Thursday, 25 August 2011

अन्ना के जन लोकपाल पर भाजपा का स्टैंड क्या है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th August 2011
अनिल नरेन्द्र
देर सवेर अन्ना के जन लोकपाल बिल पर संसद में बहस जरूर होगी। अन्ना की टीम यह समझ गई है कि विभिन्न राजनैतिक दलों का समर्थन उन्हें जरूर चाहिए। इसलिए टीम अन्ना ने अब विभिन्न पार्टियों के सांसदों पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। जन लोकपाल विधेयक के समर्थन में हजारों लोगों ने सोमवार को दिल्ली सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के घरों पर पदर्शन किया। पधानमंत्री मनमोहन सिंह, मानव विकास मंत्री कपिल सिब्बल, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, भाजपा वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी व राजनाथ सिंह सभी के खिलाफ पदर्शन हुए है। भारतीय जनता पार्टी संसद में पमुख विपक्षी पार्टी है। आज तक भाजपा ने यह नहीं बताया कि वह अन्ना के जन लोकपाल बिल के साथ है या नहीं? आए दिन यह कहने से अब काम नहीं चलेगा कि सरकारी लोकपाल बिल में यह कमियां हैं। आप जन लोकपाल बिल की बात करें। उसमें आपको क्या-क्या स्वीकार है, क्या-क्या नहीं? और जो नहीं है वह क्यों नहीं है? और उसमें आप क्या संशोधन चाहेंगे? सीधे सवालों का सीधा जवाब चाहिए। अन्ना समर्थकों ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी घेराव से नहीं बख्शा। सोमवार रात करीब दस बजे उनके आवास अन्ना समर्थक पहुंचे। श्री आडवाणी ने अपने आवास पर नारे लगा रहे अन्ना समर्थकों से कहा कि हम सरकार द्वारा पेश किए गए लोकपाल बिल से खुश नहीं हैं। यह बहुत ही कमजोर तरीका है। इसके दायरे मं पीएम नहीं आते। इस समय भ्रष्टाचार चरम पर है। इस सरकार के इस विधेयक के पक्ष में कतई समर्थन नहीं देंगे। उन्होंने निचली अदालतों को लोकपाल के दायरे में शामिल करने के मामले में कहा कि उनकी पार्टी इस पर विचार करने के लिए तैयार है। आडवाणी ने कहा कि हम केवल इतना चाहते हैं कि एक मजबूत और प्रभावी लोकपाल अस्तित्व में आए।
भाजपा के राज्यसभा के नेता विपक्ष अरुण जेटली ने एक साक्षात्कार में इन मुद्दों पर अपने विचार दिए। सवाल क्या आप सिविल सोसाइटी के जन लोकपाल बिल से सहमत हैं? क्या पधानमंत्री और न्यायपालिका लोकपाल की जांच के दायरे में आने चाहिए? जवाब देखिए.... लोकपाल की नियुक्ति में सरकारी दखल और प्रभाव न हो, नियुक्ति के लिए बकायदा एक सशक्त और वैधानिक तत्र हो। अच्छे और प्रभावी लोकपाल के लिए उसकी नियुक्ति निष्पक्ष तरीके से हो, यह पहली शर्त है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को छोड़कर पधानमंत्री लोकपाल दायरे में हों। यह हम पहले ही कह चुके हैं। जहां तक सवाल है न्याय पालिका का तो उसके लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग होना चाहिए, जिसके जरिए न्यायिक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का तंत्र बने। हमने जो बातें कही हैं वह संस्थागत फेसगार्ड हैं। अन्ना के अनशन को कई दिन हो चुके हैं और भाजपा ने अभी तक जन लोकपाल बिल पर अपने पत्ते नहीं खोले? कहीं आप भी अनिर्णय की स्थिति में तो नहीं? जवाब कतई नहीं। लोकपाल के मसले पर जो पमुख बिंदु हैं भाजपा उन पर अपनी राय सामने रख चुकी है। सर्वदलीय बैठक के बाद हमारे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इस बारे में खुलकर राय रखी थी।
भाजपा के दो सांसदों ने खुलकर जन लोकपाल बिल का समर्थन किया है। एक हैं वरुण गांधी और दूसरे हैं राम जेठमलानी। वरुण ने कहा है कि वह अन्ना का बिल बतौर प्राइवेट बिल लोकसभा में पेश करेंगे। राज्यसभा में भाजपा सांसद राम जेठमलानी ने भी टीम अन्ना के बिल का समर्थन किया है। उनका कहना था कि अन्ना के बिल को पूरी तरह नजरअन्दाज करना राजनीतिज्ञों के लिए अब मुमकिन नहीं है। जेठमलानी जन लोकपाल के दो प्रमुख पावधानों से पूरी तरह सहमत हैं। इनमें पधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना और न्यायपालिका को शामिल करना प्रमुख है। उल्लेखनीय है कि पीएम को लोकपाल में लाने की मांग तो भाजपा भी कर रही है लेकिन जजों के लिए वह अलग संस्था बनाए जाने की हिमायती है। मगर जेठमलानी का मानना है कि संविधान को पूरी तरह लागू करना और जजों की नियुक्ति जैसे मुद्दों पर शिकायतें दूर करने का सबसे कारगर तरीका यही है कि उन्हें भी लोकपाल के दायरे में ही रखा जाए। समय आ गया है कि टीम अन्ना और जनता चाहती है कि भाजपा हर बिंदु पर अपना स्टैंड स्पष्ट करे, संसद के बाहर या संसद में।
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