Tuesday, 27 August 2024

जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद चुनाव


जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे। 2014 से 2024 के बीच यहां बहुत कुछ बदल चुका है। 20 दिसम्बर 2018 से यहां राष्ट्रपति शासन लागू है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में 87 सीटें थीं, जिनमें से 4 लद्दाख की भी थी। अब लद्दाख की सीटें हटाकर 90 हो गई है, क्योंकि लद्दाख अलग केंद्र शासित क्षेत्र है। इन 90 में से 43 जम्मू संभाग से और 47 कश्मीर संभाग में है। इनमें 7 सीटें एससी और 9 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। परिसीमन के बाद जो 7 विधानसभा सीटें बढ़ी हैं, उनमें से 6 जम्मू और एक कश्मीर में हैं। गुरुवार शाम कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डाक्टर फारुख अब्दुल्ला ने पत्रकारों से कहा, खुदा चाहेगा तो हमारा कांग्रेस के साथ गठबंधन अच्छे से चलेगा। हम सही ट्रैक पर हैं। इस चुनाव पूर्व गठबंधन की घोषणा राहुल गांधी और कांग्रेsस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान की। फारुख अब्दुल्ला ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की सभी सीटों (90) पर चुनाव पूर्व गठबंधन हुआ है। उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) इस गठबंधन में शामिल है। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता यूसुफ तारिगामी ने कहा, मुझे उम्मीद है कि हम भारी बहुमत से चुनाव जीतकर आम लोगों का जीवन आसान बनाएंगे। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने 2019 से जिन हालात का सामना किया है। उसकी कही और कोई मिसाल नहीं है। आज जम्मू-कश्मीर भी काफी परेशान है, वादा किया गया था कि स्टेट हुड को वापस किया जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है। परिसीमन के बाद भी चुनाव नहीं करवाए। हमारी कोशिश है कि एक सेक्युलर सरकार बने और लोग भी यही चाहते हैं। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन पर उन्हें घेरा। उन्होंने ट्वीट किया, मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 और 35ए हटाने के बाद से दलितों, आदिवासियों, पहाड़ियों और पिछड़ों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म किया, उन्हें आरक्षण देने का काम किया। क्या राहुल गांधी जेकेएनसी के घोषणा पत्र में उल्लेखित दलितों, गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ियों के आरक्षण समाप्त करने वाले प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को देश के सामने अपनी आरक्षण नीति को स्पष्ट करना चाहिए। कश्मीर के एक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस के साथ इस बार जो गठबंधन किया है। वह एक सोचा समझा कदम है। इस गठबंधन में भी हो सकता है कि जम्मू में जो मुस्लिम वोट हैं, अब उसके बढ़ने की आशंका कम हो सकती है। दूसरी बात यह है कि इस गठबंधन से भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई हैं। जम्मू-कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी में इस गठबंधन से लोगों में ये भी संदेश गया है कि भाजपा के खिलाफ दो बड़े सियासी दल खड़े हो गए हैं। घाटी में तो वैसे ही भाजपा सिफर है। हाल ही के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी अपने उम्मीदवार तक नहीं उतार सकी। भाजपा का ज्यादा जोर जम्मू संभाग में है जहां उनका सुरक्षित वोट बैंक है। हालांकि भाजपा इस बार घाटी में भी गठबंधन कर कुछ उम्मीदवार उतार सकती है।

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