Thursday, 8 August 2024

बेहतर प्रदर्शन की अभी भी चुनौती

दस साल बाद कांग्रेस लोकसभा में 99 सीट हासिल कर सौ के आंकड़े के करीब पहुंचने में सफल रही है पर कांग्रेस के सामने अभी भी बहुत-सी चुनौतियां हैं। कमजोर संगठन, आपसी गुटबाजी, कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी, पैसे की कमी इत्यादि अभी भी चुनौतियां हैं। आने वाले दिनों में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। फसल तो तैयार है पर काटने वाला चाहिए। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। पार्टी ने करीब 2 फीसदी वोट की वृद्धि के साथ अपनी सीट में भी इजाफा किया, वहीं कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। वर्ष 2014 में कांग्रेस को 44 और वर्ष 2019 में 52 सीटें मिली थीं। इस बार उसकी सीटें बढ़ी हैं, लेकिन पंजाब (7) और केरल (13) को छोड़कर कहीं भी कांग्रेस अपने बलबूते पर किसी भी राज्य में सबसे बड़ा दल नहीं बन सकी। हिंदी पट्टी में तो कांग्रेस वर्षों से बी-पार्टनर बनी हुई है। बिहार में कांग्रेस को तीन सीटें राजद और उत्तर प्रदेश में 6 सीटें समाजवादी पार्टी के कारण मिली हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सबसे अधिक 13 सीटें जरूर जीतीं हैं, लेकिन यहां भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन था जिन राज्यों में सीधी टक्कर वाले राजस्थान में कांग्रेस को 8 (भाजपा को 14), कर्नाटक में 9 (भाजपा को 17), असम में 3 (भाजपा को 9), हरियाणा में 5 (भाजपा को भी 5), तेलंगाना में 8 (भाजपा को भी 8) सीटें मिलीं। इन राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका-दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, दमन दीव, जम्मू-कश्मीर और अडमान निकोबार। कांग्रेस के लिए बहरहाल खुशी की बात यह है कि भाजपा से सीधे मुकाबले में उसके स्ट्राइक रेट में इजाफा हुआ है। इससे भविष्य में पार्टी में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जगी है। वर्ष 2019 में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सिर्फ 8 फीसदी था, इस बार बढ़कर 29 फीसदी हो गया है। हाल ही में हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी का मामला सामने आया। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी प्रदेश में गुटबाजी रोकने में अब तक असफल रही है। यही वजह है कि हरियाणा में चुनाव से पहले ही दीपेन्द्र हुड्डा और कुमारी शैलजा आपस में भिड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश में गुटबाजी से पार्टी नेतृत्व असमंजस में है। पार्टी नेतृत्व के सामने सबको साथ लेकर चलना एक चुनौती बना हुआ है। लगभग यही हाल अधिकतर राज्यों में है। पार्टी अगर विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर मैदान में नहीं उतरती तो उसके लिए जीत की दहलीज पर पहुंचना आसान नहीं होगा। इस बीच मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक नेताओं के साथ बैठक की है। पार्टी अध्यक्ष ने मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को आपसी तालमेल के साथ काम करने की नसीहत दी। दरअसल कर्नाटक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार संभाल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने के बाद पार्टी में गुटबाजी उभर कर आ गई है। प्रदेश में जल्द स्थानीय निकाय चुनाव हैं। पार्टी में गुटबाजी का फायदा सीधा भाजपा को मिलता है। ऐसे में पार्टी को एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरना होगा और गुटबाजी से सख्ती से निपटना होगा। -अनिल नरेन्द्र

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