Friday, 19 June 2020
चीन की धोखेबाजी एक बार फिर उजागर हुई
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में एक कर्नल समेत 20 भारतीय जवानों के चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हो जाने की घटना ने चीन की धोखेबाजी को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलंग ला क्षेत्र में चीनी सैनिकों के घात लगाकर कुछ भारतीय सैनिकों को निशाना बनाने के करीब 45 साल बाद दोनों देशों के बीच ऐसी झड़प हुई है जिसमें सैनिकों की मौत हुई है और इससे भारत-चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। जब दोनों देश गलवान घाटी से पीछे हटने पर सहमत थे, तब ऐसा क्यों हुआ? इसकी जांच ईमानदारी से सेना और विदेश मंत्रालय के उच्चाधिकारियों को करनी चाहिए। उच्च स्तर पर अगर पहले ही पहल होती तो संभव है कि विवाद इस ऐतिहासिक राग तक नहीं पहुंचता। चीन की ओर से सोमवार रात यह भड़काने वाली कार्रवाई तब की गई, जब दोनों देशों के बीच बनी सहमति के आधार पर एलएसी के पास से सैनिकों की वापसी होनी थी। दोनों पक्षों में कर्नल, मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की कई दौर की बातचीत के बाद सैनिकों की वापसी पर सहमति बनी थी, लेकिन इस ताजा कार्रवाई ने चीन की कथनी और करनी में फर्क को एक बार फिर उजागर कर दिया। चीन की कथनी और करनी में अंतर का लंबा इतिहास रहा है। चाहे साल 1962 का युद्ध हो या फिर उसके बाद का लगभग छह दशक का लंबा समय। इस दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर चीन हमेशा अपनी भूमिका बदलता रहा है। हाल का डोकलाम विवाद याद है? चीन ने एक बार फिर जिस तरह हमारी पीठ पर छुरा घोंपने का काम किया उसके बाद इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह हमारा सबसे बड़ा और साथ ही शातिर शत्रु के रूप में सामने आ गया है। यह धूर्तता की पराकाष्ठा है कि वह भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण भी करता है और फिर भारत को शांति बनाए रखने का उपदेश देते हुए पीछे हटने से भी इंकार करता है। गलवान घाटी की यह घटना यही बता रही है कि पानी सिर के ऊपर बहने लगा है। मित्रता की आड़ में शत्रुतापूर्ण रवैये का परिचय देना और भारत को नीचा दिखाना चीन की आदत-सी बन गई है। हद तो यह है कि चीनी विदेश विभाग ने भारतीय सैनिकों पर उसकी सीमा में कथित रूप से घुसने और पहले हमला करने का आरोप लगाते हुए खुद को पीड़ित बताने की कोशिश की है, जबकि हकीकत यह है कि चीनी सैनिकों ने पत्थरबाजी कर भारतीय जवानों को निशाना बनाया। चीन को यह पता लगना चाहिए कि वह दादागिरी के बल पर भारत से अपने रिश्ते कायम नहीं कर सकता। 1962 का भारत नहीं है। अब हम उसकी ईंट का जवाब पत्थर से देने में सक्षम हैं। आवश्यकता केवल यही है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत चीनी उत्पादों का आयात सीमित करें बल्कि यह भी है कि भारत अपनी तिब्बत, ताइवान और हांगकांग नीति नए सिरे से तय करे। इस घटना से सीमा पर पिछले 45 वर्षों से चली आ रही यथास्थिति अब बदल चुकी है। जैसे यह दूरगामी लक्ष्य को एक तरफ रखना हमारी मजबूरी है, चीन को स्पष्ट संकेत जल्द भारत को देने होंगे। चीन को सबक सिखाना ही होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment