Saturday, 20 October 2018

मी टू अभियान में गई अकबर की सल्तनत

अनेक महिला पत्रकारों की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे विदेश राज्यमंत्री व वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर के पास मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया था। साढ़े चार साल में मोदी सरकार के अकबर पहले मंत्री हैं जिन्हें ऐसे गंभीर आरोपों के कारण पद से हटना पड़ा। आरोप लगाने वाली महिलाओं की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही थी उसमें अकबर ने त्याग पत्र देकर सरकार और भाजपा को और अपमानित होने से बचा लिया। उचित तो यही होता कि वह अपनी विदेश यात्रा से लौटते ही इस्तीफा दे देते क्योंकि उस समय तक कई महिलाएं उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगा चुकी थीं। अपने ऊपर लगे दाग धोने के लिए दम-खम के साथ कानूनी लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले अकबर को आखिरकार झुकना पड़ा। अकबर का इस्तीफा मांग रही कांग्रेस की न तो यह सियासी जीत है और न ही इससे पल्ला झाड़ने वाली भाजपा की हार। यह जीत है मी टू चलाने वाली महिलाओं की, जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिये सरकार पर इतना दबाव बना दिया कि अकबर का इस्तीफा मजबूरी बन गया। यदि अकबर को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना होता तो वे यौन शोषण के पहले आरोप के बाद ही दे देते, लेकिन 10 दिन बाद विदेश से लौट कर इस्तीफा दिया। लौट कर भी सफाई पेश करने के बजाय आक्रामक रुख अपनाया। आरोप लगाने वाली करीब 20 महिला पत्रकारों को झूठा ठहरा रहे हैं। दुख से कहना पड़ता है कि अकबर की दलीलों में दम नहीं है और वह बेहद खोखली हैं। उन्होंने कहा कि वे सियासी साजिश के शिकार हुए हैं यानि 20 महिला पत्रकार विपक्ष के कहने पर उन पर आरोप लगा रही थीं, वह भी अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर। सरकार के पास विकल्प सीमित थे। पहले भाजपा ने कहा कि वह अकबर की सफाई का इंतजार करेगी। फिर उन्हें एक वरिष्ठ मंत्री के सम्पर्प में रहने को कहा, लेकिन पार्टी ने नफा-नुकसान का हिसाब लगाने के बाद अंतत उनसे इस्तीफा देने के कहा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मंगलवार को अकबर से मिलने पहुंचे तो कयास लगाए कि वे शायद इस्तीफा देने का संदेश लेकर गए थे। पार्टी ने उन्हें समझाया कि अदालत में बतौर मंत्री उनका पेश होना और केस लड़ना उचित नहीं होगा। दरअसल पांच राज्यों में चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक मुद्दा बनने की आशंका ने पार्टी नेतृत्व के हाथ बांध दिए थे। राहुल गांधी ने कहना शुरू भी कर दिया था कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार के मंत्रियों से अपनी बेटी बचाओ। निश्चय ही जिन पत्रकारों ने अकबर के खिलाफ सोशल मीडिया या लेख वगैरह के जरिये आरोप लगाए हैं, उनमें से कोई भी उनके खिलाफ अदालत या थाने नहीं गई (एक को छोड़कर) और यह भी साफ है कि इतने वर्ष बाद उन आरोपों को साबित करना आसान नहीं होगा। इसी साल फिल्म सितारे जितेन्द्र पर एक उनके रिश्तेदार ने 20 साल बाद यौन शोषण का आरोप लगाया था। मुंबई हाई कोर्ट ने इसे आईपीसी की धारा के तहत इस बिनाह पर खारिज कर दिया था कि मामला तीन साल से ज्यादा पुराना है और इतने सालों के बाद न तो यह साबित हो सकता है और न ही कोई सबूत बचा होगा। इसलिए इन महिला पत्रकारों के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है कि वे विभिन्न संस्थानों में अपने साथ हुए उत्पीड़न को तार्पिक परिणति तक पहुंचाएं। दूसरी ओर एमजे अकबर खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ एक नागरिक के तौर पर कानूनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं, लेकिन देश के चर्चित संपादक-पत्रकार के रूप में इन्हें पता होगा कि कोई महिला अपनी अस्मितता और प्रतिष्ठा को लेकर यूं ही आरोप नहीं लगाती।

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