Sunday, 28 June 2020
कोरोना महामारी से ज्यादा जानलेवा डिप्रैशन हो रहा है
पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। मगर इस वायरस से भी ज्यादा खतरनाक और जानलेवा साबित हो रहा है वह अवसाद (डिप्रैशन) जो कोरोना की वजह से बदली जीवनशैली और लॉकडाउन से आई आर्थिक मंदी की देन है। कुछ राज्यों में इसका घातक असर देखने को मिल रहा है। झारखंड में कोरोना का पहला केस 31 मार्च को सामने आया था। तब से अब तक इस महामारी से 15 लोगों की मौत राज्य में हुई है। जबकि 24 मार्च से हुए लॉकडाउन के बाद अब तक कुल 64 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। इसमें से 38 लोगों ने अप्रैल और मई के दौरान सुसाइड किया। जबकि जून माह में अब तक (24 जून तक) सिर्फ रांची में ही 26 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। यानि लॉकडाउन के दौरान जहां हर 1.6 दिन (करीब 36 घंटे) में एक व्यक्ति ने आत्महत्या की। वहीं अनलॉक-1 में रांची में हर 24 घंटे में एक सुसाइड का केस दर्ज हुआ। यदि लॉकडाउन से पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2020 के शुरुआती तीन महीने में हर 2.6 दिन में एक सुसाइड का केस दर्ज हुआ था। जनवरी, फरवरी और मार्च में कुल 35 आत्महत्या के केस राज्यभर में दर्ज हुए थे। संकेत स्पष्ट है कि लॉकडाउन के बाद बदली परिस्थितियों और बीमारी के डर के कारण लोगों में अवसाद यानि डिप्रैशन बढ़ा है और साथ ही राज्य में आत्महत्या के केस की संख्या भी बढ़ी है। सीआईपी के मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार मंडल ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान डिप्रैशन से जूझ रहे करीब 12 हजार लोगों ने सीआईपी में कॉल करके अपनी समस्या बताई और उससे उबरने का तरीका पूछा। डॉ. मंडल बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान रोजाना 200-300 लोगों का फोन आता था। इनमें से 15-20 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्होंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। वह आत्महत्या करना चाहते थे। एचओडी रिम्स सायकायट्रिस्ट डिपार्टमेंट के डॉक्टर अजय कुमार बाखला कहते हैं कि इस कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन की वजह से लोगों में डिप्रैशन बढ़ा है। लंबे समय तक लोगों का घरों में एक साथ रहना हुआ है इसकी वजह से घरेलू विवाद बढ़े हैं। कई लोग बेरोजगार हुए हैं, घर में अकेलापन महसूस करते हैं। अगर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को सिर्फ दो मिनट रोक लिया जाए, उससे बात कर ली जाए तो ऐसी घटनाएं रुक सकती हैं।
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