Thursday, 18 June 2020
इन निजी अस्पतालों की लूट-खसोट पर अंकुश लगना चाहिए
दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में बैड की व्यवस्था तो हो गई, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से शुल्क तय नहीं करने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। निजी अस्पताल अपने हिसाब से शुल्क तय कर रहे हैं। इस वजह से कई मरीज यहां इलाज से वंचित हो रहे हैं। निजी अस्पतालों का कहना है कि कोरोना के मरीजों के लिए इलाज की व्यवस्था की लागत बहुत अधिक है। इसकी वजह से शुल्क भी अधिक है। पूर्वी दिल्ली में निजी अस्पताल में सबसे बड़े पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल में जनरल वार्ड के लिए प्रतिदिन का शुल्क 25 हजार रुपए रखा गया है। इसके अलावा महंगी दवा, जांच आदि का शुल्क अलग से देना होगा। इसका शुल्क औसतन 10 से 15 हजार रुपए प्रतिदिन पड़ सकता है। अगर मरीज को कमरा चाहिए तो उसके लिए 30,490 रुपए देने होंगे। बिना वेंटिलेटर के आईसीयू का शुल्क 50,050 रुपए रखा गया है। इसी तरह अगर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है तो मरीज को 72,550 रुपए प्रतिदिन देने होंगे। अन्य खर्च भी जोड़ दें तो वेंटिलेटर का खर्च 90 हजार रुपए प्रतिदिन पड़ सकता है। यहां कोरोना मरीजों के लिए 80 बैड आरक्षित हैं। बुधवार को कोरोना के 80 मरीज भर्ती थे यानि कोई बैड खाली नहीं है। गौरतलब है कि राजधानी के निजी अस्पतालों में इलाज की कीमतें निर्धारित करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की गई। लेकिन कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से इंकार कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ऐसा कोई निर्देश देने से शुक्रवार को इंकार कर दिया जिसमें यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि कोविड-19 के लिए चिन्हित कोई भी निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क नहीं वसूलें और न ही धन की कमी के कारण उनका इलाज करने से इंकार करें। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की बैंच ने कहा कि हालांकि याचिका में उठाया गया मुद्दा अच्छा है लेकिन वह जनहित मुकदमे में ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकती जिसे लागू करना मुश्किल हो। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की याचिका का निस्तारण कर दिया जिसमें एक निजी अस्पताल द्वारा इलाज के लिए जारी शुल्क के संबंध में दिल्ली सरकार के 24 मई के सर्कुलर का हवाला दिया गया था। याचिका में कहा गया कि प्रदेश सरकार ने कई अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित किया और उसके तीन जून तक के आदेश में अधिकारियों ने तीन निजी अस्पतालोंöमूलचन्द खैराती लाल अस्पताल, सरोज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और सर गंगाराम अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित किया है। यह अस्पताल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) मरीजों को 10 प्रतिशत आईपीडी और 25 प्रतिशत ओपीडी सेवाएं मुहैया कराने के लिए बाध्य हैं। इन निजी कोविड-19 अस्पतालों में से एक का सर्कुलर देखा जिसमें कोविड-19 मरीज के लिए न्यूनतम बिल तीन लाख रुपए तय किया गया। दिल्ली सरकार को कोविड-19 इलाज के शुल्क तय करने चाहिए और जनता को इन निजी अस्पतालों की लूट-खसोट से बचाना चाहिए।
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