Wednesday, 13 March 2019

लोक पर्व 2019 ः अब जनता की बारी है...(1)

आम चुनाव की रणभेरी बज गई है। चुनाव आयोग ने लोकसभा और चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए रविवार को तारीखों का ऐलान कर दिया। लोकसभा की 543 सीटों के लिए 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में वोटिंग होगी। नतीजे 23 मई को आएंगे। तीन जून तक नई लोकसभा का गठन हो जाएगा। चुनाव आयोग ने इस बार 100 प्रतिशत वीवीपैट के इस्तेमाल का ऐलान कर उन सभी लोगों का मुंह बंद करने की कोशिश की है जो ईवीएम पर सवाल खड़े करते हैं। कुल 90 करोड़ मतदाता, यह किसी देश में वोटर्स की सर्वाधिक संख्या है। पहली बार 21वीं सदी में जन्मे 18-19 साल के 1.6 करोड़ वोटर चुनेंगे देश की अगली सरकार। 17वीं लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने से मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोदी विरोध के नाम पर परोक्ष-प्रत्यक्ष रूप से एकजुट हुआ विपक्ष होगा। विकास में राष्ट्रवाद का छौंक लगाकर मैदान में उतरी भाजपा पूरे चुनाव को वर्तमान राजनीति में सबसे बड़े कद वाले नेता नरेंद्र मोदी पर केंद्रित करना चाहती है। भाजपा का तुरुप का पत्ता है नरेंद्र मोदी की बेदाग छवि। वर्ष 2014 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ था तब नरेंद्र मोदी की लहर थी। आज वह लहर घटी है और बेशक फिलहाल विपक्ष बंटा लगता है पर अगर विपक्षी महागठबंधन सही मायनों में प्रभावी ढंग से बन जाता है तो भाजपा को सख्त चुनौती के रूप में पेश कर सकता है। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो यूपीए को सत्ता में 10 साल हो चुके थे। भ्रष्टाचार एवं अन्य कारणों के चलते सत्ता विरोधी लहर चल पड़ी थी। भाजपा को यूपीए के प्रति नाराजगी और सत्ता से बाहर होने की सहानुभूति का लाभ मिला। उसने राष्ट्रीय स्तर पर उभर रही मोदी की छवि को भी पूरे देश में भुनाया और 30 साल के बाद कोई पार्टी (भाजपा) स्पष्ट बहुमत लेकर सरकार बनाने में सफल रही। लेकिन अब राजनीतिक स्थितियां काफी बदली हुई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में सारी सीटें जीतना भी आसान नहीं है। बीते पांच साल में बदली सियासी परिस्थितियों ने 2014 और 2019 के आम चुनाव में बड़ा अंतर पैदा कर दिया है। चुनाव में एक तरफ निर्विवाद और सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, तो दूसरी तरफ बीते पांच साल से जूझती कांग्रेस की बागडोर संभाल कर आम चुनाव से ठीक पहले सत्तारूढ़ भाजपा से अचानक तीन राज्य छीनकर अपनी ]िस्थति मजबूत करने वाले राहुल गांधी हैं। पहली बार खेती-किसानी, ग्रामीण भारत और अगड़ी जातियों के हित चुनावी मुद्दों के केंद्र में हैं तो दूसरी ओर राम मंदिर के नाम पर बालाकोट के नाम से उपजा राष्ट्रवाद रहेगा। बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी, राफेल जैसे मुद्दे विपक्ष के सबसे बड़े हथियार होंगे। बीते चुनाव में कांग्रेस को सत्ता की गाड़ी से बेपटरी करने वाले, बिना परखा चेहरा  मोदी था तो इस बार उनके मुकाबले बिना परखा चेहरा राहुल हैं। सॉफ्ट हिन्दुत्व अपनाने के साथ उन्होंने ऐन चुनाव के वक्त बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में उतार कर मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है। पांच साल पहले की सरकार और विपक्ष के लिहाज से देखें तो मनमोहन सिंह के मुकाबले मौजूदा मोदी सरकार ज्यादा मुखर व मजबूत है। मोदी सरकार ने पूरे पांच साल हावी रहने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि कांग्रेस और विपक्षी खेमे में पांचवें साल धार आई है। (क्रमश)

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