Sunday 31 March 2019

हमारे सैनिकों को पत्थरबाजों से सुरक्षा मिले

ड्यूटी के दौरान कश्मीर में पत्थरबाजों के हमलों का शिकार होने वाले सुरक्षाबलों के जवानों की सुरक्षा व मानवाधिकारों के संरक्षण को लेकर सैनिक परिवारों की दो बेटियां सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने 19 वर्षीय प्रीती केदार गोखले और 20 वर्षीय काजल मिश्रा की याचिका को सुनने की अपनी अनुमति दे दी है। प्रीती केदार गोखले का कहना है कि उन्हें सीमा पर तैनात जवानों पर पूरा भरोसा है। उनके पिता खुद सेना के अधिकारी हैं। वह कभी इस बात को लेकर चिंतित नहीं होतीं कि युद्ध की स्थिति बन जाती है तो क्या होगा। उनकी पीड़ा हाथ में हथियार होने के बावजूद कश्मीरी युवकों के पत्थर खा रहे जवानों को लेकर है। प्रीती ने कहा कि मैं यहां टेलीविजन पर जब सेना के जवानों पर पथराव होता देखती हूं तो मैं उनके लिए अपमान महसूस करती हूं। उनसे ज्यादा मैं खुद को अपमानित महसूस करती हूं। पत्थरबाजी करने वाले कश्मीरी युवकों को मानवाधिकार की आड़ में बचौलिया जाता है, लेकिन उनके पत्थरों से जख्मी जवानों के मानवाधिकार कहां होते हैं? अपनी याचिका में कहा गया है कि कोर्ट सरकार को निर्देश दे कि वह उग्र भीड़ से सुरक्षाबलों का बचाव और उनके मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए नीति तैयार करे ताकि सुरक्षाबलों के जवानों को जीवन का मौलिक अधिकार संरक्षित रहे। याचिका में कहा गया है कि वह इस बात से बेहद आहत हुईं कि जिन सुरक्षाबलों को शांति कायम रखने के लिए तैनात किया गया है, उन पर पत्थर आदि के हमला किया जाता है। जब सुरक्षाबल आत्मरक्षा में कोई कार्रवाई करते हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है, जबकि हमलावरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने विधानसभा में घोषणा की है कि पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज 9760 एफआईआर वापस ली जाएंगी, क्योंकि यह उनका पहला अपराध है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार को कानून में दी गई प्रक्रिया का पालन किए बगैर इस तरह एफआईआर वापस लेने का अधिकार नहीं है। यह पत्थर फेंकने वाले बाज आने वाले नहीं हैं। अब यह चुनाव के विरोध में पत्थरबाजी करने लगे हैं। अपने पाक समर्थक आकाओं के इशारे व पैसे पर यह हमारे जवानों पर मौका देखते ही पत्थरबाजी शुरू कर देते हैं। हमारे सैनिकों को जहां पूरी छूट और सुरक्षा मिलनी चाहिए वहीं सुरक्षाबलों को भी अपनी आत्मरक्षा में सीमा को लांघना नहीं चाहिए। सेना के अगर आप हाथ बांध कर कहेंगे कि आप इन अलगाववादियों और उनके समर्थकों से निपटो तो यह संभव नहीं है। सेना बंधे हाथों से अपना काम नहीं कर सकती। हम इन बच्चियों की मांगों का समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि जो काम केंद्र सरकार अपनी वोट की राजनीति के चलते नहीं कर पा रही, वह सुप्रीम कोर्ट करेगा। देखें, आगे अदालत में क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

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