Tuesday, 31 December 2013

और अब राहत शिविरों पर चलाए बुलडोजर

मुजफ्फरनगर दंगे और उसके बाद उत्पन्न हुई स्थिति ने उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार के नाक में दम कर रखा है। हमें नहीं लगता कि अखिलेश सरकार इस मौजूदा स्थिति से निपटने में सक्षम दिखाई दे रही है। इस सरकार का न तो अपने कार्यकर्ताओं पर कोई कंट्रोल है, न मंत्रियों पर और न ही अधिकारियों पर। अराजकता की स्थिति बनी हुई है। अगर हम बात करें मुजफ्फरनगर और शामली के दंगा राहत पीड़ित शिविरों में बदइंतजामी का तो इन शिविरों में बच्चों की ठंड से मौत हो रही है, उनके टैंटों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं। इन शिविरों में ठंड से 34 बच्चों की मौत हो चुकी है लेकिन यूपी के प्रिंसिपल सैकेटरी का कहना है कि ठंड से कोई कभी नहीं मरता। अगर ऐसा होता तो साइबेरिया में कोई जिन्दा नहीं बचता, जो दुनिया का सबसे ठंडा इलाका है। गृह विभाग के प्रिंसिपल सैकेटरी एके गुप्ता गुरुवार को राहत शिविरों में बच्चों की मौत संबंधी समिति की रिपोर्ट की जानकारी दे रहे थे। उन्होंने कहा कि ठंड से कोई नहीं मरता। रिपोर्ट में कुछ मौतों की वजह फूड प्वाइजिनिंग और निमोनिया बताई गई है। निमोनिया गुप्ता साहब ठंड से होता है। इससे पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कैम्पों में कोई पीड़ित नहीं रह रहा है, जो हैं वह भाजपा और कांग्रेस के लोग हैं। वह साजिश के तहत वहां टिके हुए हैं। हालांकि प्रदेश के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि राहत शिविरों में अब भी 4783 लोग रह रहे हैं। बुढाना में लोई स्थित राहत शिविर में देशभर में प्रदेश सरकार की हो रही बदनामी के बीच प्रशासन ने शुक्रवार को यहां रह रहे लोगों पर खासा दबाव बनाया। इस पर यहां रहे 17 परिवारों के करीब 100 लोगों ने अपने टैंट हटा लिए। टैंट लगे स्थानों को बुलडोजरों से समतल कर दिया गया। इस दौरान पीड़ित परिवारों ने विरोध भी किया, लेकिन प्रशासन के कड़े रुख के आगे वह सब बेअसर रहा। शाहपुर कस्बे के पास तम्बुओं में रह रहे 10 परिवारों ने भी तम्बू उखाड़ चले गए। इन सभी को राहत राशि मिल चुकी है। मुजफ्फरनगर व शामली के राहत शिविरों में रह रहे लोगों को प्रशासन ने साफ कह दिया है कि दोहरे मुआवजे की मांग स्वीकार्य नहीं है। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने साफ कहा कि उन्हें रकम या जमीन नहीं दी जाएगी। उन्हें वापस बसाने में सरकार जो मदद कर सकती है वह करेगी। जो लोग अभी शिविर में रहना चाहते हैं उन्हें सभी मूलभूत सुविधाएं पहले की तरह ही मुहैया कराई जाएंगी। मुख्य सचिव ने राहत शिविरों में रह रहे लोगों को उनके घर वापस बसाने के लिए तैयार कार्ययोजना पर बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता करने के बाद मीडिया में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि लोग रुपए या जमीन मिलने की उम्मीद में न रहें। जमीन नहीं मिल पाएगी। मुख्य सचिव ने कहा कि संबंधित जिलों के अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह लोगों को वापस घर जाने के लिए प्रेरित करें और उन्हें विश्वास दिलाएं कि उनकी सुरक्षा व बेहतरी के लिए सरकार प्रयासरत है। उन्होंने बताया कि कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके मुखिया पांच लाख रुपए का मुआवजा लेने के बाद शिविर से चले गए हैं लेकिन उनके पुत्र शिविर को यह कहते हुए छोड़ने से इंकार कर रहे हैं कि वह वयस्क और अपने परिवार के मुखिया हैं, इसलिए उन्हें भी मुआवजा राशि दी जाए। इस दौरान पाया गया कि ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें भड़का दिया गया है कि शिविर वन और उद्यान विभाग की जमीन पर बने हैं और अगर वह शिविरों में बने रहेंगे तो वहां की जमीन सरकार उनके नाम पर आवंटित कर देगी।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल का बयान ः हम तो डूबेंगे साथ कांग्रेस को भी डुबा देंगे

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने लगता है कि नए अवतार के रूप में जन्म लिया है। राहुल गांधी के नए अवतार को न तो हम समझ सके हैं और न ही पार्टी के कई वरिष्ठ नेता। वह कब क्या कह दें, कर दें इससे पार्टी में हड़कम्प मचा हुआ है। राहुल गांधी की भ्रष्टाचार के दाग से खराब हो चुकी कांग्रेस की छवि को निखारने की इसे कोशिश कहा जाए या फिर जनता की नब्ज पहचानने की रणनीति समझी जाए। सजायाफ्ता सांसदों व विधायकों को बचाने के लिए केंद्र के एक अध्यादेश को बकवास व फाड़ने लायक बताकर सरकार का फैसला बदलवा चुके राहुल ने इस बार महाराष्ट्र सरकार को हिलाकर रख दिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की मौजूदगी में शुक्रवार को राहुल ने कहा कि आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट खारिज करने के फैसले पर राज्य सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। कांग्रेस शासित एक दर्जन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद राहुल गांधी ने यह टिप्पणी की। रिपोर्ट में कई पूर्व मुख्यमंत्री व अन्य फंसे हुए हैं। महाराष्ट्र सरकार ने चव्हाण की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में इसे सर्वसम्मति से रिपोर्ट को खारिज किया था। राहुल की टिप्पणी के बाद असहज महसूस कर रहे चव्हाण ने कहा कि वह अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों से इस बारे में बात करेंगे। क्या राहुल को यह समझ नहीं आ रहा कि उनके इस स्टैंड से इसका असर पार्टी के बड़े नेता सुशील कुमार शिंदे और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर  भी पड़ सकता है? यह दोनों महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। दोनों नेताओं पर रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणियां हैं। आदर्श जांच समिति की रिपोर्ट में दोनों नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है। शुक्रवार को अपने सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक राहुल ने खुद अकेले ली जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दिल्ली में होने के बावजूद बैठक से दूर रहीं। आदर्श जांच समिति की रिपोर्ट को महाराष्ट्र सरकार के खारिज करने के फैसले पर ऐतराज जताया, साथ दो टूक कहा कि आदर्श घोटाले में कांग्रेस की चव्हाण सरकार आरोपी नेताओं को नहीं बचा सकती। राहुल के गुस्से और तल्ख अंदाज से मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ पार्टी नेताओं में हड़कम्प मच गया है। पार्टी के अन्दर दो तरह की सोच चल रही है। एक सोच यह है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष एक ओर लोकपाल विधेयक को अपनी उपलब्धि बताना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर विपक्ष उस पर दोषियों को बचाने का आरोप मढ़े, यह कैसे चलेगा? राहुल गांधी की मंशा को ध्यान में रखते हुए अगर आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट नामंजूर करने का ठीकरा अगर मुख्यमंत्री चव्हाण पर फूटा तो उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। अगर जांच रिपोर्ट के अनुसार कार्रवाई शुरू हुई तो महाराष्ट्र से दिल्ली तक कांग्रेस को इसकी आंच में झुलसना पड़ेगा। महाराष्ट्र के मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की मुसीबतें और कांग्रेस की मुसीबतें कई गुना बढ़  जाएंगी। राहुल के दिल्ली में दिखाए तेवरों के तुरन्त  बाद महाराष्ट्र भाजपा के महासचिव विनोद तावड़े ने चव्हाण के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी। कांग्रेस के अन्दर एक वर्ग ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि राहुल को हटाओ, कांग्रेस  बचाओ। राहुल गांधी के आम आदमी पार्टी के समर्थन के हुक्मनामें को तो खुली चुनौती दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने दी है जिससे प्रदेश के नेता क्षत्रप दबे स्वर में राहुल गांधी के विरुद्ध सक्रिय हुए हैं। कांग्रेस के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने रहस्योद्घाटन किया कि पार्टी संगठन और सरकार में तीन समांतर सत्ता केंद्र (अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह) के होने से विभ्रम अंतर्विरोध की जटिल समस्या पैदा हो गई है। युवराज राहुल गांधी के अराजनीतिक नवरत्नों के निर्णय पार्टी की जड़ों में मट्ठे का काम कर रहे हैं। यद्यपि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सूत्रों ने राहुल गांधी को हटाने के खुले पत्र के समाचार का प्रतिवाद किया है लेकिन भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार हाल ही में सम्पन्न राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभाओं में कांग्रेस की अपमानजनक हार के लिए पार्टी कॉडर राहुल गांधी को ही दोषी ठहरा रहे हैं। यह वर्ग कह रहा है कि (फिलहाल दबे लफ्जों में) राहुल गांधी हटाओ, कांग्रेस बचाओ। अगर राहुल एण्ड पार्टी का रवैया ऐसा ही रहा तो यह कांग्रेस पार्टी को ले डूबेंगे।

Sunday, 29 December 2013

करारी चुनावी मात से क्या सीखी कांग्रेस पार्टी?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ताजा भाषणों से तो यह साफ लगता है कि कांग्रेस अब भी अपनी करारी चुनावी हार के असली कारणों को स्वीकार करने को या तो कतई तैयार नहीं है या फिर जानबूझकर इन कारणों को स्वीकार नहीं करना चाहती। दरअसल इस देश की राजनीति का सियासी स्वरूप ही पूरी तरह बदल गया है जिसकी कल्पना कभी महात्मा गांधी ने नहीं की थी। अब पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे कमाने का चलन आम हो गया है। कांग्रेसी रणनीतिकार यह मानकर चल रहे थे कि भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाले अब कोई मुद्दा नहीं रहे। वोट बैंक की राजनीति करके समाज को बांटकर सत्ता में  बना रहना अब स्वीकार्य नहीं। ऐसे में जब आम आदमी पार्टी के नेतागण राजनीति को एक बार फिर गांधी युग में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं तो उसे अव्यावहारिक प्रयास बताकर परंपरागत दलों के अनेक नेता टीवी चैनलों पर बैठकर आप का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आए। अनेक चुनावी सर्वेक्षणों और चौक-चौराहों पर आमजन की बातों से यह साफ है कि हाल के वर्षों के अनेक घोटालों व उन पर केंद्र सरकार के रुख के कारण आम जनता में कांग्रेस के प्रति गुस्सा पैदा हुआ। इन घोटालों को महंगाई से सीधा जोड़कर जनता ने अपना इरादा साफ कर दिया है। दुःखद यह है कि घोटालेबाजों के खिलाफ अदालती फैसलों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। महंगाई जन-असंतोष का दूसरा बड़ा कारण है जो मुख्यत सरकारी भ्रष्टाचार की ही उपज है। जरूरत तो इस बात की थी कि कांग्रेस नेतृत्व यह स्वीकार करता कि भ्रष्टाचार और घोटालों की वजह से उसको हार का मुंह देखना पड़ा पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में कहती हैं कि पार्टी की पराजय के लिए अनुशासन व एकता का अभाव भी एक कारण रहा। उन्होंने कुछ अन्य कारण भी गिनाए पर भ्रष्टाचार और महंगाई का जिक्र तक नहीं किया। याद रहे कि अनेक निष्पक्ष विश्लेषकों के अनुसार हाल के वर्षों में केंद्र सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों व महंगाई रोकने में सरकारी विफलता के कारण ही कांग्रेस हारी है। अगर कांग्रेस यह स्वीकार कर लेती कि भ्रष्टाचार व महंगाई के कारण ही उसकी हार हुई है तो उसे इन समस्याओं पर काबू पाने का भरोसा भी देना पड़ता। इस दिशा में प्रभावी कदम भी उठाने पड़ते। प्रधानमंत्री कहते हैं कि सीबीआई, सीवीसी जैसी जांच एजेंसियों की वजह से नौकरशाह नीतिगत फैसले नहीं कर पा रहे हैं इसका विपरीत असर देश पर पड़ा। उन्होंने यह नहीं  बताया कि किस नीतिगत फैसले को लेकर सीबीआई या सीवीसी ने अफसरों को परेशान किया, किस फैसले से देश का विकास हो रहा था जिस काम में जांच एजेंसियों ने रोड़े अटका दिए? क्या देश ने यह नहीं देखा कि बड़े पैमाने पर कोयला आवंटन से पहले केंद्र सरकार द्वारा जानबूझकर कोई पारदर्शी फैसला नहीं किया था। इसके परिणामस्वरूप बड़े घोटाले सामने आए। सुप्रीम कोर्ट को मजबूर होकर सौ से अधिक आवंटनों को रद्द करना पड़ा। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में जवाबदेही का वही हाल है जैसे पहले था। इक्का-दुक्का प्रदेशाध्यक्षों को बदलने से कोई फर्प आने वाला नहीं। जब तक कांग्रेस गंभीरता से आत्ममंथन नहीं करती तब तक उसकी भविष्य में भी हालत सुधरने वाले नहीं। राहुल गांधी कमान संभालने का प्रयास कर रहे हैं पर फायदे से ज्यादा नुकसानदेह बयान दे रहे हैं। अपनी ही सरकार, मुख्यमंत्रियों को कठघरे में खड़ा करने से शायद ही पार्टी को कोई सियासी लाभ हो।

-अनिल नरेन्द्र

नरेंद्र मोदी पर 2002 दंगों के सारे आरोप अदालत ने खारिज किए

गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी व अन्य 63 लोगों के खिलाफ 2002 के गुजरात दंगा मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को गुजरात की एक अदालत ने सही ठहराकर न केवल मोदी को ही भाजपा को भी एक बड़ी राहत प्रदान की है। दंगों के बाद से ही मोदी के खिलाफ गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार का मुद्दा जीवित रखकर कांग्रेस ने उन्हें एक दिन चैन की नींद नहीं सोने दिया। हम नरेंद्र मोदी का दुख समझ सकते हैं। देश की आजादी के बाद मोदी एक मात्र ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जिनको एक मामले में ही पहले गुजरात पुलिस ने, फिर सीबीआई ने और उसके बाद एसआईटी ने और न्यायालय मित्र (एमाइशंसक्यूटी) ने क्लीन चिट दी। फिर भी कांग्रेस के कुछ मित्र कथाकथित स्पूडो सेक्यूलरिस्ट, कुछ मुस्लिम नेता इस मामले को लेकर उनकी छवि को खराब करने में जुटे हुए हैं। एक दशक तक मोदी के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पार्टी राजनीतिक लड़ाई तो लड़ नहीं सकी, इसलिए सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों के सहारे परोक्ष तरीके से लड़ाई लड़ रही है। दंगों के बाद खुद गुजरात की जनता ने दो बार लगातार चुनाव करके यह संदेश दे दिया कि नरेंद्र मोदी का दंगों में कोई हाथ नहीं था। फैसले के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में दिल की पीड़ा को पहली बार बयान किया है। दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार में 68 लोगों की मौत की उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच पैनल से मिली क्लीन चिट पर मजिस्ट्रेट की अदालत से मुहर लगने के अगले दिन मोदी ने कहा कि वह इस फैसले को निजी जीत या हार के रूप में नहीं देखते। उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात यूं कही ः मैं राष्ट्र के साथ अपने अंदरूनी विचारों और भावनाओं को साझा करना महत्वपूर्ण समझता हूं। उसके बाद उन्होंने राज्य में जानमाल की भारी तबाही मचाने वाले 2001 के विनाशकारी भूकंप की चर्चा के बाद कहा कि मैं दुख, उदासी, कष्ट, पीड़ा, वंदना, संताप जैसे शब्द उस पूर्ण खोखलेपन की व्याख्या नहीं कर सकते जो किसी ने इतनी बड़ी अमानवीय त्रासदी देखकर महसूस की। मोदी ने कहा कि एक तरफ भूकंप पीड़ितों का दर्द था तो दूसरी तरफ दंगा प्रभावितों की पीड़ा। उन्होंने कहा कि इस भयंकर बवंडर का निर्भीकता से मुकाबला करते हुए मुझे ईश्वर ने जो भी ताकत दी उसे पूरी तरह शांति, न्याय और पुनर्वास पर लगाना था तथा मुझे व्यक्तिगत दर्द और संताप हुआ था, उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ा था। मैं निजी स्तर पर जिन पीड़ाजनक स्थितियों से गुजरा उसे मैं पहली बार इन शब्दों में साझा कर रहा हूं। गुरुवार शाम 4 बजे मजिस्ट्रेट बीजे गगात्रा ने फैसला सुनाते हुए, जाकिया की सारी दलीलें खारिज करते हुए एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को वाजिब ठहराया। 2002 में गुलबर्ग सोसायटी दंगे में जाकिया के पति एहसान जाफरी को जिंदा जला दिया गया था। जाकिया का आरोप है कि मोदी ने अपने मंत्रियों, अफसरों और पुलिस वालों के साथ मिलकर दंगों को अंजाम दिया था। अपनी याचिका में जाकिया ने जो दलीलें दीं वह कुछ इस प्रकार थीं ः गोधरा कांड के बाद मोदी ने अफसरों को निर्देश दिया था कि पुलिस हिन्दुओं को गुस्सा निकालने से न रोके। मोदी ने भड़काऊ भाषण दिए। इससे माहौल और खराब हुआ। कई मंत्रियों ने पुलिस के कामकाज में दखल दिया। मोदी ने संघ के लोगों के साथ बैठकें कीं। गोधरा कांड में कारसेवकों के शव अहमदाबाद लाकर माहौल बिगाड़ा। दूसरी ओर एसआईटी के सफल तर्पöजांच में कोई सबूत नहीं मिला, जिससे लगे कि मोदी ने दंगाइयों को न रोकने संबंधी हिदायत पुलिस को दी। मंत्रियों के दंगाइयों के सम्पर्प में रहने और पुलिस के कामकाज में दखल देने के भी कोई सबूत नहीं मिले। मुख्यमंत्री की संघ के लोगों से गोधरा में मुलाकात हुई, इसका न तो कोई सबूत है और न ही गवाह मिला। मजिस्ट्रेट महोदय ने इन आधारों को क्लीन चिट बनाया। नरेंद्र मोदी ने इस मामले में जानबूझकर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, ऐसा साबित नहीं होता। मोदी ने दोनों समुदाय से आक्रामक न होने के लिए अपील की थी। इसे टीवी पर भी प्रसारित किया गया था। यह भी साबित होता है कि मोदी ने कानून व्यवस्था बनाए रखने और शांति के लिए जरूरी कदम उठाए थे। संजीव भट्ट व श्री कुमार के बयान भरोसेमंद नहीं दिख रहे। दस्तावेज, बयानों को सही नहीं ठहराया जा सकता। हमारी राय में तो मजिस्ट्रेट महोदय ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में मोदी के खिलाफ सभी दलीलों को तर्कों से खारिज कर दिया है और अब  मोदी के खिलाफ कोई केस नहीं है पर हमें संदेह है कि इससे भी जाकिया व कांग्रेस और यह स्पूडो सेक्यूलरिस्ट व कुछ मुस्लिम नेता चुप बैठेंगे। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी की प्रतिक्रिया से यह साफ हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस आदेश को चुनौती देने की जाकिया हकदार हैं। भाजपा या मोदी को इस फैसले को न्यायिक तथ्यों पर आखिरी शब्द मानना गलत होगा और पूरी तरह से दिग्भ्रमित करने वाला है। मोदी को ज्यादा से ज्यादा अस्थायी राहत मिली है। मोदी के खिलाफ कांग्रेस 2014 लोकसभा चुनाव तक आग यहूं ही उगलती रहेगी पर जैसा अरुण जेटली ने कहाöफर्जी बयानबाजी सबूत नहीं बन सकते हैं। असत्य और सत्य के बीच एक बुनियादी फर्प यह होता है कि सत्य के साथ सभी तथ्य एक साथ रहते हैं जबकि असत्य बिखर जाता है।

Saturday, 28 December 2013

कांग्रेस विरोधी लहर पर टिकी हैं भाजपा की उम्मीदें

चार राज्यों में जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी अब लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विरोधी लहर का पूरा फायदा उठाने की कवायद में जुट गई है। भाजपा की कोशिश होगी कि कांग्रेस विरोधी लहर में कोई विभाजन न हो। `मोदी फॉर पीएम' के नारे के साथ भाजपा ने अपने मिशन 2014 का रोड मैप तैयार कर लिया है। आम चुनाव में अब केवल चार महीने बाकी हैं और पार्टी ने 60 दिन तैयारी के  लिए और 60 दिन प्रचार के लिए तय किए हैं। नरेन्द्र मोदी ने पार्टी के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय पदाधिकारियों और प्रदेशाध्यक्षों को जीत के लिए फॉर्मूला बताया। कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 206 और भाजपा को 116 सीटें मिली थीं। कांग्रेस जिन सीटों पर जीती थी, उन पर अधिकतर भाजपा नम्बर-दो थी। ऐसी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस में मतों का अन्तर सिर्प 89 लाख था। बीते पांच साल में ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में 12 लाख नए मतदाता जुड़े हैं। केंद्र में कांग्रेस के 10 साल के शासन के खिलाफ भाजपा चार्जशीट लाएगी। पार्टी ने खुद के दम पर 272 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। देशभर की 400 लोकसभा सीटों  पर पार्टी अपने उम्मीदवार चुनने से पहले सभाएं करेगी। पार्टी ने जनसंघ की परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए देशभर में 10 करोड़ घरों तक जाकर एक वोट और एक नोट (10 रुपए से लेकर एक हजार रुपए) के जरिये चुनावी चन्दा जमा करने का फैसला भी किया है। दिल्ली में हुई इस महत्वपूर्ण बैठक के बाद भाजपा महासचिव अनंत कुमार ने कहा कि यह अभियान वैसा ही होगा जैसा 1977 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलाया गया था। तब केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का नारा देते हुए अभियान चला था। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) ने जनता से ही चन्दा मांगा था। इस तरह उसने आम वोटरों को अपने अभियान का हिस्सा बनाने की कोशिश की। भाजपा का `वन वोट वन नोट' अभियान भी इसी तर्ज पर चलाया जाएगा। इसे मोदी की बनाई रणनीति माना जा रहा है। ध्यान रहे कि कांग्रेस की पिछली सरकार लगभग 12 करोड़ मतदाताओं के समर्थन से बनी थी जबकि भाजपा लगभग आठ करोड़ मतों के साथ 116 के ही आंकड़े पर रुक गई थी। गौरतलब है कि जिन सीटों पर भाजपा कांग्रेस के बाद नम्बर दो पर रही थी उन सीटों पर भाजपा को लगभग 90 लाख कम वोट मिले थे। 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद करने वाली भाजपा ने युवा मतदाताओं खासकर पहली बार अपने मताधिकारों का प्रयोग करने वाले युवाओं को जोड़ने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाने का फैसला किया है। पार्टी द्वारा जारी मिशन 272 के केंद्र में युवा मतदाताओं को ही रखा गया है। युवाओं को लुभाने के लिए पहले तो पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने मतदान को देश के अभियान के साथ जोड़ते हुए युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश की है वहीं दूसरी तरफ इंडिया 272 डॉट कॉम के जरिये सोशल मीडिया पर सक्रिय युवाओं को पार्टी से जोड़ने का अभियान छेड़ा है। दरअसल दिल्ली में आम आदमी पार्टी के हक में युवाओं द्वारा किए गए उलटफेर को देखते हुए भाजपा को अपनी पूरी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ा है। भाजपा को देखना यह भी होगा कि पदभार सम्भालने के बाद अरविन्द केजरीवाल एण्ड पार्टी की कारगुजारी कैसी रहती है। यह किसी से अब छिपा नहीं कि आप पार्टी भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी और उसके निशाने पर हैं नरेन्द्र मोदी।

-अनिल नरेन्द्र

भारत सरकार के देवयानी मसले पर स्टैंड से बौखलाया अमेरिका

अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के मामले में भारत सरकार ने जिस तरह की कड़क मिजाजी दिखाई है उसके सकारात्मक परिणाम दूसरे देशों से भी सामने आने लगे हैं और भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में यह चर्चा शुरू हुई है कि आखिर कब तक दुनिया अमेरिका की दादागिरी को बर्दाश्त करेगी? पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी भारत के स्टैंड को समर्थन मिल रहा है। द नेशन अखबार अपने सम्पादकीय में लिखता है कि इस पर किसको शक होगा? यह माना जाता है कि उसकी हुकूमत में  दुनिया के सबसे जहीन और आला दिमाग शख्स शामिल होंगे। लेकिन हिन्दुस्तान के वाणिज्य दूतावास की सीनियर अफसर देवयानी की गिरफ्तारी और उनके साथ की गई बदसुलूकी अमेरिकी प्रशासन की सियासी सूझबूझ पर किसी के अन्दर शक पैदा कर सकती है। आखिर यह नौबत आई कैसे? यह जो पूरा ड्रामा है और इससे जो तल्खी पैदा हुई है उसे टाला जा सकता था। पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने अमेरिका को चेताते हुए कहा कि देवयानी की गिरफ्तारी में शामिल रहे अमेरिकी अभियोजक, मार्शल और उनकी गिरफ्तारी पर हस्ताक्षर करने वाले विदेश विभाग के अधिकारियों ने कथित घरेलू अपराध को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दे दिया है। उन्होंने अमेरिका को लाहौर में अमेरिकी दूतावास में कार्यरत रहे रेमंड डेविस मामले की याद भी दिलाई। पिछले साल दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या करने वाले अमेरिकी राजनयिक रेमंड डेविस का हवाला देते हुए हक्कानी ने कहा कि हमने डेविस के मामले को पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों के आधार पर लिया था जबकि यह खून का मामला था जो एक गम्भीर अपराध था। मुझे भी किसी आम व्यक्ति की तरह इस बात पर गुस्सा आया था कि एक शख्स ने भरे बाजार में दो लोगों की हत्या कर दी थी जबकि उनकी जान को कोई खतरा नहीं था। नियमत डेविस के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी। इस कार्रवाई से अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध प्रभावित हो रहे हैं। देवयानी के मामले में सख्त हुई यूपीए सरकार ने इसी क्रम के चलते बहरीन के एक राजनयिक के खिलाफ अपनी मुंबई हाउसिंग सोसाइटी की एक महिला प्रबंधक के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर एक मामला दर्ज किया है। हालांकि उन्हें प्राप्त राजनयिक विशेषाधिकारों के चलते गिरफ्तार नहीं किया गया। यह देवयानी मामले के बाद आए कड़े रुख का ही नतीजा है। उधर देवयानी के पिता उत्तम खोबरागड़े ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी की पूर्व नौकरानी संगीता रिचर्ड अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एजेंट हो सकती है। देवयानी को तो बलि का बकरा बनाया जा रहा है। अमेरिका के दोहरे मापदंडों का एक उदाहरण हैöसउदी अरब और रूस के राजनयिकों की गलतियों पर आंखें मूंदना। सउदी के सैन्य अटैची के वाशिंगटन स्थित आवास से जुल्म ज्यादती से तंग फिलीपींस की दो महिलाओं को बचाया गया था जबकि रूस के पूर्व एवं मौजूदा 49 राजनयिकों व उनके परिजनों पर अमेरिकी स्वास्थ्य योजनाओं में 15 लाख डॉलर (करीब 9.24 करोड़ रुपए) की धोखाधड़ी करने का आरोप लगा है। इनमें 11 तो अब भी अमेरिका में तैनात हैं। गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मैरी हर्प इस सवाल का जवाब नहीं दे पाईं कि देवयानी के प्रति सख्ती बरतने वाला अमेरिकी प्रशासन सउदी अरब और रूस के राजनयिकों की गलतियों पर क्यों आंखें मूंद रहा है? इधर नई दिल्ली में भारत अमेरिकी कांग्रेस के विरोध के बावजूद अमेरिकी दूतावास के आसपास फिर से सुरक्षा तामझाम खड़ा करने के मूड में नहीं है। गौरतलब है कि बीते 17 दिसम्बर को अमेरिकी दूतावास के गेट और सड़क से सुरक्षा खत्म किए जाने के बाद पहली बार अमेरिकी कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। भारत ने साफ संकेत दिया है कि देवयानी की गिरफ्तारी के मामले में सम्मानजनक हल न निकलने तक उसका यूएस दूतावास के समक्ष फिर से सुरक्षा तामझाम खड़ा करने का कोई इरादा नहीं है। भारत इस मामले में अपने रुख को और कड़ा करते हुए बीते सोमवार को ही अमेरिकी राजनयिकों के विशेषाधिकार खत्म कर चुका है। खबर अब यह भी है कि भारत अमेरिकी दूतावास, वाणिज्यिक दूतावास तथा स्कूलों तथा अन्य संस्थानों में कार्यरत अपने देश के लोगों को मिलने वाली सुविधाएं व वेतन की जानकारी मांग कर अमेरिका की दुखती रग पर हाथ रखने वाला है। दरअसल अमेरिका देवयानी की नौकरानी को 35000 रुपए वेतन देने को भी बेहद कम बता रहा है अपने संस्थानों में कार्यरत कई भारतीय कर्मचारियों को इसका आधा वेतन भी नहीं देता। राजनयिकों के यहां कार्यरत घरेलू नौकरों का तो अमेरिकी दूतावास के पास कोई रिकार्ड ही नहीं है। भारत के पास इन कर्मचारियों को रखने और निकालने के दौरान भारतीय श्रम कानूनों के उल्लंघन के कई सुबूत हैं। यही कारण है कि अमेरिका जहां इस बारे में जानकारी उपलब्ध कराने में अधिक समय की मांग कर मामले को टालने की कोशिश में है। आज पूरा देश इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ है। आप अड़े रहो, इसका फायदा इसी जगह ही नहीं, कई और जगहों पर भी मिलेगा। दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।

Friday, 27 December 2013

कांग्रेसियो अब पछताए होत क्या, चिड़ियां चुग गईं खेत

दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे बुरी तरह हारी कांग्रेस ने दांव तो खेला था आम आदमी पार्टी (आप) को सरकार में फंसाने का लेकिन उसे समर्थन देकर वह खुद फंस गई। जब होश आया तो देर हो चुकी थी। लिहाजा अब आप को समर्थन के मसले में ही कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। दिल्ली के सभी नेता अलग परेशान हैं और कार्यकर्ता धरना-प्रदर्शनों पर उतर आए हैं। बुधवार शाम को ही राष्ट्रपति, उपराज्यपाल की ओर से आप पार्टी को शपथ लेने को कहा गया। सुबह तक किसी को यह नहीं मालूम था कि शपथ कब होगी? सुबह केजरीवाल की सरकार बनने पर भी सस्पेंस खड़ा हो गया था। दरअसल सस्पेंस की मूल वजह कांग्रेस के अन्दर शुरू हुए पुनर्विचार को माना जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित `आप' की सरकार के गठन के लिए कांग्रेस के विधायकों का समर्थन उचित नहीं मानतीं। उन्होंने मंगलवार दिनभर इसके लिए लॉबिंग की और यह बता दिया कि केजरीवाल की सरकार कैसे दिल्ली में पार्टी की राजनीतिक जड़ें खोदने में जुट जाएगी। जो काम मुख्य विपक्षी दल भाजपा पांच सालों में नहीं कर पाई। वह काम केजरीवाल की कम्पनी एक महीने में कर सकती है, क्योंकि वह भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस के खिलाफ मुहिम छेड़ सकती है। इससे लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। स्थिति तो यह है कि दिल्ली कांग्रेस के सभी बड़े नेता पार्टी हाई कमान के बिना शर्त समर्थन देने के निर्णय के खिलाफ एकजुट होकर अब खुलकर विरोध पर उतर आए हैं। शीर्ष नेतृत्व की दिक्कत यह है कि अब वह आप पार्टी को दिए समर्थन को बिना वजह वापस भी नहीं ले सकती। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा इस समर्थन के खिलाफ किए गए विरोध प्रदर्शन के पीछे कई बड़े नेताओं का हाथ है जो कांग्रेस आलाकमान को समर्थन न देने के लिए मनाने में असफल रहे थे और अब सम्भावित खतरों को भांपते हुए उन्होंने हाई कमान पर दबाव बनाने का यह नया दांव चला है। इतना ही नहीं, कांग्रेस के कई बड़े दिग्गज जो इस समर्थन को उचित ठहरा रहे थे अब उनके स्वर भी बदलने लगे हैं। वे अब मान रहे हैं कि आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने बहुत बड़ी गलती कर दी है। क्योंकि अब सरकार बनते ही केजरीवाल सबसे पहले कांग्रेस का ही पिटारा खोलेंगे और उन्होंने बाकायदा इसकी घोषणा भी कर दी है कि हर दिन शीला दीक्षित सरकार के एक मंत्री का कच्चा चिट्ठा खोलेंगे। उनका इरादा इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि केजरीवाल ने शीला दीक्षित सरकार के मुख्य सचिव डीएम सपोलिया को बदल कर अपने मुताबिक नए मुख्य सचिव के लिए राजेन्द्र कुमार का चुनाव किया है। आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस पर हमलावर होना इसलिए भी जरूरी  लगता है ताकि जनता उन पर कांग्रेस के साथ साठगांठ का आरोप न लगा सके। आप को समर्थन के  बाद अब कांग्रेस कहां खड़ी है? समर्थन के विरोध में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन के सवाल पर कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि पार्टी में एक राय यह भी है कि समर्थन का निर्णय शायद इस रूप में उचित नहीं था। दिल्ली की जनता ने हमें तीसरे नम्बर पर रखा। पार्टी महज आठ सीटें जीती, हमें नेता विपक्ष तक का पद नहीं मिला, इसलिए कांग्रेस को कहना चाहिए था कि हमें जनादेश नहीं मिला, जिसे जिससे मिलकर सरकार बनाना है बनाए और चलाए। उचित यही होता कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाती। हमारा दायित्व यह देखना नहीं था कि सरकार कौन बनाएगा, कौन चलाएगा पर अब बहुत देर हो चुकी है तीर निकल चुका है अब पछताने से क्या?

-अनिल नरेन्द्र

मुजफ्फरनगर क्षेत्र में दोनों समुदायों में अविश्वास की खाई को कैसे पाटा जाए?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब रविवार को उत्तर प्रदेश के दंगा प्रभावित मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में राहत शिविरों और गांवों का औचक दौरा किया तो उनका सामना इस गन्ना पट्टी में दंगों के बाद समुदायों के बीच बन गई गहरी खाई की कड़ी हकीकत से हुआ। एक ओर एक साथ रहने की मंशा है तो दूसरी ओर समुदायों के बीच अविश्वास की बढ़ती खाई है। इसी के मद्देनजर राहुल ने मध्यस्तता की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने शिविरों में बेहद खराब स्थितियों को सुधारने की तत्काल जरूरत पर भी जोर दिया। शिविर में रहने वालों ने इस बात की शिकायत की कि गरम कपड़ों के उपलब्ध न होने से 23 बच्चों की मौत हो गई है। ज्यादातर राहत शिविरों में इसी तरह की शिकायतें थीं। खुरगान के एक पीड़ित युवक ने यह बात कही तो राहुल ने पूछा कि वहां कितने दबंग हैं? गांधी ने दंगा पीड़ितों से अपील की कि वे अपने घरों को लौट जाएं। जब राहुल ने बार-बार उनसे पूछा कि क्या किया जाना चाहिए जिससे वे अपने घरों को लौट सकें तो मलकपुर में मुफ्ती असलम ने कहा कि यह तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि जिन लोगों ने दंगों को अंजाम दिया उन्हें सलाखों के पीछे नहीं डाल दिया जाता। दंगों को अंजाम देने वाले अब भी खुलेआम घूम रहे हैं। बनराली में एक महिला ने कहा कि मैंने बेटा खो दिया है और उन्होंने मेरा घर भी जला दिया है। मैं वहां जाकर क्या करूंगी? मसाऊ शिविर में दंगा पीड़ितों ने राहुल के काफिले को रोकने की कोशिश की। उन्होंने अपनी समस्याओं का समाधान करने और साफ आश्वासन की मांग की। पीड़ितों के प्रतिनिधियों ने राज्य सरकार के आदेश की एक प्रति और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपा गया मांग पत्र जिसमें उन्होंने कहा कि समुदाय के दंगा पीड़ितों में ज्यादातर खेतिहार मजदूर या ईंट भट्ठा में काम करने वाले लोग हैं। उन्होंने अब अपनी आजीविका खो दी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कैराना के अखिल भारतीय इत्तेहादुल मुसलमीन द्वारा सौंपी गई मांगों की सूची में पहली मांग थी ः शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत में जाट समुदाय के कर्मचारियों और पुलिस अधिकारियों का अन्य जिलों में तबादला किया जाना चाहिए। धीमे स्वर में यह भी शिकायतें थीं कि शिविरों को चलाने में कुछ लोगों के निहित स्वार्थ हैं क्योंकि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों से समुदाय के लिए आने वाली आर्थिक मदद से लाभ होता है। शामली जिले के कांग्रेस अध्यक्ष अयूब जंग ने आरोप लगाया कि ज्यादातर राहत शिविरों को समाजवादी पार्टी के सदस्य चला रहे हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि शिविर में रहने वाले लोग घर लौटें। दंगों में जीवित बचे लोगों ने कुछ समय पहले मुजफ्फरनगर की सड़कों पर आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया था कि राज्य सरकार उन पर इस बात की घोषणा करने का दबाव डाल रही है कि वे अपने गांवों को नहीं लौटेंगे और पांच लाख रुपए के मुआवजे के बदले में अपनी सम्पत्तियों पर दावे को छोड़ दें। जाट बहुल करनकड़ा में ग्रामीणों ने राहुल गांधी से शिकायत की कि मुस्लिम दंगा पीड़ितों को राज्य सरकार मुआवजा दे रही है वहीं उनके समुदाय के लोगों को कुछ नहीं दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य प्रशासन दबाव में कार्रवाई कर रहा है और एक खास समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। उस समुदाय के लोगों ने ही पहले हिंसा का सहारा लिया। एक ग्रामीण जगलाल ने कहा कि इससे पहले वहां कभी दंगे नहीं हुए। सवाल यह उठता है कि इस समस्या का आखिर हल क्या होगा?

Thursday, 26 December 2013

सलाखों में ही अंत होगा तेजपाल के लिए यह साल और 2014 शुरू भी वहीं होगा

विधानसभा चुनाव और उसके परिणामों में सब इतने मशरूफ हो गए कि एक समय के पेज-3 के हीरो तरुण तेजपाल को सभी भूल गए। वक्त-वक्त की बात है कभी पेज-3 के हीरो आज बामुश्किल से पेज-8 के एक कॉलम की खबर बन गए हैं। बहरहाल तरुण तेजपाल पणजी जेल में बंद हैं। उन्हें इस साल का अंत और नए साल की शुरुआत भी जेल से ही करनी होगी। तहलका संपादक तरुण तेजपाल की न्यायिक हिरासत सोमवार 4 जनवरी 2014 तक बढ़ा दी गई है। तेजपाल की पिछली 12 दिवसीय हिरासत समाप्त होने के बाद पथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्टेट सारिका फलदेसाई ने उनकी न्यायिक हिरासत को बढ़ा दिया। तेजपाल के वकीलों ने सोमवार को जिला अदालत के समक्ष एक याचिका दायर करके उनकी जमानत की मांग की। इस याचिका में कहा गया कि न्यायिक हिरासत में लिए जाने के बाद से पुलिस द्वारा आरोपी से पूछताछ नहीं की गई है। तेजपाल से सिर्फ तभी पूछताछ की गई जब वे पुलिस हवालात में थे। गोवा अपराध शाखा ने इस दौरान महिला सहकर्मी के यौन शोषण के आरोपी तेजपाल की मुश्किल बढ़ाते हुए उनके खिलाफ अतिरिक्त आरोप लगाए हैं। अपराध शाखा के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तेजपाल के खिलाफ दर्ज पाथमिकी में अब आईपीसी की धारा 341 और 342 जोड़ी गई हैं। तेजपाल से पूछताछ कर रहे अधिकारी ने कहा कि पीड़िता, गवाहों के बयानों और होटल के सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद तेजपाल के खिलाफ अतिरिक्त धाराएं लगाई गई हैं। धारा 341 किसी को गलत ढंग से रोकने और धारा 342 किसी को गलत ढंग से बंधक बनाने से जुड़ी है। उधर तरुण तेजपाल की अपनी ही कहानी है। तरुण तेजपाल ने पुलिस पूछताछ में कहा कि युवती और उनके बीच जो कुछ भी हुआ उसमें एक तरह की सहमति थी। मामले की जांच कर रहे गोवा पुलिस के एक काइम ब्रांच के अधिकारी ने कहा कि जांच सही दिशा में चल रही है और तेजपाल से विस्तृत पूछताछ की जा रही है। वह सहयोग कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा कि पूछताछ में तेजपाल इस बात पर कायम हैं कि उन्होंने जो कुछ भी किया उसमें आपसी सहमति थी। उन्होंने इस पूरे मामले में संलिप्तता से इंकार किया। हालांकि तेजपाल के वकील ने यह कहा कि इस बारे में अफवाह उड़ रही है और कहा कि मामले के आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही पूरी जानकारी हासिल हो पाएगी। अधिकारी ने कहा कि पीड़ित युवती ने अपनी शिकायत में जो बातें कही हैं, तेजपाल उनकी पुष्टि कर रहे हैं लेकिन वह यह नहीं मान रहे कि उन्होंने लड़की के साथ किसी तरह की जोरöजबरदस्ती की। इस आधार पर वह कह रहे हैं कि जो कुछ भी हुआ उसमें आपसी सहमति थी। सवाल यह है कि केस टेढ़ा है और केस साबित करने का भार अब अभियोजन पक्ष पर है। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरएस सोढ़ी बताते हैं कि रेप और छेड़छाड़ के मामले में लड़की का बयान सबसे अहम माना जाता है। यह सबसे बड़ा साक्ष्य है। अगर लड़की के बयान में तारतम्यता है और कोर्ट को लगता है कि बयान विश्वसनीय है तो वह सबसे अहम साक्ष्य है। सीनियर एडवोकेट केपीएस तुलसी का कहना है कि सुपीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि अगर लड़की का बयान पुख्ता है और विश्वसनीय है तो अन्य किसी पूरक साक्ष्य की जरूरत नहीं है। जहां तक मेडिकल एविडेंस का सवाल है तो वैसे एविडेंस पूरक साक्ष्य हैं और मेडिकल में रेप की पुष्टि होती है तो केस ज्यादा ठोस माना जाता है। देखें, चार्जशीट में पुलिस क्या कहती है ?
अनिल नरेन्द्र

जो भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं वही उसके खिलाफ उपदेश दे रहें हैं?

कांग्रेस पार्टी का भ्रष्टाचार और घोटालें में कथनी और करनी में हमेशा फर्क रहा है। ताजा उदाहरण है उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भ्रष्टाचार के खिलाफ उपदेश देने का और महाराष्ट्र में आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट को दफन करना। राहुल गांधी  तो इधर कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार देश का सबसे बड़ा मुद्दा है, जो लोगों को चूस रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अनियंत्रित शक्तियां परियोजनाओं को रोक रही हैं। उन्होंने महंगाई पर भी काबू करने की बात कही। इधर राहुल यह सब कह रहे हैं उधर कांग्रेस की ही महाराष्ट्र सरकार उन्हें ठेंगा दिखा रही है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने साफ कह दिया है कि आदर्श हाउसिंग घोटाले मामले में जांच आयोग की सिफारिशें नहीं मानी जाएंगी। चव्हाण ने यह फैसला जनहित के नाम पर किया है। इसको लेकर सीधे तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर सियासी हलकों में उंगलियां उठने लगी हैं। इन्हीं कारणों से भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को यह कहने का मौका मिला कि जो भ्रष्टाचार में डूबे हैं वही अब उसके खिलाफ उपदेश दे रहे हैं। मोदी ने मुंबई में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मैंने कांग्रेस के एक बड़े नेता के भाषण सुने। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल रहे थे। उनका साहस तो देखिए। कोई अन्य इतना साहस नहीं कर सकता। यह लोग भ्रष्टाचार में इतने डूबे हुए हैं इसके बावजूद मासूम चेहरा बनाते हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हैं। उन्होंने राहुल गांधी की ओर इशारा करते हुए कहा कि आदर्श आयोग की रिपोर्ट में मंत्रियों को अभ्यारोपित किया गया है। एक ओर महाराष्ट्र सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने का फैसला करती है और दूसरी ओर कांग्रेसी नेता दिल्ली में उपदेश दे रहे हैं। कांग्रेस बोलती कुछ है और करती कुछ है। आदर्श सोसायटी घोटाले की गिनती पिछले कुछ वर्षें के भ्रष्टाचार के सबसे चर्चित मामलों में होती रही है। वर्ष 2010 में जब इसका खुलासा हुआ, तब देश का सियासी तापमान ब़ढ़ गया था। इसकी जांच रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। यह बेहद अफसोसजनक है कि महाराष्ट्र सरकार ने आदर्श सोसायटी काण्ड की जांच रिपोर्ट खारिज कर दी है पर शायद यह कोई हैरत की बात नहीं है। अगर महाराष्ट्र सरकार ने यह रिपोर्ट स्वीकार की होती तो उसके सामने कैसी राजनीतिक मुश्किलें आती इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। न्यायमूर्ति जेए पटेल की अध्यक्षता वाले दो सदस्यीय जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जिन लोगों की भूमिका पर उंगली उठाई है उनमें चार पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं। इनमें गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी हैं। यह सभी कांग्रेस से ताल्लुक रखते हैं। इसके अलावा राज्य के दो कैबिनेट मंत्रियों का भी नाम है जिनका नाता कांग्रेस के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांगेस पाटी से है। महाराष्ट्र में कांगेस और राकांपा के गठजोड़ की सरकार है। इस काण्ड की वजह से अशोक चव्हाण को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। रिपोर्ट में सबसे तीखी टिप्पणी उन्हीं के खिलाफ है। कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस मामले को ठण्डे बस्ते में डाल देना आसान नहीं होगा। आदर्श सोसायटी काण्ड मंत्रियों और नौकरशाहों द्वारा विवेकाधिकार के दुरुपयोग की देन है। राहुल गांधी दिल्ली में उद्योग संगठन फिक्की के कार्यकम में कहते हैं कि हम (उनकी पाटी) भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाएंगे। इसमें किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा क्योंकि तमाम बड़ी समस्याओं की जड़ में भ्रष्टाचार है। दुख से कहना प़ड़ता है कि कांग्रेस हाल के विधानसभा परिणामों से कोई सबक नहीं ले रही। यह अब भी जनता को टेकन फार ग्रांटेड ले रही है। जनता जागरुक हो चुकी है अब उसे कांग्रेस की कथनी और करनी में फर्क साफ नजर आ रहा है।

Wednesday, 25 December 2013

केदारनाथ हादसे में मारे गए लोगों का न तो मुआवजा मिला न सर्टिफिकेट

बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा बेशक एक पढ़े-लिखे अच्छे इंसान हैं पर उनकी अपनी सरकार और प्रशासन पर पकड़ बहुत कमजोर है। उत्तराखंड का सियासी माहौल इस सर्द मौसम के बावजूद गर्म हो गया है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की कांग्रेस के पाले वाली पांचों लोकसभा सीटें खतरे में बताई जा रही हैं, इसलिए कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को हटाने की सोच रहा है। श्री हरीश रावत का उत्तराधिकारियों की सम्भावित सूची में फिलहाल सबसे ऊपर नाम चल रहा है पर यह तो सियासी मामला है जिसका संबंध कांग्रेस पार्टी से है। हमें तो दुख इस बात का है कि केदारनाथ में जून माह में हुए प्राकृतिक हादसे के दौरान लापता हुए दिल्ली के 237 लोगों की छह माह बाद भी न तो कोई खोज खबर मिली और न ही उनकी मौत के प्रमाण पत्र व मुआवजा उनके परिजनों को मिले। मृतकों के परिजन कभी उत्तराखंड तो कभी दिल्ली के राजस्व विभाग के चक्कर लगा रहे हैं। कुल 143 लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र पिछले सप्ताह उत्तराखंड सरकार ने दिल्ली के राजस्व विभाग को भेजे हैं लेकिन अब राजस्व विभाग मृतकों के परिजनों की पुष्टि करने के लिए कुछ नियम-कायदे बनाने में लगा है। लापता 94 लोगों के बारे में सरकार की ओर से किसी प्रकार की खबर नहीं दी गई है। लापता अनेक लोगों के परिजन ऐसे हैं जो अभी भी अपनों के लौटने का इंतजार कर रहे हैं। अनेक ऐसे परिवार हैं जो यह मान चुके हैं कि उनके परिजनों की हादसे में मौत हो गई है और अब वह कभी नहीं लौटेंगे जबकि कई परिवार ऐसे भी हैं जो अभी भी अपने लापता प्रियजनों का इंतजार कर रहे हैं। दिल्ली राजस्व विभाग कार्यालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि पिछले सप्ताह ही उत्तराखंड सरकार की ओर से 143 लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र व उनका मुआवजा राजस्व विभाग को मिला है लेकिन मुआवजा व सर्टिफिकेट बांटने के लिए मृतकों के परिजनों का सत्यापन करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि बिना सत्यापन के मुआवजा व सर्टिफिकेट नहीं बांटे जा सकते। राजस्व विभाग के अनुसार मृतकों के परिजनों का सत्यापन करने के लिए उनसे नोटरी द्वारा अटेस्टिड शपथ पत्र तथा किसी समाचार पत्र में छपी गुमशुदा की सूचना संबंधी प्रति मांगे जाने के साथ-साथ जांच अधिकारी की रिपोर्ट मांगी जाएगी, इसके बाद ही उन्हें प्रमाण पत्र व मुआवजा बांटा जाएगा। लापता बाकी 94 लोगों के मृत्यु व मुआवजे के बारे में दिल्ली के राजस्व विभाग को उत्तराखंड सरकार ने अभी कोई सूचना नहीं दी है। उधर प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार केदारनाथ मंदिर को भविष्य में किसी तरह की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) मंदाकिनी नदी का रुख बदलने का सुझाव दे रहा है क्योंकि उस क्षेत्र में नदी की तलहटी गांव की जमीन से ऊंची हो गई है। जून में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद मंदिर के जीर्णोद्धार का काम एएसआई को सौंपा गया है हालांकि मौसम इसमें लगातार बाधा बना हुआ है। संस्कृति मंत्री चन्द्रsश कुमार कटोच ने बताया कि हमारी रिपोर्ट के अनुसार केदारनाथ में नदी की तलहटी ऊंची हो गई है और ग्रामीण इलाके नीचे हो गए हैं, इसलिए हम नदी (मंदाकिनी) का रुख बदलने का सुझाव दे रहे हैं ताकि भविष्य में मंदिर को किसी प्राकृतिक आपदा की दिशा में कोई नुकसान न हो या फिर भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) या वन विभाग सलाह देगा कि कैसे केदारनाथ मंदिर की भविष्य में सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

-अनिल नरेन्द्र

आप पार्टी की सरकार सियासत में स्वच्छता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

दिल्लीवासियों ने राहत की सांस ली होगी कि अंतत आप पार्टी ने पिछले एक पखवाड़े से जो सस्पेंस बनाया हुआ था कि सरकार बनाएंगे या नहीं वह समाप्त हो गया। अब घोषणा हो गई है कि आप पार्टी दिल्ली में सरकार बना रही है। आप पार्टी की राजनीतिक मामलों की सोमवार को एक बैठक हुई जिसमें जनमत संग्रह के नतीजों को देखते हुए सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया गया। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल नजीब जंग से मिले और उन्हें सरकार बनाने का दावा करने संबंधी पत्र सौंपा। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के नए मुख्यमंत्री होंगे। जो रामलीला मैदान में सार्वजनिक तौर पर शपथ लेंगे। हम आप पार्टी और अरविंद केजरीवाल को बधाई देना चाहते हैं। खंडित जनादेश में यह तो होना ही था जब भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद सरकार बनाने से मना कर दिया था। उस सूरत में दो ही विकल्प बचते थे ः एक राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए, दूसरा आप पार्टी सरकार बनाए। हां फिर चुनाव कराना तो विकल्प था ही। अगर राष्ट्रपति शासन लगता तो घूम-फिर कर कांग्रेस का ही शासन होता क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय सर्वेसर्वा होता। अब भी सत्ता की बागडोर एक तरह से कांग्रेस के हाथों में है। उसके आठ विधायकों के दम-खम पर ही यह सरकार चलेगी और कांग्रेसी नेता अब यह कहने लगे हैं कि हमने बिना शर्त समर्थन नहीं दिया, मुद्दों पर समर्थन दिया है। इसी लाइन से आप पार्टी की सरकार के भविष्य पर थोड़ी अनिश्चितता बनी हुई है कि पता नहीं कांग्रेस इस सरकार को कितने दिन चलने देगी? इसमें कोई शक नहीं कि केजरीवाल को थूक कर चाटना पड़ा है। केजरीवाल ने यहां तक कह दिया था कि मैं अपने बच्चों की कसम खाता हूं कि मैं कांग्रेस का समर्थन नहीं लूंगा। जनता में इस बात को लेकर भी आशंका है कि जो वादे आप पार्टी ने जनता से किए हैं बिजली, पानी, भ्रष्टाचार रोकने, घोटालों की जांच करवाना, लाल बत्ती संस्कृति खत्म करना, मोहल्ला कमेटियों में सीधा पैसा बांटना इत्यादि-इत्यादि उन 18 वादों में से कितने पूरा कर सकेंगे। मुझे लगता है कि इनमें से अधिक मुद्दे आप पार्टी पूरा कर लेगी। हो सकता है कि 50 प्रतिशत बिजली के बिल और 700 लीटर फ्री पानी इस हद तक न पूरा हो सके, कम रहे पर तब भी जनता को बहुत राहत मिलेगी। सबसे बड़ी बात यह होगी कि भारत की गिरती सियासत के स्तर पर रोक लगेगी। राजनीति में थोड़ी स्वच्छता जरूर आएगी। भारत की सियासत के शुद्धिकरण की दिशा में एक सही कदम जरूर होगा और यह दूसरे दलों को भी बदलने के लिए मजबूर करेगी। आप पार्टी और कांग्रेस में फ्लैश प्वाइंट तब आ सकता है जब केजरीवाल कांग्रेस शासन के दौरान घोटालों की जांच करती है और जैसा कि दो दिन पहले केजरीवाल ने खुद कहा कि मैं भ्रष्ट कांग्रेसी नेताओं को जेल भेजूंगा। अगर उन्होंने ऐसा किया तो निश्चित रूप से कांग्रेस जवाबी कार्रवाई करेगी। हालांकि कुछ लोगों का दावा है कि कांग्रेस और केजरीवाल में गुप्त डील हो चुकी है कि वह शीला दीक्षित शासन की जांचें नहीं करवाएंगे। भाजपा बेशक आज यह कहे कि आप ने जनता से धोखा किया और उसने उसी कांग्रेस से हाथ मिला लिया जिसके खिलाफ चुनाव लड़े थे पर अपना मानना है कि और कोई विकल्प नहीं था, हमें दोबारा चुनाव से बचना था। बचे हैं या नहीं यह तो आप सरकार के शुरुआती 15 दिनों में पता चल जाएगा। पता चल जाएगा कि यह सरकार लम्बी पारी खेलेगी या नहीं? पर फिलहाल अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को हमारी शुभकामनाएं और हम चाहते हैं कि सारे विरोधाभास के बावजूद सरकार चले।

Tuesday, 24 December 2013

निजी स्कूलों में नर्सरी दाखिले पर टकराव

नर्सरी दाखिले के लिए शिक्षा निदेशालय से जारी दिशानिर्देश के बाद 15 जनवरी से राजधानी के निजी स्कूलों में नर्सरी दाखिला प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। लेकिन स्कूल से छह किलोमीटर तक के दायरे में आने वालों को सर्वाधिक 70 प्वाइंट देने के प्रावधान से स्कूल प्रबंधक जिस तरह नाराज है, इससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ सकती है। दिल्ली के निजी स्कूलों में दाखिले, फीस बढ़ोत्तरी आदि से संबंधित गड़बड़ियों और मनमानी की शिकायतें पुरानी हैं। इन्हें दूर करने की कवायद कई बार हो चुकी है मगर कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। हर बार स्कूलों के मालिक-प्रबंधक कोई न कोई पेच ढूंढ कर नियमों की अनदेखी का रास्ता निकाल लेते हैं। ऐसे में नर्सरी कक्षाओं में दाखिले से संबंधित नए नियमों पर स्कूलों की नाराजगी कोई हैरानी की बात नहीं है। पहले भी सरकार ने प्रवेश के लिए कुछ बिन्दुओं को निर्धारित किया गया था जिनमें स्कूल से प्रवेशार्थी के घर की दूरी, अगर संबंधित स्कूल में बच्चे का कोई भाई या बहन पढ़ रहा है, अगर बच्चे के माता-पिता में से कोई उस स्कूल का विद्यार्थी रह चुका हो, आदि पहलु शामिल हैं। पहले स्कूल से प्रवेशार्थी बच्चे के घर की दूरी अधिकतम 14 किलोमीटर रखी गई थी, नए नियम में उसे घटाकर छह किलोमीटर कर दिया गया है। दूरी के आधार पर बच्चे के दाखिले के लिए 70 अंक दिए जाएंगे। उसी तरह अगर उसके परिवार से कोई बच्चा पहले से उस विद्यालय में पढ़ रहा है तो उसे 20 अंक मिलेंगे। फिर लड़कियों के लिए पांच फीसद, मगर माता-पिता में से कोई उस विद्यालय का विद्यार्थी रह चुका है तो उसके लिए पांच फीसद और स्कूल कर्मचारियों के लिए पांच फीसद सीटें आरक्षित रखनी होंगी। प्रबंधन के कोटे से दाखिले का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है। इस पर निजी स्कूल प्रबंधकों के संघ ने उपराज्यपाल से बातचीत के लिए समय मांगा पर उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया। निजी स्कूलों के प्रबंधकों का कहना है कि अगर उपराज्यपाल नजीब जंग की तरफ से कोई जवाब नहीं मिलेगा तो एसोसिएशन अदालत जाकर शिक्षा निदेशालय द्वारा नर्सरी दाखिले के लिए जारी दिशानिर्देश पर रोक लगाने की अपील करेगी। वहां भी बात नहीं बनी तो तमाम स्कूल प्रबंधक इन शर्तों पर दाखिले से इंकार के बारे में भी विचार कर रहे हैं। हालांकि नर्सरी दाखिला प्रक्रिया की उल्टी गिनती के साथ ही जो अभिभावक यह सोच रहे हैं कि उनके बच्चे का दाखिला नर्सरी में कैसे होगा? दाखिले के लिए किसी की सिफारिश लगाएं। उनके लिए बेहतर सुझाव यह है कि वह यह सारी चिन्ता छोड़कर घर के नजदीक वाले स्कूलों को अपनी पसंद सूची में वरीयता दें। इन स्कूलों में बच्चे को किस  प्रकार की सुविधाएं मिल रही हैं, इस बारे में जानकारी एकत्र करें और जैसे ही 15 जनवरी को दाखिला फॉर्म निकले तो नजदीकी स्कूल में जाकर दाखिला फॉर्म भर दें। फीस बढ़ोत्तरी को लेकर भी जब-तब अभिभावकों और स्कूलों के बीच तकरार शुरू हो जाती है। उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद इस मामले में स्कूलों की मनमानी थमी नहीं। अगर स्कूल सचमुच दाखिले और फीस आदि के निर्धारण में तर्पसंगत और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाते तो सरकार या फिर अदालतों को हर बार यूं हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं पड़ती।

-अनिल नरेन्द्र

क्या नरेन्द्र मोदी का पिछड़े वर्ग का लाभ भाजपा यूपी में उठा पाएगी?

श्री नरेन्द्र मोदी की मिशन लोकसभा 2014 का रास्ता उत्तर प्रदेश से जाता है। 80 लोकसभा सीटों वाला यह सूबा भारतीय जनता पार्टी के गेम प्लान में बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। तभी तो नरेन्द्र मोदी ने अपने सबसे विश्वासपात्र, रणनीतिकार अमित शाह को लखनऊ में बिठा रखा है। भाजपा उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के जरिये प्रदेश की 80 सीटों को साधने का प्रयास कर रही है। नरेन्द्र मोदी का चेहरा और नेतृत्व पार्टी को अपने सामाजिक समीकरणों के हिसाब से उत्तर प्रदेश में भा रहा है। पार्टी इस प्रयास में भी है कि नरेन्द्र मोदी का पिछड़ी जाति से होने का लाभ मिल सके। भाजपा उत्तर प्रदेश में मोदी कार्ड खेलकर सियासी स्तर पर एक तीर से कई निशाने साधने में जुटी हुई है। भाजपा रणनीतिकारों को लगता है कि मोदी की विकास पुरुष के साथ-साथ पिछड़े वर्ग के नेता की छवि न केवल भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होगी बल्कि पार्टी के जातिगत समीकरणों को भी ताकत देगी। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा 40-50 के बीच लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। नरेन्द्र मोदी की सभाएं यूपी में हिट हो रही हैं। शुक्रवार को काशी में राजातलाब स्थित खुजरी में आयोजित विजय शंखनाद रैली में उमड़ी भीड़ से गद्गद् मोदी ने कहा कि चुनाव से पहले इस तरह का माहौल कभी नहीं देखा। उन्होंने कहा कि यूपी केवल राजनीति का मैदान नहीं है। यूपी भारत का भाग्य विधाता बन सकता है। यहां के रामराज्य बनाने के काम आपके पूर्वजों ने किया था। रामराज्य के लिए जिस तरह के जन सामान्य की जरूरत चाहिए वह आपके पास है। मोदी ने बनारस की दुखती रग पर हाथ रखते हुए यहां की तुलना सूरत से की। उन्होंने कहा कि बनारस की तरह सूरत में भी वर्षों से साड़ियां मुख्य धंधा है। यहां के कारीगर और व्यापारी तबाह हो रहे हैं जबकि सूरत में साड़ी ने शहर की शक्ल ही बदल दी है। नेक इरादा हो तो बनारस साड़ी उद्योग को भी उसी तरह अपग्रेड किया जा सकता है। काशी में रैली को सम्बोधित करने से पहले बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने पहुंचे मोदी ने षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना की। पूजा के दौरान जब ब्राह्मणों ने मोदी को संकल्प दिलाना शुरू किया तो हाथ में रुपए लेने को कहा। हाथ में शहद लगे होने के कारण और स्वेटर पहने होने के कारण मोदी ने जेब में हाथ नहीं डाला। बगल में खड़े राजनाथ सिंह ने 100 रुपए का नोट निकालकर मोदी को दिया। भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को बतौर कद्दावर पिछड़ी जाति के नेता प्रोजैक्ट करने से समाजवादी पार्टी भी अन्दरखाते चिंतित जरूर है। भाजपा को एक दौर में पिछड़ों का बड़ा समर्थन मिल चुका है। कल्याण सिंह और विनय कटियार जो कभी हिन्दुत्व के प्रतीक थे, बाद में पिछड़े तबके के नेता के रूप में आगे आए। बाद में वे न हिन्दुत्व के काम के रहे और न पिछड़ों में दबदबा कायम रख सके। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बाबू सिंह कुशवाहा, उसी रणनीति को लेकर उमा भारती तक को चुनाव लड़ा दिया गया। लेकिन मामला कुछ बना नहीं। अब मोदी की नई पहचान पिछड़े नेता के रूप में बताई जा रही है। नरेन्द्र मोदी पिछड़े तबके के नेता हैं, यह संदेश गांव-गांव तक जा रहा है। राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में कैडर को लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में खड़ा कर दिया है। ठीक उसी तरह जैसे 90 के दशक में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कारण भाजपा को ऊंची जातियों के साथ पिछड़े वर्ग का लाभ मिला था।

Sunday, 22 December 2013

लिव इन रिलेशन यानि सहजीवन की बढ़ती प्रवृत्ति से कई समस्याएं हो रही हैं

दिल्ली में लिव इन रिलेशंस बढ़ते जा रहे हैं। लिव इन रिलेशन के मायने सहजीवन वाले पार्टनर। शादी की रस्म के बिना लड़का-लड़की एक साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इससे सामाजिक समस्या तो हो ही रही है पर साथ-साथ कानूनी समस्या भी बढ़ रही है। राजधानी दिल्ली में लिव इन में रहने वालों के खिलाफ दुष्कर्म के मामलों में तीन गुणा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। आंकड़ों की मानें तो हर महीने ऐसे 23 मामले दर्ज होते हैं। इस साल अक्तूबर माह तक ऐसे कुल 228 मामले दर्ज किए गए जो दुष्कर्म की कुल दर्ज घटनाओं का 16 फीसदी बैठता है। यह खुलासा दिल्ली पुलिस की एक आंतरिक रिपोर्ट में हुआ है। यह रिपोर्ट दिल्ली पुलिस ने दुष्कर्म के मामलों में आरोपियों की अलग-अलग श्रेणियों की पहचान करने के लिए विभिन्न थानों में दर्ज मामलों के आधार पर तैयार कराई है। रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल जहां लिव इन में रहने वालों के खिलाफ दुष्कर्म करने के 80 मामले दर्ज कराए गए थे वहीं इस साल अक्तूबर तक यह आंकड़ा बढ़कर 228 की संख्या तक पहुंच गया है। हाल ही में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना की अदालत में एक केस आया। सहजीवन में रहने वाली अपनी पार्टनर को शादी का झांसा देकर उससे कई बार बलात्कार करने के आरोप में एमबीए के एक छात्र को अदालत ने सात वर्ष कैद की सजा सुनाई। न्यायाधीश योगेश खन्ना ने एलएलबी की एक छात्रा से बलात्कार का दोषी पाया 31 वर्षीय हरी मोहन शर्मा को जेल की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए, एक अपराध की प्रवृत्ति पर गौर करते हुए मैं हरी मोहन शर्मा को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत सात वर्ष सश्रम कारावास का दंड देता हूं। उत्तर प्रदेश निवासी शर्मा को पार्टनर की शिकायत पर गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया था। शिकायत में पीड़िता ने आरोप लगाया कि दिसम्बर 2010 से जनवरी 2011 के बीच शादी का झांसा देकर उन्होंने कई बार बलात्कार किया। पुलिस ने कहा कि लड़की ने अगस्त 2011 में तब शिकायत दर्ज कराई जब वह गर्भवती हो गई और शर्मा ने उससे शादी करने से इंकार करते हुए कहा कि उसके अभिभावक इस प्रेम-संबंध के खिलाफ हैं। सुनवाई के दौरान शर्मा ने बलात्कार के आरोपों से इंकार करते हुए कहा कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है। शर्मा ने कहा कि लड़की स्वेच्छा से लिव इन में रह रही थीबलात्कार का सवाल कहां? पर अदालत ने शर्मा की दलीलों व याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सहजीवन संबंध केवल साथ-साथ रहना नहीं होता है बल्कि इससे प्रेमियों के बीच भविष्य की प्रतिबद्धता भी जुड़ी है। यह लिव इन रिलेशन वर्तमान पीढ़ी की सोच है जबकि भारत पीढ़ीगत अन्तर के लिए मशहूर रहा है। पुरानी पीढ़ी अपने जीवनकाल को श्रेष्ठ मानती है जबकि यह स्पष्ट है कि नौजवानों की सोच में फर्प आया है मूल्यों का रूपांतरण हुआ है, ज्यादा खुलापन, परम्पराओं को न मानना, अपने हिसाब और विचार से अपना जीवन व्यतीत करना आज के युवाओं की सोच है। समाज के लिए इस अन्तर को समझना जरूरी है और समयानुसार सुधार भी करने होंगे। फिर गनीमत यह है कि यह समस्या केवल बड़े शहरों तक सीमित है। यूपी, हरियाणा इत्यादि के ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी इस प्रकार के संबंधों को कोई समझ नहीं सकता और न ही बर्दाश्त कर सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

लवली ने ताज तो पहन लिया पर यह ताज कांटों भरा है

दिल्ली में विधानसभा चुनाव में करारी हार के लिए बलि का बकरा बनाया गया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल को। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब यह कांटों भरा दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का ताज 46 वर्षीय अरविन्दर सिंह लवली के सिर पर डाला गया है। लवली न केवल सबसे कम उम्र के प्रदेशाध्यक्ष ही बने हैं बल्कि वह पहले सिख नेता हैं जिन्हें इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी दी गई है। गौरतलब है कि कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर युवा चेहरों को लाना राहुल गांधी की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। कांग्रेस हाई कमान ने अपने युवा विधायक लवली को सूबे की पार्टी कमान थमाकर साफ संकेत दे दिए हैं कि भले ही विधानसभा चुनाव में उसकी करारी पराजय हुई हो, लेकिन प्रतिद्वंद्वी दलों से टकराने का दम-खम उसमें अब भी बाकी है। लवली अपनी तेज-तर्रार छवि के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली विधानसभा से लेकर सरकार तक में उनकी धमक महसूस की जाती रही है। यह दीगर बात है कि दिल्ली में 43 सीटों से घटकर महज आठ सीटों में सिमट गई कांग्रेस पार्टी को फिर से सत्ता के करीब पहुंचा पाना लवली के लिए आसान काम नहीं है। दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। इस समय यह कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी पिछले 20 साल के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बाद कांग्रेस विधानसभा में तीसरे नम्बर पर है और उसे विपक्ष की भूमिका भी नहीं मिली है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल है। इन परिस्थितियों में यह पद अरविन्दर सिंह लवली के लिए कांटों भरा ताज है। कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर पूर्वी दिल्ली के युवा विधायक अरविन्दर सिंह लवली को चुना है तो इसकी वजह है। दरअसल भाजपा ने पूर्वी दिल्ली की ही एक सीट कृष्णानगर से पार्टी के विधायक डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया है। कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष लवली हर्षवर्धन को चुनौती देने की क्षमता भी रखते हैं। दूसरा कारण यह है कि लवली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के करीबी होने के साथ ही अजय माकन के भी खास मित्र हैं। 2013 की इस कांग्रेस विरोधी लहर में भी लवली का अपनी सीट पर जीतना यह दर्शाता है कि उनकी अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत है। सिख होने के नाते उन्हें दिल्ली का प्रभावशाली सिख समुदाय का भी समर्थन मिल सकता है। पार्टी के सामने अंदरुनी गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती है। एक-दूसरे की टांग खींचना, नीचा दिखाने की प्रवृत्ति को बदलना होगा। पार्टी के सामने अब न केवल भाजपा बल्कि आम आदमी पार्टी से भी मुकाबले की चुनौती है। ऐसे में पार्टी को प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर ऐसे नेता की जरूरत थी जो विरोधियों से खुलकर दो-दो हाथ कर सके। माना जा रहा है कि अरविन्दर सिंह लवली इस काम में माहिर हैं। लवली की छवि यूं तो बेदाग रही है लेकिन शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा हत्याकांड के बाद उन्हें इस मामले में घसीटने की कोशिश जरूर की गई। हालांकि खुद लवली का कहना है कि यदि हत्या का आरोपी ही किसी व्यक्ति को ऐसे मामले में घसीटने की कोशिश करे तो उसकी विश्वसनीयता खुद व खुद संदिग्ध हो जाती है। हम अरविन्दर सिंह लवली को बधाई देना चाहते हैं साथ-साथ यह भी कहना चाहते हैं कि ताज तो उन्होंने पहन लिया पर सावधान रहें, क्योंकि यह ताज कांटों भरा है।

Saturday, 21 December 2013

केजरीवाल का नया ड्रामा ः सरकार बनानी है या नहीं फैसला रायशुमारी से?

आप पार्टी द्वारा सरकार बनाने या न बनाने का ड्रामा बदस्तूर जारी है। बिग बॉस के रिएलिटी शो की तरह अब केजरीवाल भी अपने समर्थकों से पूछ रहे हैं कि वह सरकार बनाएं या न बनाएं? आप पार्टी थिंक टैंक के प्रमुख सदस्य योगेन्द्र यादव ने कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि हमारे पास नैतिक जनादेश है। हालांकि हमारे पास सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं है इसीलिए हम जनता से पूछ रहे हैं कि हम क्या करें? एक अन्य नेता मनीष सिसोदिया कहते हैं कि हमारा प्रायोजन सरकार बनाने का नहीं है कि हम चार लोग एक कमरे में फैसला ले लें। हमारे लिए जनता का फैसला ही सार्वमान्य है। सही मायनों में यही लोकतांत्रिक ढंग से ठीक भी है। अगर बहुमत में जनता हमें आदेश देगी तो हम सरकार बनाएंगे। सिर्प एक बार जनता को चुनाव का मौका देकर विजयी नेताओं के फैसले उन पर थोपे जाने ठीक नहीं हैं। इधर बुधवार को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से दिल्ली में साझा सरकार के गठन के खिलाफ हैं, लेकिन पार्टी के भीतर इस मामले पर मतभेद के बाद हमने दिल्ली की जनता से रायशुमारी कराने का फैसला किया है। केजरीवाल ने कहा कि वह जनता के फैसले का सम्मान करेंगे। चाहे वह पार्टी के लिए हो या उसके खिलाफ। उन्होंने बताया कि इस मामले में पार्टी में मतभेद हैं और विधायकों की बैठक के दौरान एक वर्ग का ख्याल था कि आप को सरकार बनाने से बचना नहीं चाहिए क्योंकि कांग्रेस उसे बिना शर्त समर्थन दे रही है। कुछ विधायकों के अनुसार पार्टी अपना एजेंडा लागू कर पाएगी क्योंकि कांग्रेस की तरफ से कोई दखलअंदाजी नहीं होगी। केजरीवाल ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से सरकार बनाने के खिलाफ था क्योंकि हमने बार-बार कहा है कि हम कांग्रेस अथवा भाजपा को न तो समर्थन देंगे और न ही उनसे समर्थन लेंगे लेकिन बाद में लोगों के एक वर्ग ने यह कहना शुरू कर दिया कि हमें सरकार बनानी चाहिए, जबकि दूसरा वर्ग इसका विरोध कर रहा था, इसलिए हमने इस बारे में फैसला जनता पर छोड़ा है। चाहे वह एसएमएस हो, चाहे सोशल साइट्स केजरीवाल को जबरदस्त रिस्पांस मिल रहा है। 24 घंटे के अन्दर चार लाख मैसेज आ गए। 23 घंटों में 2362 कमेंट, 177 शेयर, 2616 लाइक्स। खुद अरविन्द केजरीवाल पर 15604 कमेंट, 1709 शेयर, 14531 लाइक्स। ट्विटर पर भी जबरदस्त रिस्पांस आया है। कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैंöसचिन कुमार ः अरे भाई सरकार बनाओ, काम करके दिखाओ और फिर भी कांग्रेस समर्थन वापस लेती है तो जनता उसका जवाब देगी। टेंशन क्यों लेते हो। अरविन्द तिवारी ः भाई साहब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही में वरदहस्त लोग हैं वो नहीं चाहते कि कोई और हमारे बीच खड़ा हो। यह सब केजरीवाल को फंसाने में लगे हैं। ओम भौंसले ः मैं आपके साथ हूं। लायन अनिल मेहता ने लिखा कि नम्बरदार पहले खुद को बदलो फिर सिस्टम बदलना। मनीष चौधरी ः सरकार नहीं तो पार्टी भी गई। विकास महाजन ः जी बिल्कुल जाइए सरकार बनाइए वरना दूसरा मौका शायद ही सामने आए। रिकी शर्मा ः आपको सरकार बनाकर एक उदाहरण पेश करना चाहिए। कुछ लोगों ने इस रायशुमारी या जनमत संग्रह के तरीके पर सवाल उठाया है। यह मतदान कितना निष्पक्ष होगा? इसके लिए चलाए जा रहे मोबाइल और इंटरनेट पोल पर सवाल उठ रहे हैं कि इससे यह कैसे सुनिश्चित होगा कि वह व्यक्ति दिल्ली का मतदाता है या नहीं। हालांकि आप पार्टी का कहना है कि इसका इंतजाम उसने पहले ही कर लिया है। पार्टी के दिल्ली प्रदेश सचिव दिलीप पांडे कहते हैं कि बुधवार शाम तक इस पर कुल 4.10 लाख लोगों की प्रतिक्रिया मिल गई थी। पार्टी ने अब तक इस बात का खुलासा नहीं किया कि इसमें से कितने पक्ष में थे और कितने विपक्ष में। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेसी और भाजपाई भी आप को कन्फ्यूज करने के लिए धड़ाधड़ मैसेज करवा रहे हैं। उधर दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव उमेश सहगल ने आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविन्द केजरीवाल द्वारा सूबे में नई सरकार के गठन के लिए जनता की राय पूछने के तरीके पर सवाल उठाया है। उन्होंने यह भी कहा है कि इस पूरी प्रक्रिया पर आम आदमी के करीब एक करोड़ रुपए खर्च होंगे। केजरीवाल को बुधवार को भेजे गए अपने पत्र में सहगल ने कहा है कि यदि दिल्ली का हर मतदाता मान लीजिए एक करोड़ मतदाता फोन अथवा एसएमएस के जरिये अपनी राय भेजता है तो इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक करोड़ रुपए खर्च होगा। ऐसे में सवाल है कि फैसला आपको लेना है और पैसे जनता के खर्च हों? जितना समय निकलता जा रहा है आप पार्टी की आलोचना बढ़ती जा रही है। अन्ना ने केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए यहां तक कह दिया कि उनका आंदोलन विदेशी चंदे पर नहीं चलता। रालेगण सिद्धि के लोगों ने मेरे अनशन के लिए दिन-रात मेहनत की है और पांच-पांच रुपए इकट्ठे कर डेढ़ लाख रुपए इकट्ठे हुए जिसमें से एक लाख तो टैंट का ही खर्चा है। भारतीय जनता पार्टी ने भी आप पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, भाजपा नेता नितिन गडकरी ने आप पर तीखा हमला करते हुए अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी की गतिविधियों को बुधवार को दक्षिणपंथी माओवादी करार दिया और कहा कि दिल्ली में सरकार बनाने के लिए लोगों के विचार एकत्र करने का कदम लोकतंत्र का उपहास है। गडकरी ने कहा कि आप लोकप्रिय जनादेश का तमाशा बना रहे हैं और लोगों से पूछ रहे हैं कि उनका आगे का कदम क्या होना चाहिए। जब कांग्रेस ने उसे बिना शर्त समर्थन की पेशकश की है तो आप सरकार क्यों नहीं बना रही है? आप की गतिविधियां दक्षिणपंथी (कम्युनिस्ट) माओवादी हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पार्टी और उसके नेताओं का मुख्य काम सिर्प अन्य पर हमला करना और बेबुनियाद आरोप लगाना है। भाजपा 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन खंडित जनादेश के चलते वह सरकार बनाने में सक्षम नहीं है। बेशक भाजपा विधायक दल के नेता डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि आप को 28 सीटें देकर जनता ने दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर चुना है तो फिर इसके नेता जनमत संग्रह का ढोंग क्यों कर रहे हैं, जबकि इसका परिणाम पहले से ही तय है। उन्होंने आप से 14 सवाल भी पूछे हैं, आप जनता को जवाब दे कि दिल्ली में सरकार बनाएगी या नहीं? कांग्रेस का समर्थन लेगी या नहीं? अनिश्चय की स्थिति में दिल्ली का विकास बाधित हो रहा है इसके लिए आप दोषी है या नहीं? आप द्वारा एक ओर कांग्रेस पर आरोप लगाए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना रही है? क्या यह नूराकुश्ती है? दोनों पार्टियों में अन्दरखाते क्या डील हुई है? भाजपा स्पष्ट कर चुकी है कि सरकार नहीं बनाएगी तो आप ने भाजपा को पत्र क्यों लिखा? सरकार बनाने के लिए आप द्वारा ड्रामा क्यों रचा जा रहा है? इत्यादि-इत्यादि।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 20 December 2013

अमेरिका की दादागीरी अब भारत को स्वीकार्य नहीं है

यह पहली घटना नहीं जब अमेरिका द्वारा किसी भारतीय को अपमानित किया गया हो। यह पहली बार भी नहीं जब अपने किसी राजनयिक के अस्वीकार्य आचरण की वजह से भारत को नीचा देखना पड़ा हो। न्यूयार्प में भारत की उप-महावाणिज्य दूत देवयानी खोबरागड़े पर आरोप हैं कि उन्होंने नौकरानी (घर पर सहायिका) के वीजा-आवेदन में धोखाधड़ी की और अमेरिकी कानून के मुताबिक वेतन भत्ते, छुट्टियां वगैरह न देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया पर इसके बाद जो हुआ वह न केवल अमानवीय था और भारत को अपमानित किया गया जो किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। अपनी बच्ची को स्कूल छोड़ने जा रही 1999 बैच की अधिकारी देवयानी को अमेरिकी पुलिस ने पकड़ लिया और कपड़े उतरवाकर तलाशी ली। बदसलूकी का सिलसिला यहीं नहीं रुका। देवयानी को नशैड़ियों और खतरनाक कैदियों के साथ जेल में रखा गया। सेक्स वर्परों के साथ कतार में खड़ा किया गया। वह अपनी बच्ची को स्कूल से लाने की दुहाई देती रहीं मगर अमेरिकी पुलिस नहीं पसीजी। सवाल खड़ा होता है कि क्या भारत देश का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी अधिकारी के साथ कानूनी कार्रवाई की यह प्रक्रिया जायज है? दूसरा सवाल मानवाधिकारों का झंडा उठाने का दावा करने वाले अमेरिका का यह अमानवीय कृत्य अंतर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्ध नहीं है? बिना दूसरा पक्ष सुने सिर्प शक की बिनाह पर किसी दूसरे देश के अधिकारी को पकड़ कर उसके साथ खूंखार अपराधियों जैसा सलूक किया जाना क्या अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं? पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर अब्दुल कलाम को भी सुरक्षा के नाम पर अपमानित किया था। एनडीए शासन में जॉर्ज फर्नांडीज से भी बदतमीजी की गई थी। फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को 2001 में महज अपने मुस्लिम नाम के कारण रोक लिया गया था। इससे ज्यादा विडम्बना और क्या होगी कि शाहरुख आतंकी घटना के बाद बनी अपनी फिल्म माई नेम इज खान के प्रमोशन के लिए वहां गए थे और भी कई केस हुए हैं। स्वाभाविक तौर पर भारत में इसकी गम्भीर प्रतिक्रिया होनी थी। पहले केसों में भारत ने पर्याप्त जवाब नहीं दिया पर इस बार भारत सरकार ने कारण कुछ भी रहे हों तय किया है कि अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब दिया जाएगा जो वह समझता है। मंगलवार को भारत ने कड़ा एतराज जताते हुए अमेरिकी दूतावास और उसके अधिकारियों-कर्मचारियों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी। विशेष छूट अब नहीं। अमेरिकी काउंसलेट के राजनयिक केंद्र सरकार की ओर से जारी आईडी कार्ड लौटाएं। अमेरिकी कर्मचारियों और परिजनों को देश के हवाई अड्डों से स्पेशल पास रद्द होंगे। अमेरिकी एम्बेसी काउंसलेट में तैनात भारतीय स्टाफ की सैलरी आदि की डिटेल मांगी गई है। यूएस राजनयिकों के घर की मेड और नौकरों के वेतन आदि की जानकारी देने को कहा गया है। इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, राष्ट्रीय सलाहकार शिवशंकर मेनन समेत भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करने से इंकार कर दिया। इन कदमों से भारत ने साफ संदेश दे दिया है कि भारतीय राजनयिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार को अमेरिका हल्के में न ले। दुःखद बात यह है कि पहले अमेरिकी चोरी करे फिर सीना जोरी करे। अमेरिकी अधिकारी अब भी कह रहे हैं कि उन्होंने अमेरिकी कानूनी प्रक्रिया के तहत काम किया है। वीजा में गलती, नौकरानी को सही वेतन न देना इत्यादि के आरोपों में किसी महिला व राजनयिक महिला के कपड़े उतरवा कर, सड़क पर हथकड़ी लगाकर घुमाना कौन-सी कानूनी प्रक्रिया में लिखा हुआ है? चाहे वह लोकसभा चुनाव का दबाव रहा हो, चाहे वह भाजपा का दबाव, इस बार भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। हम इस रुख का स्वागत करते हैं। दुनिया के सबसे बड़े `दादा' समझे जाने वाले अमेरिका के खिलाफ इतनी जुर्रत करना, वाकई में कुछ-कुछ हैरान करने वाली बात जरूर है। ऐसा ही व्यवहार पड़ोसी देश पाकिस्तान भी भारतीय राजनयिकों से करता है। अमेरिका को कड़ा संदेश देने से शायद पाकिस्तान भी समझ जाए कि बस अब और नहीं। जिस तरह अमेरिका अपने कानूनों को गम्भीरता से लेता है, उसी तरह उसे कार्रवाई की मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए। अमेरिका को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए और कसूरवारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

अंतत लोकपाल बिल का अन्ना का सपना पूरा हुआ

46 सालों की कोशिशों के बाद आखिरकार देश को अब ऐतिहासिक लोकपाल कानून लगभग मिल गया है। राज्यसभा ने पहले ही पास कर दिया, बुधवार को लोकसभा ने भी लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2013 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। समाजवादी पार्टी को छोड़कर बाकी अन्य दलों विशेषकर भाजपा, वाम और बसपा आदि ने विधेयक का समर्थन किया। विधेयक का विरोध कर रहे सपा सदस्य सदन से वाकआउट कर गए। 2011 में जब अन्ना हजारे लोकपाल को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे तभी से यह लगने लगा था कि वह दिन दूर नहीं जब सरकार व राजनीतिक दलों को जनता की मांग को स्वीकार करना होगा। आज अगर यह कानून बनने जा रहा है तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय अन्ना हजारे को जाता है। यह उन्हीं के संघर्ष का नतीजा है। कांग्रेस और भाजपा ने भी इसका समर्थन करके अच्छा काम किया। इस क्रम में हमें कांग्रेसी सांसद व संसदीय प्रवर समिति के अध्यक्ष सत्यव्रत चतुर्वेदी को नहीं भूलना चाहिए। चतुर्वेदी की प्रशंसा करना सियासी दल भी नहीं भूले। नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा कि दो साल पहले 27 दिसम्बर 2011 को इस सरकार ने लोकपाल विधेयक पर कन्नी काट ली थी। जेटली ने कहा कि विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए प्रवर समिति के अध्यक्ष सत्यव्रत चतुर्वेदी  ने पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर कड़ी मेहनत की। जेटली के बाद सभी वक्ताओं ने चतुर्वेदी के प्रयास की सराहना की। दरअसल जब सरकार ने विपक्षी दलों की आशंकाओं को दूर कर दिया और उनके तकरीबन सारे सुझाव नए विधेयक में डाल दिए गए तो विधेयक के रुकने का कोई सवाल ही नहीं था। बेशक लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार पूरी तरह से नहीं रुकेगा पर यह सही दिशा में एक सही कदम तो है ही। सबसे बड़ी बात मेरी राय में इस विधेयक से हर स्तर पर पहली बार नेताओं, अफसरों इत्यादि की जवाबदेही तय होगी। अब तक तो किसी की किसी स्तर पर जवाबदेही ही नहीं थी। जैसा अन्ना ने कहा अब मैं खुश हूं। 50 प्रतिशत भ्रष्टाचार तो मिटेगा। संसद की मंजूरी के बाद विधेयक राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। उनके हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाएगा। राज्यों में लोकपाल की तर्ज पर लोकायुक्त बनेंगे। इसके लिए संबंधित राज्यों को कानून बनाने के लिए 365 दिन का समय दिया गया है। संशोधित लोकपाल बिल में प्रमुख प्रावधान कुछ इस प्रकार हैंöलोकपाल की जांच के दायरे में प्रधानमंत्री, सांसद और केंद्र सरकार के समूह ए, बी, सी, डी के अधिकारी और कर्मचारी आएंगे। लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री, राज्यों के मंत्री, विधायक और राज्य सरकार के अधिकारी होंगे। लोकपाल को कुछ मामलों में दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे यानि यह सजा तक दे सकता है। लोकपाल के पास भ्रष्ट अधिकारी की सम्पत्ति को अस्थायी तौर पर अटैच करने का अधिकार होगा। विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीके से कमाई गई सम्पत्ति, आय, प्राप्तियों या फायदों को जब्त करने का अधिकार होगा। केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों का गठन करना होगा जितनी लोकपाल बताए। अगर एक साल के समय में सुनवाई पूरी नहीं हो पाती तो विशेष अदालत इसके कारण दर्ज करेगी और सुनवाई तीन महीने में पूरी करनी होगी। यह अवधि तीन-तीन महीने के हिसाब से बढ़ाई जा सकती है। यह एक ऐतिहासिक कदम है और इसका असर जरूर होगा।

Thursday, 19 December 2013

उलेमाओं का आतंक व दहशतगदी के खिलाफ स्वागतयोग्य फतवा

हम जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द द्वारा बुलाए गए तीन दिवसीय विश्व शांति सम्मेलन की सराहना करते हैं। रामलीला मैदान में आयोजित समापन समारोह में सबसे ज्यादा पतिनिधि पाकिस्तान से आए थे। दूसरे नंबर पर बांग्लादेश, इंग्लैंड, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव,म्यांमार के पतिनिधि मौजूद थे। शुरुआत के दो दिन तक यह सम्मेलन दारुल उलूम देवबंद में हुआ और रविवार को समापन दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ। समापन के दिन कई सर्वसम्मति से पस्ताव पारित हुए। मगर सबसे खास था। आतंकवाद की जमकर निंदा करना और उसके खिलाफ एक सुर में फतवा जारी करना। यह पहला मौका है जब भारत और उसके आस पड़ोस के देशें के इस्लामिक विद्वान आतंक और दहशतगदी के खिलाफ एक मंच पर जमा होकर एक राय पर आ टिके हैं। सम्मेलन की अध्यक्षता बांग्लादेश के मोहम्मद सैयद उस्मान मंसूर पुरी ने की और संचालन उलेमा हिंद के पूर्व सांसद मौलाना महमूद असद मदनी ने किया। फतवा जारी करते हुए कहा गया कि आतंकवाद और दहशतगदी से न केवल बर्बादी हो रही है बल्कि यह पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ है। पाकिस्तान जमीयत उलेमा इस्लाम के पभारी मो. फजलुर रहमान ने कहा कि हमें जंग से परहेज करना चाहिए और दोनों देशों के राजनेताओं को चाहिए कि वे बातचीत के जरिए कश्मीर के मसले का हल करें ताकि अमन कायम हो सके। श्रीलंका के  मुफ्ति रियाजी साहब ने कहा कि आतंक की वजह से तरक्की रुक रही है। कई वक्ताओं ने कहा कि इस समय यह दुनिया एक तरह से ग्लोबल विलेज बन चुका है जिसमें छोटी-छोटी बातों से दुश्मनी बढ़ती है और यदि उसमें बातचीत की गुंजाइश हो तो दुश्मनी को समाप्त भी किया जा सकता है। इसी तरह नेपाल से मो. खालिद सिद्दीकी, मालदीव से शेख फहमी व म्यांमार से मो. नूर मोहम्मद ने भी आतंकवाद के कारणों का पता लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। सम्मेलन में मुजफ्फरनगर के दंगों पर पाकिस्तान सहित लगभग सभी देशों से आए उलेमाओं ने न केवल अफसोस जाहिर किया बल्कि दंगों के लिए उत्तरपदेश सरकार की जमकर खिंचाई की। एक वर्ष पहले दारुल उलूम देवबंद ने दहशतगदी के खिलाफ पस्ताव पारित किया था जिसमें करीब आठ सौ उलेमाओं ने हिस्सा लिया था लेकिन पस्ताव को सख्ती से लागू करने के लिए ही इस सम्मेलन को बुलाया गया था। हम दारुल उलूम देवबंद का इस सफल आयोजन और उसमें पारित पस्ताव का स्वागत करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

कभी न खत्म होने वाले अरविंद केजरीवाल के ड्रामे

दिल्लीवासी इन दिनों चौतरफा समस्याओं से घिरे हुए हैं। सोमवार से ऐसा कोहरा दिल्ली में सुबह के समय छाया रहता है कि घरों से निकलना दुश्वार हो गया है। विमान उड़ाने रद्द हो रही हैं, ट्रेने कैंसिल हो रही हैं या घंटें लेट चल रही हैं, महंगाई पिछले 14 माह के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है और रही सही कसर केजरीवाल एंड कंपनी ने अपने ड्रामों से निकाल दी है। कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन के बाद भी आप पार्टी ड्रामा करने पर तुली हुई है, दिल्ली में सरकार नहीं बन पा रही है। सरकार बनने में आ रही मुश्किलों के बावजूद केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की जल्दबाजी में नहीं है। राष्ट्रपति शासन लगाने समेत विभिन्न मुद्दों पर, विकल्पों पर फिलहाल गृह मंत्रालय में विचार-विमर्श किया जा रहा है। रिर्पोर्टें में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनाने से अभी तक इंकार नहीं किया है बल्कि सलाह मशविरा करने के लिए और समय की मांग की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में जल्द राष्ट्रपति ने शासन लगाने की कोई संवैधानिक मजबूरी नहीं है। 10 दिसम्बर को राष्ट्रपति ने जीते हुए विधायकों की सूची को अधिसूचित कर दिया है। इससे विधानसभा अस्तित्व में आ गई है। उनके अनुसार दिल्ली में बदलती राजनीती परिस्थितियों पर नजर रखी जा रही है और उपराज्यपाल ने किसी पाटी की सरकार नहीं बनने की स्थिति में विधानसभा को निलंबित रखते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की है। उपराज्यपाल ने शनिवार को ही   दिल्ली की राजनीतिक स्थिति के बारे में केन्द्र सरकार को अवगत करा दिया था। दिल्ली में सरकार गठन को लेकर गेंद एक पाले से दूसरे में घूम रही है। कांग्रेस ने आम आदमी पाटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की गेंद को एक बार फिर उन्हीं के कोर्ट में डाल दिया है अब देखना यह है कि आप क्या करेगी ? कांग्रेस महासचिव और दिल्ली के पभारी शकील अहमद  ने केजरीवाल को एक पत्र लिखकर बेहद सादगी और विनम्रतापूर्व तरीके से केजरीवाल को उनकी मांगें मान लेने का संदेश भेजा है। अपने पत्र में शकील अहमद ने पत्र के उन 18 मुद्दों का उल्लेख किया है जिनका आप पाटी ने जिक किया था। शकील ने कहा कि एक बार सरकार गठित हो जाने के बाद 18 में से 16 मुद्दों का कियान्वयन दिल्ली  सरकार स्वयं कर सकती है। यानी अगर केजरीवाल सरकार बनाते हैं तो यह सरकार खुद इन 16 मुद्दों का कियान्वयन करने में सक्षम है। इसमें संसद और केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। बाकी बचे दो सवाल जिनमें जनलोकपाल विधेयक और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना शामिल है। यह मामले दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। केन्द्र सरकार के दायरे वाले इन दोनों मुद्दों पर भी कांग्रेस पाटी आप का साथ देगी। जब कांग्रेस ने इतना खुला समर्थन कर दिया है तो पता नहीं और क्या चाहते हैं अरविंद केजरीवाल फिर भी सरकार बनाने में आनाकानी कर रहे हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने सोमवार को भाजपा व आप पर सीधी टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनावों में उन्हेंने वोट पाने के लिए ऐसे वायदे किए हैं जो वह पूरा नहीं कर सकती हैं। इस वजह से यह सरकार बनाने के लिए आगे नहीं आ रही हैं। शीला जी ने कहा कि अब दोबारा से चुनाव होते हैं तो कांग्रेस फिर से सत्ता में आएगी। चुनाव के बाद से ही दिल्ली में अस्थिरता का खतरा मंडरा रहा है। इस दौरान अरविंद केजरीवाल और उनकी आप पाटी के ड्रामे चालू हैं। पिछले दस दिनों से आप यह तय नहीं कर पा रही है कि वह सरकार बनाएगी या नहीं? दिल्ली के तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कहीं न कहीं आप पाटी फंसती नजर आ रही है। अब चारों तरफ से यह सवाल उठने लगे हैं कि आप को सरकार बनाने के बाद कम से कम बिजली की दर फीसदी घटाने और हर परिवार को पतिदिन 700 लीटर पानी मुफ्त देने जैसे चुनावी वायदों पर काम करना शुरू करना चाहिए। अब आपने फैसला किया है कि वह एक बार फिर जनता दरबार में जाएगी। आप नेता आम जनता से पूछेंगेः क्या हम सरकार बनाएं या नहीं? क्या कांग्रेस पाटी से समर्थन ले लें?  सरकार बन गई और कांग्रेस पाटी को आप का एजेंडा पसंद नहीं आया तो? अगर कांग्रेस पाटी एक-दो माह में समर्थन वापस ले ले तो? जिन मुद्दों पर कांग्रेस ने साथ देने की बात कही है उस पर भरोसा करें या नहीं? कहीं यह समर्थन आगामी लोकसभा चुनाव में आत्मघाती तो सिद्ध नहीं होगा?  भ्रष्टाचार की फाइलें जब पलटेंगी तो कई नेता जेल भी जाएंगे, ऐसे में कांग्रेस उनका साथ छोड़ देगी तो?  एक बार फिर वहीं पहुंच गए हैं जहां से यह सियासत दंगल आरम्भ हुआ थाः जनता में। देखें, अब आगे कौन-सा ड्रामा करते हैं केजरीवाल।



Wednesday, 18 December 2013

समलैंगिकता अपराध या अधिकार?

समलैंगिक संबंधों को वैध ठहराने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पलट कर इस मसले पर व्यापक बहस और खेमाबंदी आरम्भ हो गई है। जहां एक तरफ प्रगतिशील कहे जाने वाले तबके ने इसे प्रतिगामी कदम करार दिया है वहीं धार्मिक संगठनों व बाल अधिकार के लिए कार्यरत संस्थाओं ने इस फैसले का स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि जब तक आईपीसी की धारा 377 वजूद में है, समलैंगिक यौन संबंधों को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती, यदि संसद चाहे तो इस पर चर्चा करके उचित निर्णय ले सकती है। देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के वर्ष 2009 के फैसले को पलट कर 1861 के इस कानून को न केवल वैध करार दिया है बल्कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक भावनाओं का भी हवाला दिया है। असल में समलैंगिक संबंधों को वैध करार देने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर अनेक धार्मिक-सांस्कृतिक संगठनों ने ही चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं, समलैंगिकता मानव अधिकार का हनन है और यह एक मानसिक विकृति है जिसका इलाज है। बाबा रामदेव ने समलैंगिकता को जैनेटिक कहे जाने के तर्प को गलत बताया। उन्होंने कहा कि यदि हमारे माता-पिता समलैंगिक होते तो हमारा जन्म ही न होता। यह अप्राकृतिक है और एक बुरी आदत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सहारनपुर जिले के दारुल उलूम देवबंद सहित अन्य उलेमाओं ने भी स्वागत किया है। उलेमाओं ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा कि समलैंगिकता को दुनिया का कोई भी मजहब अनुमति नहीं देता। विश्व प्रसिद्ध इस्लामी अदारा दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मानवता और सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप है जिसे सख्ती से अमल में लाया जाना चाहिए, मजहब-ए-इस्लाम में समलैंगिकता अपराध की बहुत बड़ी सजा है। दूसरी ओर समलैंगिकताओं की लड़ाई लड़ने वाली ऋतु सेन ने कोर्ट के निर्णय पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि फैसले से हमारा अधिकार ही खत्म हो गया है जबकि संविधान हम सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार देता है। किन्नर संगठन `अस्तित्व' की प्रमुख लक्ष्मी पांडे ने कहा कि आज हमें भारतीय होने पर दुख हो रहा है क्योंकि हमें वह अधिकार नहीं है जो साधारण भारतीय नागरिक को प्राप्त हैं। फैसले से किन्नरों और समलैंगिकों पर अत्याचार बढ़ेगा। किन्नर ट्रस्ट से जुड़ी समलैंगिक रुद्राणी ने कहा कि 2009 के कोर्ट के फैसले के बाद लोगों की हमारे बारे में धारणा बदली थी। पुलिस भी कम परेशान करती थी लेकिन अब पुलिस हमें ज्यादा परेशान  करेगी। अगर आंकड़ों की हम बात करें तो भारत में लगभग 25 लाख समलैंगिक हैं जिनमें से 1.75 लाख समलैंगिक एचआईवी संक्रमित हैं। कुछ देशों में 01-14 साल तक की जेल का प्रावधान है, कुछ देशों में तो समलैंगिक संबंध बनाने पर मौत की सजा तक दी जाती है। लगभग 77 देशों में अपराध घोषित है समलैंगिकता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आने के बाद जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे लोगों की स्वतंत्रता से जुड़ा मामला बताया है उसके बाद इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी और सरकार की कवायद तेज हो गई है कि समलैंगिकों को राहत पहुंचाने के लिए शायद सरकार एक अध्यादेश लाने की तैयारी कर रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उनकी निजी राय में हाई कोर्ट का निर्णय उचित था। इसके बाद कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने राहत का संकेत दिया और मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि सरकार जल्द ही राहत के लिए अध्यादेश ला सकती है। उधर भाजपा ने अपना रुख स्पष्ट करने से बचते और गेंद सरकार के पाले में डालते हुए कहा कि अगर सरकार इस बारे में प्रस्ताव लाना चाहती है तो वह इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाए। सुषमा स्वराज ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि संसद इस विषय को तय कर सकती है। समलैंगिकता की वकालत करने वाले कहते हैं कि दो बालिग यदि एकांत में संबंध बनाते हैं तो मौजूदा प्रगतिशील दौर में इसमें कानूनी हस्तक्षेप अनुचित है। वैसे भी हमारे संविधान की मूल भावना यह है कि आपकी आजादी की सीमा वहां तक है जहां से दूसरों की आजादी शुरू होती है। इस आधार पर भी कुछ लोग कोर्ट के फैसले की तीखी आलोचना कर रहे हैं तो उनकी अभिव्यक्ति का भी सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि न तो भारतीय समाज और न ही हमारे धर्म ऐसे रिश्तों को अवैध मानते हैं। फर्ज कीजिए कि अगर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यदि ठीक विपरीत होता तब भी उसकी उतनी ही तीखी आलोचना होती। अब उचित यही होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 को हटाने या उसमें जरूरी फेरबदल करने का जिम्मा संसद पर छोड़ा है तो उसे अपनी भूमिका निभानी चाहिए। साथ ही यह भी विचार करना चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि जिन मुद्दों पर संसद में गहन विचार-विमर्श होना चाहिए वे अदालती कार्यवाही का मुद्दा बने ही क्यों?

-अनिल नरेन्द्र

आप पार्टी ने कहा, अन्ना कौरवों के साथ हैं ः लोकपाल विधेयक पर मतभेद

लोकपाल के लिए एक साथ आंदोलन करने वाले अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के बीच इसी विधेयक को लेकर मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं या यूं कहें कि इसको लेकर दोनों में ठन गई है। इस विधेयक के राज्यसभा में सर्वसम्मति से पास होने से पहले ही आम आदमी पार्टी और अन्ना हजारे के बीच तीखी बहस छिड़ गई है। आप ने तो लोकपाल मुद्दे पर खुद को पांडव और अन्ना को एक तरह से सिंहासन से जोड़कर कौरवों का साथ देने वाला बता दिया। अन्ना केंद्र सरकार द्वारा लाए गए लोकपाल बिल का जहां समर्थन कर रहे हैं वहीं केजरीवाल इसे अब भी जोकपाल बिल बता रहे हैं। आप पार्टी के बड़बोले नेता कुमार विश्वास ने अन्ना के रुख पर फेसबुक पर लिखाöमहासमर में कभी-कभी ऐसा समय आता है, जब पितामह भीष्म के मौन और गुरु द्रोण के सिंहासन से सहमत हो जाने पर भी कंटकपूर्ण पथ पर चलकर पांच पांडवों को युद्ध जारी रखना पड़ता है। आप पार्टी युद्ध जारी रखेगी। इस बीच अरविंद केजरीवाल ने फिर मौजूदा लोकपाल को जोकपाल बताते हुए कहा कि इस बिल से मंत्री तो छोड़िए, चूहा तक जेल नहीं जा सकेगा। इस बिल से भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा बल्कि यह भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम करेगा। दूसरी ओर अन्ना हजारे ने कहा कि लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने इस विधेयक को अब तक ठीक से पढ़ा नहीं है। उन्हें इसे ठीक से पढ़ना चाहिए। अगर आम आदमी पार्टी को सरकारी लोकपाल पसंद नहीं आ रहा है तो वह आगे इसकी कमियां दूर करने के लिए आंदोलन करें। उधर अन्ना हजारे का अनशन आज भी जारी है। इस दौरान उनका वजन चार किलो घटा है। ब्लड प्रैशर लगातार बढ़ रहा है। समर्थन में जनसैलाब भी उमड़ रहा है। दिल्ली समेत कई राज्यों से दो से तीन हजार लोग रालेगण सिद्धि पहुंच रहे हैं। रविवार को मुंबई के डिब्बे वालों ने भी अनशन में भाग लिया। दोनों के बीच असहमति के आठ प्रमुख बिंदु हैं। नियुक्तिöप्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता, स्पीकर, चीफ जस्टिस और एक न्यायविद की समिति चुनाव करेगी। इसमें नेताओं का बहुमत है जबकि लोकपाल को इनके खिलाफ ही जांच करनी है। बर्खास्तगीöइसके लिए सरकार या 100 सांसद सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर सकेंगे। इससे लोकपाल को बर्खास्त करने का अधिकार सरकार, नेताओं के पास ही रहेगा। जांचöलोकपाल सीबीआई सहित किसी भी जांच एजेंसी से जांच करा सकेगा। लेकिन उसके हाथ में प्रशासनिक नियंत्रण नहीं रहेगा यानि जांच अधिकारियों का ट्रांसफर, पोस्टिंग सरकार के हाथ में ही होगी। व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शनöसरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को संरक्षण के लिए अलग बिल बनाया है। उसे इसी बिल का हिस्सा होना चाहिए। सिटीजन चार्टरöसरकार ने आवश्यक सेवाओं को समय में  पूरा करने के लिए अलग से बिल बनाया है जबकि इस बिल का हिस्सा बनाना चाहिए था ताकि जन लोकपाल अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कर सके। राज्यों में लोकायुक्तöलोक आयुक्तों की नियुक्ति का मामला राज्यों के विवेक पर छोड़ा गया है। अगस्त 2011 में संसद ने सर्वसम्मति से यह आश्वासन दिया था। फर्जी शिकायतेंöझूठी या फर्जी शिकायतें करने वाले को एक साल की जेल हो सकती है। इसके डर से लोकपाल में सही शिकायतें नहीं होंगी। जन लोकपाल में जुर्माने की व्यवस्था है जेल की नहीं। अंतिम है दायरे को लेकर। न्यायपालिका के साथ ही सांसदों के संसद में भाषण व वोट के मामलों को अलग रखा है वहीं जन लोकपाल बिल में जजों, सांसदों सहित सभी लोक सेवकों को रखा था।

Tuesday, 17 December 2013

आतंकियों पर केस वापस नहीं ले सकती अखिलेश सरकार

यह दुख की बात है कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार को अदालत की फटकारों से कोई फर्प नहीं पड़ता और उसे इनकी कोई परवाह भी नहीं। अकसर अखिलेश सरकार को फटकारें लगती ही रहती हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जहां आतंकी घटनाओं में आरोपियों पर चल रहे मुकदमे वापस लेने पर फटकार लगाई वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर और शामली के दंगों के बाद रिलीफ कैम्प में रहने वाले 39 बच्चों की मौत के मामले में चिन्ता जताते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह कैम्प में रहने वालों के लिए जाड़े के मद्देनजर तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराए। चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम और जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने मामले को बेहद गम्भीर बताते हुए कहा कि बच्चों की मौत के संबंध में मीडिया रिपोर्ट की सच्चाई का पता लगाए। दूसरा करारा झटका है इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 19 लोगों के खिलाफ आतंकवाद के मामले हटा लेने के उसके फैसले को रद्द करना। हाई कोर्ट का कहना है कि इन लोगों के खिलाफ केंद्रीय धाराओं के तहत मामले दर्ज हुए हैं, इसलिए बिना केंद्र सरकार की इजाजत के राज्य सरकार मामले वापस नहीं ले सकती। जस्टिस देवी प्रसाद सिंह, जस्टिस अजय लाम्बा और जस्टिस अशोक पाल सिंह की बेंच ने यह व्यवस्था देते हुए साफ किया कि आतंकवादी वारदात अथवा देशद्रोह के आरोपियों के मुकदमे वापस लेने के लिए असाधारण कारण होने चाहिए। यदि सरकार बिना कोई कारण बताए मुकदमे वापस लेने का आदेश देती है तो लोक अभियोजक को अपनी स्वतंत्र राय रखनी चाहिए। 96 पेज का यह फैसला वृहद पीठ ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद सुनाया। इससे पहले मामले की सुनवाई कर रही एक खंडपीठ ने चार कानूनी सवाल तय करते हुए जवाब के लिए मामले को वृहद पीठ को भेजा था। राज्य सरकार के लिए यह एक राजनीतिक झटका तो है ही क्योंकि वह मुजफ्फरनगर दंगों के बाद समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की पुरजोर कोशिश कर रही है। इस फैसले से अल्पसंख्यक तो खुश नहीं होंगे, साथ ही सरकार विरोधी ताकतों को प्रचार का मौका जरूर मिल जाएगा कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण कर रही है। राज्य सरकार ने यह वादा किया था कि वह निर्दोष मुस्लिम नवयुवकों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेगी और इसी क्रम में उसने सन 2007 में लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद में हुए दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार इन 19 लोगों के खिलाफ मामले वापस लेने की घोषणा की थी। आतंकवाद हमारे देश के लिए सबसे  बड़े खतरों में से एक है, लेकिन इस समूचे कांड में घटनाक्रम यह बताता है कि हमारा राजनीतिक नेतृत्व वोट बैंक पालिटिक्स के चलते इन ज्वलंत मुद्दे से निपटने के लिए कितना गम्भीर है। यह सही है कि किसी निर्दोष नवयुवक को केवल फाइल को खानापूर्ति करने के लिए जबरदस्ती किसी भी मामले में विशेषकर आतंकी व देशद्रोह के मामले में कतई नहीं फंसाया जाना चाहिए पर आरोपी निर्दोष है या कसूरवार यह तय करना अदालतों का कार्य है न कि राज्य सरकारों का राजनीतिक नेतृत्व। अखिलेश सरकार की अपनी निष्पक्ष छवि के लिए जरूरी है कि वह ऐसे मामलों को अदालतों पर छोड़ दे। बार-बार की फटकार से तो उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी एक्सपोज अलग हो रही है और थू-थू अलग करवा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर कब मिलेगा निर्भया को इंसाफ?

16 दिसम्बर 2012 की उस सर्द रात को सड़क किनारे बगैर कपड़ों के पड़े पैरामेडिकल की छात्रा व उसके दोस्त, वह सीन आंखों के सामने अभी भी ताजा हैं, शायद ही कभी भूल पाएं। ऐसा लगता है कि कल ही की तो बात है। निर्भया कांड को एक साल हो गया पर इस साल में क्या बदला? बेशक कई क्षेत्रों में जैसे बेहतर पोलीसिंग, पुलिस सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम कानून इत्यादि में जरूर परिवर्तन हुआ है पर दरिंदगी में कमी नहीं आई। देश को हिला देने वाली वसंत विहार गैंगरेप की घटना और उसके बाद उठाए गए कदमों के बावजूद दिल्ली वाले नहीं सुधरे हैं। दिल्ली वालों ने दुष्कर्म के मामलों में तो रिकार्ड ही तोड़ दिया है। यह जानकर हैरानी होगी कि निर्भया मामले के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के मामले में लगभग दोगुनी जबकि छेड़छाड़ के मामलों में तिगुनी बढ़ोत्तरी हुई है। रोजाना तीन से चार दुष्कर्म तथा पांच से सात छेड़छाड़ के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ खास यह भी है कि पहले जहां महिलाएं व युवतियां अपने साथ हुई ज्यादती की शिकायत करने से कतराती थीं, बचती थीं वहीं अब वह खुलकर अपनी समस्याओं के बारे में बता रही हैं। यह निर्भया मामले का ही असर है कि राजधानी के प्रत्येक थाने में महिला डेस्क ने काम शुरू कर दिया है जबकि पब, सिनेमा हॉल, मॉल्स तथा बस स्टाप से निकले प्रेमी युगल की डिमांड के अनुसार अब पीसीआर उनके घर तक छोड़ती है। वो जीना चाहती थी। अस्पताल में इलाज के दौरान बिताए गए 13 दिन में उसने इसका प्रमाण भी दिया, लेकिन दर्दनाक हादसे ने उसे इतने दर्द दिए कि उसे बचाना मुश्किल हो गया। सिंगापुर जाने से पहले उसने केवल तीन बार अपनी बात लिखकर समझाने की कोशिश की और तीनों बार उसने यही प्रश्न किया, मेरे दोषियों को सजा मिली या नहीं? दुख से कहना पड़ता है कि दोषियों को एक साल बीतने के बाद भी केस अदालतों में ही फंसा हुआ है। हाई कोर्ट ने भले ही सुनवाई हर रोज करने का फैला किया, लेकिन बचाव पक्ष के रवैये के चलते सुनवाई लंबी ही खिंचती जा रही है। बचाव पक्ष के वकील कभी दस्तावेजों के हिन्दी अनुवाद को लेकर जिरह टाल रहे हैं तो कभी कोई दूसरा बहाना बनाकर अदालत से गायब हो जाते हैं। 23 सितम्बर से हाई कोर्ट की सुनवाई शुरू हुई लेकिन जिरह एक नवम्बर से ही शुरू हो पाई। अभियोजन पक्ष ने मात्र 8 दिनों में जिरह पूरी कर ली, लेकिन बचाव पक्ष 33 दिनों में जिरह शुरू नहीं कर पाया है। हाई कोर्ट के जल्द सुनवाई के फैसले से  लग रहा था कि नवम्बर तक मामले का निपटारा हो जाएगा, मगर बचाव पक्ष ने ऐसा कानूनी दांव मारा कि अब तक जिरह शुरू भी नहीं हो पाई। अभी सुप्रीम कोर्ट बाकी है। पता नहीं कि दोषियों को कब सजा मिलेगी? निर्भया का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। व्यवस्था में सुधार हो रहा है पर अभी भी काफी कमियां हैं। इन पर सभी को ध्यान देना होगा। दिल्ली रेप कैपिटल ऑफ इंडिया बनती जा रही है। अकेले पुलिस नहीं दोषी, समाज भी उतना ही दोषी है। जरूरत लोगों की मानसिकता बदलने की है, महिलाओं को इज्जत की नजरों से देखने की है। कुछ का मानना है कि एक  बार निर्भया कांड के दोषियों को फांसी पर लटका दिया जाए तो शायद स्थिति में सुधार हो पर सवाल यह है कि कब लटकेंगे ये फांसी पर? कब मिलेगा निर्भया को इंसाफ?