Thursday 11 August 2011

सोनिया की अनुपस्थिति में पार्टी को


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 11 August 2011
अनिल नरेन्द्र
आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष तिरंगा फहराती हैं पर इस साल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी देश में नहीं हैं इसलिए किसी और को उनकी अनुपस्थिति में झंडा फहराना पड़ेगा। सोनिया गांधी के बाद उम्मीद तो यह है कि राहुल गांधी ही इस बार तिरंगा फहराएंगे पर राहुल फिलहाल अमेरिका में अपनी माता के साथ हैं। आज-कल में वह जरूर आ जाएंगे। राहुल का जल्द लौटकर पार्टी काम संभालना कांग्रेस के लिए अति आवश्यक है। मालूम हो कि सर्जरी के लिए विदेश रवाना हेने से पहले सोनिया ने कांग्रेस संचालन के लिए राहुल गांधी, एके एंटनी, अहमद पटेल और जनार्दन द्विवेदी की चार सदस्यीय समिति गठन कर दी थी। यदि किसी कारणवश राहुल 15 अगस्त तक वापस नहीं लौटे तो हो सकता है कि मोती लाल वोरा जैसे पार्टी के कोई वरिष्ठ नेता तिरंगा फहराएं। वहीं एक हप्ते बाद भी सोनिया की बीमारी को लेकर रहस्य बरकरार है। 4 अगस्त को सोनिया की सर्जरी हुई थी। अभी तक आधिकारिक रूप से न तो यह बताया गया है कि किस बात की सर्जरी हुई है, कहां हुई है? हमें यह समझ नहीं आया कि इसे रहस्य क्यों रखा जा रहा है? बीमारी-आजारी किसी के वश में नहीं होती, छिपाने से अफवाहों को जन्म मिलता है। आज सोनिया गांधी की हालत को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। यह न तो पार्टी के लिए अच्छी बात है और न ही गांधी-नेहरू परिवार के लिए। इससे कहीं बेहतर होता कि सोनिया की बीमारी और उपचार, दोनों को अधिकृत तौर पर बताया जाता और प्रतिदिन उनकी सेहत का बुलेटिन जारी होता। सोनिया गांधी का कुछ भी अब प्राइवेट नहीं रहा। वह देश की जानी-मानी पब्लिक हस्ती हैं। उनकी सेहत से सारा देश प्रभावित होता है। हर कोई जानना चाहता है कि वह कब स्वस्थ होकर वापस लौटेंगी पर जब कोई ठीक से बताएगा ही नहीं तो जनता क्या करे?
सोनिया की अस्वस्थता के कारण महत्वपूर्ण फैसले ज्यादा दिन तक पार्टी टाल नहीं सकती। राहुल को जल्द लौटकर कमान संभालनी होगी। बेशक रोजमर्रा का कामकाज सुचारू रूप से चलता रहे, इसका प्रबंध तो हो गया है लेकिन पार्टी को एकजुट रखने के लिए गांधी परिवार की गैर-मौजूदगी को पार्टी ज्यादा समय तक नहीं झेल सकती है। पार्टी नेताओं की छटपटाहट को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माखन लाल फोतेदार ने यह कहते हुए बयां किया कि सोनिया गांधी के बिना पार्टी अधूरी है। लिहाजा पार्टी के तमाम नेताओं को संकेत दिया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष की अनुपस्थिति में राहुल जल्दी ही वापस आकर कामकाज संभालेंगे। कार्यकर्ताओं को यह भी बताया जा रहा है कि सोनिया स्वस्थ होकर जल्दी ही दोबारा पार्टी की कमान संभालेंगी।
राहुल गांधी, एके एंटनी, अहमद पटेल व जनार्दन द्विवेदी को यदि सोनिया गांधी ने अपनी अनुपस्थिति में पार्टी का सर्वेसर्वा अधिकृत किया है तो इसका भी मतलब है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी, दोनों के भरोसे का जो कोर सात साल पहले था वह आज भी है, इसे फिर बखूबी समझ लेना चाहिए। उसमें कोई परिवर्तन नहीं है। यह चारों पहले भी भरोसे की कोर टीम थी और आज भी। दिग्विजय सिंह या चिदम्बरम के बोलबाले का जो हल्ला था उसकी असलियत खुल गई है। ऐसे ही प्रणब मुखर्जी की जैसे पहले स्थिति थी वह आज भी है। गांधी परिवार के कोर में वही बेहद भरोसेमंद होता ह wजो कम बोलता है। लो-प्रोफाइल रखते हुए चुपचाप अपना काम करता रहता है। अहमद पटेल पिछले 34 साल से सांसद हैं पर आज तक मंत्री नहीं बनें। उन्होंने कभी भी अपनी पोजीशन का गलत इस्तेमाल नहीं किया। वह पार्टी-सरकार मामले में कितने महत्वपूर्ण हैं यह सभी जानते हैं। इसी तरह एके एंटनी हैं। 1977 में केवल 37 साल की उम्र में एंटनी पहली बार केरल के मुख्यमंत्री बने थे। तब से वह कुल मिलाकर तीन बार (1995 और 2001) में मुख्यमंत्री बन चुके हैं। जब वह मुख्यमंत्री थे तो उनकी पत्नी जो बैंक में काम करती थीं, पब्लिक बस में सफर करती थीं। इन्होंने कभी भी किसी प्रकार की मांग नहीं की। इसी तरह जनार्दन द्विवेदी इतने महत्वपूर्ण होने के बावजूद लो-प्रोफाइल रहना पसंद करते हैं। इसी तरह की कुछ खूबियां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में भी हैं। तभी तो उन्हें सोनिया ने इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। कांग्रेस पार्टी को फिलहाल रोजमर्रा के कामों को सुचारू रूप से चलाने के अलावा एक महत्वपूर्ण फैसला यूपी में टिकट बंटवारे, यूपी के नेतृत्व को लेकर करना होगा। इसके लिए क्रीनिंग कमेटी की बैठक होनी है। मोहन प्रकाश की अध्यक्षता में होने वाली बैठक तभी होगी जब राहुल गांधी वापस आएंगे। राहुल का यूपी मिशन 2012 उनकी अनुपस्थिति में अधूरा है और उनके लौटने पर ही इसमें रंग भरा जाएगा।

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