Friday, 29 March 2019

भाजपा को अपने गढ़ बचाने की चुनौती

2014 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने असम की 14 सीटों में से सात पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को तीन सीटें मिली थी और अन्य को चार। इस बार भाजपा के लिए 2014 से आगे बढ़कर ज्यादा सीटें जीतने की चुनौती होगी। भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की 25 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और इसी लक्ष्य के तहत असम गण परिषद (अगप) समेत पांच क्षेत्रीय दलों व मोर्चों के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है। यह करार भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के बीच हुआ है। नागरिकता बिल के विरोध में अगप ने जनवरी में भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। नॉर्थ ईस्ट की यह सीटें एक बार फिर नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। बता दें कि नेडा में यह दल शामिल हैöअसम गण परिषद, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, इंडीजिनयस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा नेशनल पीपुल्स पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी व सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा। असम गण परिषद पहले भी एनडीए की सहयोगी रह चुकी है। 2016 के विधानसभा चुनाव में भी अगप, भाजपा व बीपीएफ के बीच गठबंधन था और तीनों ने मिलकर 2001 से लगातार सत्तारूढ़ कांग्रेस को उखाड़ फेंका था। गठबंधन के बाद अगप अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा कि कांग्रेस को परास्त करने के लिए पुराने सहयोगी फिर एक हो गए हैं। अगप ने जनवरी में नागरिकता विधेयक के विरोध में असम की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। क्या उत्तराखंड में 2014 की सियासी तस्वीर बदलेगी? यहां कांग्रेस के सामने 2014 के चुनाव के बाद पहाड़-सी चुनौती है। वहीं भाजपा के सामने अपना पिछला मत प्रतिशत बरकरार रखने का सवाल है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से 21.53 प्रतिशत अधिक मत पाकर कांग्रेस को पछाड़ दिया था। 2014 में उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर भाजपा विजयी हुई थी। जबकि 2009 में उसके पास एक भी सीट नहीं थी। यह चुनाव कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के खिलाफ लहर वाला द्विध्रुवीय चुनाव था। इस चुनाव में बसपा समेत सभी छोटे दल हाशिये पर चले गए थे। पांचों सीटों पर परचम लहराने वाली मोदी लहर पर सवार भाजपा को जहां कुल वोट 24,29,698 यानि 55.93 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस को 14,94,440 यानि 34.40 प्रतिशत वोट मिले। इस तरह दोनों के बीच 21.53 प्रतिशत यानि 9,35,250 वोटों का अंतर था। प्रदेश में तीसरे नम्बर पर बहुजन समाज पार्टी रही जिसे 2,07,846 यानि 4.78 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस के लिए इस बार इस बड़े मत प्रतिशत के अंतर को पाटने की चुनौती है। टिकटों के बंटवारे को लेकर बेशक भाजपा में कुछ असंतोष जरूर है पर भाजपा नेतृत्व इसे सुलझा लेगा। देखना यह है कि 2019 में वैसी मोदी लहर नहीं है जैसे 2014 में थी। पांच साल के भाजपा शासन में एंटी इंकमबेंसी फैक्टर भी होगा। कुल मिलाकर पूर्वोत्तर और उत्तराखंड में मुकाबला दिलचस्प होगा। मुख्यतय भाजपा और कांग्रेस गठबंधनों के बीच कड़ी परीक्षा होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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