Tuesday 26 March 2019

बिना भीष्म पितामह के महाभारत 2019

भारतीय जनता पार्टी ने होली की शाम लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि लिस्ट में भाजपा के संस्थापक और चार चुनाव में भाजपा अध्यक्ष रहे लाल कृष्ण आडवाणी का नाम नहीं है। उनकी जगह गांधी नगर से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ेंगे। यह पहली बार है कि 14 साल की उम्र से संघ से जुड़े 91 वर्षीय आडवाणी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। आडवाणी के अलावा 75 पार कर चुके बीएस खंडूरी, भगत सिंह कोशयारी और बिजॉय चक्रवर्ती का भी टिकट काट दिया गया है। वर्तमान भाजपा के सभी प्रमुख चेहरे आडवाणी की ही देन हैं। स्थापना के बाद वर्ष 1984 के पहले चुनाव में महज दो सीटें हासिल करने वाली भाजपा को 182 सीटें जिता कर सत्ता का स्वाद चखाने का श्रेय भी आडवाणी जी को ही जाता है। आडवाणी जी ने वर्ष 1990 में राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा निकाल कर पार्टी को नई ऊंचाइयां दीं। राम मंदिर आंदोलन ने पूरे देश में भाजपा को आधार दिया। कलराज मिश्र ने माहौल देखकर खुद ही चुनाव न लड़ने की घोषणा की है, जबकि हुकूम देव नारायण यादव अपनी सीट पर पुत्र को टिकट दिए जाने से संतुष्ट हैं। बाकी बचे डॉ. मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार। शांता कुमार ने खुद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। वहीं जोशी जी की कानपुर सीट से राज्य संगठन ने सतीश महाना को उतारने की सलाह दी है। एक समय आडवाणी की पार्टी में छवि हिन्दू सम्राट की थी। मगर 2005 में पाकिस्तान दौरे में जिन्ना विवाद की छाया ने पार्टी में उनकी छवि कमजोर कर दी। रही-सही कसर 2009 में पीएम पद का उम्मीदवार बनने के बाद पार्टी को मिली करारी हार ने पूरी कर दी। उन्हें पार्टी का लौह पुरुष माना जाता था। आडवाणी की टिकट कटने पर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। पिछले पांच साल में पार्टी और लोकसभा में उनकी राजनीतिक सक्रियता को शक्ति शून्य और निक्रिय बनाते हुए उन्हें मार्गदर्शक मंडल का सदस्य बनाकर जैसे सम्मानित किया गया, उसकी परिणति यही थी। कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनकी 91 साल की उम्र पर विचार करते हुए उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया। लेकिन 16वीं लोकसभा में उनकी हाजिरी 15वीं लोकसभा की तुलना मे एक प्रतिशत अधिक रही है। सदन की अगली कतार में  बैठने के बावजूद उनका भाषण सुनाई नहीं दिया। 92 प्रतिशत हाजिरी के बाद भी गत पांच वर्षों में वह मात्र 356 शब्द ही बोल पाए। सच तो यह है कि विगत लोकसभा में उन्हें बोलने ही नहीं दिया गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें देवत्व का स्थान देकर उनसे बोलने का हक छीन लिया। राजनीति में खासकर भारतीय राजनीति में कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो जिस पेड़ पर चढ़ते हैं सबसे पहले उसकी शाखा को काटते हैं। गुजरात दंगों के बाद एक समय ऐसा आया था जब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सलाह दी थी। उस वक्त यही आडवाणी जी थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी को बचाया था। आज मोदी उसका कैसे शुक्रिया करते हैं और कितने कृतज्ञ हैं ताजा घटनाक्रम से पता चलता है। एक मौका ऐसा भी आया था जब सभी उम्मीद कर रहे थे कि शायद आडवाणी जी को देश का राष्ट्रपति बना दिया जाए पर इस गौरव से भी उन्हें वंचित कर दिया गया। लाल कृष्ण आडवाणी अपने जीवन का शतक लगाने से कुछ ही दूर हैं। वह सत्ता के शिखर पर भले ही न पहुंचे हों, लेकिन उससे बहुत दूर भी नहीं रहे। उनकी गिनती देश के सबसे सुलझे हुए नेताओं में होती रही है। अगर हम राजनीति में रहने वाले या सार्वजनिक जीवन जीने वाले किसी आदर्श व्यक्ति का मॉडल बनाएं तो बहुत संभव है कि वह आडवाणी के व्यक्तित्व के आसपास ही कहीं होगा।

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