Sunday, 28 August 2011

11वें दिन न तो अनशन टूटा, न चर्चा हो सकी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th August 2011
अनिल नरेन्द्र
गांधीवादी अन्ना हजारे का अनशन 11वें दिन भी नहीं टूट सका। सरकार ने फिर चाल चल दी। सरकार ने लोकसभा में लोकपाल के मुद्दे पर पहले तो नियम 184 के तहत स्वीकार कर लिया पर ठीक बहस शुरू होने से पहले सरकार पलटी खा गई और बहस को नियम 193 में करवाने का फैसला करके मामले को उलझा दिया। नियम 193 में कोई वोटिंग नहीं होती। रही-सही कसर युवराज के भाषण व स्टैंड ने निकाल दी। नतीजा यह हुआ कि अन्ना का अनशन 11वें दिन भी नहीं टूट सका। अब शनिवार को बहस होगी। अन्ना टीम अब भी इस बात पर अडिग है कि अन्ना हजारे अपना अनशन तभी समाप्त करेंगे जब उनकी तीनों मांगों पर सहमति बनें या कम से कम जन लोकपाल बिल को संसद में पेश कर दिया जाए। अगर जन लोकपाल विधेयक दूसरे लोकपाल प्रस्तावों के साथ शनिवार को पेश हो जाता है और उस पर बहस होती है तो सम्भव है कि उस सूरत में अन्ना अपना आमरण अनशन खत्म कर दें पर बैठे वह रामलीला मैदान में ही रहेंगे, तब तक जब तक जन लोकपाल बिल पारित नहीं हो जाता। शुक्रवार को सारी चर्चा राहुल गांधी के बयान पर बनी रही। राहुल ने अपने बयान में चेतावनी दे डाली कि व्यैक्तिक फरमान से संसद की सर्वोच्चता पर आंच न आने पाए। लोकपाल विधेयक पर 11 दिन के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए राहुल ने इस सोच को भी अस्वीकार कर दिया कि केवल लोकपाल आ जाने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्रीय चुनाव आयोग की तरह संसद के प्रति जवाबदेह एक संवैधानिक लोकपाल बनाया जाए। राहुल गांधी का सुझाव तो अच्छा है पर उससे अभी हाल फिलहाल कोई समस्या सुलझने वाली नहीं। इस काम में वर्षों लग सकते हैं। राहुल की लाइन से सरकार और कांग्रेस दोनों का पक्ष कुछ हद तक साफ हो गया और यह स्पष्ट संकेत था कि सरकार अन्ना की मांगें मानने को तैयार नहीं है, कम से कम जिस तरीके से अन्ना चाह रहे हैं। राहुल गांधी ने जिस अन्दाज में अन्ना हजारे पर हमला बोला उससे यह कहा जाए कि उन्होंने कुछ हद तक अपना राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा दिया तो गलत नहीं होगा। संसद में दिए उनके बयान से जनता में जैसी तीखी प्रतिक्रिया हुई उसमें तो वह कपिल सिब्बल, पी. चिदम्बरम और मनीष तिवारी की कतार में खड़े हो गए हैं। खुद कुछ कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी के पास अपनी लोकप्रियता को चरम पर पहुंचाने का यह सुनहरा मौका था कि वह अन्ना के पास जाते उनके पैर छूते और केंद्र सरकार और अन्ना के बीच सेतु का काम करते। इससे न केवल वे युवाओं के सिरमौर बनते बल्कि अन्ना भी अपना अनशन शायद तोड़ देते। लेकिन दुर्भाग्य से हुआ इसका उल्टा। उन्होंने लोकसभा में अन्ना के आंदोलन को लोकतंत्र के लिए ही खतरा बता दिया। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की टिप्पणी थी, पता नहीं यह किस कांग्रेसी रणनीतिकार की उपज वाला बयान था। भला एक अहिंसक आंदोलन लोकतंत्र के लिए खतरा कैसे हो सकता है? उन्होंने इसे संसद के लिए भी खतरा बता दिया। अन्ना समर्थकों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए राहुल के घर के बाहर जोरदार प्रदर्शन कर अपना गुस्सा जाहिर कर दिया। राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे हैं। देश का प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं। जहां राहुल का लिटमस टेस्ट होना है। ऐसे में लोगों के बीच उनके प्रति नफरत पैदा होना उनके राजनीतिक जीवन के लिए कितना शुभ है? बताने की आवश्यकता नहीं। यह पहली बार नहीं जब राहुल ने गलत सलाहकारों की वजह से गलत समय पर गलत बयान दिया है और गलत काम किए हैं। जब पूरा जनसैलाब दिल्ली में उमड़ रहा था तो उनको किसानों पर चली उनकी ही सरकार की गोली के घाव देखने पुणे भेज दिया गया। एक कांग्रेसी नेता ने तो यहां तक कहा कि उनके अपने ही सलाहकार उनकी नैया डुबाने पर तुले हैं। यह सलाहकार पूरे जन लोकपाल आंदोलन पर न केवल अन्ना और देश की जनता को बेवकूफ बना रहे हैं बल्कि राहुल को भी दुनिया की नजरों में बेवकूफ बना दिया है।

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