Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 19 August 2011
अनिल नरेन्द्र
राज्यसभा में बुधवार को एक ऐतिहासिक घटनाक्रम आरम्भ हुआ है। कोलकाता हाई कोर्ट के एक जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया राज्यसभा में आरम्भ हो गई है। उच्च सदन के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है। वैसे न्यायमूर्ति सेन देश के न्यायिक इतिहास में ऐसे दूसरे जज होंगे जिनके खिलाफ संसद के किसी सदन में महाभियोग कार्यवाही की जा रही है। राज्यसभा पहली बार एक अदालत की तरह तब्दील हुई। सदन के आसन के सामने वाले प्रवेश द्वार में कठघरे में जस्टिस सेन ने अपना पक्ष रखा। न्यायमूर्ति सौमित्र सेन पर लगे आरोपों की जांच के लिए समिति राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने बनाई थी। समिति ने 53 साल के जज को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी पाया है। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ही पद से हटाया जा सकता है। ऐसा प्रस्ताव दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है। कदाचार और अयोग्यता साबित करने वाले प्रस्ताव का संसद के समान सत्र में ही पारित होना जरूरी है। संसद के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब किसी जज को हटाने के लिए कार्यवाही की जा रही है। 1993 में न्यायमूर्ति रामास्वामी को हटाने के लिए इस तरह की कार्यवाही शुरू हुई थी। लेकिन लोकसभा में इससे संबंधित महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया था। तब क्षेत्रीय आधार पर सांसदों में मतभेद हो जाने का फायदा भ्रष्टाचार के आरोपी जज को मिल गया था। तब कांग्रेस के यही श्री कपिल सिब्बल न्यायमूर्ति रामास्वामी की ओर से पैरवी करने लोकसभा में पेश हुए थे। नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने महाभियोग प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला करके सबको चौंका दिया था। पहला महाभियोग प्रस्ताव खारिज होने के बाद उच्च न्यायपालिका में जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ गईं थी। राज्यसभा में जो प्रस्ताव जस्टिस सेन के खिलाफ पेश किया गया है उसका मूल पाठ कहता है कि यह सदन कोलकाता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ कथित कदाचार के सबूतों और जांच के संबंध में जांच समिति की उस रिपोर्ट पर विचार करता है जो 10 नवम्बर 2010 को सदन के पटल पर पेश की गई थी। सभापति हामिद अंसारी ने 15 फरवरी को न्यायमूर्ति सेन को हटाए जाने संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। उधर सिक्किम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीडी दिनाकरन के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए भी राज्यसभा के सभापति ने न्यायिक समिति का गठन किया है। हालांकि न्यायमूर्ति दिनाकरन ने पिछली 29 जुलाई को खुद ही पद से इस्तीफा दे दिया। अगर न्यायमूर्ति सेन भी इस्तीफा दे देते तो उनके खिलाफ भी कार्यवाही न होती। संसद के दोनों सदनों में जो रिपोर्ट तीन सदस्यीय जांच समिति ने पेश की थी उसमें कहा गया कि न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को भारत के संविधान के अनुच्छेद 217(1) के (ब) खंड के साथ अनुच्छेद 124(बी) के तहत कदाचार का दोषी पाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जज बी. सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली जांच समिति ने कहा है कि कोलकाता हाई कोर्ट के रिसीवर के रूप में न्यायमूर्ति सेन द्वारा बड़ी धनराशि की अनियमितता करने और इस संबंध में गलत तथ्य पेश करने के आरोप उचित रूप से सही साबित हुए हैं।
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