Wednesday 28 February 2018

क्या बैंक ऑडिटरों की मिलीभगत से हुआ घोटाला

क्या ऐसा संभव है कि किसी परीक्षार्थी को अपना परीक्षक चुनने की छूट दे दी जाए और बाद में शिकायत की जाए कि परीक्षा में अनियमितता हुई है? सरकारी बैंकों के ऑडिट में यही हो रहा है। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के मामले सांविधिक ऑडिटरों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस समय सार्वजनिक बैंकों को अपने ऑडिटरों की नियुक्ति का अधिकार है और यह घपला सामने आने के बाद सवाल किए जा रहे हैं कि पीएनबी के ऑडिटर 11,400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी को सात साल तक कैसे नहीं पकड़ पाए? सरकारी बैंकों को ऑडिटर चुनने की आजादी है व उसके काम की समीक्षा करने की भी। ऐसा न होता तो शायद 2011 से चल रहे पीएनबी घोटाला पहले ही पकड़ में आ जाता। यह प्रणाली छह-सात साल पहले बदली गई। इससे पहले रिजर्व बैंक सरकारी बैंकों के लिए खुद ऑडिटर नामित करता था। अब आरबीआई सीए का एक पैनल बनाकर भेज देता है। मार्च के अंतिम सप्ताह में यह बैंक शाखाओं के ऑडिट के लिए पैनल से ऑडिटर चुन लेते हैं। अप्रैल के पहले सप्ताह में ऑडिटर को जांच रिपोर्ट बैंक को देनी होती है। चार्टर्ड अकाउंटेंट्स का मानना है कि इस प्रक्रिया की खामियों का फायदा बैंक अफसर और ऑडिटर दोनों ही उठा रहे हैं। खुद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने घोटाले के लिए चन्द बैंक अफसरों और ऑडिटरों को दोषी बनाया है। वित्तमंत्री ने मंगलवार को कहाöहमारे ऑडिटर क्या कर रहे हैं? ऑडिटर या तो इसे देख नहीं रहे हैं या इसे खोज पाने में नाकाम हैं। निगरानी एजेंसियों के लिए भी चुनौती है कि क्या उपाय किए जाएं कि ऐसे मामले दोबारा न हों। हैरानी की बात यह है कि किसी कंपनी की अवैध कारगुजारियों में शामिल रहा सीए अगर आरोपी पाया जाता है तो उस पर महज तीन महीने की प्रैक्टिस का बैन और एक लाख रुपए जुर्माने की कार्रवाई का ही प्रावधान है। इतना ही नहीं, सीए के खिलाफ शिकायत के निपटारे में कई साल लग जाते हैं। पीएनबी के घोटाले से पहले नोटबंदी के दौरान भी कई सीए प्रोफेशनल्स पर गड़बड़ी कर पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने में शामिल रहने के आरोप लगे थे। नोटबंदी के दौरान गड़बड़ी कर नोट बदलवाने के आरोप में सरकार ने 34 सीए प्रोफेशनल्स के नाम आईसीएआई को दिए थे। बिना सीए की मदद से पीएनबी घोटाला संभव नहीं था।

-अनिल नरेन्द्र

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