Wednesday 3 October 2018

उत्तर प्रदेश की खूनी खाकी

यूपी पुलिस की कुख्याति क्यों है और क्यों भले लोग उससे बात करने और पास जाने से घबराते हैं? यह कूर सच एक बार फिर उजागर हुआ है। राजधानी लखनऊ में एक सिपाही ने एक निर्दोष व्यक्ति विवेक तिवारी को गोली से उड़ा दिया। पुलिस की बर्बरता का शिकार दो नन्हीं बेटियों का यह पिता हमेशा के लिए सो गया। पुलिस के इस कूरता भरे उदाहरण की जितनी निन्दा की जाए कम है। वह व्यक्ति देर रात करीब पौने दो बजे अपनी एक महिला सहकर्मी के साथ अपने ऑफिस से लौट रहा था। यह कोई अपराध नहीं था। अगर उस व्यक्ति ने कार नहीं रोकी भी थी तो भी उसकी सजा उसे गोली मार देना नहीं है। उस कार को रोकने के और भी तरीके थे, नम्बर प्लेट के जरिये पुलिस कार मालिक तक पहुंच सकती थी। लेकिन उस कार की टक्कर से पुलिस की बाइक गिर जाने के बाद एक सिपाही ने कार मालिक पर सामने से जिस तरह गोली चलाई, वह पुलिसिया रौब व खाकी गुंडागर्दी की चरम पर था। मानों यह नृशंसता ही कम न हो, गंभीर अपराध हो जाने के बाद सिपाहियों ने जिस तरह खुद को बचाने के लिए झूठी कहानी गढ़ी, वह तो और भी शर्मनाक है। सिपाहियों का आरोप था कि कार मालिक ने उन्हें रौंदने की कोशिश की, ऐसे में आत्मरक्षा में इन्हें गोली चलानी पड़ी। लेकिन ऐसे में न तो सिपाहियों के लिए कार से तेज दौड़कर गोली चलाना संभव है, न ही सिर में गोली लगने के बाद किसी के लिए चार सौ मीटर तक कार चलाना मुमकिन है। घटना बहुत बड़ी थी तो राज्य सरकार भी तत्काल हरकत में आई। एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी हत्याकांड में प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने माना कि कुछ बड़े पुलिस अफसर मामले को दबाने, तथ्यों से छेड़छाड़ और लीपापोती में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार निर्दोष की हत्या करने वाले पुलिस कर्मियों समेत किसी भी अपराधी को माफ नहीं करेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी फोन पर विवेक तिवारी के परिजनों से बात कर दुख जताया। सिपाहियों को बर्खास्त करके जेल भेज दिया गया है, लेकिन सिपाहियों की सजा विवेक की पत्नी और बेटियों को जीवनभर के लिए यातना व दुख के सामने कुछ नहीं है। जीवन एक पल में बदल जाता है, यह सत्य इस घटना की सत्य की बानगी है। घटना के बाद जिस तरह से लखनऊ से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक दल टिड्डी की तरह संवेदना का व्यापार करने टूट पड़े हैं वह और भी शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश में सिपाही गोली मारते हैं और विधायक थप्पड़। यह पहचान बन गई है देश के सबसे बड़े प्रदेश की पुलिस की दंगाई का, जाहिर है यह अकेला उदाहरण नहीं है, आए दिन पुलिस की कूरता के ऐसे मामले सामने आते हैं। दुख से कहना पड़ता है कि योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री पुलिस को कंट्रोल करने में बुरी तरह से फेल हो रहे हैं। यह विडंबना है कि जो पुलिस आम लोगों की सुरक्षा के लिए है। वह दबंगाई, अवैध वसूली और संवेदनहीनता का पर्याय बन गई है। यहां तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को भी नजरंदाज किया जा रहा है।

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