 दस्तावेजों में से 504 के अनुवाद कोर्ट में दाखिल हो चुके हैं। 87 गवाहियों के अनुवाद और एएसआई की रिपोर्ट भी दाखिल हो चुकी है। वैसे इस विवाद का समाधान न्यायालय के बाहर दोनों पक्षों की रजामंदी से हो जाता तो बेहतर होता पर सत्य यह है कि कई बार प्रयास हुए पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। सियासी दलों की मुख्य चिन्ता विवाद के समाधान की बजाय अपने वोट बैंक को बढ़ाने और सुरक्षित रखने की रही है। इस मसले में सुप्रीम कोर्ट फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। दिसम्बर 1992 में भी आरोप लगे थे कि अगर अदालत समय से फैसला दे देती तो शायद वैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना न होती। सही है कि न्यायालय में लंबे समय से जन्मभूमि का विवाद लटका हुआ था लेकिन अगर सुनवाई अदालत अपना फैसला बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध सुना देती तो क्या वह उसे मानने को तैयार हो जाता? या फिर अल्पसंख्यक पक्ष के खिलाफ फैसला आता तो क्या वह इसे मानता? यही प्रश्न आज भी है जिसका दबाव सुप्रीम कोर्ट पर काम कर रहा होगा। खैर, अब सभी पक्षों को यह मानकर चलना होगा कि उच्चतम न्यायालय जो भी फैसला देगा, उसे स्वीकार कर विवाद का स्थायी अंत कर दिया जाएगा। राजनीतिक दलों को भी अभी से मन बनाना होगा ताकि उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला आए उसे अमल में लाने के लिए काम कर सकें। यही एकमात्र रास्ता है और इसी में देश की भलाई भी है।
-अनिल नरेन्द्र

क्या मोदी लोकसभा चुनाव समय से पहले करवाएंगे?

देश की जनता ने 2014 के चुनावी समर में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 60 महीने के लिए सत्ता सौंपी थी पर अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद मई 2019 से पहले दिसम्बर 2018 में यानी पांच महीने पहले ही पीएम मोदी जनता की अदालत में दोबारा जनादेश की गुहार लेकर जाएं। माना जा रहा है कि भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव का भी दांव खेल सकती है। पीएम के प्लान से चौकस हुई कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति साफ कर दी है। कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2019 के लिए विपक्षी एकता का आह्वान करते हुए कहा कि कांग्रेस समान विचारों वाले राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम करेगी ताकि अगले चुनाव में भाजपा को हराया जा सके। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को असामान्य बताते हुए सोनिया गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि आम चुनाव लगभग एक साल बाद हैं पर हमें तैयार रहना होगा क्योंकि भाजपा पहले भी चुनाव करा सकती है। 2014 आम चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी के अभियान में मदद करने वाले टेक्नोलॉजी उद्यमी राजेश जैन ने भी समय से पहले चुनाव की अफवाह को मजबूती दी है। उन्होंने समय से पहले चुनाव के कारण भी बताए हैं। उनका तर्क है कि 2014 चुनावों के बाद से भाजपा की सीटें लगातार कम हो रही हैं। मोदी चुनावों का जितना इंतजार करेंगे उतनी ही चमक वो खोते जाएंगे। जो भी हो सरकार विरोधी हवा का अपना चक्र और तर्क होता है। बेरोजगारी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वजह से पैदा होने वाली दिक्कतें भी बढ़ती ही जाएंगी। समय से पहले चुनावों के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क अब भी चौंकाने की कला ही है और हम सब जानते हैं कि मोदी को चौंकाना पसंद है। मोदी सरकार ने अपने बजट से किसानों को रिझाने की भी कोशिश की है। यदि चुनाव समय से पहले हुए तो विपक्ष को एकजुट होने के लिए समय नहीं मिल पाएगा और सरकार विरोधी अभियान के लिए उसके पास ठोस रणनीति नहीं होगी। यह विचार भले ही दिल बहलाने वाले लगें लेकिन सच्चाई यह है कि इस समय मोदी सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर संकट में है। खासकर किसानों की दिक्कतों की वजह से लंबे समय से अर्थव्यवस्था में हलचल नहीं है और निजी निवेश भी नहीं हो पा रहा है। मोदी सरकार के लिए चीजें और खराब होती जाएंगी। ग्रामीण गुजरात और राजस्थान में जैसा देखा गया है हालात पहले ही बदतर हो गए हैं। सरकार के प्रयास उन्हें बेहतर करने के ही होंगे। हालांकि समय से पहले चुनाव करवाना एक बड़ा खतरा भी है। अटल बिहारी वाजपेयी अक्तूबर 1999 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। अगले चुनाव अक्तूबर 2004 में होने थे। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनावी जीत से उत्साहित भाजपा ने सितम्बर-अक्तूबर 2004 के बजाय दिसम्बर 2003 में ही चुनाव करवा दिए। भाजपा चुनाव हार गई। नरेंद्र मोदी अगर अटल बिहारी वाजपेयी की गलती को दोहराते हैं तो यह चौंकाने वाली बात ही होगी। सत्ता का हर दिन नेता के पास वोटरों को लुभाने का एक और मौका होता है। समय से पहले चुनाव इस मौके को गंवा देते हैं। समय से पहले चुनाव करवाना एक जुआ है जो इधर भी बैठ सकता है, उधर भी। आने वाले दिनों में स्थिति और साफ होगी।

Sunday, 11 February 2018

सस्ता क्रूड खरीदा और महंगा पेट्रोल-डीजल बेचा

इन तेल कंपनियों को जनता की कितनी फिक्र है इसी से पता चल जाता है कि यह दोनों हाथों से पब्लिक को लूट रही हैं और सरकार ने इन्हें ऐसा करने की खुली छूट दे रखी है। लोग पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं और सरकारी कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने में लगी हुई हैं। सरकार की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कंपनी (आईओसी) ने गत मंगलवार को जारी तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसम्बर 2017) के नतीजे में बताया है कि कंपनी ने दोगुना मुनाफा कमाया है। 2016 की दिसम्बर तिमाही में प्रॉफिट 3994.91 करोड़ रुपए का था जो 97 प्रतिशत बढ़कर 7883.22 करोड़ रुपए हो गया। वजह कंपनी ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल तो सस्ते में खरीदा, लेकिन पेट्रोल-डीजल महंगे दामों पर बेचती रही। इससे कंपनी का रिफाइनिंग मार्जिन काफी बढ़ गया। रेवेन्यू के लिहाज से इंडियन ऑयल देश की सबसे बड़ी कंपनी है। इंडियन ऑयल 27.58 प्रतिशत प्रोसेसिंग करती है, जबकि रिलायंस 28.41 प्रतिशत, भारत पेट्रोलियम 14.69 प्रतिशत, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम 10.40 प्रतिशत। हमारी जेब कटती गई और कंपनी का मुनाफा बढ़ता गया। इसके दो बड़े सबूत हैं। पहला, आईओसी का मुनाफा 97 प्रतिशत बढ़ गया, लेकिन रेवेन्यू में सिर्फ 13 प्रतिशत इजाफा हुआ है। पहले यह 1.15 लाख करोड़ था। अब 1.30 लाख करोड़ हो गया है। दूसरा, मात्रा के लिहाज से भी पिछले साल की तिमाही की तुलना में घरेलू बाजार में बिक्री सिर्फ 4.1 प्रतिशत बढ़ी और रिफाइनरी प्रोसेसिंग भी 11.4 प्रतिशत ही बढ़ा है। दिल्ली में 30 जनवरी 2018 को उपभोक्ता को पेट्रोल 72.93 रुपए प्रति लीटर और डीजल 64.00 रुपए प्रति लीटर मिला। इसका ब्रेकअप ऐसे हैöडीलर को बेचा 34.33, एक्साइज ड्यूटी 19.49, डीलर का मार्जिन 3.61, वैट 15.50। इस तरह पेट्रोल की कीमत 72.93 बनी। इसी तरह डीजल डीलर को बेचा 36.71, एक्साइज ड्यूटी 15.33, डीलर मार्जिन 2.53 और वैट 9.43, कुल मिलाकर कीमत बनी 64.00 रुपए प्रति लीटर। भारत की अर्थव्यवस्था में पेट्रोल और डीजल कीमतों का बड़ा रोल है। इसकी बढ़ती कीमतों का रिबाउंड इफैक्ट होता है। तमाम महंगाई का एक बड़ा कारण यह है। सरकार ने इन कंपनियों को पब्लिक को लूटने की खुली छूट दे रखी है। पब्लिक महंगाई के बोझ तले दब रही है और यह कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने में लगी हुई हैं। डीजल कीमतों के बढ़ने से किसान भी परेशान हैं, क्योंकि उसकी लागत बढ़ गई है और उसको बढ़ी कीमतों के हिसाब से रिटर्न नहीं मिल रही। जनता को इस लूट से बचाना चाहिए और कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुसीबत बने अपने ही विधायक

उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार की अपने अफसरों व विधायकों पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। भाजपा सहयोगी दलों की चुनौती और विरोध तो लगातार झेल रही है, लेकिन पार्टी विधायकों का भी हमला कम नहीं हो रहा है। चाहे मामला बरेली के डीएम का हो, चाहे डिप्टी डायरेक्टर रश्मि वरुण का हो, अफसर भी सरकार की आलोचना करने से नहीं कतराते। सहारनपुर जनपद के सांख्यिकीय विभाग की डिप्टी डायरेक्टर रश्मि वरुण काफी दिनों से फेसबुक पर भाजपा के विरोधियों का समर्थन करती रही हैं। आम आदमी पार्टी की भाजपा विरोधी पोस्ट व दो टीवी पत्रकारों की ऐसी ही पोस्ट का उन्होंने खुलकर समर्थन किया है। संगठन, प्रशासन और सरकार के स्तर पर एक तरफ जनप्रतिनिधियों से समन्वय बनाने की कोशिश हो रही है और दूसरी ओर क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर भाजपा विधायक आए दिन अपनी ही सरकार के लिए आंदोलित हो रहे हैं। भाजपा सरकार में साझीदार सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने वाराणसी में अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी। वह अब 18 फरवरी को चंदौली में रैली कर सरकार पर फिर हमला करने जा रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी कमजोर कड़ियों को दूर करने में जुटी है, लेकिन पार्टी के ही कई विधायक आरोपों की बौछार के साथ विपक्षी दलों जैसा बर्ताव करने पर उतर आए हैं। हाल ही में औरेया के भाजपा विधायक दीनानाथ भास्कर सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर औरेया तहसील में समर्थकों संग धरने पर बैठे तो हड़कंप मच गया। हरदोई के भल्लांवा-बिलग्राम के विधायक आशीष सिंह आशु ने वहां के सीएमओ से जनहित के कार्यों की अपेक्षा की तो सीएमओ ने उल्टे उनके खिलाफ ही आरोप लगा दिए। अभी हाल ही में बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी और विधायक संजय जायसवाल ने क्षेत्रीय मामले को लेकर धरना दिया। ऐसे और कई उदाहरण हैं जहां भाजपा के विधायक अपनी ही सरकार व प्रशासन के खिलाफ खुलकर आरोप लगा रहे हैं। बेहतर हो कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और भाजपा संगठन के वरिष्ठ अधिकारी अपनी पकड़ मजबूत करें और विधायकों की शिकायतों पर ध्यान दें। 2019 का चुनाव दूर नहीं। वह पहले भी हो सकता है। ऐसे में पार्टी के अंदर असंतोष प्रधानमंत्री मोदी के मिशन 2019 को झटका दे सकता है। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। समय रहते इसका सुधार नहीं किया गया तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

Saturday, 10 February 2018

आतंकियों को नवीद की मूवमेंट की जानकारी कैसे हुई?

श्रीनगर के सबसे पुराने महाराजा हरि सिंह अस्पताल में मंगलवार को आतंकियों का घात लगाकर हमला करना और लश्कर--तैयबा के आतंकी नवीद जट्ट उर्फ अबु हंजुला को छुड़ाकर ले जाना जहां सुरक्षा में बड़ी चूक है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि आतंकियों को पल-पल की जानकारी थी। इसमें पुलिस पर भी मुखबरी का शक है। श्रीनगर सेंट्रल जेल से आतंकी नवीद को अस्पताल ले जाने की जानकारी सिर्फ पुलिसकर्मियों को थी। ऐसे में यह जानकारी इन दहशतगर्दों तक कैसे पहुंची, इसे लेकर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक ही है। इस घटना में दूसरी चूक सामने आ रही है कि श्रीनगर सेंट्रल जेल से छह आतंकियों को मेडिकल चैकअप के लिए अस्पताल लाते समय सुरक्षा में सिर्फ 10-15 पुलिसकर्मी ही तैनात किए गए थे। इसके अलावा अस्पताल में अतिरिक्त सुरक्षा के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किए गए थे। पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद नवीद जट्ट उर्फ अबु हंजुला 26/11 के मुंबई हमले में शामिल कसाब के बाद जिन्दा पकड़ा जाने वाला तीसरा आतंकी था। नवीद को पांच अन्य कैदियों के साथ इलाज के लिए महाराजा हरि सिंह अस्पताल लाया गया तो वहां पहले से ही मौजूद दो आतंकियों ने पुलिस पर गोलियां बरसा दीं। इसमें दो पुलिसकर्मी हेड कांस्टेबल मुश्ताक अहमद व कांस्टेबल बाबर अहमद शहीद हो गए। तीनों आतंकी मोटरसाइकिल से फरार हो गए। पार्किंग में खड़े इन दो आतंकियों ने जेल वैन से उतरते ही आतंकी मोहम्मद नवीद जट्ट उर्फ अबु हंजुला को पिस्टल थमा दी। फिर दो पुलिसकर्मियों को गोली मारकर तीनों फरार हो गए। कड़ी सुरक्षा वाले इस अस्पताल से करीब 17 साल बाद इस तरह कोई आतंकी भागा है। 2001 में जनरल अब्दुल्ला नाम का खूंखार आतंकी पहली मंजिल से कूद कर फरार हुआ था। 22 साल का पाक आतंकी जट्ट 2014 में दक्षिण कश्मीर के कुलगांव से पकड़ा गया था। जम्मू-कश्मीर पुलिस उसे और पांच अन्य कैदियों को घाटी से बाहर शिफ्ट करना चाहती थी लेकिन कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी। आतंकियों का हमला इतना तेज था कि पुलिसकर्मियों को एक्शन लेने का मौका ही नहीं मिला। फिरन पहने दो आतंकी अस्पताल के ओपीडी के सामने पार्किंग में ही खड़े थे। जेल वैन करीब 1135 बजे कैदियों को लेकर पहुंची। यहां मरीजों की काफी भीड़ थी। पुलिस और अन्य कैदियों के साथ जैसे ही जट्ट वैन से उतरा, फिरन पहने एक आतंकी ने उसे पिस्टल थमा दी। पिस्टल मिलते ही जट्ट ने पहले कांस्टेबल मुश्ताक अहमद की छाती पर गोलियां बरसाईं। दूसरे कांस्टेबल बाबर अहमद ने जवाबी कार्रवाई की कोशिश की। जट्ट और उसके साथी उन पर गोलियां बरसा कर भाग लिए। यह हमला बिना पुलिस की मिलीभगत के हो ही नहीं सकता था। आतंकियों को जट्ट की मूवमेंट की पूरी जानकारी थी।

-अनिल नरेन्द्र