दक्षिण भारत में हमेशा से फिल्म और राजनेताओं
का चोली-दामन का संबंध रहा है। अब फिल्म से राजनीति
में आने वाले ताजा हीरो हैं कमल हासन। इससे कुछ ही समय पहले रजनीकांत (66) सक्रिय राजनीति में आए थे। बुधवार को अभिनेता कमल हासन (63), तमिलनाडु की सियासत के मैदान में उतर आए हैं। तमिलनाडु में 2021 में विधानसभा चुनाव हैं। बुधवार को मदुरै में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद
केजरीवाल की मौजूदगी और समर्थकों के बीच कमल हासन ने अपनी पार्टी `मक्कल नीधि मय्यम' (एमएनएम) लांच
की। हिंदी में इसका अर्थ लोक न्याय मंच होता है। कमल हासन ने बुधवार सुबह यात्रा रामेश्वरम
में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के घर से शुरू की। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे
अब्दुल कलाम को अपना आदर्श बताते हुए कमल ने अपनी पार्टी को लोगों की पार्टी करार दिया।
दरअसल जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु नई अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है और उसमें डूबने और उतरने की कई राजनीतिक
संभावनाएं विद्यमान है। कमल हासन ने पूर्व राष्ट्रपति कलाम के परिवार से आशीष और रामेश्वरम
के मछुआरों से समर्थन लेकर मदुरै से जो राजनीतिक यात्रा शुरू की है वह चेन्नई के फोर्ट
सेंट जॉर्ज स्थित विधानसभा तक पहुंचेगी या दिल्ली की संसद तक आएगी यह तो समय ही बताएगा।
कमल हासन की राजनीति में अन्नाद्रमुक, द्रमुक जैसे क्षेत्रीय
दलों का ही नहीं बल्कि भाजपा का भी विरोध है। जयललिता की पार्टी को एकजुट रख सत्ता
में कायम रखने का काम भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कर रहा है पर इसके बावजूद यह रिश्ता
सहन नहीं है। उधर दो बार चुनाव हारने के बाद द्रमुक बहुत विचलित है और आगामी चुनाव
में अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार है। उसके भाग्य से टू-जी घोटाले से कनिमोझी और ए राजा के बरी होने का छीका टूटा है। असली सवाल कमल
हासन के मैदान में उतरने और प्रभाव पड़ने का है। अगर चुनाव निर्धारित समय
2021 में होता है तो उन्हें प्रचार करने और अपना संगठन बनाने के लिए
काफी समय मिल जाएगा और अगर दिनाकरण के 18 विधायकों पर विपरीत
फैसला आने के कारण जल्दी होता है तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक के माध्यम से भाजपा ज्यादा
सशक्त हस्तक्षेप करेगी। देखना यह है कि 2019 का चुनाव
1989 की तरह कोई नया ध्रुवीकरण करेगा और तमिलनाडु से दिल्ली तक मौलिक
बदलाव करेगा या फिर उन्हीं पुराने दो दलों के बीच सीमित रहेगा।
-अनिल नरेन्द्र
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