Saturday, 17 August 2024

नया अध्यक्ष चुनने में अड़चनें क्या हैं?

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का नया फुलटाइम अध्यक्ष कौन होगा? पार्टी अध्यक्ष के तौर पर जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल खत्म हो गया है। यही वजह है कि राजनीतिक गलियारों में हर तरफ इस सवाल की चर्चा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रविवार को दिल्ली में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के घर पर इसे लेकर गहन मंथन किया गया। रिपोर्ट्स की मानें तो इस बैठक में राजनाथ सिंह के अलावा केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा महासचिव बीएल संतोष के साथ-साथ संघ की तरफ से महासचिव दत्तात्रेय होसबले और संयुक्त सचिव अरुण कुमार मौजूद थे। हालांकि नए अध्यक्ष के लिए कई नामों पर चर्चा हुई पर किसी भी नाम पर सहमति नहीं हो पाई। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर भाजपा को अपना अध्यक्ष चुनने में इतनी देरी क्यों लग रही है? संघ चाहता है कि इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद आम सहमति से नया अध्यक्ष बने। जबकि भाजपा चाहती है कि चुनावों से पहले नया अध्यक्ष अपना पद संभाल लें। चुनावों में कुछ वक्त मुश्किल से बचा है। ऐसे में अध्यक्ष पद पर किसी नए व्यक्ति को लाने से मुश्किलें होंगी, क्योंकि उन्हें चीजों को समझने में बहुत वक्त लगेगा। पार्टी संविधान के मुताबिक कम से कम 15 साल से जो व्यक्ति पार्टी का सदस्य होगा वही अध्यक्ष बन सकता है। भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों की तरह नहीं है। मायावती, अखिलेश यादव, स्टालिन जैसे नेताओं की पार्टियों में अध्यक्ष एक ब्रांड की तरह काम करता है, ऐसा संघ भाजपा में कभी नहीं होने देना चाहता। संघ चाहता है कि सरकार और पार्टी के नेतृत्व में फर्क हो। सरकार का काम सरकार चलाना और संगठन का काम अलग है जिसका नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो सरकार के निर्देशों पर काम न करे और स्वतंत्र रूप से पार्टी चलाए। संघ चाहता है कि गुजरात लाबी को पार्टी में हावी न होने दें। उसका थोपा हुआ अध्यक्ष अब संघ को स्वीकार्य नहीं है। पिछले दस साल में पीएम मोदी ने मोटे तौर पर अपनी मर्जी से पार्टी अध्यक्ष तय किए हैं लेकिन अब स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही है। बैठक में संघ के सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबोले और सह सरकार्यवाहक अरुण कुमार की मौजूदगी में अगर अध्यक्ष पद को लेकर मंथन हो रहा है तो संघ अपने तरीके से नए अध्यक्ष को देखना चाहता है। हालांकि आरएसएस कभी सीधे तौर पर अपनी तरफ से नाम नहीं देता, लेकिन जो नाम मिलते हैं उस पर वह अपनी राय जरूर देता है और यहां राय किसी आदेश से कम नहीं होती। भाजपा के घटते जनाधार की वजह से इस बार संघ पार्टी अध्यक्ष को लेकर दबाव बना रहा है, जो 4 जून 2024 से पहले वह नहीं बना सकता था। चार राज्यों के चुनाव नतीजे न केवल मोदी-शाह के भविष्य को तय करेंगे बल्कि कुछ हद तक मोहन भागवत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को भी तय करेंगे। अगर नतीजे अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के मुताबिक आए तो भाजपा अध्यक्ष अलग होगा और उनके अनुकूल नहीं आए तो अलग होगा, जिसमें संघ का पूरा दखल होगा। बैठक में पूर्ण कालिक अध्यक्ष के चयन से पहले कार्यकारी अध्यक्ष के नाम की घोषणा किए जाने की चर्चा है। कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में पार्टी महासचिव विनोद तावड़े का नाम सबसे ऊपर है। नए अध्यक्ष के चुनाव से पहले सदस्यता अभियान कम से कम 50 फीसदी राज्यों में संगठनात्मक चुनाव जरूरी हैं।

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