Sunday, 1 August 2021

मजबूरी में भीख मांगते हैं, सामाजिक-आर्थिक मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों पर भीख मांगने पर रोक की मांग को ठुकराते हुए कहा कि अभिजात्य दृष्टिकोण अपनाकर वह भिखारियों व बेघरों को हटाने का आदेश नहीं देंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह शिक्षा व रोजगार के अवसरों की कमी से उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक समस्या है। लोग भीख इसलिए मांगते हैं क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है। अदालतों ने कोरोना से पैदा हुई चुनौतियों को देखते हुए केंद्र व दिल्ली सरकार को भिखारियों के पुनर्वास व टीकाकरण के उपायों पर सुझाव देने को कहा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष वकील कुश कालरा ने जनहित याचिका में कोविड संक्रमण रोकने के लिए भिखारियों का टीकाकरण सुनिश्चित करने को कहा। याचिका के पहले हिस्से में मांग की थी कि कोरोना से बचाने के लिए सभी राज्यों में भिखारियों-बेघरों को ट्रैफिक जंक्शनों, बाजारों में भीख मांगने से रोका जाए। इस पर पीठ ने कहा कि हम ऐसा आदेश नहीं दे सकते। भिक्षावृत्ति गरीबी का परिणाम है। ऐसा रुख नहीं अपना सकते कि हम भिखारियों को नहीं देखना चाहते। कोई भी व्यक्ति भीख नहीं मांगना चाहता। हालांकि पीठ ने पुनर्वास से जुड़ी याचिका के दूसरे हिस्से पर सुनवाई के लिए हामी भर दी। पीठ ने कहाöइस सामाजिक-आर्थिक समस्या पर केंद्र व राज्यों को गौर करना होगा। उन बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए, जिन्हें सड़कों पर भीख मांगते देखते हैं। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुनवाई की अगली तारीख पर इस संबंध में सहायता करने का अनुरोध किया है। भीख मांगने वालों के प्रति जिस श्रेष्ठ संवेदना का प्रदर्शन सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागतयोग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है। अदालत का इशारा साफ था कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं होगा और इससे भीख मांगने की समस्या का समाधान नहीं होगा। अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए बहुत गौरतलब है। अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण यह स्थिति बनी है। सबसे बड़ी समस्या दाल-रोटी की है। रोजगार के अवसर खत्म हो गए हैं, ऐसे में अपने परिवारों का पेट भरने की मजबूरी में लोग भिखारी का विकल्प अपनाते हैं। सड़कों और रेड लाइटों पर दर्जनों छोटे-छोटे बच्चे भीख मांगते हुए मिलते हैं जो हाथ फैलाए खड़े होते हैं। अपाहिज भी मिलते हैं। यह एक सामाजिक गरीबी की समस्या है इस पर संवेदना से ही फैसला हो सकता है, डंडे से नहीं।

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