Sunday 17 March 2019

मोदी हैं तो मुमकिन है ः लोक पर्व 2019 ...(अंतिम)

2014 के चुनाव में भाजपा अकेले 282 सीट जीतने में कामयाब हुई थी। यह उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। अब जबकि 2019 के चुनाव का ऐलान हो गया है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि पार्टी क्या 2019 में फिर से 2014 का इतिहास दोहरा पाएगी? खुद के या फिर एनडीए के बूते भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान है या फिर विपक्षी गठबंधन उसे सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हो पाएगा? भाजपा तो यह मानकर  बैठी है कि मौजूदा माहौल उसके पक्ष में है, लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं जो उसकी राह में रोड़ा साबित हो सकते हैं। भाजपा ही नहीं, बल्कि विपक्ष भी यह मान रहा है कि इस वक्त देश में सबसे मजबूत पार्टियों में भाजपा सबसे ऊपर है। उसकी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस फिलहाल जोर-आजमाइश करने के बावजूद यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि वह सत्ता में लौटेगी। भाजपा के पक्ष में सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण पहलू उसके नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। भाजपा का दावा है कि पांच वर्ष सत्ता में बिताने और कई कड़े व विवादास्पद फैसलों के बावजूद उनके नेता की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। अभी भी यह देश में किसी भी विपक्षी नेता के मुकाबले कहीं अधिक लोकप्रिय हैं। 2014 में भी इसी लीडरशिप के बूते भाजपा अपने बल पर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। विपक्ष भले ही अलग-अलग राज्यों में गठबंधन कर रहा हो लेकिन भाजपा की लीडरशिप में एनडीए के पास सबसे अधिक पार्टियां हैं। फिलहाल एनडीए में 40 पार्टियां हैं जो 2014 के मुकाबले कहीं अधिक हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार में पुराने साथियों को एकजुट रखने में सफल रही भाजपा अब सुदूर दक्षिण से लेकर देश के पूर्वोत्तर छोर तक नए साथियों के साथ विपक्ष की हर चुनौती का जवाब देने को तैयार है। ऐसे में एकजुट और पहले से बड़े राजग के सामने फिलहाल बिखरा हुआ विपक्ष कितनी चुनौती दे पाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। आज शिवसेना, अकाली दल समेत कई दल अपने राज्यों में बेहद मजबूती के साथ भाजपा का साथ दे रहे हैं। पार्टी को लग रहा है कि देशभर में उसके यह सहयोगी दलों का वोट भी उसे मिलेगा। शायद भाजपा को यह भी अहसास होने लगा है कि तमाम पार्टियों के बावजूद वह 2014 को शायद न दोहरा पाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र में मजबूत व पूर्ण बहुमत वाली सरकार पर जोर देते हुए कहा कि पिछले तीन दशकों में त्रिशंकु संसद ने देश की प्रगति बाधित की थी। सूरत की एक सभा को संबोधित करते हुए मोदी ने नोटबंदी के अपनी सरकार के फैसले का बचाव किया और कहा कि नोटबंदी के कारण मकानों की कीमतों में कमी आई और आकांक्षी युवाओं के लिए किफायती दरों पर अपना मकान खरीदना संभव हो सका। प्रधानमंत्री मोदी ने कहाöजैसा कि आप सभी जानते हैं, त्रिशंकु संसदों के कारण भारत को 30 सालों तक अस्थिरता का सामना करना पड़ा, क्योंकि किसी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ। इससे देश का विकास बाधित हुआ और इस स्थिति के कारण देश कई मोर्चों पर पीछे भी गया। आंकड़े बताते हैं कि जब-जब केंद्र में मजबूत सरकार रही है तब-तब लोगों का तुलनात्मक रूप से ज्यादा कल्याण हुआ है। मजबूत सरकार का मतलब स्पष्ट जनादेश वाली निर्णायक सरकार। जब दो समान विचारधारा वाले दल चुनाव से पहले या बाद में मिलकर सरकार बनाते हैं तो इस प्रकार के गठबंधन में सरकार के सहज रूप से काम करने की संभावना थोड़ी अधिक होती है। जब दल केवल सत्ता के लिए गठबंधन बनाते हैं और उनका कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं होता तो देश कई वर्ष पीछे चला जाता है। बेशक गृहमंत्री राजनाथ सिंह मजबूत नेतृत्व और संगठन के बूते 300 सीटें जीतने का दावा कर रहे हों पर कहीं न कहीं भाजपा नेतृत्व इस बात से बेखबर नहीं है कि शायद वह उस आंकड़े तक न पहुंच पाएं जिन पर वह 2014 में पहुंचे थे। भाजपा की सीटें घटने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। टाइम्स नाऊöवीएमआर के ओपिनियन पोल में कई अहम बातें सामने आई हैं। इसके मुताबिक नॉर्थ ईस्ट, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड के नतीजे एनडीए के लिए खुशखबरी ला सकते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को बड़ी कामयाबी मिलती दिख रही है। महागठबंधन को जहां 57 सीटें मिलने का अनुमान है, वहीं एनडीए को 27 सीटों पर सिमटने का खतरा दिख रहा है। वहीं यूपीए को मात्र दो सीटें मिलने का अनुमान सर्वे में लगाया गया है। एनडीए का वोटर शेयर 4.4 प्रतिशत तक घटकर 38.9 प्रतिशत हो सकता है, जबकि यूपीए के वोट शेयर में 4.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। पिछली बार 543 में से 336 सीटें जीतने वाली एनडीए को इस बार 252 सीटें मिल सकती हैं, जबकि यूपीए को 147 सीटें मिलती दिख रही हैं। वहीं अन्य के खाते में 144 सीटें जा सकती हैं। इससे साफ है कि एनडीए बहुमत (272) से दूर रहने वाला है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि ऐसा नहीं है कि भाजपा को सीधे वॉकओवर मिलने जा रहा है। उसकी सबसे बड़ी चिन्ता यह है कि 2014 में उसके पक्ष में जो माहौल था, मोदी की जो लहर थी वह अब उतनी नजर नहीं आ रही। दूसरी बड़ी चिन्ता उसका 2004 का इतिहास है। उस वक्त की वाजपेयी सरकार के पक्ष में भारत उदय जैसे कैंपेन चल रहे थे, लेकिन जब नतीजे आए तो पता चला कि भाजपा के हाथ से सत्ता चली गई। यूपी जैसे राज्य में भाजपा ने पिछली बार रिकॉर्ड तोड़ सीटें इसलिए जीती थीं, क्योंकि पूरा विपक्ष बिखरा हुआ था पर इस बार उसे सपा-बसपा गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलने वाली है। इसी तरह बिहार में भी कांग्रेस-आरजेडी मजबूत गठबंधन है। यही नहीं, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जहां उसने 90 से लेकर 100 प्रतिशत तक सीटें जीती थीं उनमें से गुजरात को छोड़कर बाकी राज्यों में अब कांग्रेस सत्ता में आ चुकी है। ऐसे में इन राज्यों में उसे जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कैसे होगी, यह उसके लिए सबसे बड़ी चिन्ता है। अन्य राज्यों में भी कांग्रेस से भले ही नहीं सही लेकिन तृणमूल कांग्रेस, डीएमके-कांग्रेस गठबंधन, चन्द्रबाबू नायडू समेत मजबूत विपक्षी क्षेत्रीय दलों से उसे कड़ी चुनौती मिलेगी। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है? (समाप्त)

-अनिल नरेन्द्र

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