Saturday, 27 August 2011

रणनीति के तहत फंसाया गया है विभिन्न लोकपालों को



Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th August 2011
अनिल नरेन्द्र
मनमोहन सरकार अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रही। कहने को तो उसने अन्ना हजारे की यह शर्त मान ली है कि वह शुक्रवार को जन लोकपाल बिल को संसद में चर्चा के लिए रख देगी पर जो बात हमें लग रही है कि सरकार अकेले जन लोकपाल बिल पर चर्चा नहीं करेगी। उसने अरुणा राय द्वारा तैयार किया गया लोकपाल बिल व कुछ अन्य बिल भी साथ-साथ रखे जाएंगे। अन्ना तीन मुद्दों पर चर्चा करने पर विशेष जोर दे रहे हैं। अन्ना ने अपने अनशन के 10वें दिन रामलीला मैदान में अपने समर्थकों से कहा कि अगर जन लोकपाल के तीन मुद्दों पर सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन खत्म कर देंगे। लेकिन शेष मुद्दों पर धरना जारी रखेंगे। अन्ना ने कहा कि अगर सरकार कल (शुक्रवार) संसद में चर्चा पर नहीं मानी तो वह अनशन जारी रखेंगे और मरते दम तक करते रहेंगे। अन्ना ने कहा कि वह जन लोकपाल के तीन मुद्दों पर यानि सरकारी दफ्तरों में सिटीजन चार्टर होने, राज्यों में लोकायुक्त के गठन और नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी नौकरशाहों को लोकपाल के दायरे में लाने पर संसद में चर्चा चाहते हैं। अन्ना की यह मांग सरकार ने मान ली है और संसद में चर्चा कराने को तैयार हैं पर उसने यह नहीं कहा कि वह जन लोकपाल बिल को मान रही है। वह केवल संसद में चर्चा के लिए तैयार है। सरकार ने यह भी साफ किया कि बाकी के मसौदों पर भी चर्चा होगी। सरकार अन्ना हजारे को केडिट से वंचित रखने के लिए यह चाल चली है ताकि सरकार यह कहकर अपनी नाक ऊंची कर ले कि उसने सिर्प अन्ना को ही नहीं दूसरे सिविल सोसाइटी के लोगों को भी तरजीह दी है।

एक तरफ संसद में चर्चा होगी तो दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस को जरूरत पड़ने पर अन्ना को जबरन उठाने की योजना भी बन चुकी है। अन्ना की बिगड़ती सेहत से चिंतित सरकार ने दिल्ली पुलिस को अन्ना को उठाने का आदेश दे दिया है। टीम अन्ना पर कार्रवाई करने के लिए पुलिस ने ग्राउंड तैयार कर लिया है। पुलिस ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसके अनुसार तीन शर्तों का रामलीला ग्राउंड में उल्लंघन किया गया है। जिन 22 शर्तों पर टीम अन्ना और पुलिस में सहमति बनी थी उनमें से तीन का टीम अन्ना ने पालन नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि रात 10 बजे के बाद लाउड स्पीकर का इस्तेमाल कई बार किया गया है। मंच से भड़काऊ भाषण दिए गए हैं। तीसरी शर्त के बारे में कहा गया है कि अन्ना का सरकारी डाक्टरों से चैकअप करने से मना करना है।
रमजान के महीने में बारिश और धूप की सख्ती झेलते हुए अन्ना हजारे के समर्थन में जनता लगातार रामलीला मैदान पहुंच रही है। भूखे-प्यासे होने के बावजूद 18 साल के असद रामलीला मैदान में दिनभर लोगों की प्यास बुझाता रहा। असद की तरह कई अन्य मुस्लिम युवा वर्ग भी लोगों की मदद में जुटे हैं। इन लोगों पर दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम की सलाह पर कोई खास असर नहीं दिखाई दिया। बुखारी ने एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक से बातचीत में कहा है कि अन्ना के आंदोलन में `भारत-माता की जय' और वन्दे मातरम् जैसे नारे लग रहे हैं। यह इस्लाम के खिलाफ हैं क्योंकि यह मजहब किसी देश या भूमि की इबादत की इजाजत नहीं देता। ऐसे में मुसलमानों को इस आंदोलन से दूर रहना चाहिए। इस बीच मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अली अहमद ने कहा कि बुखारी को भूलना नहीं चाहिए कि देश की आजादी के लिए मुसलमानों ने भी कुर्बानियां दी हैं। वह शरीयत का हवाला देकर मुसलमानों को गुमराह नहीं कर सकते। एक मुसलमान का ईमान ही उसका सब कुछ होता है। मेवात के 14 लाख मुसलमान अन्ना के साथ हैं। इधर मौलाना कारिक ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को जब हमारा देश आजाद हुआ था उस समय भी रमजान का महीना था। आज भी वही स्थिति है। अल्लाह ने चाहा तो बयानबाजी करने वाले मुंह की खाएंगे। दिल्ली की ऐतिहासिक फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने बुखारी का नाम लिए बिना उनके बयान से असहमति जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन पूरे देश का मामला है और मुसलमान भी इसी देश का हिस्सा हैं। ऐसे में मुसलमानों का इस आंदोलन में शामिल होना वाजिब है। देश की एक प्रमुख इस्लामी संस्था जमात-ए-इस्लामी हिन्द ने भी इस बात से असहमति जताई है कि आंदोलन में मुसलमानों को शामिल नहीं होना चाहिए। संस्था के सचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि हम बुखारी साहब के बयान पर कुछ नहीं कहेंगे पर हम मुसलमानों से यह अपील नहीं कर सकते कि इस आंदोलन में वह शामिल न हों।

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