Friday, 9 February 2018

राफेल की कीमत बताने से इंकार पर उठे सवाल

करीब एक घंटे के भीतर दिल्ली से पाकिस्तान के क्वेटा और क्वेटा से दिल्ली वापसी। यह उस लड़ाकू विमान राफेल की स्पीड है जिसकी खरीददारी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी घपले की बात कर रहे हैं। राफेल सौदे को घोटाला बताते हुए राहुल ने कहाöएक कारोबारी को लाभ पहुंचाने की मंशा से सौदे को बदलने के लिए प्रधानमंत्री खुद पेरिस गए थे। बजट सत्र में राहुल ने एक बार फिर से यह मामला उठाया। बुधवार को राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री अपनी चुप्पी तोड़ने के बजाय भ्रष्टाचार करने वालों को बचा रहे हैं। उधर रक्षामंत्री कहती हैं कि प्रत्येक राफेल जेट की कीमत के लिए पीएम ने जो बातचीत की वो गोपनीय है। सीतारमण ने कहाöआर्टिकल 10 के मुताबिक सौदे की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी। साल 2008 में दोनों देशों के बीच हुए इंटर गवर्नमेंट एग्रीमेंट के तहत ऐसा किया जाएगा। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के इस जवाब और राहुल गांधी के आरोपों के बाद कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस कर कुछ सवाल पूछेöयूपीए सरकार के वक्त एक राफेल की कीमत 526 करोड़ थी, लेकिन जो सुनने में आया वो यह कि मोदी सरकार ने एक राफेल 1570 करोड़ रुपए में खरीदा। यानी करीब तीन गुना। यह सच है या नहीं, यह कौन बताएगा? इस नुकसान की वजह और जिम्मेदारी किसकी है? साल 2016 में फ्रांस से जो समझौता हुआ, उससे पहले क्या सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमेटी से मंजूरी ली गई थी? प्रक्रिया क्यों नहीं मानी गई। क्या भ्रष्टाचार का केस नहीं बनता? देश को जरूरत 126 विमानों की थी। मोदी गए और जैसे संतरे खरीदे जाते हैं, वैसे राफेल विमान खरीद लिए गए। साल 2010 में यूपीए सरकार ने खरीद की प्रक्रिया फ्रांस से शुरू की। 2012 से 2015 तक दोनों देशों में बातचीत चलती रही। 2014 में यूपीए की जगह मोदी सरकार सत्ता में आई। सितम्बर 2016 में भारत ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों के लिए करीब 59 हजार करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर किए। मोदी ने 2016 सितम्बर में कहा थाöरक्षा सहयोग के सन्दर्भ में 36 राफेल विमानों की खरीद को लेकर खुशी की बात है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ वित्तीय पहलुओं को छोड़कर समझौता हो गया है। मोदी सरकार मेक ऑफ इंडिया का जमकर प्रचार करती तो है लेकिन इस समझौते में भारत की एकमात्र जहाज बनाने वाली कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को नजरंदाज किया गया। रक्षा मामलों के जानकार अजय शुक्ला ने अप्रैल 2015 में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ रिलायंस (एडीएजी) प्रमुख अनिल अम्बानी और उनके समूह के अधिकारी भी गए थे। उन्होंने राफेल बनाने वाली कंपनी के साथ बातचीत भी की थी। राहुल गांधी के आरोप के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण आगे बढ़ते हैं। प्रशांत भूषण ने मंगलवार को अपने ट्वीट में लिखाöमार्च 2015 में अम्बानी ने रिलायंस डिफेंस का रजिस्ट्रेशन करवाया। दो हफ्ते बाद ही मोदी यूपीए सरकार की 600 करोड़ रुपए में खरीदी जाने वाली राफेल डील को 1500 करोड़ की नई डील में बदल देते हैं। पब्लिक सेक्टर की एचएएल की जगह अम्बानी की कंपनी ने ली ताकि 58 हजार करोड़ के केक को आधा चखा जा सके। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राफेल के लिए भारत को बाकी मुल्कों के मुकाबले ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। डिफेंस वेबसाइट के मुताबिक साल 2015 में भारत के अलावा कतर ने भी फ्रांस से राफेल खरीदने का समझौता किया था। कतर को एक राफेल करीब 108 मिलियन डॉलर यानी 693 करोड़ रुपए में मिला। अगर यह रिपोर्ट सही है तो यह कीमत भारत की एक राफेल के लिए कथित तौर पर चुकाई कीमत से कहीं ज्यादा है। हमारा मानना है कि मोदी सरकार को इस सौदे में विमान की तकनीकी जानकारियों को गुप्त रखने के साथ इनकी अदा की गई कीमत की जानकारी देश को देनी चाहिए। छिपाने से उल्टा शक बढ़ता है। हां राहुल गांधी को संसद के अंदर आरोप लगाने चाहिए बाहर नहीं।

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