Tuesday, 23 August 2011

आखिर किस जन लोकपाल बिल के लिए जनता सड़कों पर आई है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23rd August 2011
अनिल नरेन्द्र
अन्ना हजारे को आमरण अनशन पर बैठे सात दिन हो गए हैं। अभी तक उनकी तबीयत ठीक है पर जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वह एक जोखिमभरा समय में जा रहे हैं। हालांकि अन्ना ने एक बार पहले 18 दिन का उपवास किया था पर अब वह 74 साल के हो गए हैं और उनकी सेहत को दिन प्रतिदिन अब खतरा बढ़ेगा। इसलिए उनकी मांगों का हल जल्दी निकलना चाहिए। आने वाले
3-4 दिन महत्वपूर्ण हो सकते हैं। अगर अन्ना को कुछ हो गया तो स्थिति काबू से बाहर हो सकती है। उस सूरत में कुछ भी हो सकता है। इसलिए सरकार के पास अब ज्यादा समय नहीं है। उसे बहुत जल्द हल निकालना होगा। सरकार को दरअसल समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे। एक तरफ नौवीं पास अन्ना हजारे। दूसरी तरफ सरकार के हार्वर्ड पास या हाई-फाई शिक्षा प्राप्त, दुनिया देखी मंत्रियों की फौज। मगर अन्ना के सीधे-सीधे जज्बात हार्वर्ड पास कपिल सिब्बल और पी. चिदम्बरम जैसे चतुर, आईक्यू रखने वालों की भीड़ को समझ नहीं आ रहा कि अन्ना का क्या करें? पूरा सरकारी तंत्र तर्कों की मिसाइल दाग-दाग कर हल्कान है, लेकिन 74 वर्षीय बुजुर्ग के दिल को सीधे छूने वाले, सच्चे जज्बातों पर असर भी नहीं आता। आखिर ऐसा क्या है कि एक कम पढ़े-लिखे और गंवई पृष्ठभूमि के बुजुर्ग की बात न सिर्प रेहड़ी वालों और मध्य वर्गों को समझ आती है बल्कि उनकी एक अपील पर इंजीनियरिंग, प्रबंधन या डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे कॉलेज के छात्र अन्ना के समर्थन में सड़कों पर उतर आते हैं। चिदम्बरम, सिब्बल और सलमान खुर्शीद सरीखे हार्वर्ड मार्का अभिजात्य मंत्री और कांग्रेस के `हाइली क्वालीफाइड' प्रवक्ताओं और नेताओं की फौज के तमाम तर्कों को यह बुजुर्ग एक लाइन में उड़ा देता है। सरकारी तर्कों और तमाम किलेबंदी को एक झटके में यह कहकर अन्ना उड़ा देते हैं कि जनतंत्र में संसद नहीं, जनता सर्वोच्च है। वहां बैठे हुए लोग चुनकर नहीं आए बल्कि हमने उनको चुनकर भेजा है।
शनिवार शाम मैं अपने कुछ साथियों के साथ रामलीला मैदान गया था। वहां का नजारा देखने लायक था। टीवी पर देखने और वहां मौजूद होने में फर्प पड़ता है। वैसे भी हर देशवासी का फर्ज है और खासतौर पर दिल्ली में रहने वालों का कि वह एक बार तो जरूर रामलीला मैदान जाएं या किसी अन्य तरीके से अन्ना का समर्थन करें। जब हम अन्दर घुसे ही थे तो सामने से एक विदेशी आ रहा था, साथ उसके एक वृद्ध महिला थी। मैंने उन्हें रोक लिया और पूछा कि आप यहां कैसे? कहां के हैं आप? उसने जवाब दिया कि मैं जर्मनी से हूं और हम (मैं और मेरी मां) यहां अन्ना हजारे का समर्थन करने आए हैं। जिधर भी नजर घुमाओ `मैं अन्ना हूं' की गांधी टोपियां नजर आ रही थीं। मेरा ख्याल है कि जितनी गांधी टोपियां अन्ना के आंदोलन में दिखीं उतनी तो शायद गांधी जी के सत्याग्रह में भी नहीं देखी गई होंगी। एक नौजवान लड़की से मैंने पूछा कि आप अन्ना को क्यों सपोर्ट कर रही हैं? उसका जवाब था कि वह (अन्ना की तरफ इशारा करते हुए) 74 वर्ष के हैं। आखिर वह लड़ाई किसकी लड़ रहे हैं? एक युवक हमें ऐसा मिला जिसने अपने सारे बाल कटवा लिए थे। बस बालों से सिर्प अन्ना लिखा हुआ था सिर पर। एक आदमी पोलियो का मरीज था जो कृत्रिम के सहारे अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहा था। एक महिला अपने छोटे से बच्चे को साथ लाई थी, उसके हाथ में एक छोटा-सा तिरंगा था। मैंने एक युवक से पूछा कि क्या आपको जन लोकपाल के बारे में पूरी जानकारी है? उसने कहा कि मैं इतना जानता हूं कि अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और मैं इसीलिए उन्हें समर्थन दे रहा हूं। मुझसे कई पाठकों ने पूछा है कि आखिर अन्ना का लोकपाल बिल है क्या? मैं सभी पाठकों की जानकारी के लिए टीम अन्ना द्वारा तैयार किया गया जन लोकपाल की धाराओं, बिन्दुओं को बता रहा हूं।
सबसे पहले कौन चुनेगा लोकपाल। लोकपाल का चुनाव प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट के सबसे कम उम्र के दो जज, सबसे कम उम्र के हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, भारत के नियंत्रण महालेखा परीक्षक और मुख्य चुनाव आयुक्त करेंगे। लोकपाल बिल की प्रमुख धाराएं ये हैं ः इसके तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा। यह संस्था चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी और ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा यानि किसी भी भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को दो साल के भीतर जेल भेजा जा सकता है। भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है, अपराध साबित होने पर उसे दोषी से ही वसूला जाएगा। अगर किसी नागरिक का काम समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर को जुर्माना लगाएगा, जो शिकायत करने वाले को मुआवजे के तौर पर मिलेगा। लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। लोकपाल को चुनने की प्रक्रिया में सरकार का कोई हाथ नहीं होगा। लोकपाल या लोकायुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा। सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के एंटी करप्शन विभाग को लोकपाल में ही मिला दिया जाएगा। लोकपाल के पास किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी पॉवर और सिस्टम होगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की सभी तरह से सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकपाल की ही होगी। अगर आपका राशन कार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट, आदि तय समयसीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं। उसे यह काम एक महीने के भीतर करना होगा। आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं, जैसे राशन की काला बाजारी, सड़क बनाने में क्वालिटी की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग इत्यादि।
अन्त में एक दिलचस्प रिपोर्ट। दिल्ली पुलिस का दावा है कि अन्ना का असर क्रिमिनल बिरादरी पर भी हुआ है। विश्वास करें कि जब से अन्ना का आंदोलन शुरू हुआ है दिल्ली के क्राइम रेट में गिरावट आई है। दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक सप्ताह में दिल्ली के क्राइम रेट में 35 फीसदी की कमी आई है, जिस शहर में औसतन कम से कम सात गंभीर किस्म के अपराध होते हैं वहां एक भी बलात्कार, हत्या की घटना नहीं हुई है। है न कमाल?

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