भारतीय राजनीति में मिस्टर क्लीन के रूप में
पहचाने जाने वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर हमारे बीच नहीं रहे। उनका रविवार
शाम निधन हो गया, वह 63 वर्ष के थे। पर्रिकर ने 14 फरवरी 2018 को पेट में दर्द की शिकायत की थी। इसके बाद उन्हें मुम्बई के लीलावती अस्पताल
भेजा गया। शुरुआत में बताया गया कि फूड प्वाइजनिंग से ग्रसित हैं। फिर पता चला कि उन्हें
अग्नाशय कैंसर है। अग्नाशय कैंसर यानि कि पैंक्रियाटिक कैंसर बहुत ही गंभीर रोग है।
उनका गोवा, मुंबई, दिल्ली और न्यूयार्क
के अस्पतालों में इलाज हुआ। उन्हें 31 जनवरी 2019 को एम्स में भर्ती कराया गया था। पर बीमारी इतनी खतरनाक थी कि देखते-देखते ही उनका स्वर्गवास हो गया। मनोहर पर्रिकर एक सादगी पसंद टेक्नोक्रेट
सीएम थे। गोवा में कांग्रेस में विभाजन के बाद अक्टूबर 2000 में
जब पहली बार राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री बना तो कमान सादगी और टेक्नोक्रेट मनोहर
पर्रिकर को सौंपी गई। तब से लेकर अंतिम सांसों तक पर्रिकर दो दशक तक सियासत में छाए
रहे। मनोहर पर्रिकर की गोवा में ही नहीं पूरे देश में छवि एक सीधे-सादे, सौम्य और मृदुभाषी व्यक्ति की रही, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक हमले ने दिखाया कि देश हित में वह कठोर फैसलों से भी
नहीं हिचकते। राजनीति में प्रतिद्वंद्वी भी उनकी बेदाग छवि के कायल रहे। 63
वर्षीय पर्रिकर ने चार बार गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया
और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री के तौर पर तीन वर्ष सेवाएं
दीं। उन्हीं के कार्यकाल में भारतीय सेना ने पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल
स्ट्राइक की थी। आधी बाजू की कमीज और लैदर सैंडल उनकी पहचान थी। मुख्यमंत्री बनने के
बाद भी पर्रिकर ने अपने रहन-सहन में जरा सा भी बदलाव नहीं किया।
कहा जाता है कि वह अपने राज्य की विधानसभा खुद स्कूटर चलाकर जाया करते थे, इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने घर को नहीं छोड़ा और
सरकार द्वारा दिए गए घर में नहीं गए। मनोहर पर्रिकर को गोवा का गली ब्वॉय भी कहा जाता
था। 2013 में गोवा में अधिवेशन हुआ था और देश में बहस छिड़ी हुई
थी कि नरेन्द्र मोदी पीएम पद के उम्मीदवार होंगे या नहीं? पर
भाजपा की ओर से मोदी का नाम कोई खुलकर आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था। इसी अधिवेशन के
मंच से पहली बार मनोहर पर्रिकर ने नरेंद्र मोदी के नाम की पीएम पद के उम्मीदवार पद
के लिए प्रस्तावित किया। मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने
पर्रिकर से रक्षामंत्री का पद संभालने को कहा। शुरुआत में पर्रिकर राजी नहीं थे,
फिर उन्होंने 2 महीने का समय मांगा और फिर दिल्ली
आ गए। पर्रिकर के कार्यकाल में ही 28-29 सितम्बर 2016
को सेना ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। सार्वजनिक जीवन के प्रfित समर्पण के मिसाल भी थे पर्रिकर। बीमारी के बावजूद उन्होंने ढाई महीने बाद
इस साल दो जनवरी को अचानक मुख्यमंत्री दफ्तर पहुंच कर सबको हैरान कर दिया था। वह ठीक
से चल भी नहीं पा रहे थे। नाक में नली लगी थी लेकिन जनसेवा करने में उनका जज्बात कम
नहीं हुआ था। वे वीआईपी रेस्तरां की बजाए फुटपाथ पर आम नाश्ता किया करते थे। यहीं से
मोहल्ले की खबर जुटा लिया करते थे। वह कहते थे कि चाय स्टॉल पर सभी नेताओं को चाय पीना
चाहिए, राज्य की सारी जानकारी यहीं से मिल जाती है। आखिरी समय
तक वह अपनी घातक बीमारी से लड़ते रहे। ऐसे नेता कम ही आते हैं। हम उनको अपनी श्रद्धांजलि
देते हैं।
No comments:
Post a Comment