Thursday, 25 June 2020
मरीज भर्ती करने से कतराते सरकारी अस्पताल
लोकनायक अस्पताल के रिसेप्शन पर एक बुजुर्ग भर्ती होने पहुंचा। मौजूद स्टाफ ने पूछा क्या आप पॉजिटिव हैं। हां में जवाब मिलने पर स्टाफ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बुजुर्ग खाली कुर्सी पर बैठने लगा तो स्टाफ ने कड़क आवाज में रोकते हुए कहाöबाबा वहां नहीं बैठना है। आप इंतजार करें, डॉक्टर को बुला रहे हैं। यह दिल्ली में कोविड-19 का 2000 बैड वाला सबसे बड़ा अस्पताल है। डिस्प्ले बोर्ड बता रहा है कि अभी 708 मरीज भर्ती हैं। सातवें फ्लोर पर भर्ती शिव सिंह यादव ने वीडियो बनाकर भेजा है। वह बताते हैं कि वह तीन दिन से भर्ती हैं। उन्हें कोई डॉक्टर देखने नहीं आया। दूसरे बैड पर बैठे एक अन्य मरीज से बात करते हुए बताते हैं कि 10 दिनों से कोई साफ-सफाई नहीं हुई है, सुबह एक सफाई कर्मी झाड़ू हिलाकर चला जाता है। बाथरूम में पानी नहीं है। अगर ऐसे ही रहना था तो घर में रह लेते। दरअसल दिल्ली के अस्पतालों में संक्रमण का डर स्वास्थ्य कर्मियों में भी इस कदर बैठ गया है कि वह बेहद गंभीर मरीजों को छोड़कर बाकी किसी की ओर खास ध्यान नहीं देते। अकेले एम्स में स्टाफ के 550 से ज्यादा लोगों के पॉजिटिव होने की खबर है। इसी तरह एलएनजेपी में करीब 150, जीटीबी में 50 और हिन्दुराव अस्पताल में 100 और निजी अस्पताल सर गंगाराम में 350 स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हो चुके हैं। लॉकडाउन खुलने वाले दिन यानि आठ जून को दिल्ली में 29,943 मामले सामने आ चुके थे जो अब 50 हजार से ज्यादा पहुंच गए हैं। दूसरी तरफ दिल्ली में अकेले 22 हजार कोरोना पॉजिटिव मरीज होम क्वारंटीन हैं। अप्रैल में नौ कंटेनमेंट जोन थे जो अब बढ़कर 243 हो चुके हैं। प्रशासन का कहना है कि जिसमें सामान्य लक्षण हैं और घर पर दवा लेकर सही हो सकते हैं। मौजपुर के संतोष वरनवाल बताते हैं कि उनके पिता हरिनारायण को सांस लेने में परेशानी हुई, वह उन्हें लेकर चार दिनों तक आठ प्रमुख अस्पतालों में चक्कर लगाते रहे। अंत में पैरवी से एम्स में भर्ती हुए। 16 जून को उनकी मौत हो गई। बचे हुए परिवार के आठ में से सात लोग संक्रमित हैं। दिल्ली में 12 प्रतिशत डॉक्टर-नर्स संक्रमित, स्टाफ की कमी के चलते मरीज भर्ती करने से कतरा रहे हैं दिल्ली के अस्पताल। इस संबंध में दिल्ली डायरेक्टर जनरल हैल्थ सर्विसिंग महानिदेशक नूतन मुंडेजा अस्पतालों में भर्ती न करने की बात नकारती हैं। वह कहती हैं कि 113 सरकारी व निजी अस्पतालों में करीब 11 हजार बैड हैं। इनमें पांच हजार खाली हैं। फिर भर्ती क्यों नहीं करेंगे? आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर विनय अग्रवाल बताते हैं कि लोगों को भर्ती न करने की प्रमुख वजह स्टाफ की कमी हो सकती है। सुविधाओं की कमी होना, स्टाफ द्वारा अच्छा व्यवहार न करने की वजह से भी लोग सरकारी अस्पताल जाने से हिचकिचाते हैं। दूसरी तरफ दिल्ली में श्मशान पहुंचने वाले शव दोगुना हो गए हैं।
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