Saturday 10 February 2018

मोदी सरकार के समर्थक दलों में असंतोष

शिवसेना के बाद अब मोदी सरकार की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) ने आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं। आंध्रप्रदेश में टीडीपी ने फिलहाल भले ही एनडीए न छोड़ने का फैसला किया हो, मगर उसने अपनी नाराजगी जाहिर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इससे पहले भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना बाकायदा अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित कर कह चुकी है कि वह भाजपा के साथ अपना गठबंधन अगले लोकसभा चुनावों में जारी नहीं रखेगी। शिवसेना ने घोषणा की है कि वह अगले लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले देश के राजनीतिक समीकरण बदलने शुरू हो गए हैं। टीडीपी समेत एनडीए में शामिल करीब आधा दर्जन दल फिलहाल भाजपा से नाराज चल रहे हैं। शिवसेना तो गठबंधन से अलग भी हो गई है। यूपी में सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल, बिहार में  लोक समता पार्टी, महाराष्ट्र में राष्ट्रीय समाज पक्ष भी भाजपा से नाराज चल रही हैं। इस साल आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। कई दल इन चुनावों के नतीजों के बाद भी भविष्य के बारे में फैसला कर सकते हैं। मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनाव जीतने और केंद्र में अपनी सरकार बनाने के बाद यह पहला मौका है जब भाजपा के सहयोगी दलों की ओर से ऐसी अलगाव वाली बातें सुनने को मिल रही हैं। वाजपेयी की अगुवाई वाले एनडीए में जब-जब असंतोष, धमकी, चेतावनी आदि की आवाजें उठती रहती थीं मगर मोदी के नेतृत्व वाले इस दौर के लिए ये नई बातें हैं। दोनों में एक बड़ा फर्क यह है कि वाजपेयी सरकार इन घटक दलों के समर्थन पर निर्भर होती थी, जबकि आज भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल है। एनडीए के सभी घटक दलों को यह मालूम है कि उनके समर्थन वापस लेने से मोदी सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना। यह सही है कि मोदी सरकार ने इन दलों को कभी भी खास महत्व नहीं दिया। मगर अब चुनाव करीब आ रहे हैं। सरकार अपना आखिरी पूर्ण बजट पेश कर चुकी है। यानी समाज के असंतुष्ट धड़ों के लिए कुछ ठोस करने का सहज अवसर उसके हाथ से निकल चुका है। हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल और राजस्थान उपचुनाव में भी पार्टी को निराशा ही हाथ लगी। इन उपचुनावों को फिर भी भाजपा नेतृत्व स्थानीय मामले कहकर टाल सकती है, मगर सहयोगी दलों की नाराजगी की अनदेखी खतरनाक हो सकती है। अब यह केवल लों या सीटों का मामला नहीं है। आम वोटरों की गोलबंदी का सवाल है। इसमें जरा-सा उलटफेर वोट प्रतिशत में बड़ा हेरफेर कर सकता है। भाजपा के अंदर भी सब सामान्य नहीं, पार्टी में भी असंतोष है।

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