Thursday, 11 August 2011

अशफाक की सजा बरकरार तो अफजल की फाइल अंतिम पड़ाव पर



Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 12 August 2011
अनिल नरेन्द्र
ऐतिहासिक लाल किले पर हमला कर तीन सैनिकों की हत्या करने वाले लश्कर-ए-तोयबा के पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद आरिफ उर्प अशफाक को मिली फांसी की सजा पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगाकर सजा को बरकरार रखा। निचली अदालत तथा दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा को कायम रखते हुए जस्टिस वीएस सिरपुकर तथा जस्टिस टीएस ठाकुर की खंडपीठ ने अशफाक की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि देश में अवैध रूप से दाखिल हुआ और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश को अंजाम देने के लिए धोखाधड़ी तथा अन्य अपराध कर उसने ड्राइविंग लाइसेंस व राशन कार्ड बनवाया। हवाले के जरिये लाखों रुपये जुटाए और यहां एक स्थानीय लड़की से शादी की। इन रुपयों से उसने ओखला में कम्प्यूटर सेंटर भी खोला और अत 22 दिसम्बर 2002 को देश की सप्रभुत्ता के प्रतीक लाल किले पर हमला किया। इसलिए इस मामले में अदालत को मृत्युदंड (धारा 121, 120बी तथा 302) के अलावा और कोई उचित दंड नजर नहीं आता।
इधर बुधवार को अशफाक के फांसी की सजा बरकरार रखने का फैसला आया तो उधर केंद्रीय मंत्रालय से खबर है कि संसद पर हमले के आरोपी मोहम्मद अफजल उर्प अफजल गुरु की मौत की सजा पर दया याचिका फाइल राष्ट्रपति सचिवालय अंतत भेज दी है। गौरतलब है कि गुरु को 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह हमला लश्कर-ए-तोयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने मिलकर किया था। जांच में हर हमलावर की पहचान पत्र पर गुरु का फोन नम्बर मिला था। वे सभी हमले से पहले श्रीनगर में गुरु के सम्पर्प में थे। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में उसे मौत की सजा के लोअर व हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। अफजल गुरु को 20 अक्तूबर 2006 को ही फांसी दे जानी थी लेकिन गुरु की पत्नी ने दया याचिका दाखिल कर मामले को फंसा दिया। तभी से फांसी लटकी पड़ी हुई है। कभी दिल्ली सरकार में तो कभी गृहमंत्रालय में। सारा देश बार-बार यह मांग करता रहा है कि अफजल गुरु को फांसी पर लटकाओ पर यह यूपीए सरकार अपने वोट बैंक पॉलिटिक्स के चलते फैसला लेने से कतरा रही है। ऐसा करके न तो वह मुसलमानों से इंसाफ कर रही है और न ही देश से। अफजल को फांसी से क्या देश के मुसलमान कांग्रेस के खिलाफ हो जाएंगे? कतई नहीं। मुसलमान तो अफजल जैसे आतंकवादियों से उतना ही परेशान हैं जितने देश के दूसरे समुदाय के लोग। आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता। जब आतंकवादी पवित्र रमजान के महीने में मस्जिदों पर बम मारकर नमाज अता करते मुसलमानों को मौत के घाट उतार सकते हैं तो इनका मजहब प्यार पता चल जाता है। अगर अफजल को जल्द फांसी हो जाती है तो उससे तमाम आतंकवादी जमातों को, उनके आकाओं को एक संदेश जाएगा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति पर चलेगा यानि एक भी हमला बर्दाश्त नहीं, एक भी आतंकी बच नहीं सकता। अफजल गुरु की फाइल अंतिम पड़ाव तक पहुंच गई है। देखें राष्ट्रपति भवन से कब उस पर फांसी की सजा पर मुहर लगती है और कब अफजल फांसी पर लटकते हैं। वैसे अब तो अशफाक भी इस लाइन में शामिल हो गए हैं।
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