Sunday 28 June 2020

पहली बार पेट्रोल से महंगा डीजल

घरेलू बाजार में डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। पता नहीं कहां जाकर रुकेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम? दिल्ली में पहली बार है कि डीजल-पेट्रोल से महंगा हो गया है। 18वें दिन डीजल की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। पेट्रोल कल के बराबर है। 18 दिनों में डीजल 10.48 रुपए महंगा हुआ है और पेट्रोल 8.50 रुपए। डीजल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से ट्रांसपोर्ट की लागत में करीब 15 प्रतिशत इजाफा हो गया है और इस बढ़ी लागत का हवाला देकर ट्रांसपोर्टर भाड़ा बढ़ाने की तैयारी करने लगे हैं। ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा। लॉकडाउन के कारण पहले से ही परेशान मजदूर, गरीब वर्ग की दुश्वारी और बढ़ जाएगी। मालूम हो कि पिछले 18 दिनों में डीजल की कीमत में 10.48 रुपए का इजाफा हुआ है। ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट वैलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन प्रदीप सिंघल बताते हैं कि डीजल के दाम बढ़ने से ही ट्रांसपोर्ट की लागत लगभग 15 प्रतिशत बढ़ गई है। सैनिटाइजेशन, टोल, इंश्योरेंस और मेंटिनेंस कॉस्ट में भी इजाफा हो गया है। वहीं कोरोना की वजह से ड्राइवरों को अतिरिक्त इंसेटिव देकर काम पर बुलाना पड़ रहा है। रिटर्न ट्रिप भी नहीं मिल रहा है। कुल मिलाकर ट्रांसपोर्ट की लागत करीब 20 प्रतिशत बढ़ गई है। ट्रांसपोर्ट की लागत में 65 प्रतिशत हिस्सा डीजल का होता है। इंदौर से चेन्नई तक अगर एक ट्रक (16 टन वाला) अभी 65 हजार रुपए में बुक होता है तो इसमें करीब 40 हजार रुपए का डीजल लग जाता है। ट्रांसपोर्टर के पास 25 हजार रुपए बचते हैं जिसमें मेंटिनेंस, ड्राइवर की सैलरी, कर्ज की किस्त और कमाई आदि का खर्च निकलता है। अब डीजल का खर्च आठ हजार बढ़कर 48 हजार रुपए हो जाएगा। अन्य खर्चों के लिए 17 हजार ही बचेंगे। लॉकडाउन की वजह से पहले ही माल की बुकिंग 50 प्रतिशत चल रही है। डीजल महंगा होने से खेती की लागत 10 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई है। जानकारों के मुताबिक पहले एक बीघा खेती की लागत करीब 4600 रुपए बैठ रही थी जो डीजल मूल्य वृद्धि से 400 रुपए बढ़कर पांच हजार रुपए के पार हो गई है। खेत की चार बार जुताई करनी पड़ती है। इसमें 10 से 12 लीटर डीजल खर्च होता है। खरपतवार साफ करने के लिए ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है। फसल की कटाई और निराई में डीजल काम आता है। इस तरह खेत की जुताई से लेकर फसल मंडी तक पहुंचाने तक डीजल उपयोग होता है। इसके मद्देनजर डीजल महंगा होने से किसान का मुनाफा बेहद कम हो गया है। उदाहरण के तौर पर एक बीघा जमीन में सात से आठ क्विंटल बाजरा पैदा होता है। मंडी में इसकी कीमत 14 हजार से 16 हजार रुपए मिलती थी। खेती से लेकर मंडी तक इसको पहुंचाने के लिए पहले किसान को लगभग 5100 रुपए खर्च करने पड़ते थे। अब 5500 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। डीजल की कीमतों से फल-सब्जी और अन्य जरूरत के सामानों की कीमतों में इजाफा होगा। पहले से ही गरीब, मजदूर व मध्यम वर्ग की टूटी कमर पर और भार पड़ेगा और हमारी सरकार यह सब शांति से होता देख रही है।

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