पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत के बाद से कांग्रेस फ्रंटफुट
पर खेल रही है। 4 महीने पहले तक जिन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन
के लिए साथी खोज रही थी और नंबर-2 की पार्टी बनने को तैयार थी,
अब वहां कांग्रेस सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे में बड़े भाई की हैसियत
या बराबरी का रुतबा चाहती है। इससे कम उसे स्वीकार नहीं है। इस एवज में कांग्रेस अकेले
चुनाव में जाने को तैयार है। यूपी के बाद कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अकेले लड़ने
का फैसला किया। महाराष्ट्र में वह एनसीपी के साथ नंबर-1 की हैसियत,
बिहार में राजद के साथ बराबरी चाहती है। आंध्र में भी बराबर सीट चाहती
है। सिर्फ तमिलनाडु में वह द्रमुक से कम सीटों पर सहमत हुई है। राज्य में
39 सीटें हैं, कांग्रेस 9 और द्रमुक 30 सीटों पर लड़ रही है। बिहार, जम्मू-कश्मीर, आंध्र में तो
2014 में वह नंबर टू की हैसियत से लड़ी थी, पर
इस बार बराबर सीट चाह रही है। कांग्रेस ने 23 राज्यों में अकेले
चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली है। इनमें से दो-तीन राज्य ही ऐसे
हैं जहां कांग्रेस ने कुछ छोटे दलों के साथ ही गठबंधन किया है। पर वे ऐसे दल हैं जिनकी
राष्ट्रीय पहचान नहीं है। इन 23 राज्यों में 354 सीटें आती हैं। यानी कांग्रेस करीब 65 प्रतिशत सीटों
पर अकेले चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने अभी 7 राज्यों में बड़े
क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया है। वे राज्य जहां कांग्रेस अकेले लड़ रही है उनमें
प्रमुख हैं ः यूपी (80), बंगाल (42), मध्य
प्रदेश (29), राजस्थान (25), गुजरात (25),
आंध्र (25), ओड़िसा (21), केरल (20), तेलंगाना (17), असम
(14), पंजाब (13), हरियाणा (10),
दिल्ली (7), जम्मू-कश्मीर
(6) और उत्तराखंड (5)। नार्थ-ईस्ट में 6 में से 5 राज्यों में
कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने जा रही है। केरल की वायनाड सीट से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल
गांधी के चुनाव लड़ने की संभावना से न केवल राज्य की ही सियासत गरमा गई है बल्कि दक्षिण
का अपना किला मजबूत करने की कवायद दिख रही है। केरल में कांग्रेस हमेशा से मजबूत स्थिति
में रही है, लेकिन वामदलों की टक्कर में राज्य में सत्ता परिवर्तन
होता रहता है। कांग्रेस किले को और मजबूत करना चाहती है और अगली रणनीति तैयार करने
में जुट गई है। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 9 सीटों पर कब्जा किया था। राज्य में कुल 20 सीटें हैं।
यूडीए गठबंधन (जिसका कांग्रेस भी हिस्सा थी) ने कुल 12 सीटें जीती थी। एनडीए का 2014 में खाता खुल भी नहीं पाया था। जहां तक वायनाड सीट का सवाल है यह हमेशा
से कांग्रेस का गढ़ रहा है। 2008 के बाद अस्तित्व में आई इस लोकसभा
सीट पर 2009 में 1.5 लाख वोटों से कांग्रेस
के एम.आई. शानवास की जीत हुई थी।
2014 में भी शानवास सीट बरकरार रखने में कामयाब हुए थे। नवंबर
2018 में शानवास के निधन के बाद से यह सीट खाली है। कांग्रेस के लिए
वक्त है आत्मविश्वास का। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव सबसे बड़ी चुनौती है।
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