Friday 26 June 2020

रेडियो के जरिये भारत विरोधी प्रचार

भारत के पड़ोसी देश में चीन के पक्ष में माहौल बनता दिख रहा है। मैं नेपाल की बात कर रहा हूं। पहले देश की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ बैठक कर मांग की है कि नेपाली गोरखा नागरिक भारतीय सेना में शामिल न हों। नेपाल की एक प्रतिबंधित पार्टी ने मांग की है कि गोरखा नागरिक भारत की ओर से चीन के लिए लड़ाई न लड़ें। प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता बिक्रम चन्द ने काठमांडू में नेतृत्व से यह अपील की है कि गोरखा नागरिकों को भारतीय सेना का हिस्सा बनने से रोका जाए। पार्टी की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है, गलवान घाटी में भारतीय जवानों के मारे जाने के बाद भारत और चीन में बढ़ते तनाव के बीच भारत ने गोरखा रेजिमेंट के नेपाली नागरिकों से अपील की है कि वह अपनी छुट्टियां रद्द करके ड्यूटी पर वापस आएं। इसका मतलब है कि भारत हमारे नेपाली नागरिकों को चीन के खिलाफ सेना में उतारना चाहता है। भारत के लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाली भूभाग बताने वाले अपने दावे को मजबूत करने के लिए अब नेपाल भारत विरोधी दुप्रचार पर भी उतर आया है। इसके लिए वह एफएम रेडियो चैनलों का सहारा ले रहा है। सीमा के पास रहने वाले भारतीयों का कहना है कि नेपाल के चैनलों द्वारा प्रसारित गीतों या अन्य कार्यक्रमों के बीच में भारत लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को वापस किए जाने की मांग करने वाले भारत विरोधी भाषण दिए जा रहे हैं। वैसे इन चैनलों की क्षमता ज्यादा नहीं है, लेकिन इससे नेपाल की भारत के प्रति मंशा तो उजागर हो ही जाती है। यही नहीं, भारत-नेपाल के बीच चल रहे सीमा विवाद का असर बिहार पर पड़ने लगा है। पहले सीतामढ़ी में गोली विवाद हुआ और अब नेपाल बांधों के मरम्मत कार्य को रोक रहा है। इस कारण बिहार के एक बड़े हिस्से पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। बिहार सरकार इस संबंध में विदेश मंत्रालय को पत्र भी लिखने जा रही है। बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा कि गंडक बैराज के 36 द्वार हैं। जिनमें से 18 नेपाल में हैं। भारत के हिस्से में पड़ने वाले फाटक तथा बांध की सफाई और मरम्मत का काम हो चुका है। वहीं नेपाल के हिस्से में पड़ने वाले बांध का काम नहीं हो सका। नेपाल बांध मरम्मत के लिए सामग्री ले जाने से रोका जा रहा है। इस तरह की समस्या का सामना हम पहली बार कर रहे हैं। भारत को इस नई स्थिति से निपटना होगा। यह सब नेपाल के उस आश्वासन के खिलाफ है जो 2017 में वहां की देउबा सरकार ने भारत को दिया था। माना जा रहा है कि वहां की मौजूदा कम्युनिस्ट हमदर्द ओली सरकार ने चीन के दबाव में यह सब किया है। बताया जा रहा है कि चीन की मदद से ही उसकी सत्ता बची हुई है। अगर यह सच है तो नेपाल की ओली सरकार इसके बदले में चीन को उसके अहसान की कीमत अदा करना चाहेगी। यह चीन के हित में और भारत के अहित में होगा कि भारत को एक अन्य मोर्चे पर उलझाया जाए। भारत सरकार इस समस्या को कैसे टैकल करती है देखना होगा। -अनिल नरेन्द्र

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