Thursday 1 February 2018

2018 में ही लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे?



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से हाल के दिनों में कई मौकों पर एक साथ विधानसभा व लोकसभा चुनाव कराने की अपील के बाद सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाषण में भी इसका जिक्र आना क्या यह संकेत दे रहा है कि मोदी सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने के मूड में है? इसके साथ ही सियासी आंकलन भी शुरू हो गया कि क्या देश इसके लिए तैयार है? क्या है असल हालात। सूत्रों के अनुसार अगर साल के अंत में आम चुनाव छह महीने पहले कराने की कोशिश होती है तो ऐसी सूरत बन रही है कि आधे से अधिक देश में एक साथ चुनाव हो जाएं। चूंकि राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार का नीतिगत दस्तावेज होता है इसलिए एक साथ चुनाव का विचार शामिल होना और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। पहले ऐसा होता रहा है। बाद में सरकारों के कार्यकाल पूरा करने के पहले ही गिर जाने और मध्यावधि चुनाव की नौबत आने के कारण एक संविधान सम्मत परंपरा बाधित हो गई। इसके स्थान पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने की परंपरा ने जड़ें जमा लीं। बार-बार चुनाव होने से न केवल आर्थिक बोझ ही बढ़ता है बल्कि आचार संहिता लगने से विकास भी रुक जाता है। कांग्रेस ने कहा कि सरकार जल्द चुनाव कराना चाहती है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार सब कुछ जल्द निपटाकर चुनाव में जाने के मूड में है। हालांकि सरकार के लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे पर कांग्रेस अपना रुख साफ कर चुकी है। पार्टी का कहना है कि इस बारे में सरकार को ठोस प्रस्ताव के साथ सभी राजनीतिक दलों से चर्चा कर आम सहमति बनानी चाहिए। वहीं राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार यह समझती है कि 2014 के चुनाव में जनता से किए गए सभी वादे पूरे हो गए हैं तो यह लोगों के साथ धोखा है। अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है। कृषि की विकास दर चार फीसदी से घटकर 1.9 प्रतिशत पर आ गई है। देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए सहमति बनाने के लिए सरकार संसद के बजट सत्र में लोकसभा में एक प्रस्ताव ला सकती है। राजग संसदीय दल के नेताओं की बैठक में सरकार ने इस आशय के संकेत दिए हैं। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर सहमति बनती है तो इससे जनता को तो कोई परेशानी नहीं होने वाली, लेकिन कुछ विपक्षी राजनीतिक दल उसकी आड़ अवश्य ले सकते हैं। उन्हें जनहित के साथ राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।

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