Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 6th August 2011
अनिल नरेन्द्र
लोकतंत्र में जब जनता द्वारा चुनी हुई सरकार बेशर्म हो जाए जिसे न तो किसी मान-मर्यादा की फिक्र हो, न परम्पराओं की और न ही प्रोप्राइटीज ऑफ गवर्नंस की तो यही हाल होता है जो आज भारत में हो रहा है। इस सरकार को न तो जनता की परवाह है और न ही सत्ता से हटने की। सत्ता में बने रहने के लिए उसे केवल संसद के लोकसभा में अपना अंक गणित सही रखना होता है और पिछले दो दिनों की कार्यवाही ने यह साबित कर दिया है कि सत्तारूढ़ दल के मैनेजर इस काम में माहिर हैं। विपक्षी दलों को कैसे पटाकर रखना है एक बार फिर उन्होंने साबित कर दिया है। रही बेचारी मरती, पिसती जनता तो वह अब अगले चुनाव तक पूरी तरह अनाथ है। महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे पर, जो 95 प्रतिशत जनता को सीधा प्रभावित करता है इस सरकार और संसद का क्या रवैया है? संसद में महंगाई को लेकर हुई चर्चा को देखते हुए इस नतीजे पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस तरह की कथित गम्भीर चर्चा में देश को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। यदि संसद के दोनों सदनों में भाषण देने से महंगाई काबू में आ सकती होती तो ऐसा न जाने कब से हो जाता। महंगाई पर चर्चा लगभग संसद के हर सत्र में हुई है पर नतीजा वही सिफर का सिफर रहा है, उल्टा महंगाई बढ़ती गई। सरकार के पास हर बार कोई न कोई तर्प जरूर पैदा हो जाता है जिससे वह अपनी कमियों को छिपा सके। कभी कमजोर मानसून को कारण बताया जाता है तो कभी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थिति को तो कभी अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतों को। यह सरकार तो जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हर चर्चा के बाद नई तिथि की घोषणा कर देती है। अब इसमें कोई सन्देह नहीं बचा कि केंद्र सरकार उन कारणों को जानबूझ कर अनदेखी करती है जो वास्तव में महंगाई के कारण है। जब उन्हें मानेंगे ही नहीं तो सुधार कैसे करेंगे? हमारे सांसदों का हाल तो यह है कि महंगाई जैसे मुद्दे पर वह इतना हल्का-फुल्का व्यवहार करते हैं। संसद में गतिरोध तोड़ने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच हुई सियासी डील का असर सदन में देखने को मिलता है। महंगाई पर सरकार की ताबड़तोड़ खिंचाई करना तो दूर रहा विपक्षी सांसदों ने सदन में आना भी जरूरी नहीं समझा। दो रोज पहले तक महंगाई को लेकर सरकार पर निशाना साधने में जुटे सांसदों ने चर्चा के दौरान नदारद होकर इस मुद्दे पर अपनी गम्भीरता से आम आदमी को एक बार फिर रूबरू कर दिया। महंगाई पर आंकड़ों का जाल बुनकर सदन के रिकार्ड में अपना भाषण दर्ज करा रहे वक्ताओं को छोड़कर बाकी जो सांसद मौजूद भी थे, उनमें से बहुतेरों ने तो आपसी गपशप शुरू कर रखी थी। एक सपा सांसद शैलेन्द्र कुमार ने तो सदन में इस नजारे पर निशाना भी लगा दिया। उन्होंने सदन में सांसदों की मौजूदगी घटने पर निराशा जताई और साथ ही कह दिया कि अहम मुद्दे पर चर्चा में ब्रेक देकर सरकार ने महंगाई पर अपनी खोखली गम्भीरता का इजहार कर दिया है। सांसदों की बात तो छोड़िए विपक्षी पार्टियों के बड़े नेता तक पूरे समय सदन में नहीं रहे। जब महंगाई के मूल कारणों से ही मुंह चुराया जा रहा हो तो फिर उस पर लगाम की उम्मीद कैसे की जा सकती है। वाम से कम न तो इस संप्रग सरकार से और न ही इस प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी से। अब तो इस सरकार को लाइसेंस भी मिल गया है कि वह मनमानी करे।Tags: Anil Narendra, BJP, Congress, Daily Pratap, Parliament, Price Rise, Vir Arjun
No comments:
Post a Comment