Sunday 14 October 2018

मी टू अभियान तेजी पकड़ता जा रहा है

यौन शोषण के मामलों को उजागर करने के लिए अमेरिका में मी टू नाम से शुरू हुआ अभियान दुनिया के अन्य देशों में असर दिखाने के बाद भारत में भी अब जंगल की आग की तरह फैलता जा रहा है। मी टू को अब शी टू और यू टू में परिणत करने की कोशिश हो रही है। केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर का नाम आने से यह राजनीति का भी मुद्दा बन गया है। अकबर पर अब तक पिछले कुछ दिनों में नौ महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। फिल्म जगत से लेकर मीडिया और राजनीति की दुनिया से जुड़े कुछ बड़े नाम महिलाओं से यौन शोषण के आरोपों से घिर गए हैं। यह सच है कि गांवों से लेकर कस्बों और शहरों तक लड़कियों व महिलाओं की ऐसी बड़ी संख्या होगी, जिनको कभी न कभी यौन दुराचार का शिकार होना पड़ा है। यह हमारे समाज का एक कूर सत्य है। भारत में इस अभियान का असर दिखना इसलिए अच्छा है क्योंकि यह सच्चाई है कि अपने यहां भी महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है। समर्थ-सक्षम लोग अपने पद या प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर महिलाओं को अपनी यौन लिप्सा का शिकार बनाते हैं। किन्तु वर्तमान अभियान में अभी तक ज्यादातर उच्च मध्यम वर्ग या सोशलाइट मानी जानी वाली कुछ महिलाएं ही सामने आई हैं, जिनमें से ज्यादातर मुक्त यौनाचार की वकालत करती हैं। 20-20 साल पुराने मुद्दे भी उखाड़े जा रहे हैं। हालांकि हमारा यह भी मानना है कि मुक्त यौनाचार का मतलब यह नहीं कि कोई किसी को इसके लिए मजबूर करे। इसमें कई महिलाएं भी दोषी हैं। वह कभी-कभी अपने कैरियर-पोजीशन को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। हां, जहां नाजायज फायदा उठाकर महिला से यौनाचार हुआ उसको हम कंडम करते हैं और कसूरवारों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर महज शिकायत लगाने से कोई भी आरोप साबित नहीं हो जाता। सोशल मीडिया में हैशटैग क्ष् मी टू पर महिलाओं द्वारा की जा रही यौन उत्पीड़न की शिकायतों का कानून में कोई महत्व नहीं है। कानून की मशीनरी तभी सक्रिय होगी जब पीड़ित महिला इसकी औपचारिक शिकायत पुलिस में करेगी। अन्यथा आरोप लगाने वाले पीड़ित गंभीर रूप से उस व्यक्ति की मानहानि के दायरे में रहेंगे जिस पर उसने आरोप  लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराने पर ही कोई कार्रवाई हो सकती है। यह शिकायत आईपीसी की धारा 354 (सम्मान से छेड़छाड़, बेइज्जती) और धारा 376 के तहत दर्ज की जा सकती है। हालांकि पुलिस इस मामले में गिरफ्तारी नहीं करेगी क्योंकि उसे पहले यह जानना होगा कि महिला इतने दिन तक चुप क्यों रही? ऐसे मामले जो कई साल पुराने हैं, उनमें मेडिकल सबूत नहीं मिलेंगे। यदि उनके पास अन्य सबूत जैसे इलैक्ट्रॉनिक साक्ष्य (मेल, वीडियो रिकॉर्डिंग, व्हाट्सएप आदि) उन्हें बता सकती हैं। सबूत मिलने पर यह मामला कोर्ट में सिद्ध हो सकता है। यह भी देखा गया है कि एक समय आपके संबंध बहुत अच्छे रहे हैं, आपने सहमति से सहवास किया और आगे जब संबंध खराब हो गए तो आप उसे यौन शोषण का मामला बना दें। अगर कोई महिला आरोप लगा दे तो पुरुष को कसूरवार मान लिया जाता है, उसका स्पष्टीकरण भी हम सुनने के लिए तैयार नहीं होते। यह स्थिति भी ठीक नहीं है। अगर किसी महिला को अपने साथ हुए यौनाचार के लिए न्याय मांगने का अधिकार है तो पुरुष को भी अपना पक्ष रखने का अधिकार है। कोई निष्कर्ष निकालने से पहले हमें दोनों पक्षों को सुनना चाहिए। न्याय सबके लिए समान है। इसलिए इस पर संतुलित नजरिया जरूरी है। यह कहना कठिन है कि भारत में सहसा शुरू हुए मी टू अभियान का अंजाम क्या होगा, लेकिन महिलाओं के यौन शोषण से बचाए रखने वाले माहौल का निर्माण हर किसी की प्राथमिकता होनी चाहिए। अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया ट्रंप का कहना है कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिलाओं को सुना जाए। लेकिन पुरुषों को भी मौका मिलना चाहिए।

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