Saturday, 31 August 2024
मोदी के निकलते ही जेलेंस्की ने क्या कह दिया
पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे की चर्चा अब तक जारी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 26 अगस्त को पीएम मोदी से जब फोन पर बात करी, मोदी ने यूक्रेन दौरे के बारे में जानकारी दी। मोदी ने बातचीत और कूटनीति के जरिए समाधान तलाशने की अपनी नीति दोहराई। राष्ट्रपति बाइडन ने भी मोदी के यूक्रेन दौरे, वहां मानवीय मदद पहुंचाने और शांति को लेकर भारत की कोशिशों की तारीफ की। पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे को लेकर चर्चा तभी से शुरू हो गई थी जब मोदी जी ने यूक्रेन जाने की घोषणा की थी। मोदी के यूक्रेन जाने की टाइमिंग और मकसद पर सवाल उठे। फिर पीएम मोदी जब यूक्रेन दौरे को खत्म करके भारत लौट ही रहे थे, उसी दौरान यूक्रेन राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने प्रेस कांफ्रेंस में जो कहा, उस पर भी जानकारों ने सवाल खड़े किए हैं। मोदी जब यूक्रेन पहुंचे तो जेलेंस्की से गले मिले और इस दौरान मोदी जेलेंस्की के कंधे पर हाथ रखते हुए भी नजर आए। जुलाई में रूस दौरे पर गए मोदी जब पुतिन से गले मिले थे तो इसकी आलोचना करने वालों में जेलेंस्की भी रहे थे। ऐसे में मोदी का जेलेंस्की से गले मिलने को कुछ लोगों से संतुलन बनाए रखने से जोड़कर देखा। जेलेंस्की को भी पीएम मोदी ने भले ही गले लगाया हो लेकिन जैसे ही वो भारत की ओर निकले जेलेंस्की के बयानों ने दूरियों की ओर इशारा किया। जेलेंस्की ने 23 अगस्त को भारतीय पत्रकारों से हुई प्रेस वार्ता में भारत को लेकर कई बातें कहीं जो भारत को असहज करने वाली थी। जेलेंस्की ने कहा कि मैंने मोदी जी से कहा कि रूस भारत में वैश्विक शांति सम्मेलन रख सकते हैं, लेकिन हम ऐसे देश में शांति सम्मेलन नहीं रख सकते जो पहले शांति सम्मेलन में जारी हुए साझा बयान में शामिल नहीं हुआ। स्विटजरलैंड में यूक्रेन में शांति सम्मेलन में भारत ने अपने विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी को भेजा जबकि कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक गए थे। इसके अलावा जेलेंस्की ने रूस से भारत के तेल खरीदने पर भी बात की। उन्होंने कहा, अगर भारत रूस से तेल न खरीदे तो उसे बड़ी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भी भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा था। चीन-भारत के संदर्भ में पूछे सवालों के जवाब में जेलेंस्की ने कहा था, अगर पुतिन की हरकतों को जायज ठहराया जा सकता है तो मुझे यकीन है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इनके अंजाम सीमा नियमों के उल्लघन के तौर पर देखने को मिलेगा। पुतिन के बारे में जेलेंस्की ने कहा, वो हमारा हत्यारा है, लेकिन मोदी के रूस दौरे के दौरान जब बच्चें के अस्पताल पर हमला किया तो क्या पुतिन ने आपके लिए कुछ किया? पुतिन भारत का सम्मान नहीं करते। अगर भारत रूस के लिए अपना रुख बदले तो युद्ध रूक जाएगा। हमें सारी सेना को ताकतवर बनाने वाले रुपयों को देना बंद करना होगा। थिंक टैंक रैंड कार्पोरेशन में विश्लेषक डेरेक जे ग्रॉसमैन ने पीएम मोदी के जेलेंस्की को गले लगाने वाली तस्वीर को साझा कर लिखा- यह बहुत बुरा है कि मोदी सबको गले लगाते हैं और इस कारण इसका कोई मतलब नहीं रह जाता। ग्रॉसमैन ने बाइडन और मोदी की बातचीत के बाद जारी हुए बयान को लिखा-कोई फर्क नजर आया? अमेरिका के बयान में बांग्लादेश का जिक्र नहीं है। हालांकि भारत की ओर से जारी बयान में लिखा है-बाइडन और मोदी के बीच बांग्लादेश के मुद्दे पर बात हुई। यूक्रेन मुद्दे पर भारत के रुख पर जेलेंस्की का असंतोष बढ़ा दिखता है। विश्लेषकों का मानना है कि युद्ध रोकने में न तो जेलेंस्की को दिलचस्पी है न पुतिन को। सवाल उठता है कि मोदी जी यूक्रेन गए क्यों?
-अनिल नरेन्द्र
महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य
कोलकाता में जूनियर डाक्टर से दुष्कर्म व हत्या, महाराष्ट्र के बदलापुर में दो बच्चियों के यौन शोषण, महाराष्ट्र के ही रत्नगिरी में 19 साल की नर्सिंग छात्र के साथ दुष्कर्म जैसी वारदातों को लेकर देशभर में व्यापक आक्रोश के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य है। उन्होंने कहा, देश का कोई भी राज्य हो, अपनी बहन-बेटियों की पीड़ा और उनका गुस्सा मैं समझ रहा हूं। देश के हर राजनीतिक दल, हर राज्य सरकार से यही कहूंगा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध का दोषी कोई भी हो, बचना नहीं चाहिए। उसकी किसी तरह से मदद करने वाला बचना नहीं चाहिए। कटु सत्य तो यह है कि जब कभी महिला के खिलाफ जघन्य अपराध का मामला तूल पकड़ता है तो विरोध प्रदर्शन होते हैं। सारे नेता और जनप्रतिनिधि भी मुखर रूप से इसमें शामिल होते हैं। मगर इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि जो जनप्रतिनिधि इस सवाल पर आक्रोशित जनता के साथ खड़े दिखते हैं, वे खुद अपने सहयोगियों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के आरोपों को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं होते। यह किसी से छिपा नहीं कि हर चुनाव में ऐसे लोग भी बतौर उम्मीदवार किसी सीट पर अपना दावा पेश करते हैं और उनमें से कई जीत कर जनप्रतिनिधि भी बन जाते हैं। चाहे उन पर कितने ही गंभीर आरोप लगे हों? अगर किसी जनप्रतिनिधि पर महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध करने या उसमें शामिल होने का आरोप है, तो उससे महिलाओं के हक में ईमानदारी से लड़ाई की कितनी उम्मीद की जा सकती है? जब जनप्रतिनिधि खुद आरोपी होते हैं, वे कानून बनाने या बचाने के दायित्व के प्रति कितने गंभीर हो सकते हैं, आप खुद ही सोच सकते हैं। इसी महौल में बुधवार को एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार 151 मौजूदा विधायकों और सांसदों के खिलाफ महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं। 300 पन्ने की इस रिपोर्ट में कितने सांसदों के खिलाफ महिला उत्पीड़न, बलात्कार के आरोप लगे हैं इसकी जानकारी है। इस रिपोर्ट के लिए एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने देश के कुल 4809 मौजूदा सांसदों और विधायकों में से 4,693 ने चुनाव आयोग को सौंपे गए हलफनामों का अध्ययन किया है। इन हलफनामों में विधायकों और सांसदों ने अपने खिलाफ दर्ज अपराधों की जानकारी दी है। इस रिपोर्ट में विस्तार से जानकारी दी गई है कि किन सांसदों, विधायकों पर महिला उत्पीड़न के अपराध दर्ज हैं। इनमें महिला पर एसिड अटैक, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, किसी महिला को निवस्त्र करना, पीछा करना, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिग लड़कियों को खरीदना व बेचना इत्यादि शामिल हैं। 755 सांसदों और 3938 विधायकों में से 151 विधायकों और सांसदों ने अपने हलफनामें में महिला उत्पीड़न से जुड़े अपराधों की जानकारी दी है। हलफनामे में जिन अपराधों की बात की गई है उनमें बलात्कार, दुर्व्यवहार, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त जैसे अपराध शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा भाजपा के 54 जनप्रतिनिधि हैं। कांग्रेस के 23, तेलुगू देशम के 17, आम आदमी पार्टी के 13, तृणमूल कांग्रेस के 10 और राजद के 5 नेता शामिल हैं। इनमें कांग्रेस के 16 के खिलाफ बलात्कार के मामले दर्ज हैं। इनमें दो सांसद और 14 विधायक हैं। विडम्बना यह कि जब हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि के खिलाफ ऐसे गंभीर मामले हैं तो प्रभावित महिलाओं और उनके परिजनों को न्याय कौन दिलवाएगा? इन जनप्रतिनिधियों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। कटु सत्य तो यह है कि इस हमाम में सब नंगे हैं।
Thursday, 29 August 2024
किसान आंदोलन रेप हो रहे थे, लाशें टांग रहे थे
यह कहना है बड़बोली हिमाचल प्रदेश के मंडी क्षेत्र से भाजपा सांसद फिल्म अभिनेत्री से बनी सांसद कंगना रनौत का। इस बयान पर विवाद तो छिड़ना ही था। बात ही ऐसी कह दी कंगना जी ने। दरअसल मुंबई दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कंगना ने किसान आंदोलन पर क्रूर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, आंदोलन के दौरान नेतृत्व मजबूत नहीं रहता तो किसान आंदोलन के दौरान पंजाब को भी बांग्लादेश बना दिया जाता। यहां किसान आंदोलन के दौरान क्या हुआ, वो सबने देखा। कैसे प्रोटेस्ट के नाम पर वायलैंस फैलाया गया। वहां रेप हो रहे थे, मारकर लाशों को लटकाया जा रहा था। जब उस बिल को वापस लिया गया तो ये उपद्रवी चौंक गए क्योंकि उनकी प्लानिंग तो बहुत लंबी थी। उस पर समय रहते कंट्रोल कर लिया गया, वर्ना कुछ भी हो सकता था। दरअसल इन लोगों को कुछ जानकारी ही नहीं है। यह फिल्म इंडस्ट्री वाले बस अपनी धुन में सवार रहते हैं। सुबह वे मेकअप करके बैठ जाते हैं, देश-दुनिया में क्या हो रहा है, इससे इनको कोई मतलब नहीं है। इनको लगता है कि अपना काम चलता रहे, देश जाए भाड़ में। ये भूल जाते हैं कि देश को कुछ हुआ तो उन्हें भी नुकसान होगा। आप हर वक्त बेखौफ होकर बोलती हैं, इससे नुकसान नहीं है क्या? जवाब देखिए ः मेरे परिजन बहुत साधारण जीवन जीते हैं। उन्हें किसी तरह का मोह नहीं है, वो तो बल्कि खुश हैं कि अब मैं गृहक्षेत्र मंडी में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिता रही हूं। इसके अलावा कुछ शुभचिंतक जरूर ऐसा कहते हैं कि आपको हर चीज में फाइट नहीं करना चाहिए। उनकी बात कुछ हद तक सही भी है। मैं अब हर चीज में अकेले तो लड़ नहीं पाऊंगी। आप खुद में इंदिरा जी की कुछ समानताएं देख पाती हैं? जवाब ः इमरजेंसी वाले चैप्टर को अगर भूल जाएं तो उनके व्यक्तित्व की एक खासियत थी कि वह अपने देश से बहुत प्यार करती थीं। वे सच में कुछ बदलाव भी चाहती ही थीं। आजकल के नेताओं में सत्ता की भूख तो है, लेकिन उन्हें देश से प्रेम नहीं है। इंदिरा जी की खराब लगने वाली बात यह है कि वे खुद की फैमिली को ही आगे बढ़ाना चाहती थीं जो सही नहीं। कंगना रनौत पता नहीं भाजपा के लिए असैट हैं या लाइबिलिटी। ऐसे समय जब हरियाणा विधानसभा चुनाव सिर पर है आप किसानों के खिलाफ इस प्रकार का बेहूदा, बेतुका बयान दे रही हैं? कंगना सांसद हैं, जिम्मेदारी व अकल से बोलना चाहिए। कभी कहती हैं कि भारत 2014 में आजाद हुआ तो कभी कहती हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री सुभाष चंद बोस थे। पहले से परेशान किसानों के जख्मों पर नमक न डालें। आंदोलन इसलिए है कि सरकार अपने वादों पर खरी नहीं उतरी। कंगना किसकी शह पर बोल रही हैं? भाजपा को इस पर सफाई देनी चाहिए। एसजीपीसी ने मांग की है कि कंगना पर एफआईआर दर्ज हो। फिल्म इमरजेंसी के जरिए सिखों की धार्मिक भावनाएं भड़काने का केस दर्ज करना चाहिए। ट्रेलर से साफ है कि इसमें जानबूझकर सिखों को आतंकवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हरजिंदर सिंह धामी, अध्यक्ष शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी।
-अनिल नरेन्द्र
...और अब असम में गैंगरेप
रेप का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। प्रतिदिन कहीं न कहीं से दुष्कर्म की खबर आती ही रहती हैं। पता नहीं हमारे देशवासियों को क्या हो गया है? अभी कोलकाता, बदलापुर का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि अब असम से गैंगरेप की खबर आई है। असम के नवांग जिले का धींग इलाका उस समय सुर्खियों में आया जब 2018 में इस छोटे से शहर में रहने वाली भारतीय धावक हिमा दास ने आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था। वो इस रिकार्ड को हासिल करने वाली पहली महिला थीं। लेकिन बीत दो-तीन दिन से धींग की महिलाएं एक नाबालिग लड़की के साथ कथित सामूहिक बलात्कार के कारण गुस्से और आक्रोश में सड़कों पर उतर आईं। इन महिलाओं के हाथें में प्लेबोर्ड पर लिखा था, हमें न्याय चाहिए, महिलाओं को सुरक्षा दो, स्टॉप रेप, किल रेपिस्ट। इन नारों ने जैसे उनके भीतर मानें उस योद्धा को जगा दिया जो अपने सम्मान और सुरक्षा के लिए किसी से भी लड़ जाएंगी। इस घटना को लेकर राज्य के विभिन्न शहरों में पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग पर लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। धींग थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार कथित सामूfिहक बलात्कार की यह घटना 22 अगस्त गुरुवार शाम करीब 6.30 बजे की है। स्कूल में पढ़ने वाली पीड़िता गुरुवार की शाम जब ट्यूशन से पढ़कर अपनी साइकिल से घर लौट रही थी, उसी दौरान एक सुनसान रास्ते के पास तीन युवकों ने उस पर हमला कर दिया। बाद में उन्होंने उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया। पुलिस के मुताबिक तीनों अभियुक्त घटना के बाद लड़की को आधी बेहोशी की हालत में छोड़कर भाग गए थे। स्थानीय लोगें ने पीड़िता को अस्पताल पहुंचाया। पीड़िता नगांव मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में भर्ती है। इस बीच कथित सामूहिक बलात्कार की घटना में गिरफ्तार किए गए एक अभियुक्त की शनिवार तड़के पुलिस हिरासत में मौत हो गई। पुलिस का दावा है कि अfिभयुक्त को शनिवार सुबह वारदात वाली जगह पर ले जाया गया था, जहां उसने कथित तौर पर भागने की कोशिश की। इस कोशिश में वो पास के एक तलाब में गिर गया जिस कारण उसकी मौत हो गई। 24 साल के इस अभियुक्त का नाम तफज्जुल इस्लाम बताया गया है। पुलिस के अनुसार ये अभियुक्त नाबालिग लड़की के साथ कथित बलात्कार (सामूfिहक) के तीन अभियुक्तों में से एक था। जिस समय इसका शव तलाब से निकाला गया तो उसके दोनों हाथ हथकड़ी से बंधे हुए थे। पीड़िता के घर वाले चाहते हैं कि पुलिस बाकी के दो अभियुक्तों को पकड़े ताकि उन्हें सजा मिल सके। वहीं इस घटना में तफज्जुल इस्लाम के परिवार वालें ने पुलिस हिरासत में हुई मौत को लेकर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि इस बीच अभियुक्त के गांव वालों ने घोषणा की है कि वो अभियुक्त के पfिरवार का सामाजिक बहिष्कार करेंगे। इस कथित बलात्कार घटना के बाद असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि जिन अपराधियों ने धींग की एक हिंदू नाबालिग लड़की के साथ जघन्य अपराध करने का साहस किया उन्हें कानून छोड़ेगा नहीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बीते लोकसभा चुनाव के बाद असम में इस तरह की 22 घटनाएं हुई हैं। उन्होंने कहा, लोकसभा के बाद कुछ विकृत मानसिकता के लोग ऐसी घटनाओं के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि जिन इलाकों में हमारे स्वदेशी (खिलोंजिया) लोग अल्पसंख्यक हुए हैं वहां हमारे लोगों को इस तरह का सामना करना पड़ रहा है। हमारे स्वदेशी लोग बंगाली-मारवाड़ियां हिंदी भाfिषयों की चिंता रहती है कि हमारे मित्र कौन हैं और दुश्मन कौन?
Tuesday, 27 August 2024
. . .और इस बार पेपर लीक नहीं हुआ
उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही की नौकरी के लिए 23 अगस्त से परीक्षा शुरू हो गई है। पुलिस कांस्टेबल भर्ती के लिए होने वाली ये परीक्षा 23, 24, 25, 30 और 31 अगस्त तक चलेगी। माना जा रहा है कि यूपी पुलिस में 60 हजार 244 पदों के लिए हो रही इस परीक्षा के लिए 6 लाख से ज्यादा अभ्यार्थियों ने दी है परीक्षा। परीक्षा के लिए 67 जिलों में 1,174 सेंटर बनाए गए हैं। ये परीक्षा इसी साल फरवरी में हुई थी लेकिन प्रश्न पत्र लीक होने के कारण परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी। यूपी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रशांत कुमार ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि परीक्षा में कोई गड़बड़ी न हो। इसके लिए छोटे-छोटे पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। परीक्षा केंद्र ही नहीं रास्तों की भी निगरानी रखी जाएगी। इसके अलावा यूपी पुलिस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर प्रदेश की अलग-अलग जगहों की पुलिस ने इंतजाम को लेकर जानकारी दी और तैयारियों के बारे में बताया। वहीं, यूपी सरकार ने चेतावनी दी है कि पेपर लीक कराने की कोशिश करते हुए पाए जाने पर उस व्यक्ति पर उस नए कानून के तहत कार्रवाई होगी, जिसमें एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना और आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। पेपर लीक रोकने के लिए योगी सरकार उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) अध्यादेश-2024 लेकर आई थी। इसके तहत परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग, नकल करना या नकल कराना और प्रश्न पत्र लीक करना इस अपराध की श्रेणी में आते हैं। पेपर लीक रोकने के लिए सरकार ने कई बदलाव भी किए हैं। परीक्षा में शामिल होने वालों के लिए फ्री में बस सेवा सुविधा दी गई है। हालांकि इसके लिए परीक्षार्थी को अपना एडमिट कार्ड दिखाना होगा। परीक्षा सेंटर में सीसीटीवी की निगरानी और पुलिस की तैनाती के अलावा पेपर लीक से बचने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। परीक्षा केंद्र में परीक्षार्थी का केवाईसी वेरिफिकेशन कराया जाएगा। परीक्षार्थी का बायोमेट्रिक लिया जाएगा और आधार कार्ड के जरिए पहचान की पुष्टि की जाएगी। इसके अलावा एसटीएफ को भी अलर्ट रहने के लिए कहा गया है। परीक्षा केंद्र में निगरानी की जिम्मेदारी सेक्टर मजिस्ट्रेट को दी गई है। सेक्टर मजिस्ट्रेट की ही निगरानी में ट्रेजरी आफिस से सेंटर तक पुलिस की सुरक्षा में प्रश्न पत्र लाए जाएंगे। दरअसल यूपी में इस साल फरवरी में हुई पुलिस भर्ती परीक्षा पेपर लीक होने के आरोपों के बाद राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस परीक्षा को रद्द करते हुए छह महीने के अंदर परीक्षा कराए जाने की बात कही थी। पेपर लीक की घटना को लेकर अखिलेश यादव और मायावती ने भी सरकार की जमकर आलोचना की थी। अभी तक तो पेपर लीक होने की कोई सूचना नहीं आई। अगर लीक पर काबू पाया जा सकता है तो देश के अन्य राज्यों को भी यूपी सरकार से सबक लेना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद चुनाव
जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे। 2014 से 2024 के बीच यहां बहुत कुछ बदल चुका है। 20 दिसम्बर 2018 से यहां राष्ट्रपति शासन लागू है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में 87 सीटें थीं, जिनमें से 4 लद्दाख की भी थी। अब लद्दाख की सीटें हटाकर 90 हो गई है, क्योंकि लद्दाख अलग केंद्र शासित क्षेत्र है। इन 90 में से 43 जम्मू संभाग से और 47 कश्मीर संभाग में है। इनमें 7 सीटें एससी और 9 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। परिसीमन के बाद जो 7 विधानसभा सीटें बढ़ी हैं, उनमें से 6 जम्मू और एक कश्मीर में हैं। गुरुवार शाम कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डाक्टर फारुख अब्दुल्ला ने पत्रकारों से कहा, खुदा चाहेगा तो हमारा कांग्रेस के साथ गठबंधन अच्छे से चलेगा। हम सही ट्रैक पर हैं। इस चुनाव पूर्व गठबंधन की घोषणा राहुल गांधी और कांग्रेsस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान की। फारुख अब्दुल्ला ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की सभी सीटों (90) पर चुनाव पूर्व गठबंधन हुआ है। उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) इस गठबंधन में शामिल है। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता यूसुफ तारिगामी ने कहा, मुझे उम्मीद है कि हम भारी बहुमत से चुनाव जीतकर आम लोगों का जीवन आसान बनाएंगे। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने 2019 से जिन हालात का सामना किया है। उसकी कही और कोई मिसाल नहीं है। आज जम्मू-कश्मीर भी काफी परेशान है, वादा किया गया था कि स्टेट हुड को वापस किया जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है। परिसीमन के बाद भी चुनाव नहीं करवाए। हमारी कोशिश है कि एक सेक्युलर सरकार बने और लोग भी यही चाहते हैं। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन पर उन्हें घेरा। उन्होंने ट्वीट किया, मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 और 35ए हटाने के बाद से दलितों, आदिवासियों, पहाड़ियों और पिछड़ों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म किया, उन्हें आरक्षण देने का काम किया। क्या राहुल गांधी जेकेएनसी के घोषणा पत्र में उल्लेखित दलितों, गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ियों के आरक्षण समाप्त करने वाले प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को देश के सामने अपनी आरक्षण नीति को स्पष्ट करना चाहिए। कश्मीर के एक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस के साथ इस बार जो गठबंधन किया है। वह एक सोचा समझा कदम है। इस गठबंधन में भी हो सकता है कि जम्मू में जो मुस्लिम वोट हैं, अब उसके बढ़ने की आशंका कम हो सकती है। दूसरी बात यह है कि इस गठबंधन से भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई हैं। जम्मू-कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में इस गठबंधन से लोगों में ये भी संदेश गया है कि भाजपा के खिलाफ दो बड़े सियासी दल खड़े हो गए हैं। घाटी में तो वैसे ही भाजपा सिफर है। हाल ही के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी अपने उम्मीदवार तक नहीं उतार सकी। भाजपा का ज्यादा जोर जम्मू संभाग में है जहां उनका सुरक्षित वोट बैंक है। हालांकि भाजपा इस बार घाटी में भी गठबंधन कर कुछ उम्मीदवार उतार सकती है।
Saturday, 24 August 2024
चंपाई सोरेन के जरिए चुनाव जीतने की कवायद
भाजपा पिछले 4-5 वर्षों से झारखंड में सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। कम से कम 5 बार झामुमो को तोड़ने की कोशिश की है पर हर बार असफल रही है। ताजा उदाहरण चंपाई सोरेन का है। झामुमो के सीनियर लीडर चंपाई सोरेन ने पार्टी छोड़ दी है। हाल ही में दिल्ली आए थे। उनके साथ चार-पांच विधायकों को भी आना था पर वह किसी कारणवश चंपाई के साथ दिल्ली नहीं आए। अकेले चंपाई भाजपा के लिए कुछ खास उपयोगी नहीं थे इसलिए इस बार की ऑपरेशन लोटस फेल हो गया। हेमंत सोरेन ने अब तक भाजपा के सारे ऑपरेशन लोटस फेल किए हैं। भाजपा की नजर इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने पर है। वह हर कीमत पर यहां सरकार बनाना चाहती है। चंपाई सोरेन की बगावत के बावजूद भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। पार्टी के सामने भीतरी और बाहरी दोनों मोर्चों पर कड़ी चुनौतियां हैं। हालांकि उसके दो प्रमुख रणनीतिकार केन्द्राrय मंत्री व मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा राज्य में भाजपा की सत्ता में वापसी के लिए मजबूत रणनीति बनाने में जुटे हैं, जिसमें आदिवासी मतदाताओं को साधना सबसे अहम है। झारखंड में हाल में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को आदिवासी सीटों पर बड़ा झटका लगा था। वह राज्य की सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर हार गई और यही वजह है कि भाजपा की लोकसभा सीट 11 से घटकर 8 रह गई। आदिवासी सीटों पर नुकसान भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में बड़ी समस्या बन सकती है। हालांकि भाजपा ने राज्य की चुनावी रणनीति की कमान अपने दो मजबूत नेताओं को सौंपी है। चंपाई सोरेन की झामुमो में बगावत को भी भाजपा की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। चंपाई झामुमो के मजबूत नेता हैं और प्रतिष्ठित आदिवासी नेता हैं। यही वजह है कि चंपाई को ही हेमंत ने जेल जाने पर मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन जब वह जेल से लौटे तो चंपाई को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बन गए। तभी से दोनें में अनबन चल रही है। चंपाई सोरेन के पाला बदलने की तेज हुई हलचलों को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया का राष्ट्रीय नेतृत्व चौकस और सक्रिय हो गया है। चंपाई के भाजपा में जाने के लिए मिल रहे संकेत इंडिया के लिए चुनावी चिंता बढ़ाने वाला जरूर है। चंपाई यदि भाजपा में शामिल होते हैं तो आदिवासी रणनीति के विमर्श की लड़ाई में चुनौती बन सकते हैं, वैसे उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाने के संकेत दिए हैं। झारखंड में कांग्रेस और हेमंत सोरेन चौकस हो चुके हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं चंपाई सोरेन ने तीन दिवसीय दिल्ली दौरे के बाद मंगलवार की देर शाम कोलकाता होते हुए सरायकेला (गांव) लौट आए लेकिन उन्होंने अगले कदम का खुलासा नहीं किया। पुराने स्टैंड पर कायम हैं। दिल्ली एयरपोर्ट पर चंपाई ने भाजपा के किसी नेता से बातचीत करने से भी साफ इंकार कर दिया। नाराजगी और अन्य विषयों पर बार-बार यही दोहराया कि सोशल मीडिया के माध्यम से मैंने अपनी बात रख दी है। इसमें ज्यादा कुछ नहीं कहना है, चंपाई विचार रखने के बाद अगले कदम का खुलासा करेंगे, तब तक वेट करिए।
-अनिल नरेन्द्र
...और अब बदलापुर में घिनौना कांड
अभी कोलकाता के रेप-मर्डर कांड पर बवाल बना हुआ है तो उधर महाराष्ट्र में ठाणे के बदलापुर स्थित एक स्कूल में उससे भी कई मायनों में बड़ा कांड हो गया है। एक स्कूल की दो छोटी-छोटी छात्राओं के कथित यौन शोषण का घिनौना, न शब्दों में बयान करने वाला कांड सामने आया है। घटना के सामने आने के बाद अभिभावकों के जबरदस्त विरोध प्रदर्शन ने भंयकर हिंसक रूप ले लिया। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने स्कूल में तोड़-फोड़ की। हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी बदलापुर स्टेशन की पटरियों पर उतर आए और ट्रेनें का परिचालन रोक दिया। उन्होंने रेलवे स्टेशन पर पथराव भी किया। शाम को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया और ट्रैक को मुश्किल से खाली करवाया। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मामले में गिरफ्तार आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म के प्रयास का आरोप दर्ज करने का निर्देश दिया है। शिंदे ने कहा कि मामले की त्वरित सुनवाई की जाएगी और एक विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया जाएगा। अब तक कार्रवाई में पुलिस ने आरोपी अक्षय शिंदे को पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। इंस्पेक्टर शुभदा सितोले का ट्रांसफर कर दिया गया है। स्कूल प्रिंसिपल, क्लास टीचर और महिला कर्मचारी को निलंबित कर दिया गया है। दरअसल पूरी घटना 12 और 13 अगस्त की है। तीन साल की दो बच्चियों के साथ बदलापुर स्थित आदर्श विद्यालय में ही काम करने वाले सफाई कर्मचारी ने कथित तौर पर उत्पीड़न किया। घटना के बाद बच्चियां इतनी डरी हुई थीं कि वो स्कूल जाने से मना कर रही थी, जब मां-बाप ने जोर दिया और पूछा तब बच्चियों ने अपने साथ हुई घटना के बारे में बताया। 16 अगस्त को जब बच्चियों के मां-बाप एफआईआर दर्ज कराने पहुंचे, तब पुलिस मामला दर्ज करने में आनाकानी करती रही। आरोप है कि 12 घंटे बीतने के बाद भी पुलिस ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं की। फिर कुछ स्थानीय नेता पुलिस स्टेशन पहुंचे। जिसके बाद एफआईआर दर्ज हुई। आरोपी पर पॉस्को एक्ट भी लगाया गया है और उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया है। पुलिस के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार मैनेजमेंट की तरफ से इस मामले में बहुत सारी लापरवाहियां बरती गई है। स्कूल के कई सीसीटीवी कैमरे ऐसे हैं जो काम नहीं करते। फिलहाल मैनेजमेंट की तरफ से प्रिंसिपल, टीचर, स्कूल ट्रैनी और कांट्रेक्ट एजेंसी को सस्पेंड कर दिया गया है। इस पूरी घटना के लिए स्कूल की तरफ से माफी मांगी गई है। सवाल यह उठता है कि कोलकाता में जो हुआ उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। पर अगर कोलकाता मेडिकल कालेज में लीपापोती और तथ्य छिपाने का आरोप है तो बदलापुर में स्कूल पर भी यह आरोप लगता है। मगर आप पश्चिम बंगाल की ममता सरकार से इस्तीफा मांग सकते हैं तो महाराष्ट्र में इस डबल इंजन की सरकार को कैसे निर्दोष साबित कर सकते हैं। सबसे दुखद पहलू यह है कि पिछले कुछ दिनों से बच्चियों से दुष्कर्म की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। कभी हिमाचल से होती है, कभी बिहार में, कभी दिल्ली में और कभी कोलकाता और महाराष्ट्र में। इन्हें रोका कैसे जाए सवाल यह है।
Thursday, 22 August 2024
क्या पुतिन जंग हार रहे हैं?
पिछले कुछ दिनों से खबरें आ रही हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेनी सैनिक रूस के अंदर घुस रहे हैं। साल 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था। अब लगभग तीन साल होने को आ रहे हैं और युद्ध का कोई निर्णय नहीं निकला। खबर है कि यह पहला मौका है कि जब विदेशी सैनिक रूस की जमीन पर पहुंच गए हैं, रूस में यूक्रेनी सेना के 30 किलोमीटर अंदर तक घुसने और कई इमारतों पर यूक्रेनी सेना के रूसी झंडा हटाकर अपने देश का झंडा लगाने के बीच रूस ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को कुर्स्क सीमा क्षेत्र खाली करने का आदेश दिया है। दरअसल, यहां रूसी सेनाएं लगभग एक सप्ताह की भीषण लड़ाई के बाद भी यूक्रेनी हमले का पुरजोर जवाब नहीं दे पा रही हैं। रूस के आपात व्यवस्था अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि कुर्स्क के इलाकों में 76,000 से अधिक लोगों ने अपने घरों को छोड़ दिया है। जहां 6 अगस्त से यूक्रेनी सेना और बख्तर बंद गाड़ियां सीमा पार कर करीब 30 किलोमीटर भीतर तक घुस गई थीं। वह कथित तौर पर अभी भी शहर के पश्चिमी हिस्से पर कब्जा किए हुए हैं। कुर्स्क के अधिकारियों ने कहा कि अब बेलोटस्थी से भी 14000 लोगों को निकालने को कहा है। बेल्मसोरोद के गवर्नर ने भी कहा कि सीमा पर दुश्मन की गतिविधि की वजह से लोगों को हटाया जा रहा है। लोगों को बेसमेंट में छिपने को कहा गया है। यूक्रेनी सैनिकों के रूस की सीमा के अंदर कुर्स्क क्षेत्र में घुसपैठ करने के करीब 2 सप्ताह बाद यह स्पष्ट हो रहा है कि वो यहां रुकने की योजना बना रहे हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने शनिवार को कहा था कि उनके सैनिक कुर्स्क में आगे बढ़ते हुए अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं। रविवार की शाम को अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कुर्स्क क्षेत्र में हमारा अभियान अब भी रूस, उसकी सेना, उसके रक्षा उद्योग और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने कहा कि यह यूक्रेन के लिए महज बचाव से कहीं ज्यादा है। इसका मकसद जहां तक संभव हो सके रूस की युद्ध क्षमता को नष्ट करना और जवाबी कार्रवाई करना है। जेलेंस्की ने कहा कि कुर्स्क में आक्रामक क्षेत्र पर एक बफर जोन बनाना भी शामिल होगा ताकि यूक्रेन में आगे रूसी हमलों को रोका जा सके, उनके मुताबिक यूक्रेन का मकसद रूस को बातचीत के लिए राजी करना है। रूस ने इस घुसपैठ को एक उकसावे वाली कार्रवाई बताया है और इसका उचित जवाब देने की कसम खाई है, जैसे-जैसे यूक्रेन पश्चिमी रूस में आगे बढ़ रहा है, रूस की सेना का मनोबल गिरता जा रहा है। अब तो रूस के अंदर भी इस निर्णायक युद्ध को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। सोशल मीडिया में खबरे आ रही हैं कि कई रूसी जनरल पुतिन से सवाल कर रहे हैं कि इस युद्ध से रूस को क्या लाभ हो रहा है। एक तरफ रूस की सेना नष्ट हो रही है वहीं इस युद्ध के कारण रूस की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो रही है। राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने दावा किया था कि 15 दिन में यह युद्ध खत्म हो जाएगा और युक्रेन पर हमारा कब्जा हो जाएगा। अब लगभग तीन साल हो गए हैं। पुतिन के नेतृत्व पर भी अब रूस में सवाल उठने लगे हैं। रूस जंग हार रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
इसलिए वापस लेना पड़ा लेटरल एंट्री
लेटरल एंट्री के माध्यम से संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती पर सियासी संग्राम छिड़ गया है। परंतु विपक्ष के बढ़ते दबाव और आम चुनाव के दौरान आरक्षण के मसले पर मोदी सरकार को लगे झटके के चलते सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा विज्ञापन को वापस ले लिया है। दरअसल केंद्र सरकार ने शासन की सुगमता और शासन में नई प्रतिभाओं को शामिल करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपनी एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप-सचिवों के प्रमुख पदों पर जल्द ही 45 विशेषज्ञ नियुक्त किए जाने की घोषणा की है। आमतौर पर अब तक ऐसे पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) भारतीय पुलिस सर्विस (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा और अन्य ग्रुप ए सेवाओं के अधिकारी होते हैं। इस घोषणा की चौतरफा आलोचना हो रही है। कांग्रेस, सपा और बसपा सहित विपक्षी दलों ने मामले को लेकर केंद्र पर हमला बोला है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की इस योजना का कड़ा विरोध करते हुए इसके खिलाफ 2 अक्टूबर से आंदोलन चलाने का ऐलान किया है। अखिलेश ने रविवार को एक्स पर लिखाö भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साजिश कर रही है उसके खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है। ये तरीका आज के अधिकारियों के साथ, युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा। आम लोग बाबू और चपरासी तक ही सीमित रह जाएंगे। दरअसल, सारी चाल पीडीए से आरक्षण छीनने की है। अब जब भाजपा ये जान गई है कि संविधान को खत्म करने की भाजपाई चाल के खिलाफ देशभर का पीडीए जाग रहा है तो वे ऐसे पदों पर सीधी भर्ती कर आरक्षण को दूसरे बहाने से नकारना चाहती है। बसपा प्रमुख मायावती ने केन्द्र में लेटरल एंट्री के माध्यम से उच्च पदों पर सीधी भर्ती पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार का यह फैसला सही नहीं है। बसपा प्रमुख ने रविवार को एक्स पर लिखा कि केंद्र सरकार का लेटरल एंट्री के माध्यम से सीधी भर्ती का मतलब यह भी है कि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित होना होगा। इसके साथ ही इन नियुक्तियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनके कोटे के अनुपात में अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है, तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन है। कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री संघ लोक सेवा आयोग के बजाए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं। इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर विलंबित प्रवेश प्रक्रिया के जरिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है। उन्होंने कहा है कि शीर्ष नौकरशाहों समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाए लेटरल एंट्री प्रक्रिया द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से दूर रखने की कवायद है। यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं के हक पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है। उधर लालू प्रसाद यादव ने कहा कि बाबा साहेब के संविधान व आरक्षण की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कारपोरेट में काम कर रही भाजपा की निजी सेना अर्थात खाकी पेंट वालों को सीधा भारत सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालयों में बैठाने की मंशा साफ दिख रही है।
Tuesday, 20 August 2024
भाजपा की हैट्रिक या कांग्रेस की वापसी
हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे इस चुनाव में कई पार्टियां मुकाबले के लिए तैयार हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग एक चरण में 1 अक्टूबर को होगी और नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। चुनाव आयोग इस बात की बधाई का पात्र है कि इस चुनाव में मतदान और गिनती में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा और ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन की लगातार तीसरी जीत के बाद अब पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) जहां अकेले मैदान में हैं वहीं इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन बनाकर हिस्सा ले रही है। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) अकेले चुनाव लड़ेगी या किसी के साथ गठबंधन करेगी इसकी घोषणा अभी तक नहीं हुई है। भाजपा ने ऐलान किया है कि वो इस चुनाव में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस ने अभी भी किसी मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं की है। इस साल जुलाई में ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और इनेलो ने गठबंधन बनाकर साथ विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। इस गठबंधन का चेहरा अभय सिंह चौटाला को बनाया गया है। इस बार बदली परिस्थितियों में हो रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे कई अहम सवालों का जवाब देंगे। चुनाव में भाजपा के सामने जीत की हैट्रिक लगातार सत्ता बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस के सामने गुटबाजी से ऊपर उठकर हार का धब्बा खत्म करने की है। इसके अलावा जेजेपी, इनेलो, हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) जैसे छोटे दलों के लिए अस्तित्व बचाने का सवाल भी है। चंद महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाई थी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नेतृत्व परिवर्तन के बावजूद पार्टी ने कांग्रेस के हाथों दस में से 5 सीटें गंवा दी। ओबीसी बिरादरी के नए सीएम नायब सिंह सैनी अपनी बिरादरी को साधने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। उन्होंने सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदने सहित कई अन्य अहम घोषणाएं की हैं। पार्टी अपनी सारी ताकत ओबीसी और अगड़ा वर्ग को साधने में लगा रही है। लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए उत्साहजनक रहे हैं। पार्टी एक दशक बाद राज्य की दस में से पांच सीटें जीती। हालांकि नतीजे के बाद से ही पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। एक तरफ शैलजा गुट हैं और दूसरी तरफ भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट। कांग्रेस ने फिलहाल किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने से परहेज बरता है। पार्टी की रणनीति 22 फीसदी जाट और 21 फीसदी दलित मतदाताओं को साथ रखने की है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा हरियाणा में कभी बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं रही। भाजपा में मोदी युग के आगाज के बाद पार्टी पहली बार उसी साल अपने दम पर बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में सफल रही। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से चूकी पर उसे सरकार बनाने के लिए जेजेपी का सहारा लेना पड़ा। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जेजेपी से गठबंधन तोड़ दिया और नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के हाथों पांच सीटें गंवानी पड़ी। आमतौर पर कहा जाता है कि हरियाणा में तीन फैक्टर सबसे ज्यादा चलते रहे हैं ः जय जवान, जय किसान और जय पहलवान। इन तीनों के इर्द-गिर्द ही हरियाणा की राजनीति घूमती है।
-अनिल नरेन्द्र
कोलकाता रेप-मर्डर केस, बैकफुट पर ममता
आरजी कर अस्पताल की घटना के अभियुक्त को रविवार तक फांसी दी जाए। बांग्लादेश की तरह यहां मेरी सरकार भी गिराने की कोशिश चल रही है। मुझे सत्ता का कोई लालच नहीं है...। इस घटना पर सीपीएम और भाजपा राजनीति कर रही हैं। आरजी कर अस्पताल पर हमले के पीछे भी राम और वाम का ही हाथ है। यह बयान कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर डाक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दिया गया है। अमूमन इससे पहले उनको किसी मामले में लगातार ऐसी बयानबाजी करते नहीं देखा गया है। इससे राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या ममता इस घटना की वजह से भारी दबाव में हैं? क्या उनको अपने सबसे बड़े वोट बैंक के बिखरने का खतरा नजर आ रहा है? क्या अपने तीसरे कार्यकाल में उनको पहली बार ऐसी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है? अमूमन वो किसी घटना के विरोध में सड़क पर नहीं उतरतीं। इस घटना के बाद जहां सरकार और पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है वहीं रीब्लेम द नाइट की अपील पर राज्य के तीन सौ स्थानों पर महिलाओं के स्वत स्फूर्त जमावड़े और विरोध प्रदर्शन के कारण उनके इस वोट बैंक (सबसे मजबूत) के बिखरने का भी खतरा पैदा हो गया है। विश्लेषकों का कहना है कि फिलहाल राज्य में कोई चुनाव भले ही न हो, विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने और अगले विधानसभा चुनाव तक जीवित रखने की कोशिश जरूर करेगा। ममता बनर्जी पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। भजपा और सीपीएम तो आक्रामक तौर पर इसका विरोध तो कर ही रही हैं, कांग्रेस भी मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणियां कर रही है। इनमें राहुल गांधी और प्रदेश कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल हैं। ममता ने शुक्रवार शाम को कोलकाता के मौलाली से धर्मतल्ला इलाके तक करीब डेढ़ किमी पदयात्रा की। उनका एक ही नारा था कि दोषियों को सजा देनी होगी। उनको फांसी पर लटकाना होगा। सवाल यह उठता है कि ममता किस से सजा दिलवाने, फांसी पर लटकाने की मांग कर रही थीं? यह तो जवाब तो तृणमूल सरकार और पुलिस प्रशासन को देना है? फिर इस प्रकार की मांग की तुक क्या है? उनके प्रशासन पर लीपापोती और साक्ष्य मिटाने के आरोप हैं। इन नरभक्षियों को बचाने के आरोप हैं। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है। इसने तो निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। सारे देश के डॉक्टर आज सड़कों पर उतरे हुए हैं और न्याय और सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। इस बार ममता और उनकी सरकार फंस गई है। अगर उसने पूरे मामले पर लीपापोती का प्रयास नहीं किया होता तो आज सड़क पर नहीं उतरना पड़ता। खासकर प्रिंसिपल का बचाव करना और उसको इस्तीफे के कुछ घंटों के भीतर नई बहाली देना उनके गले की फांस बनता जा रहा है। ममता के खिलाफ मुद्दों की तलाश में जुटे विपक्ष ने अब इस मुद्देs को लपक लिया है। मुख्यमंत्री खुद एक महिला हैं, पार्टी में 11 सांसद महिलाएं हैं, फिर भी एक महिला के साथ घटी ऐसी बर्बर घटना के बाद सरकार वैसी सक्रियता नहीं दिखा सकी जैसी इस गंभीर मामले में उम्मीद थी। बेशक सीबीआई अब पूरे मामले की जांच कर रही है पर कटु सत्य यह हैं कि बंगाल के मामले में तृणमूल सरकार का ट्रेक रिकार्ड बेहतर नहीं है, यही वजह है कि विपक्षी हमले की धार कुंद करने के लिए अब ममता भी आम लोगों के सुर में सुर मिलाते हुए दोषियों को फांसी की मांग कर रही हैं। उधर अस्पताल पर हमले के मामले में पुलिस ने अब तक 24 लोगों को गिरफ्तार किया है। उनमें एक महिला भी है। फिलहाल तो ममता अपने महिला वोट बैंक को अटूट रखने की चुनौती से जूझ रही हैं।
Saturday, 17 August 2024
हिंडनबर्ग रिपोर्ट और सेबी प्रमुख
अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग ने बाजार नियामक सेबी की चेयरपर्सन माधवी बुच पर एक बार फिर सवाल उठाए हैं। हिंडनबर्ग ने अपने अधिकारिक एक्स एकाउंट पर दस्तावेजों के साथ एक पोस्ट करते हुए दावा किया कि माधवी की सफाई वाले बयान पर जारी रिपोर्ट में कही गई बातों को स्वीकार करा गया है और इससे कई नए महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े हुए हैं। उल्लेखनीय है कि सेबी और अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग के आरोपों को बेबुनियाद बताया। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सेबी की प्रमुख माधवी बुच पर अडाणी समूह से जुड़े विदेशी कोष में हिस्सेदारी होने के आरोपों को माधवी ने आधारहीन व चरित्र हनन का प्रयास बताया है। हिंडनबर्ग ने अपने जवाब में कहा कि बुच के जवाब से पुष्टि होती है उनका निवेश बरमुडा/मारीशस के फंड में था। आरोप है कि गौतम अडाणी का भाई विनोद अडाणी के जरिए शेयरों की कीमत बढ़ाता था। इसे हितों के टकराव का बड़ा मामला माना जा रहा है। हिंडनबर्ग ने कहा कि माधवी बुच ने अपने बयान में दावा किया था कि उन्होंने जो दो परामर्श कंपनियां स्थापित कीं जिनमें भारतीय और सिंगापुर की इकाई शामिल है, वे 2017 में सेबी में उनकी नियुक्ति के तुरंत बाद निष्क्रिय हो गई थी। वर्ष 2019 में उनके पति ने कार्यभार संभाल लिया था। लेकिन दस्तावेजों में खुलासा हुआ है कि 31 मार्च 2024 तक शेयर धारित सूची के अनुसार अगोरा एंड वाइनरी लिमिटेड (इंडिया) का 99 प्रतिशत स्वामित्व अब भी माधवी के पास है, न कि उनके पति के पास। यह इकाई वर्तमान में सक्रिय है और इससे राजस्व हासिल किया जा रहा है। बुच दंपति की नेटवर्थ बहरहाल दस मिलियन डॉलर आंकी गई है। हम यह नहीं दावा कर रहे कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सही है या नहीं, हम यह कहते हैं कि मामले की बारीकी से जांच होनी चाहिए। सरकार को त्वरित कार्रवाई करते हुए यह स्पष्ट करना चाहिए कि इसमें किसी तरह की ढिलाई नहीं हुई है। दूसरे जब तक जांच पूरी तरह नहीं हो जाती, तब तक सेबी प्रुमुख को नियामक गतिविधियों से पृथक रखा जाए। यह मसला बेहद गंभीर है, देश की प्रतिष्ठा और शेयरधारकों के विश्वास को किसी तरह की चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। इस दौरान यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया है। अधिवक्ता विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट का हवाला दिया। अर्जी में आरोप लगाया गया कि भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधवी बुच और उनके पति ने ऐसे फंड में निवेश किया था जो अडाणी समूह की कपंनियों से जुड़े हैं। नई रिपोर्ट ने संदेह का माहौल पैदा कर दिया है, इसलिए अडाणी समूह के बारे में हिंडनबर्ग की 2023 की रिपोर्ट पर सेबी की लंबित जांच पूरी करने और जांच के निष्कर्ष का सार्वजनिक करना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी 2023 को सेबी की जांच से सहमति जताते हुए आरोपों की एसआईटी और सीबीआई से जांच कराने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। अगर इसमें निष्पक्ष जांच होती है तो सच्चाई सामने आ जाएगी। अगर यह कोई विदेशी साजिश है तो भी उसका पर्दाफाश हो जाएगा और सरकार व सेबी क्लीन चिट के हकदार होंगे और अगर माधवी इसमें लिप्त पाई जाती हैं तो उस सूरत में कानून अपना काम करेगा।
-अनिल नरेन्द्र
नया अध्यक्ष चुनने में अड़चनें क्या हैं?
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का नया फुलटाइम अध्यक्ष कौन होगा? पार्टी अध्यक्ष के तौर पर जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल खत्म हो गया है। यही वजह है कि राजनीतिक गलियारों में हर तरफ इस सवाल की चर्चा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रविवार को दिल्ली में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के घर पर इसे लेकर गहन मंथन किया गया। रिपोर्ट्स की मानें तो इस बैठक में राजनाथ सिंह के अलावा केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा महासचिव बीएल संतोष के साथ-साथ संघ की तरफ से महासचिव दत्तात्रेय होसबले और संयुक्त सचिव अरुण कुमार मौजूद थे। हालांकि नए अध्यक्ष के लिए कई नामों पर चर्चा हुई पर किसी भी नाम पर सहमति नहीं हो पाई। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर भाजपा को अपना अध्यक्ष चुनने में इतनी देरी क्यों लग रही है? संघ चाहता है कि इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद आम सहमति से नया अध्यक्ष बने। जबकि भाजपा चाहती है कि चुनावों से पहले नया अध्यक्ष अपना पद संभाल लें। चुनावों में कुछ वक्त मुश्किल से बचा है। ऐसे में अध्यक्ष पद पर किसी नए व्यक्ति को लाने से मुश्किलें होंगी, क्योंकि उन्हें चीजों को समझने में बहुत वक्त लगेगा। पार्टी संविधान के मुताबिक कम से कम 15 साल से जो व्यक्ति पार्टी का सदस्य होगा वही अध्यक्ष बन सकता है। भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों की तरह नहीं है। मायावती, अखिलेश यादव, स्टालिन जैसे नेताओं की पार्टियों में अध्यक्ष एक ब्रांड की तरह काम करता है, ऐसा संघ भाजपा में कभी नहीं होने देना चाहता। संघ चाहता है कि सरकार और पार्टी के नेतृत्व में फर्क हो। सरकार का काम सरकार चलाना और संगठन का काम अलग है जिसका नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो सरकार के निर्देशों पर काम न करे और स्वतंत्र रूप से पार्टी चलाए। संघ चाहता है कि गुजरात लाबी को पार्टी में हावी न होने दें। उसका थोपा हुआ अध्यक्ष अब संघ को स्वीकार्य नहीं है। पिछले दस साल में पीएम मोदी ने मोटे तौर पर अपनी मर्जी से पार्टी अध्यक्ष तय किए हैं लेकिन अब स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही है। बैठक में संघ के सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबोले और सह सरकार्यवाहक अरुण कुमार की मौजूदगी में अगर अध्यक्ष पद को लेकर मंथन हो रहा है तो संघ अपने तरीके से नए अध्यक्ष को देखना चाहता है। हालांकि आरएसएस कभी सीधे तौर पर अपनी तरफ से नाम नहीं देता, लेकिन जो नाम मिलते हैं उस पर वह अपनी राय जरूर देता है और यहां राय किसी आदेश से कम नहीं होती। भाजपा के घटते जनाधार की वजह से इस बार संघ पार्टी अध्यक्ष को लेकर दबाव बना रहा है, जो 4 जून 2024 से पहले वह नहीं बना सकता था। चार राज्यों के चुनाव नतीजे न केवल मोदी-शाह के भविष्य को तय करेंगे बल्कि कुछ हद तक मोहन भागवत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को भी तय करेंगे। अगर नतीजे अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के मुताबिक आए तो भाजपा अध्यक्ष अलग होगा और उनके अनुकूल नहीं आए तो अलग होगा, जिसमें संघ का पूरा दखल होगा। बैठक में पूर्ण कालिक अध्यक्ष के चयन से पहले कार्यकारी अध्यक्ष के नाम की घोषणा किए जाने की चर्चा है। कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में पार्टी महासचिव विनोद तावड़े का नाम सबसे ऊपर है। नए अध्यक्ष के चुनाव से पहले सदस्यता अभियान कम से कम 50 फीसदी राज्यों में संगठनात्मक चुनाव जरूरी हैं।
Thursday, 15 August 2024
मणिपुर में न थमती हिंसा
पिछले दिनों मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह ने दावा किया था कि राज्य में हिंसा की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है और हत्याओं पर रोक लग रही है। उन्होंने दावा किया था कि राज्य में विपक्षी खेमों की बैठकें भी हुई हैं जहां अमन-शांति की बात हुई पर जमीनी हकीकत मणिपुर में वही है जो पिछले सालों से देख रहे हैं। यहां कुछ भी नहीं बदला। मणिपुर में पिछले साल मई में हिंसा एक बार फिर शुरू हुई जब इंफाल घाटी में रहने वाले मैतेई और पड़ोसी पर्वतीय इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा में 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग बेघर हो गए। मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। राज्य के तेंगनौपाल में उग्रवादियें और स्वयंसेवकों के बीच गोलीबारी में चारों लोगों की मौत हो गई। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। पुलिस ने बताया कि मोलनोम इलाके में मुठभेड़ में यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ) के एक उग्रवादी और एक ही समुदाय के तीन ग्रामीणों (स्वयंसेवकों) ने यूकेएलएफ के स्वयंभू प्रमुख एसएस हाओकिप के आवास को फूंक दिया। अधिकारियों ने बताया कि गोलीबारी के पीछे पलेल इलाके में उगाही को नियंत्रण की वजह से हो सकती है। कांगपोकपी जिले में सैकुल के पूर्व विधायक यमथोंग हाओकिप की 59 वर्षीय दूसरी पत्नी सपम चारूबाला की एक बम धमाके में मौत हो गई। अधिकारियों ने बताया कि शनिवार की रात को सैकुल के 64 वर्षीय पूर्व विधायक यमथोंग हाओकिप के घर के पास स्थित एक घर में भीषण बम विस्फोट की पुलिस जांच कर रही है। चारूबाला मैतई समुदाय की हैं, जबकि हाओकिप कुकी-जो समुदाय से हैं। पूर्व विधायक ने पुलिस को लिखे अपने पत्र में कहा कि बम पहले से घर में पड़ा था और उनकी पत्नी के संपर्क में आते ही फट गया। पूर्व विधायक की पत्नी की हत्या के मामले में असम कांग्रेस ने अपने ट्वीटर हैंडल पर भाजपा को निशाने पर लेते हुए कहा कि केन्द्र सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के साथ सौतेली मां जैसा बर्ताब कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूसरे देशें के लिए उड़ान भर सकते हैं, लेकिन अपने ही देश के एक राज्य में नहीं आ सकते हैं। उधर भारतीय सेना के स्पीयर कोर कमांडर का कार्यकाल शनिवार को लेफ्टिनेट जनरल अभिजीत एस पेंढारकर ने संभाल लिया है। पेंढारकर के समाने मणिपुर में चल रही जातीय संर्घष को खत्म करना प्राथमिकता है। उन्होंने महू आर्मी वॉर कालेज के कमाडेंट बने लेफ्टिनेंट जनरल हरजीत सिंह साही की जगह ली है। भारतीय सेना की सबसे बड़ी स्पीयर कोर माणिपुर समेत पूर्वोत्तर के अधिकांश क्षेत्रांs की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। पेंढारकर ने 1990 में असम रेजीमेंट से कमिशन प्राप्त की और 34 साल के सेवाकाल में अलग-अलग कमांड और स्टाफ के पदों पर काम किया है। मणिपुर की समस्या सेना की सख्ती से शायद खत्म न हो। यह हमने जम्मू-कश्मीर में भी देखा है। इसका हल सियासी तरीके से खत्म किया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर सभी संबंधित पार्टियों व गुटों से बैठकर विचारों के आदान-प्रदान से ही कोई हल निकल सकता है। पर यह तभी हो सकता है जब केंद्र सरकार इस समस्या को पूरी प्राथमिकता दे जो अभी उसके एजेंडे में नहीं लगता।
-अनिल नरेन्द्र
मध्य-पूर्व जंग के मुहाने पर
पिछले कुछ महीनों से मध्य-पूर्व एशिया में जंग के बादल छाए हुए हैं। एक तरफ इजरायल और अमेरिका है तो दूसरी तरफ ईरान, यमन, इराक, हिजबुल्लाह और कई अन्य अरब देश। अरब ताकतों ने कसम खा रखी है कि इजरायल को दुनिया के नक्शे से ही मिटा देंगे। याद रहे कि हाल ही में इजरायल पर आरोप है कि उसने कई तथाकथित आतंकी सरगनाओं को मौत के घाट उतारा है। इस्माइल हानिया को तो ईरान की राजधानी तेहरान में एक अत्यंत सुरक्षित क्षेत्र में मार गिराया। इसी तरह हिजबुल्लाह के कमांडर हमास के बड़े नेता की भी हत्या की थी। ईरान इसी का बदला लेने की कसम खा चुका है और इजरायल पर पूरा हमले की तैयारी में है। इस दौरान ईरान ने अपने समर्थक गुटों, हिजबुल्लाह और हूतियें से इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए हैं। ईरान खुद भी किसी भी समय सीधा इजरायल के खिलाफ जंग में उतर सकता है। इजरायल पर संभावित बड़े हमले को देखते हुए अमेरिका भी इजरायल के हक में कूद चुका है। अमेरिका ने अपने जंगी हवाई जहाज, समुद्री पोत गल्फ खाड़ी में तैनात कर दिए हैं। हिजबुल्लाह लगातार इजरायल पर राकेटों, मिसाइलों से हमले कर रहा है जिससे इजरायल को काफी नुकसान पहुंचा है। इजरायल भी गाजा और लेबनान पर ताबड़तोड़ जवाबी कार्रवाई कर रहा है। इजरायल और हिजबुल्लाह के सदस्यों में और तनाव क्या रूप लेगा। इसका आंकलन करने के लिए सबसे पहले लेबनान में मौजूद इस सशस्त्र समूह सैन्य क्षमताओं को समझना होगा। इस संभावित युद्ध में एक और इजरायल की वायुसेना और इंटेलिजेंस की बढ़त है तो दूसरी ओर हिजबुल्लाह के पास मिसाइलों का अंबार और ड्रोन्स है। इसमें कोई शक नहीं कि इजरायल की वायुसेना की शक्ति हिजबुल्लाह की तुलना में अधिक है और इसके कारण लेबनान में बड़ी तबाही हो सकती है। लेकिन यह भी सच है कि गाजा में इजरायल अपने इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध लड़ रहा है और इसके कारण उसके सैनिक दस्ते थकान के शिकार हैं। हिजबुल्लाह को ईरान का पूर्ण समर्थन मिला हुआ है। पिछले वर्षों में सामने आने वाली कई इटेंलिजेंस रिपोर्ट्स के अनुसार हिजबुल्लाह के पास हथियारों का सबसे बड़ा स्रोत ईरान है, अब यह भी खबर आई है कि रूस भी ईरान को घातक हथियार मुहैया करवा रहा है। ईरान यह हथियार इराक और सीfिरया के जरिए हिजबुल्लाह को पहुंचा रहा है। उन हथियारों में अल्मास 3 एंटी टैंक के मिसाइल भी शामिल हैं जो एक आधुनिक ईरानी हथियार है। हिजबुल्लाह ने हाल ही में इजरायल के खिलाफ कई घातक मिसाइलों का इस्तेमाल किया था। इसमें से एक मिसाइल का नाम हिजबुल्लाह ने अपने एक नेता के नाम पर रखा है जो 2015 में सीरिया में मारा गया था। हिजबुल्लाह के प्रमुख नसरूल्लाह कई बार कह चुके हैं कि उनके संगठन के पास ऐसी मिसाइल मौजूद है जिसमें इजरायल के केन्द्राrय क्षेत्र तक पहुंचने की क्षमता है। संगठन के पास शार्ट रेन बेलिएस्टिक मिसाइल भी मौजूद है जो 300 किलोमीटर तक मार कर सकती है, लेबनान और इजरायल के बीच दूरी कम है और इससे हिजबुल्लाह को फायदा है क्योंकि इससे इजरायली सेना को मिसाइल से हमले से निपटने के लिए समय भी कम मिलेगा। मिसाइलों के अलावा इस बार प्रस्तावित युद्ध में बड़ा बदलाव यह होगा कि हिजबुल्लाह के पास आधुनिक ड्रोन का जखीरा भी है, जिससे वह लगातार हमले कर रहा है। यह संघर्ष बढ़ने की पूरी उम्मीद है और यह पूरे मध्य-पूर्व में फैल सकता है।
Tuesday, 13 August 2024
धनखड़ को हटाने के लिए प्रस्ताव की तैयारी
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कथित पक्षपातपूर्ण रवैये से नाराज विपक्ष उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव लाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष उनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत नोटिस दे सकता है। उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए इस नोटिस पर 87 सांसदों ने हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि अनुच्छेद 67 (बी) के तहत उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा के सहमति प्रस्ताव के जरिए हटाया जा सकता है। इस खंड के प्रयोजन के लिए कोई भी प्रस्ताव तब तक सदन में पेश नहीं किया जा सकता है, जब तक कि प्रस्ताव पेश करने के इरादे से कम से कम 14 दिन का नोटिस न दिया गया हो। वर्तमान राज्य सभा की दलीय स्थिति कुछ ऐसी है। राज्यसभा में अभी 225 सदस्य हैं। भाजपा के 86 सदस्यों समेत एनडीए के 101 सांसद हैं। इंडिया गठबंधन के 87 सदस्य हैं। ऐसे में वाईएसआरसीपी के 11, बीजद के 8, अन्नाद्रमुक के 4 सदस्यों को मिलाकर 32 सदस्यों की भूमिका (कुल 110) अहम होगी। हालांकि 3 सितम्बर को राज्यसभा की 12 सीटों का चुनाव है। कम से कम 10 सीटें भाजपा को मिलेंगी यानि उसकी सीटें 96 हो जाएंगी और एनडीए की 111-112 सदस्यों के बढ़ने से 237 में बहुमत 119 पार हो जाएगा। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सत्तारूढ़ सरकार को राज्यसभा में हार के डर की संभावना के कारण ही संसद सत्र तीन दिन पहले खत्म करना पड़ा। सारा हंगामा दरअसल धनखड़ और विपक्ष के बीच लंबे समय से तकरार चल रही है। गुरुवार को ऐसी ही तनातनी के बीच धनखड़ आसन से उठ गए थे। राज्यसभा में शुक्रवार को सपा सांसद जया बच्चन सभापति जगदीप धनखड़ के (टोन) लहजे पर आपत्ति जताते हुए भड़क गईं जिसके बाद धनखड़ ने तिलमिलाते हुए बोला कि उनकी जैसी हस्ती को भी शिष्टाचार का पालन करने की जरूरत है। जया बच्चन ने कहा ः मैं कलाकार हूं सर, बॉडी लैंग्वेज समझती हूं, एक्सप्रेशन समझती हूं। पर मुझे माफ करिएगा, लेकिन आपका टोन जो है वह एक्सटेबल स्वीकार नहीं है। हम आपस में गुलीग है, भले ही आप में आसन बैठे हैं। इस पर धनखड़ जी ने कहा ः जया जी, आपने बहुत इज्जत कमाई है। आपको मालूम होगा कि एक्टर डायरेक्टर के कहने पर चलता है, मुझे किसी से पाठ नहीं पढ़ना है। आप कह रही हैं कि मेरी टोन ठीक नहीं है। आप कितनी बड़ी सेलिब्रिटी हो, संसद में नियम का पालन करना ही पड़ेगा। मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। सदन से बाहर आने के बाद संसद परिसर में जया ने कहा कि वह सभापति के बोलने के लहजे से नाराज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे जी जब अपनी बात रख रहे थे तो उनका माइक बंद कर दिया गया और इससे विपक्ष आहत में है। सदन में विवाद कुछ दिन पहले भाजपा के घनश्याम तिवारी द्वारा खरगे पर की गई कुछ टिप्पणियों को लेकर विपक्षी दलों और सभापति के बीच तीखी बहस हो गई थी। कुछ दिन पहले राज्यसभा में व सदन के सभापति के कारण अब विपक्ष संसद के अगले सत्र में यह नोटिस देगा। ताकि उनके 14 दिन बाद प्रस्ताव पेश हो सके।
-अनिल नरेन्द्र
विनेश...भारत का गोल्ड तुम ही हो
पेरिस ओलंपिक 2024 के पहले गोल्ड मेडल के लिए देश की 140 करोड़ लोगों की उम्मीदें 100 ग्राम वजन तले दबकर कुचल गई। भारतीय पहलवान विनेश फोगाट ने फाइनल मैच के लिए 50 किलो कैटेगरी में बुधवार सुबह वजन कराया तो 100 ग्राम ज्यादा निकला। ओलंपिक के कड़े नियमों के चलते वे फाइनल में खेलने के लिए डिस्क्वालिफाई करार दी गईं और इस खबर से जहां 140 करोड़ देशवासियों का दिल टूट गया वहीं पूरे देश में कोहराम मच गया। टोक्यो ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन करने वाली विनेश फोगाट की वापसी की कहानी दिल टूटने के साथ तब समाप्त हुई जब उनका वजन 50 किलो से 100 ग्राम ज्यादा पाया गया। विनेश फोगाट को इसका अंदाजा पहले से ही था। वो इस साल ही अप्रैल में कह चुकी थीं कि 50 किलोग्राम वर्ग को देखते हुए अगले चार महीनों में वजन प्रबंधन करना चुनौती होगा। उन्होंने अप्रैल 2024 में कहा था ः मुझे अपने वजन को बेहतर तरीके से प्रबोधत करना होगा। मैंने लम्बे समय के बाद अपने वजन को कम कर 50 किलो तक किया है। इस दौरान विनेश फोगाट ने ये भी कहा था कि उन्होंने वजन में बदलाव इसलिए किया। क्योंकि मेरे पास और कोई विकल्प छोड़ा ही नहीं गया। मैं खुश हूं कि ओलंपिक खेलने का मौका मिल रहा है। विनेश चाहती थीं 53 किलो वर्ग में खेलें पर भारतीय कुश्ती संघ अधिकारियों ने कहा कि या तो तुम 50 किलो वर्ग में लड़ो या फिर ओलंपिक में भाग न लो। मजबूरन विनेश को 53 किलो वर्ग को छोड़ना और वह क्या लड़ीं। लगातार तीन मुकाबले जीत कर वह फाइनल में पहुंची। इस दौरान उन्होंने वर्ल्ड चैंपियन, ओलंपिक चैंपियन को हराया। यहां कई सवाल उठते हैं ः इसमें तो कोई संदेह नहीं कि विनेश तीन बार जीतीं। अगर वह फाइनल राउंड में कुश्ती न लड़तीं, कह देतीं कि मैं बीमार हूं, कुश्ती लड़ने में सक्षम नहीं हूं तो उन्हें आटोमैटिक सिल्वर मैडल मिल जाता। इस हिसाब से तो सपोर्ट स्टाफ ने गलती की, उन्हें फाइनल में उतारना ही नहीं चाहिए था जबकि उन्हें मामलू था कि वह ओवर हैं। यह जो सपोर्ट स्टॉफ बाराती बन कर गया था यह क्या पेरिस में पिकनिक करने गया था? विनेश फोगाट के केस ने न तो साथ गए अधिकारियों से ठीक से हैंडल किया और न ही श्रीमती नीता अंबानी जो आईओसी की सदस्य थीं। अगर वो चाहतीं तो जोर लगा सकती थीं। खैर, अब उम्मीद है कि जो आडिहेटर ट्राइब्यूनल है वह विनेश के हक में अपना फैसला दें और उन्हें ज्वाइंट सिल्वर मैडल अब भी मिल जाए। विनेश इन हादसे के बाद इतनी भावुक हो गई कि उन्होंने अपनी मां को संबोधित करते हुए संदेश भेजा कि मैं कुश्ती को अलविदा कहती हूं। मां, कुश्ती मेरे से जीत गई। मैं हार गई। माफ करना, आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुकी है। इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2001-2024। मैं आप की हमेशा ऋणी रहूंगी। मुझे माफ कर दीजिए। उधर टोक्यो ओलंपिक के ब्रांज मैडलिस्ट रेसलर नवरंग पुनिया ने कहा कि विनेश हारी नहीं। आपको हराया गया है। हमारे लिए आप हमेशा विजेता ही रहेंगी। आप भारत की बेटी के साथ-साथ भारत का अभिमान भी हैं। वहीं साक्षी मलिक ने कहा कि विनेश के साथ जो कुछ हुआ, वह हमारे देश की हर बेटी की हार है। विनेश तुम हारने वाली नहीं हो। यह सिर्फ तुम्हारी हार नहीं बल्कि पूरे देश की हार है।
Saturday, 10 August 2024
यूट्यूबरों को नियंत्रित करने की मंशा
केन्द्र सरकार (प्रसारण सेवा विनियम विधेयक 2024 में यू ट्यूबरों और सोशल मीडिया के न्यूज इंफ्लूएंसर्स को डिजीटल न्यूज ब्राडकास्ट (समाचार प्रसारक) की श्रेणी में लाने का प्रयास कर रही है। यह संसद में पेश करने की तैयारी है। दरअसल हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में दिलचस्प घटना यह देखने को मिली कि समाचार और समसामयिक मामलों में रिपोर्टिंग, चर्चा और विश्लेषण करने वाले व्यक्तिगत यूट्यूबर की लोकप्रियता में उछाला आया। ध्रुव राठी, रवीश कुमार, फोर पीएम न्यूज, अभिसार शर्मा, आकाश बनर्जी जैसे यू-ट्यूबर ने लाख लोगों को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाने वाले अपने वीडियों से काफी लोकप्रियता हासिल की। हाल ही में ध्रुव राठी के वीडियों क्या भारत तानाशाह बन रहा है? को फरवरी अंत में अपलोड किए जाने के बाद से 24 मिलियन व्यू मिले, जो अकसर स्थापित टीवी चैनलों के कुल व्यू से भी ज्यादा हैं। यूट्यूबर की इतनी बढ़ती लोकप्रियता का प्रमुख कारण है टीवी चैनलों की घटती विश्वसनीयता कई स्थापित समाचार आउटलेट ने सरकार के प्रति चापलूसी भरे दृष्टिकोण, एक ही चेहरे को बार-बार दिखाना और उसका महिमामंडन करना, इससे उनके दर्शक पक चुके हैं। यह टीवी चैनल जिन्हें गोदी मीडिया भी कहा जा रहा है। सत्तारुढ़ पार्टी की कहानी के प्रचारक के रूप में काम करते हैं। डिजीटल मीडिया प्लेटफार्म की लोकप्रियता में भी वृद्धि हुई, जो ईमानदार आलोचनात्मक पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध हैं जो सरकार को जवाबदेही ठहराते हैं। सुप्रीम कोर्ट, असहमति और स्वतंत्र पत्रकारिता डिजीटल मीडिया स्पेस इसलिए जीवंत है, क्योंकि यह सरकार के सीधे नियंत्रण से बाहर काम करती है। पारंपरिक मीडिया आउटलेट्स के विपरीत जिन्हें अकसर विनियामक दबाव और संभावित सेंसरशिप का सामाना करना पड़ता है। डिजीटल प्लेटफार्म को अपेक्षाकृत बड़ी स्वायतता प्राप्त है जो उन्हें असहज प्रश्न उठाने और उन मुद्दों को उजागर करने की अनुमति देती है, जिन्हें मुख्य धारा का मीडिया अनदेखा कर सकता है या टाल देता है। हाल ही में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने राज्यसभा में सोमवार को पत्रकारों की मौजूदा स्थिति और उन्हें पेश आ रही चुनौतियों के साथ विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत के गिरते स्तर पर चिंता जताई। विपक्षी दलों ने भी सरकार की ओर से लाए जा रहे इन बिल को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार नया कानून बनाने जा रही है, जिसके बाद यूट्यूबर्स और इंस्टाग्राम स्टार पर कड़ी नजर रखी जाएगी। कहा जा रहा है कि इस बिल में इंस्टाग्राम इंफ्लूएंसर और यूट्यूबर्स को भी रेगुलेटरी निगरानी में लाने का प्रावधान है। कई लोगों का कहना है कि सरकार ऐसा करके यूट्यूबर्स पर सेंसरशिप लगाना चाहती है। अगर सरकार उनसे कोई जानकारी मांगती है तो उन्हें देनी पड़ेगी नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इस कानून से लोगों की आजादी छिन जाएगी और सोशल मीडिया पर सेंसरशिप बढ़ेगी। प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया के लिए प्रत्यक्ष खतरा है।
-अनिल नरेन्द्र
तख्ता पलट के पीछे विदेशी हाथ?
पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के लिए सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा था। घरेलू मोर्चे पर जहां विपक्षी पार्टियों के और छात्रों के दबाव और प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा। वहीं विदेशी मोर्चे पर भी शेख हसीना के खिलाफ साजिश रची जा रही थी। पिछले महीने शेख हसीना चीन दौरे पर गई थीं। वह समय से पहले ही वहां से वापस आ गई थीं। ऐसा माना गया कि शेख हसना जो सोचकर चीन गई थी, वे वहां हासिल नहीं हुआ। बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी बीबीसी हिन्दी से कहती हैं चीन में शेख हसीना को उचित सम्मान नहीं दिया गया। शी जिनपिंग के साथ वो जो बैठक चाहती थीं वह भी नहीं हो पाई। चीन की नीयत उसी समय खराब लग रही थी। बांग्लादेश में जारी उथल-पुथल में राजनीतिक विश्लेषकों को अमेरिका, पाकिस्तान और चीन का हाथ दिख रहा है। इस छात्र आंदोलन के पीछे बांग्लादेशी कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को माना जा रहा है। यह संगठन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है। दरअसल लंबे समय से अमेरिका चाह रहा था कि बांग्लादेश में सरकार बदले और एक ऐसी सरकार बने जो बांग्लादेश के हितों के बजाए अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए काम करे। शेख हसीना ने कई बार साफ कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगी म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक नया ईसाई देश बनाना चाहते हैं, जिनमें कुछ हिस्से भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों के भी शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका बंगाल की खाड़ी में ऐसी परिस्थितियां चाहता है जिनके बहाने भारत पर निर्भर रहे बिना मजबूत सैन्य मौजूदगी बना सके। अमेरिका अपनी इन रणनीतिक जरूरतों को तभी पूरा कर सकता है जब यहां अस्थिरता हो और ऐसे लोग सत्ता में हों जिन्हें आसानी से नियंत्रित किया जा सके। म्यांमार में पहले ही अस्थिरता और सैन्य शासन है। हसीना के चले जाने के बाद अमेरिका के लिए बांग्लादेश में घुसना और सेना को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करना आसान हो जाएगा। ऐसा प्रतीत होता है कि छात्रों के विरोध प्रदर्शन के कारण यह संकट पैदा हुआ जिसका फायदा उठाया जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान की आईएसआई ने। अवसरवादी चाहे वह विपक्ष बीएनपी हो या जमात-ए-इस्लामी जो कट्टरपंथी पाकिस्तान समर्थक इस्लामिक समूह है जो सड़कों पर बहुत सक्रिय है, वे विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं और विरोध प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने में इनका सबसे बड़ा हाथ है। सवाल उठता है कि आखिर बांग्लादेश में इतने हिंसात्मक आंदोलन ने इतना उग्र रूप कैसे धारण किया? क्यों हिन्दुओं को टारगेट किया जा रहा है। इसके पीछे किसी की ऐसी चाल तो नहीं जिसका दूरगामी असर भारत पर पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार इसके पीछे चीन, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ हो सकता है। साजिश रची आईएसआई ने मोहरा बना इस्लामिक छात्र शिविर जो जमात-ए-इस्लामी का छात्र संगठन है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार ऑपरेशन रिजीम चेंज का खाका लंदन में आईएसआई की मदद से तैयार किया गया था और बांग्लादेश में लागू किया गया। बांग्लादेश अधिकारियों के पास बांग्लादेश के प्रमुख पार्टी के कद्दावर नेता के आईएसआई आतंकवादियों से मिलने के भी सबूत हैं। आईएसआई के लोग अपने समर्थक छात्रों को हिंसा करने में लगे रहे। चीन का तो प्लान सभी जानते हैं, वह भारत को चारों दिशाओं से घेरने में लगा रहता है।
Thursday, 8 August 2024
बेहतर प्रदर्शन की अभी भी चुनौती
दस साल बाद कांग्रेस लोकसभा में 99 सीट हासिल कर सौ के आंकड़े के करीब पहुंचने में सफल रही है पर कांग्रेस के सामने अभी भी बहुत-सी चुनौतियां हैं। कमजोर संगठन, आपसी गुटबाजी, कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी, पैसे की कमी इत्यादि अभी भी चुनौतियां हैं। आने वाले दिनों में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। फसल तो तैयार है पर काटने वाला चाहिए। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। पार्टी ने करीब 2 फीसदी वोट की वृद्धि के साथ अपनी सीट में भी इजाफा किया, वहीं कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। वर्ष 2014 में कांग्रेस को 44 और वर्ष 2019 में 52 सीटें मिली थीं। इस बार उसकी सीटें बढ़ी हैं, लेकिन पंजाब (7) और केरल (13) को छोड़कर कहीं भी कांग्रेस अपने बलबूते पर किसी भी राज्य में सबसे बड़ा दल नहीं बन सकी। हिंदी पट्टी में तो कांग्रेस वर्षों से बी-पार्टनर बनी हुई है। बिहार में कांग्रेस को तीन सीटें राजद और उत्तर प्रदेश में 6 सीटें समाजवादी पार्टी के कारण मिली हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सबसे अधिक 13 सीटें जरूर जीतीं हैं, लेकिन यहां भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन था जिन राज्यों में सीधी टक्कर वाले राजस्थान में कांग्रेस को 8 (भाजपा को 14), कर्नाटक में 9 (भाजपा को 17), असम में 3 (भाजपा को 9), हरियाणा में 5 (भाजपा को भी 5), तेलंगाना में 8 (भाजपा को भी 8) सीटें मिलीं। इन राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका-दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, दमन दीव, जम्मू-कश्मीर और अडमान निकोबार। कांग्रेस के लिए बहरहाल खुशी की बात यह है कि भाजपा से सीधे मुकाबले में उसके स्ट्राइक रेट में इजाफा हुआ है। इससे भविष्य में पार्टी में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जगी है। वर्ष 2019 में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सिर्फ 8 फीसदी था, इस बार बढ़कर 29 फीसदी हो गया है। हाल ही में हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी का मामला सामने आया। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी प्रदेश में गुटबाजी रोकने में अब तक असफल रही है। यही वजह है कि हरियाणा में चुनाव से पहले ही दीपेन्द्र हुड्डा और कुमारी शैलजा आपस में भिड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश में गुटबाजी से पार्टी नेतृत्व असमंजस में है। पार्टी नेतृत्व के सामने सबको साथ लेकर चलना एक चुनौती बना हुआ है। लगभग यही हाल अधिकतर राज्यों में है। पार्टी अगर विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर मैदान में नहीं उतरती तो उसके लिए जीत की दहलीज पर पहुंचना आसान नहीं होगा। इस बीच मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक नेताओं के साथ बैठक की है। पार्टी अध्यक्ष ने मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को आपसी तालमेल के साथ काम करने की नसीहत दी। दरअसल कर्नाटक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार संभाल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने के बाद पार्टी में गुटबाजी उभर कर आ गई है। प्रदेश में जल्द स्थानीय निकाय चुनाव हैं। पार्टी में गुटबाजी का फायदा सीधा भाजपा को मिलता है। ऐसे में पार्टी को एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरना होगा और गुटबाजी से सख्ती से निपटना होगा।
-अनिल नरेन्द्र
किसान आंदोलन के बीच नायब का मास्टर स्ट्रोक
हरियाणा की नायब सैनी की भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले किसानों का 133 करोड़ 55 लाख 48 हजार रुपए का बकाया कर्ज माफ करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी रविवार को कुरूक्षेत्र में आयोजित थानेसर विधानसभा की जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने प्रदेश की सभी फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर करने की भी घोषणा करते हुए कहा कि वर्तमान में प्रदेश सरकार द्वारा 14 फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है। अब हfिरयाणा की अन्य सभी फसलें भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी। मुख्यमंत्री ने जिला रोहतक, नूंह, फतेहबाद और सिरसा में 2023 से पहले आपदा में फसलों को हुए नुकसान के मुआवजा की लंबित 137 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करने की घोषणा करते हुए कहा कि एक हफ्ते में यह राशि संबंधित किसानों के खाते में चली जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब किसानों को नए ट्यूबवैल कनेक्शन के लिए तीन सितारे वाली मोटर देशभर में कहीं से भी खरीदने की अनुमति होगी। वर्तमान में प्रदेश में तीन सितारे वाली मोटर की केवल 10 कंपनियां पंजीकृत हैं। अब देश में तीन सितारा मोटर बनाने वाली सभी कंपनियां हरियाणा के पैनल पर आ जाएंगी और किसान अपनी सुविधा अनुसार किसी भी कंपनी से तीन सितारा मोटर खरीद सकेंगे। इससे 31 दिसम्बर 2023 तक नए ट्यूबवैल कनेक्शन के लिए आवेदन करने वाले किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। इसके अतिरिक्त बिजली का ट्रांसफार्मर खराब होने पर ट्रांसफार्मर का खर्च किसान से नहीं लिया जाएगा। ये ट्रांसफार्मर बिजली निगमों द्वारा अपने खर्च पर बदले जाएंगे। केंद्र सरकार हर साल 24 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है। हरियाणा देश का एकमात्र राज्य था, जो पहले से ही 14 फसलों की खरीद एमएसपी पर कर रहा था। अब वह 24 फसलें एमएसपी पर खरीदने वाला देश का पहला और एक मात्र राज्य बन गया है। फसलों की खरीद एमएसपी पर करने को लेकर हरियाणा और पंजाब के किसान पिछले कई सालों से आंदोलन कर रहे थे। तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध तथा एमएसपी पर फसलों की खरीद को लेकर दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर पूरे एक साल तक आंदोलन चला। इस आंदोलन में 700 से अधिक किसानों की जाने गई। अब किसान फिर से हरियाणा-पंजाब की सीमा पर अंबाला के निकट शंभू बार्डर पर एमएसपी के लिए धरने पर बैठे हैं। इस बीच मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार ने कुरूक्षेत्र में एसएसपी पर सभी 24 फसलों को खरीदने का ऐलान कर किसानों की एक बड़ी मांग को पूरा कर दिया है। यह आंदोलन करने वाले किसानों की एक बड़ी जीत है। हरियाणा की सरकार के इस फैसले का हम स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि देश के अन्य राज्य भी इस प्रकार की घोषणा करेंगे। किसान देश का अन्नदाता है और इसे उसकी खेती की पूरी लागत मिलनी चाहिए। एमएसपी गारंटी के साथ-साथ मुख्यमंत्री सैनी की ट्यूबवैल कनेक्शन संबंधी रियायतों का भी हम स्वागत करते हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इसे नायब सिंह सैनी का मास्टर स्ट्रोक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
Tuesday, 6 August 2024
मोसाद की ट्रिपल स्ट्राइक : जंग की तैयारी
इजरायल की हिट लिस्ट में शामिल दो बड़े नाम तीन घंटे के भीतर मोसाद ने मौत के घाट उतार दिया। तेहरान में हुई हमास के चीफ इस्माइल हानिया (62) ने सारी अरब दुनिया को हिला कर रख दिया है। हमला भारतीय समयानुसार बुधवार तड़के लगभग 4 बजे हुआ। हानिया ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान के शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए तेहरान गए हुए थे। फिलिस्तीन के पीएम रह चुके हानिया अभी स्व-निष्कासन में कतर में रह रहे थे। इससे पहले उसी दिन देर रात एक बजे इजरायल (मोसाद) ने बेरुत में हमला कर ईरान समर्थित टॉप हिजबुल्ला कमांडर फुआद शुकर को मार गिराया। फुआद पर 41 करोड़ का ईनाम था। उसने 1983 में 241 अम]िरकी सैनिकों को मारा था। वहीं ईरान में हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हानिया और फुआद शुक्र के बाद इसरायली सेना ने हमास के सैन्य शाखा प्रमुख मोहम्मद दाइफ को भी मार गिराने का दावा किया है। बृहस्पतिवार को इसरायली सेना ने दावा किया कि गाजा में हुए एक हवाई हमले में दाइफ मारा गया है। इजरायल ने 13 जुलाई को उसे निशाना बनाते हुए गाजा के खान यूनिस शहर के बाहरी इलाकों में हमले किए थे जिसमें दाइफ मारा गया। फिलस्तीन के सशस्त्र गुट हमास का नेता और इजरायल की आंख का कांटा इस्माइल हानिया के ईरान की राजधानी तेहरान में मारे जाने से दुनिया सन्न है। आखिर हाई सिक्यूरिटी इलाके में होटल के कमरे के भीतर उसे कैसे मारा गया, इस पर सवाल उठ रहे हैं। ईरान बता रहा है कि यह हवाई हमला था क्योंकि ऐसा कहकर वह इसरायल को दूसरे देश पर हवाई हमला कराने का आरोप लगा सकता है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह हत्या इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने करवाई है। उसे पता था हानिया तेहरान में कब आएगा और किस होटल के किस कमरे में रहेगा। उसने हानिया के कमरे में पहले से ही बम लगाया हुआ था जिससे रिमोट कंट्रोल के जरिए उसे ब्लास्ट किया गया। एक्सियोस ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा कि हमला कमरे में लगाए बम के जरिए ही हुआ है। पश्चिम एशिया में पहले तनाव के मद्देनजर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने वहां लड़ाकू विमानों का दस्ता और विमान वाहक पोत तैनात करने का फैसला किया है। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खौमेनी ने हानिया की हत्या के लिए सीधे तौर पर इसरायल को जिम्मेदार ठहराया है और कहा कि इस्माइल की मौत का बदला लेना हमारा फर्ज है, क्योंकि वह हमारे मेहमान थे। रूस, चीन और तुर्किये ने भी हानिया की हत्या की निंदा की है। इसरायल की जिस तरह घेराबंदी की जा रही है, उससे पश्चिम एशिया में तनाव और युद्ध के विस्तार की आशंका बढ़ गई है। हाल फिलहाल लेबनान के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह और इस्माइल के बीच झड़पें हो रही हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इनके बीच युद्ध हुआ तो हजारों लोग मारे जा सकते हैं। हिजबुल्लाह ने भी अपने कमांडर की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया है। ईरान भी बदला लेना चाहता है। इससे इजरायल-फिलस्तीन युद्ध अब मध्य पूर्व में फैलने के पूरे आसार हैं। अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य यह है कि युद्ध के तीन क्षेत्र हैं ः रूस-यूक्रेन, इजरायल-फिलस्तीन और चीन-ताइवान। इन क्षेत्रों में युद्ध विस्तार होता है तो जान-माल का भारी नुकसान होने की आशंका है।
-अनिल नरेन्द्र
मेरे खिलाफ ईडी रेड की प्लानिंग
राहुल गांधी ने 29 जुलाई को संसद में भाषण दिया था। इसी दौरान उन्होंने कहा कि मोदी-शाह सहित 6 लोग देश को चक्रव्यूह में फंसा रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने दावा किया कि उनके खिलाफ एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) रेड की प्लानिंग कर रही है। राहुल ने गुरुवार देर रात 1.52 बजे एक्स पर की गई पोस्ट में यह दावा किया। उन्होंने लिखाö टू-इन-वन को मेरा चक्रव्यूह भाषण पसंद नहीं आया। ईडी के अंदरूनी सूत्रों ने मुझे बताया कि मेरे खिलाफ रेड की योजना बनाई जा रही है। मैं ईडी अधिकारियों का बांहे फैलाकर इंतजार कर रहा हूं। चाय और बिस्किट मेरी तरफ से। दरअसल राहुल ने 29 जुलाई को संसद सत्र के दौरान बजट 2024-25 पर लोकसभा में भाषण दिया था। इसी दौरान उन्होंने बजट की तुलना महाभारत में चक्रव्यूह से की। उन्होंने कहा कि छह लोगों का एक ग्रुप पूरे देश को चक्रव्यूह में फंसा रहा है। ये 6 लोग...नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, अजित डोभाल, अडाणी और अंबानी हैं। राहुल ने कहा थाö हजारों साल पहले कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर 6 लोगों ने मारा था। चक्रव्यूह का दूसरा नाम हैö पद्मव्यूह, जो कमल के फूल की शेप में होता है। इसके अंदर डर और हिंसा होती है। राहुल ने कहाö 21वीं सदी में एक नया चक्रव्यूह रचा गया हैö वो भी कमल के फूल के रूप में तैयार हुआ है। इसका चिह्न प्रधानमंत्री अपने सीने पर लगाकर चलते हैं। अभिमन्यु के साथ जो हुआ वह भारत के साथ किया जा रहा है। राहुल के दावे पर भाजपा नेता बोले ः केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं। वह संसद के अंदर झूठ बोलने के साथ-साथ बाहर भी दुप्रचार कर रहे हैं। वे दुनिया से जाति पूछ रहे हैं और अपनी जात बताने से भाग रहे हैं। अगर उनमें हिम्मत है तो ईडी के उस अधिकारी का नाम बताएं जिसने उन्हें रेड होने की सूचना दी है। भाजपा सांसद जिवेन्द्र सिंह रावत कहते हैं न चोर की दाड़ी में तिनका, वही भय उन्हें रहे (राहुल गांधी) को सता रहा है। वे डरने लगे हैं। राहुल के दावे पर इंडिया ब्लाक के नेता भी बोले। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि सभी जानते हैं कि भाजपा सरकार और पीएम मोदी ने पिछले 10 सालों में विपक्षी नेताओं को बदनाम करने के लिए ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया है। 2024 में भाजपा बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी। यह सरकार फिर से विपक्ष के नेता के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करना शुरू कर रही है। बल्कि यह कहा जाए कि ईडी की रेड तो चालू भी हो चुकी है। वहीं ईडी राज वापस आ रहा है। शिव सेना (ठाकरे गुट) नेता संजय राउत ने कहा कि वे सभी लोग जो लोकतंत्र को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनके खिलाफ साजिश हो रही है। कुछ भी हो सकता है। हम सब पर हमला हो सकता है, राहुल गांधी पर हमला हो सकता है। क्योंकि पिछले महीने जिस तरह से हम सबने राहुल गांधी के नेतृत्व में सरकार को आड़े हाथों लिया है, उससे उनकी नींद उड़ गई है। विदेशों में हमारे खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। कुछ भी हो सकता है। वहीं शिव सेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि राहुल गांधी को जानकारी मिली है कि ईडी के अधिकारी उनके आवास पर छापा मार सकते हैं। जब सरकार डरती है तो वह ईडी और सीबीआई को आगे कर देती है। केंद्र सरकार ने महुआ मोइत्रा, संजय राउत, संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल व हेमंत सोरेन के साथ भी ऐसा ही किया था।
Saturday, 3 August 2024
सवा सौ साल बाद अनूठी उपलब्धि
मनु भाकर और सरबजीत सिंह की जोड़ी ने मंगलवार को पेरिस ओलंपिक में शूटिंग की 10 मीटर एयर पिस्टल मिक्सड टीम इवेंट में कांस्य पदक जीता। इसके साथ ही मनु आजादी के बाद एक ओलंपिक इतिहास में दो मैडल जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बन गई हैं। यह मैडल ओलंपिक इतिहास में भारत का पहला शूटिंग टीम मैडल भी है। भारतीय जोड़ी ने कोरिया की ओ ये जिन और ली वोनहो को 16-10 से हराकर यह उपलब्धि अपने नाम की। इस ओलंपिक में इस लेख को लिखते समय तक सिर्फ तीन मैडल ही आए हैं। मुझे विश्वास है कि अभी भारत और भी कई मैडल जीतेगा। 1900 में भारत की ओर से नॉर्मन प्रिचार्ड ने दो सिल्वर मैडल जीते थे। मनु भाकर के कोच जसपाल राणा ने कहा कि मनु के लिए शूटिंग सबसे पहले है। टोक्यो ओलंपिक में आलोचनाओं के बावजूद कभी किसी से दुख जाहिर नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुकाबलों में प्रदर्शन मेडल वाला नहीं रहा। लेकिन आत्मविश्वास नहीं डगमगाने दिया। दोगुनी इच्छा शक्ति के साथ शूटिंग रेंज में लौटीं। ये खूबियां उन्हें अजय योद्धा बनाती है। शूटिंग मनु का पेशन है। वह इतनी समर्पित हैं कि सोती हैं या टीवी देखती हैं, तब भी पिस्टल पास रखती हैं। मनु के खेल में नियंत्रण है। जीत के लिए जिद है। हार उन्हें परेशान करती है। यही कारण है कि वे शूटिंग रेंज में देर तक रुकती थीं, ताकि परफेक्ट शॉट मिले। ऐसे में जब वे पोंडियम में दूर होने लगीं तो वे निराश थीं। मैंने बताया कि खराब प्रदर्शन को हार के बजाए सीखने के नजरिए से याद रखो। इसका असर इस बार ओलंपिक में नजर आया। उन्हें बहुत कम मौकों पर नर्वस देखा। (जैसा पेरिस से दैनिक भास्कर के अनिल बंसल को बताया)। फ्रांस के रातोहू में नेशनल शूटिंग सेंटर में 10 मीटर एयर पिस्टल मिक्सड में सर्बिया ने करीबी मुकाबले में जक्रिये को मात देकर गोल्ड जीता। जिस समय सर्बिया के शूटर खुशियों से ओत-प्रोत हो रहे थे। ठीक उसी समय उनके बगल से 22 साल की शांत भारतीय शूटर एक बड़े से प्लास्टिक बॉक्स में अपनी पिस्टल और अन्य उपकरण रेंज से बाहर लेकर आ रही थी। चेहरे पर सहज मुस्कान लिए इस भारतीय शूटर के हाव-भाव से जाहिर नहीं हो रहा था कि उसने भी एक इतिहास मुकम्मल कर दिया है। उसने वह कर दिया जिसकी कल्पना कुछ समय पहले तक कम से कम एक भारतीय तो नहीं कर सकता था। उसने अपने देशवासियों के ओलंपिक ड्रीम को एक नया आयाम दिया है। उसने ओलंपिक्स में ऐतिहासिक शुरुआत कर दी है। उसने भरोसा दिया है कि मनु है तो मैडल की गारंटी है। मैजिकल मनु भाकर को ढेर सारी बधाईयां। आप पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन गई हैं। इच्छा और लगन से लगे रहो तो कुछ भी पाया जा सकता है। हमें आप पर गर्व है।
- अनिल नरेन्द्र
538 सीटों पर कुल वोटों और गिनी संख्या में अंतर
इस साल यानि 2024 के लोकसभा चुनाव में 538 सीटों पड़े कुल वोटों और उनकी गिनती में वोटों की संख्या में अंतर दिखा है। यह दावा है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (डीआर) का। एडीआर के मुताबिक 362 सीटों पर कुल वोट और गिने गए वोटों में 5,54,598 का अंतर है। यानि इन सीटों पर इतने वोट कम गिने गए हैं। वहीं 176 सीटों पर कुल पड़े वोटों से 35,093 वोट ज्यादा गिने गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अमरेली, अत्तिंगल, गट्टिगल, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव को छोड़कर 538 सीटों पर डाले गए कुल वोटों और गिने गए वोटों में विसंगति है। इन 538 सीटों पर यह अतंर 5,89,691 वोट का है। सूरत सीट पर मतदान नहीं हुआ था। एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा कि चुनाव में वोटिंग प्रतिशत देर से जारी करने और निर्वाचन क्षेत्र वार तथा मतदान केन्द्र वार आंकड़े उपलब्ध न होने को लेकर सवाल हैं। सवाल ये भी हैं ]िक नतीजे अंतिम मिलान आंकड़ों के आधार पर घोषित किए गए थे या नहीं? चुनाव आयोग की ओर से इन सवालों के जवाब मिलने चाहिए। अगर जवाब नहीं आए चुनाव नतीजों को लेकर चिंता और संदेह पैदा होगा। हालांकि एडीआर ने यह स्पष्ट किया कि मतों में इस अंतर की वजह से कितनी सीट पर अलग परिणाम सामने आए। जगदीप छोकर ने कहा कि अगर जवाब नहीं आए चुनाव नतीजों को लेकर चिंता और संदेह पैदा होगा। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव आयोग काउंटिंग के आखिरी और ऑथेंटिक डेटा अब तक जारी नहीं कर पाया। ईवीएम में डाले गए वोट और गिने गए वोट में अंतर पर जवाब नहीं दे पाया। मत प्रतिशत में वृद्धि कैसे हुई, इसके बारे में भी अभी तक नहीं बता पाया। कितने वोट पड़े, मतदान प्रतिशत जारी करने में इतनी देरी कैसे हुई, वेबसाइट से कुछ डेटा उन्होंने क्यों हटाया? इन सारे सवालों के जवाब चुनाव आयोग को देने चाहिए, जो अब तक नहीं जारी किए गए। चुनाव आयोग ने कहाö2024 चुनाव में 65.79 प्रतिशत मतदान चुनाव आयोग ने 7 जून को लोकसभा चुनाव 2024 में कुल वोटिंग का आंकड़ा जारी किया। इस बार कुल मिलाकर 65.79 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। ये 2019 चुनाव के मुकाबले 1.61 प्रतिशत कम है। पिछली बार कुल आंकड़ा 67.40 प्रतिशत था। असम में सबसे ज्यादा 81.56 फीसदी मतदान, जबकि बिहार में सबसे कम 56.19 फीसदी मतदान हुआ। इस चुनाव मे मेल वोटर्स ने 65.80 प्रतिशत और फीमेल वोटर्स ने 65.78 प्रतिशत मतदान किया। वहीं अन्य ने 23.08 प्रतिशत वोटिंग की। 2019 चुनाव में 61.5 करोड़ लोगों ने वोट डाले थे। इस बार मतदाताओं की संख्या बढ़कर 64.2 करोड़ हो गई। इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि यह अपने आप में विश्व रिकार्ड है। यह सभी 6-7 देशों के मतदाताओं का 1.5 गुना और ईयू के 27 देशों के मतदाताओं का 2.5 गुना है। एडीआर ने कहा है कि निर्वाचन आयोग द्वारा अब तक वोटों की गिनती, ईवीएम में डाले गए वोटों में अंतर, मतदान में वृद्धि मतदान किए गए वोटों की संख्या का खुलासा न करना, डाले गए वोटों के आंकड़ों को जारी करने में अनुचित देरी और अपनी वेबसाइट से कुछ डेटा को साफ करने के अंतिम और प्राथमिक डेटा जारी करने से पहले चुनाव परिणाम घोषित करने में कोई उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहा है।
Thursday, 1 August 2024
नीतीश नदारद, ममता नाराज
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की बैठक छोड़कर बाहर निकल आईं। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष की एक मात्र प्रतिनिधि होने के बावजूद उन्हें भाषण के दौरान बीच में ही रोक दिया गया। हालांकि सरकार ने उनके आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि बनर्जी को बोलने के लिए दिया गया समय समाप्त हो गया था। दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बैठक में नहीं पहुंचे। उनकी जगह प्रदेश का प्रतिनिधित्व वहां के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने किया। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों वाले राज्यों ने इस बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया था। लेकिन शुक्रवार को ममता बनर्जी ने कहा था कि बैठक का बहिष्कार करने के सवाल पर इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में कोई समन्वय नहीं है, इसलिए वो बैठक में विपक्ष की आवाज के तौर पर शामिल होंगी। हालांकि उनके बीच में ही बैठक छोड़कर चले जाने के बाद इस पूरे मामले पर नई चर्चा शुरू हो गई। बैठक से बाहर निकलने पर ममता बनर्जी ने राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें बैठक में बोलने नहीं दिया गया। उन्होंने कहा मैंने बैठक में कहा कि आपको राज्य सरकारों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। मैं बोलना चाहती थी लेकिन मुझे सिर्फ पांच मिनट बोलने दिया गया। मेरा माइक बंद कर दिया गया। मुझसे पहले के लोग 10 से 20 मिनट तक बोले। मैं विपक्ष से अकेली थी वहां। मुझे बोलने नहीं दिया गया ये अपमानजनक है। ममता बनर्जी ने नीति आयोग को खत्म करके योजना आयोग को फिर से शुरू करने की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि ये थिंक टैंक पूरी तरह से खोखला हो चुका है, इसके कुछ देर बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने ममता बनर्जी के आरोपों का जवाब दिया और कहा कि ममता बनर्जी झूठ बोल रही हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ममता बनर्जी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हो रही नीति आयोग की बैठक में भाग लेने पहुंची थी। उन्होंने पश्चिम बंगाल की तरफ से और विपक्ष की तरफ से अपनी बात रखीं। हम सभी ने उनकी बातें सुनीं। उनका यह कहना कि उनका माइक बंद कर दिया गया पूरी तरह झूठ है। अगर वह और बोलना चाहती थीं तो और वक्त दिया जा सकता था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए नीति आयोग को पीएम के लिए ढोल पीटने वाला तंत्र और पक्षपाती बताया। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के साथ हुआ बर्ताव अस्वीकार्य है। यह नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के लिए ढोल पीटने वाले तंत्र के रूप में काम करता है। किसी भी रूप में हमने (नीति आयोग) सहकारी संघवाद को मजबूत नहीं किया है। इसका काम करने का तरीका स्पष्ट रूप से पक्षपात से भरा रहा है। यह न तो प्रोफेशनल है और न ही स्वतंत्र है, यह अलग तरह से असहमति से भरे सभी तरह के दृष्टिकोण को दबा देता है जो एक खुले लोकतंत्र के मूल तत्व हैं। इसकी बैठकें महज दिखावा होती हैं। प. बंगाल की मुख्यमंत्री के प्रति उसका व्यवहार जो नीति आयोग का वास्तविक रूप है बिलकुल स्वीकार्य नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
शरद पवार का अमित शाह को करारा जवाब
कभी-कभी हमारी समझ से बाहर होता है कि गृहमंत्री अमित शाह ऐसा बयान क्यों देते हैं जिससे न केवल वे अपने ऊपर कीचड़ उछलवाते हैं बल्कि अपनी पार्टी यानि भाजपा को भी नुकसान पहुंचाते हैं। मुझे याद है कि जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो माननीय अमित शाह जी ने एक सभा में कह दिया कि हम नंदिनी दूध व डेयरी प्रोडेक्ट की जगह अमूल दूध और प्रोडक्टस कर्नाटक में लाएंगे। नंदिनी दूध कर्नाटक में बहुत लोकप्रिय ब्रांड है। कर्नाटक के लोगों ने इसका बहुत बुरा माना और यह प्रचार होना शुरू हो गया कि अमित शाह कर्नाटक के दूध को गुजराती दूध से बदलना चाहते हैं और यह एक कारण बना कर्नाटक में भाजपा की हार का। अब महाराष्ट्र में अमित शाह ने शरद पवार पर ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे मराठा मानुस बुरी तरह आहत हो गया। शरद पवार न केवल 82-83 साल के वयोवृद्ध नेता हैं। बल्कि पूरे देश के सम्मानित नेताओं में से हैं। 21 जुलाई को महाराष्ट्र के पुणे में भाजपा के एक सम्मेलन में अमित शाह ने पूर्व केन्द्राrय मंत्री शरद पवार पर भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने का आरोप लगाया था। अमित शाह ने 21 जुलाई को कहा था-वे (विपक्ष) भ्रष्टाचार के बारे में बोल रहे हैं। भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सरगना शरद पवार हैं और इसमें मुझे कोई भ्रम नहीं है। अब वे हम पर क्या आरोप लगाएंगे। अगर किसी ने भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने का काम किया है तो वह शरद पवार आप ही हैं। अमित शाह की इस टिप्पणी पर शरद पवार ने पलटवार करते हुए अमित शाह को याद दिलाया है कि जैसे उन्हें (अमित शाह को) अदालत ने उनके गृह राज्य गुजरात से तड़ीपार (इलाके से बाहर भेजना) किया गया था। जिसे गुजरात से भगाया गया, वो आज देश का गृहमंत्री है। हमें सोचना चाहिए कि हम कहां जा रहे हैं। शरद पवार ने कहा-कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने मुझ पर हमला किया और मुझे देश के सभी भ्रष्ट लोगों का कमांडर कहा। अजीब बात है कि गृहमंत्री एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गुजरात के कानून का दुरुपयोग किया और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गुजरात से तड़ीपार कर दिया। पवार ने कहा कि इसलिए हमें यह सोचना चाहिए कि हम कहां जा रहे हैं, जिनके हाथों में यह देश है, वे लोग किस प्रकार गलत रास्ते पर जा रहे हैं, हमें इस पर विचार करना चाहिए, वरना मुझे 100 प्रतिशत विश्वास है कि वे देश को गलत रास्ते पर ले जाएंगे, हमें इन पर ध्यान देना चाहिए। अमित शाह की टिप्पणी पर उनके सहयोगी एनसीपी (अजीत पवार) के तमाम नेताओं, विधायकों ने उनके बयान पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में शरद पवार सबसे बुजुर्ग नेताओं में से एक हैं। हर पार्टी उनका सम्मान करती है, जनता उन्हें प्यार करती है। इसलिए अमित शाह की टिप्पणी उचित नहीं है। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में महायुति या एनडीए से एमवीए या इंडिया गठबंधन का सीधा मुकाबला है। हाल के लोकसभा चुनाव में एनडीए का प्रदर्शन बहुत खराब रहा और वे राज्य में 17 सीटों पर सिमट गई। जबकि इंडिया गठबंधन को 30 सीटें मिलीं। भाजपा को कुल 9 सीटें ही मिलीं। अब देखना यह होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कैसा रहता है और अमित शाह के बयान का कितना असर होता है।
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