Tuesday, 13 February 2018

क्या मोदी लोकसभा चुनाव समय से पहले करवाएंगे?

देश की जनता ने 2014 के चुनावी समर में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 60 महीने के लिए सत्ता सौंपी थी पर अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद मई 2019 से पहले दिसम्बर 2018 में यानी पांच महीने पहले ही पीएम मोदी जनता की अदालत में दोबारा जनादेश की गुहार लेकर जाएं। माना जा रहा है कि भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव का भी दांव खेल सकती है। पीएम के प्लान से चौकस हुई कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति साफ कर दी है। कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2019 के लिए विपक्षी एकता का आह्वान करते हुए कहा कि कांग्रेस समान विचारों वाले राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम करेगी ताकि अगले चुनाव में भाजपा को हराया जा सके। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को असामान्य बताते हुए सोनिया गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि आम चुनाव लगभग एक साल बाद हैं पर हमें तैयार रहना होगा क्योंकि भाजपा पहले भी चुनाव करा सकती है। 2014 आम चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी के अभियान में मदद करने वाले टेक्नोलॉजी उद्यमी राजेश जैन ने भी समय से पहले चुनाव की अफवाह को मजबूती दी है। उन्होंने समय से पहले चुनाव के कारण भी बताए हैं। उनका तर्क है कि 2014 चुनावों के बाद से भाजपा की सीटें लगातार कम हो रही हैं। मोदी चुनावों का जितना इंतजार करेंगे उतनी ही चमक वो खोते जाएंगे। जो भी हो सरकार विरोधी हवा का अपना चक्र और तर्क होता है। बेरोजगारी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वजह से पैदा होने वाली दिक्कतें भी बढ़ती ही जाएंगी। समय से पहले चुनावों के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क अब भी चौंकाने की कला ही है और हम सब जानते हैं कि मोदी को चौंकाना पसंद है। मोदी सरकार ने अपने बजट से किसानों को रिझाने की भी कोशिश की है। यदि चुनाव समय से पहले हुए तो विपक्ष को एकजुट होने के लिए समय नहीं मिल पाएगा और सरकार विरोधी अभियान के लिए उसके पास ठोस रणनीति नहीं होगी। यह विचार भले ही दिल बहलाने वाले लगें लेकिन सच्चाई यह है कि इस समय मोदी सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर संकट में है। खासकर किसानों की दिक्कतों की वजह से लंबे समय से अर्थव्यवस्था में हलचल नहीं है और निजी निवेश भी नहीं हो पा रहा है। मोदी सरकार के लिए चीजें और खराब होती जाएंगी। ग्रामीण गुजरात और राजस्थान में जैसा देखा गया है हालात पहले ही बदतर हो गए हैं। सरकार के प्रयास उन्हें बेहतर करने के ही होंगे। हालांकि समय से पहले चुनाव करवाना एक बड़ा खतरा भी है। अटल बिहारी वाजपेयी अक्तूबर 1999 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। अगले चुनाव अक्तूबर 2004 में होने थे। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनावी जीत से उत्साहित भाजपा ने सितम्बर-अक्तूबर 2004 के बजाय दिसम्बर 2003 में ही चुनाव करवा दिए। भाजपा चुनाव हार गई। नरेंद्र मोदी अगर अटल बिहारी वाजपेयी की गलती को दोहराते हैं तो यह चौंकाने वाली बात ही होगी। सत्ता का हर दिन नेता के पास वोटरों को लुभाने का एक और मौका होता है। समय से पहले चुनाव इस मौके को गंवा देते हैं। समय से पहले चुनाव करवाना एक जुआ है जो इधर भी बैठ सकता है, उधर भी। आने वाले दिनों में स्थिति और साफ होगी।

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