राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा कथित लाभ के पद के
मामले में आम आदमी पार्टी (आप)
के दिल्ली के विधायकों को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य करार देने की
मांग वाली याचिका खारिज करने से आप को नई ऊर्जा मिली है। रोगी कल्याण समिति में लाभ
के पद मामले में 27 विधायकों को राष्ट्रपति से राहत मिलने से
दिल्ली सरकार को बड़ी राहत मिली है। लाभ का पद लेने के आरोपों के चलते 27 विधायकों की सदस्यता जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं। रोगी कल्याण समितियों
के प्रमुख का पद लेने के अलावा भी संसदीय सचिव के तौर पर लाभ का पद लेने के आरोप का
एक अन्य मामला भी आप विधायकों के खिलाफ चल रहा है। संसदीय सचिव बनाए गए आप के
20 विधायकों पर भी लाभ के पद मामले में फैसला आना बाकी है। जनवरी
2018 में चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने इन विधायकों को अयोग्य
घोषित कर दिया था। हालांकि हाई कोर्ट ने 23 मार्च को इस फैसले
को रद्द करते हुए विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी। हाई कोर्ट ने कहा था कि आयोग ने
विधायकों का पक्ष सुने बगैर उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश
कर दी। हाई कोर्ट ने आयोग को विधायकों का पक्ष सुनने का आदेश दिया। इसके बाद दोबारा
से सुनवाई होने पर विधायकों ने मामले में शिकायतकर्ता प्रशांत पटेल व सरकार के कुछ
अधिकारियों से जिरह करने की अनुमति मांगी। मगर 17 जुलाई को आयोग
ने मांग को खारिज कर दिया। बाद में हाई कोर्ट ने आयोग को विधायकों की मांग पर विचार
करने व उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया। इसके बाद एक बार फिर से आयोग ने विधायकों
द्वारा गवाहों से जिरह की अनुमति देने की मांग को खारिज कर दिया। अब विधायकों ने फिर
से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 27 विधायकों के केस में महामहिम
ने अपने आदेश में साफ कहा है कि चुनाव आयोग की ओर से दी गई राय के हिसाब से विषय पर
ध्यान देने के बाद मैं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम की धारा
15(4) के तहत मुझे दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश देता
हूं कि अल्का लांबा और दिल्ली विधानसभा के 26 दूसरे सदस्यों के
कथित अयोग्यता के सवाल को लेकर विभोर आनंद द्वारा 21 जुलाई
2016 को दायर याचिका बरकरार रखे जाने योग्य नहीं है। इससे पूर्व संसदीय
सचिव मामले में भी 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने व फिर उस
पर रोक लगने से पार्टी को बड़ी राहत मिली थी। इन दोनों मामलों में भाजपा व कांग्रेस
को झटका लगा जबकि आप को आक्रामक होने का मौका मिला है। पार्टी के उस तर्प को भी मजबूती
मिली कि उसके विधायकों को किसी मामले में फंसा कर काम करने से रोका जा रहा है। आप नेता
दलीप पांडे व गोपाल राय ने सवाल उठा दिया कि इससे स्पष्ट हो गया है कि उनके विधायकों
को काम नहीं करने दिया जा रहा। भाजपा पार्टी उनकी सरकार को फेल करने के लिए हर प्रकार
के हथकंडे अपना रही है, बावजूद इसके वे काम करने में लगे हुए
हैं। आप इन दोनों मुद्दों को चुनाव में अहम मुद्दा बनाने में पीछे नहीं रहेगी। जनता
को यह अहसास दिलवाया जाएगा कि किस प्रकार आम लोगों के काम में अड़ंगा लगाया जा रहा
है। आम आदमी पार्टी की खुशी तब और बढ़ गई जब दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ
मारपीट केस में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री
मनीष सिसोदिया और आप के 11 विधायकों को एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन
मजिस्ट्रेट समर विशाल ने जमानत दे दी। फिलहाल तो आम आदमी पार्टी के दोनों हाथों में
लड्डू हैं।
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