Wednesday 17 August 2011

अगस्त क्रांति ः सरकार और अन्ना की आरपार की लड़ाई


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 17 August 2011
अनिल नरेन्द्र
आजादी की वर्षगांठ पर ही एक बड़े संघर्ष की घोषणा हो गई है। आजादी की 64वीं वर्षगांठ पर एक तरफ प्रधानमंत्री और उनकी सरकार है तो दूसरी तरफ अन्ना हजारे और उनकी सिविल सोसाइटी। एक तरफ सर्वशक्तिमान सरकार है जो हर हालत में अन्ना के आंदोलन को दबाना चाहती है तो दूसरी तरफ आम जनता का समर्थन पा रहे भ्रष्टाचार समाप्त करने की लड़ाई लड़ने पर आमादा अन्ना हजारे। अपने वायदेनुसार अन्ना ने मंगलवार सुबह अपना आमरण अनशन शुरू करने का प्रयास किया पर उन्हें रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ अन्ना के खास समर्थक शांतिभूषण, अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी को भी हिरासत में ले लिया गया। इससे पहले 15 अगस्त का दिन गहगमा का रहा। सुबह स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री ने देश को प्राचीन लाल किले परिसर से संबोधित किया। अपने संबोधन में डॉ. मनमोहन सिंह ने अन्ना को सीधी चुनौती दे डाली। उन्होंने कहा कि अनशन से नहीं मिटेगा भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल लाने की लड़ाई लाल किले से और तीखी हो गई। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के दामन पर दाग को स्वीकारते हुए इस बीमारी से लड़ने में अपने संकल्पों की सफाई तो दी, लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अनशन को गलत करार दिया। राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ियां बेनकाब होने के बाद पहली बार लाल किले परिसर पर झंडा फहरा रहे पीएम ने सरकारी खरीद में घोटालों, ठेकों में बेइमानी, विवेकाधीन अधिकारों के दुरुपयोग समेत केंद्र सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के छींटों को बेबाकी से स्वीकारा। मनमोहन सिंह ने कहा कि शीर्ष पदों पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मजबूत लोकपाल विधेयक संसद में पेश किया है। इसके कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं, जो लोग इससे सहमत नहीं हैं, वे अपना नजरिया संसद को बता सकते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि इसके लिए भूख हड़ताल का सहारा नहीं लेना चाहिए।
दूसरी ओर अन्ना हजारे ने नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में एक प्रेस कांफ्रेंस कर प्रधानमंत्री, कपिल सिब्बल इत्यादि के प्रश्नों का खुलकर जवाब दिया। अन्ना ने किसी कीमत पर नहीं झुकने के अपने इरादे तो किए ही, प्रधानमंत्री की ओर से लाल किले की प्राचीर से खुद को दी गई सलाह का जवाब भी दे दिया। इसी तरह उन्होंने दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल की ओर से `जन लोकपाल' के खिलाफ दिए तर्कों को भी छलनी कर दिया। प्रधानमंत्री के तर्कों को पूरी तरह नकारते हुए अन्ना ने कहा, `मैं न तो संसद के खिलाफ हूं, न ही संसदीय प्रक्रिया के। लेकिन प्रधानमंत्री जी, आप संसद के सामने सही बिल तो रखिए।' प्रधानमंत्री पर सीधा हमला करते हुए अन्ना ने कहा, `मैं कई बार कहता था कि प्रधानमंत्री अच्छे आदमी हैं, लेकिन ये तो कपिल सिब्बल की ही भाषा बोल रहे हैं।' अपने इरादों को जाहिर करते हुए अन्ना ने कहा, `मैं मंगलवार सुबह 10 बजे जेपी पार्प पहुंच जाऊंगा। अगर पुलिस गिरफ्तार करती है तो जेल में अनशन करूंगा, छोड़ी देती है तो फिर जेपी पार्प कूच करूंगा।' अब यह आंदोलन रुकने वाला नहीं है। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के तर्कों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, `मैं 100 फीसदी तो गारंटी नहीं दे सकता, लेकिन जन लोकपाल को लागू करने से देश में 60 से 65 फीसदी भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा। इस बात की मैं लिखित गारंटी देने को तैयार हूं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं जिन्दगीभर के लिए सिब्बल के यहां पानी भरने को तैयार हूं।' इससे एक दिन पहले कपिल सिब्बल ने कहा था कि अन्ना हजारे लिखित गारंटी दें कि जन लोकपाल बिल लाने से देश में भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा, तो सरकार उनका मसौदा मानने को तैयार है। अन्ना ने यह भी साफ किया कि उनका मकसद सरकार को गिराना नहीं है। क्योंकि जो दूसरे मौजूदा विकल्प हैं, वे भी कम भ्रष्ट नहीं हैं। साथ ही यह भी साफ किया कि अगर सरकार जनता की भावना को नहीं समझ सकती तो गिर भी जाए तो गम नहीं है।
अन्ना के साथ जन समर्थन है इसका हमें एक उदाहरण सोमवार सुबह राजघाट में मिला। बिना पूर्व सूचना जब अन्ना हजारे राजघाट पहुंचे तो उनके साथ करीब 100 लोग होंगे, लेकिन धीरे-धीरे भारी बारिश के बावजूद भीड़ जुटनी शुरू हो गई और देखते ही देखते यह संख्या हजारों में पहुंच गई, जिसे जहां जगह मिली वहीं खड़ा हो अन्ना के समर्थन में नारे लगाने लगे। अन्ना हजारे नहीं आंधी है, आज के गांधी हैं, के नारे खुलेआम राजघाट में लगने लगे। राजघाट पर जिस तरह अन्ना के समर्थन में लोग सोमवार को उमड़ पड़े, उससे साफ जाहिर है कि केंद्र सरकार अन्ना पर चाहे जितने आरोप लगाए, जनता को वह डिगा नहीं सकते। 80 वर्षीय परवेज जो लाठी के सहारे चल रहे थे, कहते हैं कि हम तो अब जाने वाले हैं, समाज और देश को सही मुकाम तभी मिल सकता है, जब सरकारी तंत्र भ्रष्टाचारमुक्त होगा। उनके साथ उनका पोता भी था, जिसकी तरफ उनका इशारा था कि इसका भविष्य...। अन्ना की साफ-सुथरी छवि से लोगों को जिस तरह लगाव है, उसे इस बात से बल मिलता है कि लोग राजघाट पर अन्ना के पास पहुंचने के लिए इस तरह उतावले थे कि फरीदाबाद और गाजियाबाद से भी चल पड़े। जब अन्ना राजघाट से कांस्टीट्यूशनल क्लब गए तो सैकड़ों लोग पैदल उनके पीछे-पीछे हो लिए।
आगे क्या होगा? अन्ना ने सारे देश का फोकस भ्रष्टाचार पर तो कर ही दिया है। सरकार अन्ना को फेल करने पर तुली हुई है पर इससे अन्ना का जन समर्थन बढ़ता जा रहा है और सरकार ज्यादा बदनाम हो रही है। जिस ढंग से सरकार और उसके मंत्री अन्ना पर कीचड़ उछाल रहे हैं वह सार्वजनिक जीवन में सक्रिय और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को शोभा नहीं देता। पहले कांग्रेस प्रवक्ता और फिर केंद्र सरकार के मंत्रियों ने अन्ना हजारे को भ्रष्ट और खलनायक साबित करने के लिए जिस तरह गढ़े मुर्दे उखाड़ने का सहारा लिया उससे तो यही सिद्ध होता है कि केंद्रीय सत्ता भिन्न विचार रखने वालों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। अन्ना को अनशन करने की अनुमति न देना और फिर उन्हें गिरफ्तार करना न केवल देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है बल्कि साथ-साथ इस सरकार की बौखलाहट को भी दर्शाता है। यह अफसोस की बात है कि सरकार अन्ना को फेल करने के लिए हर तरह का हथकंडा तो अपना रही है पर उस मर्ज का इलाज करने को तैयार नहीं जो इस देश की सबसे बड़ी बीमारी बन गई है। भ्रष्टाचार का कैंसर बुरी तरह से फैल रहा है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए अपेक्षित कदम उठाने से भाग रही है। सवाल यह है कि ऐसा करके मनमोहन सिंह सरकार जनता को क्या संदेश देना चाह रही है कि वह भ्रष्टाचार को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती? संसद के अन्दर अंक-गणित सही रखकर जनता के अरमानों को कुचल देगी? अन्ना के आंदोलन को भारत के विभिन्न राजनीतिक दल ऊपरी तौर पर तो समर्थन कर रहे हैं पर अन्दरखाते कोई भी पार्टी उनके जन लोकपाल बिल का खुला समर्थन करने को तैयार नहीं। अन्ना ने जो आंधी की शुरुआत की है, लगता नहीं कि अब यह थमने वाली है। सरकार ने ऐसी पोजीशन ले ली है कि अब उसका पीछे हटना मुश्किल है। इसलिए आजादी की 64वीं वर्षगांठ में एक नई लड़ाई व संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में यह पता चलेगा कि यह आंधी क्या रूप-रंग लेती है। अन्ना का आंदोलन चले या न चले, भ्रष्टाचार से जनता आजिज आ चुकी है और अब समय आ गया है कि इस पर काबू पाने के लिए कोई ठोस रणनीति अपनाई जाए। दमनचक्र से आप रोक सकते हो, दबा नहीं सकते।
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