Sunday 18 February 2018

इस घोटाले ने तो बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिला दी हैं

बैंकों को चूना लगाकर विदेश भागे विजय माल्या जैसे ही एक और बड़े मामले में गुरुवार को एनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ईडी) ने कई जगह छापेमारी की। मुख्य आरोपी अरबपति हीरा कारोबारी नीरव मोदी के मुंबई, सूरत और दिल्ली समेत 17 ठिकानों पर छापे मारकर 5700 करोड़ रुपए की सम्पत्ति जब्त की गई। नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई में सिर्फ एक ब्रांच से 11,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप है। इसे देश के बैंकिंग सेक्टर का सबसे बड़ा फ्रॉड कहा जा रहा है। पीएनबी में सामने आए इस 11,400 करोड़ रुपए के देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले से पूरी बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिल गई हैं, जोकि पहले से ही फंसे कर्ज और बदइंतजामी से जूझ रही है। पीएनबी का प्रबंधन भले ही सफाई दे कि यह गड़बड़ी 2011 से चल रही थी और उसने अपने कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई भी की थी, लेकिन इस घोटाले से जुड़े ढेरों सवालों का जवाब मिलना बाकी है। करीब 11,400 करोड़ रुपए इतनी बड़ी रकम है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे पीएनबी की कीमत शेयर बाजार के हिसाब से करीब 30,000 करोड़ रुपए की है। यानी कुल कीमत के करीब एक-तिहाई मूल्य के दायित्व इस घोटाले की वजह से पैदा हुए इस बैंक के लिए। इस बैंक को हाल में जितनी नई पूंजी सरकार से मिली थी, उस पूंजी की करीब दोगुनी रकम इस घोटाले में उड़ने की आशंका है। मोटे तौर पर इस घोटाले को यूं समझा जा सकता है कि पीएनबी से करीब 11,400 करोड़ के भुगतान की ऐसी गारंटी ग्लोबल संस्थाओं को दी गई, जिसके बारे में बैंक का कहना है कि वह गारंटी अनधिकृत थी। यानी बैंक में शीर्ष प्रबंधन को नहीं पता पर किसी जूनियर अफसर ने पीएनबी की तरफ से ऐसी गारंटी दे दी। घोटाले से जुड़े सवालों के जवाब अभी नहीं मिले हैं लेकिन यदि घोटाले के बारे में पहले ही किसी तरह की भनक मिल गई थी तो जौहरी नीरव मोदी और उनके साथी किस तरह से फर्जी गारंटी के जरिये दो दर्जन बैंकों की विदेशी शाखाओं से लिए कर्ज दबाए बैठे रहे? यह भी गले नहीं उतरता कि पीएनबी के सिर्फ दो अधिकारियों ने स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के जरिये संदेश भेजकर नीरव मोदी और उनके साथियों की आभूषण कंपनियों के लिए विदेशों में कर्ज का इंतजाम कर दिया। हैरानी की बात यह है कि बैंक आम ग्राहकों को छोटा-मोटा कर्ज देने के लिए भी दर्जनों चक्कर लगवाते हैं, कई तरह की औपचारिकताएं और गारंटी वगैरह मांगते हैं। लेकिन एक जौहरी को हजारों करोड़ रुपए कर्ज देने के लिए फर्जी गारंटी दे दी जाए और बैंक प्रबंधन, प्रवर्तन निदेशालय, वित्त मंत्रालय और अन्य वित्तीय संस्थाओं को इसकी भनक तक न लगे यह कैसे संभव हो गया? विजय माल्या का मामला तो अभी पुराना भी नहीं पड़ा है, इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने न तो अपने निगरानी तंत्र को और न ही जवाबदेही को मजबूत किया। हर किसी के मन में पहला सवाल यही आता है कि जब दो-चार लाख का भी कर्ज देने में सरकारी बैंक फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं तो करीब 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला कैसे हो गया? नीरव मोदी की गिनती भारत के 50 सबसे धनी व्यक्तियों में होती है। फोर्ब्स पत्रिका ने 2016 में उन्हें अरबपतियों की सूची में भारत में 46वें और दुनिया में 1067वें स्थान पर बताया था। पर अब यह साफ हो गया है कि उनकी इस उपलब्धि और शौहरत के पीछे धोखाधड़ी और लूट का बहुत बड़ा हाथ रहा होगा। क्या इस तरह का तरीका अपनाने वाले नीरव मोदी अपवाद हैं? यह घोटाला ऐसे वक्त सामने आया है जब एक ही दिन पहले रिजर्व बैंक ने एनपीए की बाबत और सख्ती दिखाते हुए सरकारी बैंकों को निर्देश जारी किया कि वे फंसे हुए कर्ज के मामले एक मार्च से छह महीने के भीतर सुलझा लें। बिना अदायगी वाले पांच करोड़ रुपए से ज्यादा के खातों का ब्यौरा हर सप्ताह देना होगा। सच तो यह है कि अगर पंजाब नेशनल बैंक तय नियमों के अनुसार काम कर रहा होता और उनका निगरानी तंत्र सजग होता तो नीरव मोदी बैंक को खोखला करने का काम कर ही नहीं सकता था। क्या यह अजीब नहीं कि नीरव मोदी के गोरखधंधे की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन उसे करीब सात साल के बाद ही पकड़ा जा सका? आखिर पंजाब नेशनल बैंक ने समय रहते इसकी परवाह क्यों नहीं की कि नीरव सैकड़ों-करोड़ों की रकम उधार लिए जा रहा है और उसे चुकाने का नाम नहीं ले रहा है? यह एक पैटर्न बन गया है कि बड़ा घोटाला करो और विजय माल्या की तरह देश से बाहर निकल जाओ। गौरतलब है कि पीएनबी सरकारी बैंक है। इसमें राजनीतिक निहितार्थ है। इसलिए घोटाले की खबर आते ही यह स्पष्टीकरण आ गया कि यह घोटाला 2011 से यानी मौजूदा सरकार के 2014 में आने से पहले चल रहा है। राजनीतिक बहस अपनी जगह पर मुद्दा यह है कि इतने बड़े बैंक को सरकार डूबने नहीं देगी। इसमें और पूंजी डाली जाएगी। यह पूंजी जाहिर है कि आप, हम करदाताओं की जेब से ही जाने वाली है। नीरव मोदी और उनके साथियों पर कार्रवाई करने के साथ ही पीएनबी के लाखों छोटे खाताधारियों के हित सुरक्षित रहें, यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है वरना बैंकिंग व्यवस्था से ही उनका विश्वास उठ जाएगा।

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